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अन्‍गयारी आँधी - 7

---उपन्‍यास

भाग—सात

अन्‍गयारी आँधी—7

--आर. एन. सुनगरया,

कौन दम्‍पति नहीं चाहेगा कि दोनों परस्‍पर एक दूसरे पर आसक्‍त हों, समर्पित हों। समग्र रूप में! जिन्‍दगी की आपा-धापी, उतार-चढ़ाव में अनेक ऐसे अक्‍सर, जाने-अनजाने आते हैं, जब एहसास होने लगता है कि दाम्‍पत्त जीवन में, इतना आत्‍मविश्‍वास स्‍थापित हो गया होता है कि स्‍वत: ही धारणा बन गई पति-पत्नि का सम्‍बन्‍ध अटूट होता है। दोनों की खुशी-ग़म, दु:ख-तकलीफ, आमोद-प्रमोद, परस्‍पर आवश्‍यकताऍं, इच्‍छाएँ, भावनाएँ, मान-सम्‍मान, चाहत, प्रेम, प्‍यार, भूख-प्‍यास सब कुछ एक हैं, जुदा-जुदा नहीं। यही एहसास एवं अनुभूति ही सात जन्‍मों के मिलन का प्रमाण होता है। ये सम्‍पूर्ण बातें लगातार बोलते हुये, बताईं शक्ति ने। खामेाशी टूटी हेमराज की विस्‍फोट भरी आवाज से, ‘’हरगिज नहीं!’’ भावावेश में आ गया, हेमराज, ‘’यह सच नहीं है।‘’ वह आगे बताने लगा, ‘’समय के साथ जिन्‍दगी की धारा निरान्‍तर बहती रहती है। इसी तरह बात-व्‍यवहार, विचार-मनोभावों में भी पल-पल परिस्थिति अनुसार परिवर्तन आता रहता है। यही जीवन्‍तता है। बने-बनाये ढर्रे पर जीवन नहीं चलता। किसी कारणवश ठहराव आ गया, तो वह तालाब के पानी के समान होगा। धीरे-धीरे प्रदूषित होता हुआ।‘’

‘’हॉं!’’ शक्ति ने सुर में सुर मिलाया, प्रकृति अटल नियम की भॉंति ही जीवन प्रभाव भी, अपनी मूल प्रवृति में स्‍वभाविक होगा।‘’

‘’पहेलियाँ मत बुझाओ शक्ति।‘’ हेमराज ने स्‍पष्‍ट जानना चाहा, ‘’खुल कर बताओ।‘’

‘’पति-पत्नि एक-दूसरे के पूरक होते हैं।‘’

‘’बिलकुल।‘’ हेमराज ने झट समर्थन किया।

‘’तो फिर दोनों के परस्‍पर अधिकार भी बराबर-बराबर होंगे।‘’

‘’अवश्‍य।‘’ हेमराज ने पुन: जोर देकर हामी भरी, ‘’इसमें दो राय नहीं।‘’

‘’परिस्थिति ऐसी आन पड़ी कि दोनों में मतान्‍तर की नौबद आ गई।‘’ शक्ति ने अपनी समस्‍या व अड़चन इंगित की।

‘’मतभेद!’’ हेमराज ने जानना चाहा, ‘’विस्‍तार से बताओ, क्‍या माजरा है।‘’ सुनने व जानने की मुद्रा में।

‘’हॉं, तुम्‍हें नहीं बताऊँगा, तो मेरे दिल-दिमाग में उथल-पुथल मची रहेगी।‘’ शक्ति इत्मिनान से सुनाने लगा, ‘’जन्‍म से जवानी तक; युवती मायके में मॉं-बाप, भाई-बहन, संग्‍गी-साथी, सहेलियॉं, सहपाठिययों में स्‍वच्‍छन्‍द समय गुजारने अथवा बिताने के पश्‍चात, ससुराल में प्रारम्‍भ होता है नया युग, परम्‍परागत। मगर जन्‍म स्‍थान के स्‍वात: - सुखाय समय सहेजी हुई सम्‍पदा व धरोहर होती है। अपनों का लाड़-प्‍यार, स्‍नेह, दुलार, खेल-खिलोनों का संसार, किशोरवय की अटखेलियॉं, शरारतें, धमा-चौकड़ी इत्‍यादि-इत्‍यादि। दिल-दिमाग एवं आत्‍मा पर गहरे तक अंकित हो जाती हैं। जो समय-समय पर अनुकूल आवोहवा पाकर उभरते ही हरी व तरो-ताजी हो जाती हैं। नई-नवेली फसल के समान हृदयॉंगन में लहलहाने लगती हैं। जुदा-जुदा अनुभूति होने लगती है। इसके बाद कुछ भी नहीं सुहाता, रत्तिभर भी नहीं।‘’

‘’श‍क्ति!’’ चौंका दिया हेमराज ने, ‘’क्‍या बड़बड़ा रहे हो।‘’

‘’नहीं!’’ शक्ति हड़बड़ा कर चेतनावस्‍था में आ गया।

‘’क्‍या हुआ!’’ हेमराज हल्‍का-हल्‍का हँसने लगा।

‘’हुआ तो कुछ नहीं।‘’ उदास मुद्रा में, ‘’हो सकता है।‘’

‘’क्‍या हो.....।‘’ हेमराज गम्‍भीर, ‘’कुछ खास....!’’

‘’हॉं, है, शादी ससुराल में साले की......।‘’

‘’धत्‍तेरे की!’’ हेमराज प्रसन्‍नता से, ‘’ऐसे सुना रहा है, जैसे कोई हादसा......।‘’

दोनों हँसने लगते हैं।

‘’हॉं, मेरे लिये तो......।‘’ शक्ति ने हेमराज की तरफ देखा, ‘’....हादसा ही है।‘’

‘’वह कैसे।‘’.......हेमराज को ताज्‍जुब है।

‘’कितने की चपत लगेगी.......।‘’

‘’यही तो नाते-रिश्‍तेदारी निवाहने का मौका है।‘’ हेमराज ने अपनी परिपक्‍वता दिखाई, ‘’जाओ हंसी-खुशी से, इन्‍ज्‍वाय करो, साले-सालियों के साथ रस्‍म, रिवाज, समझे!’’

‘’सब के सब नीरस हैं।‘’ शक्ति ने निराशा में कहा, ‘’खड़ूस, खुर....राट।‘’

‘’शादी-विवाह की धूम-धड़ाके में सब खुल जाते हैं, घुल जाते हैं, हंसी-मजाक धमा-चौकड़ी में।‘’ हेमराज ने जारी रखा अपना अनुभव, सब मस्‍ती के मूड में आ जाते हैं। नाच, गानों, पर थिरका, ठुमके लगाकर एवं ठुमके लगाते हुये देखकर, मौज-मस्‍ती में रम जाते हैं, भूलकर, भुलाकर, गिले-सिकवे, सब।‘’

‘’मैडम सपना भारी भरकम बजट लेकर बैठी है, मेरे कान पकड़कर!’’

‘’हक है, भाभीजी का।‘’ हेमराज ने हौंसला बढ़ाया, ‘’उनका मान-सम्‍मान कम ना हो, मायके में, इसका ध्‍यान तो रखना ही होगा।‘’ शक्ति को हल्‍की डॉंट पिलाते हुये, ‘’जग हंसाई करनी है, कम कोताही करके!’’ हेमराज ने जोर देकर कहा, ‘’वाह-वाह कर उठें सब, बहुत उत्‍साह और हर्षपूर्वक तैयारी करके आई है।‘’

‘’तुम तो यार भाभी के पक्ष में उल्‍टा उस्‍तरा लेकर बैठ गये......।‘’ शक्ति विफर गया।

‘’गम्‍भीरता से नफा-नुकसान पर आंकलन करके तो देखो।‘’ हेमराज ने सलाह दी।

शक्ति ने सोचने की औपचारिकता की तथा उसके मुखातिब हो गया, ‘’बता हेमराज, कैसे बचूँगा अनचाहे फिजूल खर्च से।‘’

‘’इसे तुम खर्च मानकर क्‍यों बैठे हो?’’ हेमराज ने अपने आसय को खोलना शुरू किया।

‘’तो क्‍या मानू?’’ शक्ति का प्रश्‍न।

‘’निवेश कहो, निवेश।‘’ हेमराज ने अस्‍पष्‍ट सलाह दाग दी।

‘’निवेश।‘’ आश्‍चर्य चकित, शक्ति।

हेमराज को शक्ति की मनोदशा पर तरस आने लगा। खुलकर बताना शिष्‍टाचारिक परिपाठी का उलंघन, विपरीत, भड़काऊ सलाह प्रतीत हो रहा है।

‘’निवेश’’ शब्‍द शक्ति को अटपटा लगा, फिर भी उसने जानना चाहा, ‘’निवेश किस बला का नाम है, बताओ।‘’

‘’........।‘’ हेमराज चुप्‍प!

‘’छोड़ूँगा नहीं।‘’ शक्ति ने दवाब डाला, ‘’आखिर संकोच क्‍यों?’’

शक्ति की जिज्ञासा और व्‍याकुलता उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी। हेमराज को भी लगने लगा, प्रतीकात्‍मक संकेतों से शक्ति समझ नहीं पायेगा। खुल्‍म-खुल्‍ला खास लहजे में बताना पड़ेगा, क्षमा मांगकर।

हेमराज को अपनी ओर देखकर बोलने के लिये, मुखमुद्रा भॉंपकर, तत्‍काल प्रेरित कर, टोका ‘’हॉं-हाँ बोलो।‘’

‘’तो फिर सुनो......।‘’ हेमराज भी दृढ़ता से डठ गया, ‘’जिसे तुम फिजूलखर्च मान रहे हो.....।‘’ झट से शक्ति का मुँह खुल गया, ‘’तो क्‍या मानू.....।‘’

‘’निवेश मानो।‘’ तुरन्‍त शक्ति समझ नहीं सका, ‘’पुन: निवेश....।‘’

‘’हॉं निवेश....।‘’

’’निवेश, निवेश.....निवेश....।‘’ शक्ति झुंझलाने लगा। व्‍यथित जैसा लगा। क्रोधित होकर बोला, ‘’कुछ स्‍पष्‍ट करोगे, ये निवेश किस चिडि़या का नाम है। कौन सा अकाट्य नुस्‍खा है, राहत पाने का?’’

हेमराज ने तुरन्‍त खुलासा किया, ‘’निवेश ही तो करना होता है, जिसका कुछ फायदा मिले..अथवा स्‍वयं बलपूर्वक वसूल कर सकें।‘’

‘’बल प्रयोग से?’’ शक्ति की शंका।

‘’प्रतिउत्तर में, बचाव के लिये।‘’

‘’नहीं, कोई विरोध नहीं होगा।‘’ हेमराज ने अपनी दलील दी।

‘’क्‍यों नहीं होगा?’’ शक्ति शंकित।

‘’इसलिये.....।‘’ हेमराज ने साफ किया, ‘’क्‍योंकि तुमने अपनी पत्नि, सपना को उसकी योजनाओं से बड़चड़कर तैयारी करके, उसे शादी में भेजा है। वहॉं उसकी भूरि-भूरि प्रसन्‍नसा हुई, तो वह तुम्‍हारी एहसानमंद हो गई हृदय से। उसके मन मस्तिष्‍क में आपके प्रति समर्पण की भावना स्‍थापित हो गई।‘’

‘’अच्‍छा।‘’ शक्ति ने रहस्‍यमय आश्‍चर्य से पूछा, ‘’तो इससे क्या होगा।‘’

‘’नहीं समझे?’’ हेमराज उछल पड़ा, ‘’अरे इस भावना के दोहन से, तुम अपनी भावनाओं को आशातीत भरपूर तृप्त करने का निर्विरोध, निशब्‍द, निर्भय पूर्वक रसास्‍वादन करते हुये, पूर्ण चूस लेने का निर्वस्‍त्र, आमन्‍त्रण, समर्पण का अवसर सुनिश्चित, बैखटके।‘’

‘’अजीब हो!’’ शक्ति ने थामा, हेमराज को, ‘’बोले ही जा रहे हो।‘’ शक्ति मुस्‍कुराया, ‘’शोषण.........सपना का....अपनी पत्नि का!’’

‘’हां! संतुष्‍टी के लिये, स्‍वार्थपूर्ण शोषण भी जरूरी है। कभी-कभी।‘’ हल्‍के-फुल्‍के लहजे में।

दोनों, मुस्‍कुराते-मुस्‍कुराते हंस पड़े, ठहाके की हंसी। ऑंखों में हंसी के ऑंसू उभर आये। पोंछते हुये दोनों का संयुक्‍त स्‍वर, ‘’देखते हैं।‘’ मुस्‍कुराहट पूर्णत: शाँत नहीं हुई अब तक।

‘’इसी को रीति, नीति, और नियत......कहते हैं।‘’ हेमराज ने अपने कथन का सारान्‍स बताया।

‘’नियत में खोट?’’ शक्ति ने अपना पक्ष रखा, ‘’किसे कहोगे।‘’

यह तो नातों, रिश्‍तों, सम्‍बन्‍धों का परस्‍पर आदान-प्रदान है। स्‍वार्थपरता की भी अपनी अहमियत है। सामाजिक धरातल पर वर्जित भी नहीं कह सकते। कदम-कदम पर अपनी इच्‍छाओं की प्रतिपूर्ति के लिये खुदगर्जी का सहारा लेना आवश्‍यक भी लगता है। दुनियादारी के संतुलन के लिये....आत्‍मा से तालमेल करते हुये समझौता गैरवाजिब तो नहीं हो सकता। सुख, शॉंति, सन्‍तुष्टि के लिये, सभ्‍यता के विपरीत तत्‍वों का समावेशी समझकर अपनाना पड़ता है। खेद!

सपना की बेरूखी, नाज-नखरे, ना-नुकर से निजाद पाने के प्रयोग मात्र के वास्‍ते, हेमराज का ख्‍याल आजमाने में कोई हर्ज नहीं है।

दिमागी तौर पर तैयार होकर शक्ति पहुँच गया, सपना के समीप। अपनी योजनाओं को परोसने से पहले उसने सपना का रूख महसूस करना चाहा, मगर सपना अपने घरेलू कामों में व्‍यस्‍त थी। कुछ समझ नहीं आया कैसे शुरू करूँ। सदा से ससुराल के खिलाफ ही खिलाफ रहने वाली छवि लेकर किस मुँह से पक्ष व प्रीत में प्रारम्‍भ करूँ। बड़ा जस्‍मन्‍जस है।

‘’क्‍या सब्‍जी, बना रही है।‘’ शक्ति ने सपना का ध्‍यान अपनी ओर खींचा।

‘’नहीं, तुम्‍हारी पसन्‍नद की बाद में बनाऊँगी, अभी हम अपनी दाल-रोटी बना लें।‘’

सपना पुन: अपने काम में भिड़ गई।

‘’रोज पसन्‍नद के खाने की आदत मत डालो।‘’ शक्ति ने ना चाहते हुये भी कह दिया।

‘’क्‍यों?’’ सपना उसकी तरफ घूरने लगी, ‘’कुछ कम-बेसी रह गई तो।‘’ सपना क्रोधित आवेश में कहने लगी, ‘’पूरे घर का सामान उलट-पुलटकर, आसमान सर पर उठा लोगे।‘’ निरास होकर बोली, ‘’कौन जोखिम मोल ले।‘’

‘’माफ करना।‘’ शक्ति जैसे गिड़गिड़ाने लगा, ‘’मैं समझ रहा हूँ, घर परिवार के लिये, तुम्‍हारा परिश्रम अनवरत घर के काम में खटते रहना। हमारी रोजमर्रा की सुविधाओं, जरूरतों को समय पर पूरा, करने में तुम्‍हें अपने आप के लिये समय ही नहीं बच रहता कि पल भर चेन की सॉंस लेकर आराम करने का। कितना नज़र अन्‍दाज करती हो, अपने सुख-सहूलियतों को। तुम्‍हारा भी तो पूरा हक है। बराबर का।‘’

‘’तुम मेरे लिये, मेरे प्रति इतनी आत्मिय सहानुभूति रखते हो, आज ही ज्ञात हुआ।‘’

सपना जैसे द्रवित हो गई। शक्ति को देखती रह गई मूर्तीवत।

शक्ति ने, कन्‍धे पकड़कर सपना को सोफे पर लाकर बैठाया, ‘’लाओ क्‍या काम है, मैं कर देता हूँ।‘’ सपना की सूरत देखकर लाड़, प्‍यार प्रेमपूर्वक कहने लगा, ‘’बहुत सुन्‍दर लग रही हो, चेहरे पर मुस्‍कुराहट लाकर।‘’ शक्ति बोलता गया, ‘’अपना ख्‍याल भी रखा करो!’’ तुम्‍हें शादी में जाने की भी तो तैयारी करनी है। इतनी सारी खरीदारी कब करोगी।‘’ शक्ति को महसूस हुआ, अपनी मंशा अनुसार आगे बढ़ रहा है, ‘’कुछ नये कपड़े भी सिलवाने होंगे, उसमें भी समय लगेगा।‘’

सपना को अपना ख्‍याब सच होता प्रतीत हो रहा है। वह चहक उठी, ‘’सच! तुम्‍हारा सहयोग होगा तो सब सरल, सुलभ हो जायेगा।‘’

‘’सहयोग!’’ शक्ति ने दृढ़ता से कहा, ‘’यह तो मेरा कर्त्तव्‍य है। मेरी भी तो ससुराल है। मुझे भी उत्‍साह है। तुम्‍हारे साथ शादी में जाने का।‘’

सपना के चेहरे पर खुशी की लालिमा छा गई। शक्ति भी मुस्‍कुराने लगा.......।

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश: -- 8

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

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