अन्‍गयारी आँधी - 10 Ramnarayan Sungariya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अन्‍गयारी आँधी - 10

-उपन्‍यास

भाग—दस

अन्‍गयारी आँधी—१०

--आर. एन. सुनगरया,

नदी की धारा कभी सीधी रेखा में नहीं बहती। टेड़े-मेड़े, ऊँचे-नीचे, पथरीले, मैदानी पहाड़, पर्वतों, झाड़-झंकाड़, झाडि़यों के झुरमुट से होकर गुजरती हुयी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती जाती है, निरन्‍तर हर हाल में। लगभग इसी भॉंति जिन्‍दगी भी अपनी यात्रा आगे बढ़ाती है। कब-क्‍या, तूफान, बवन्‍डर आ खड़ा हो जायेगा, कब भंवर में गोल-गोल चक्‍कर काटने लगती है। अकल्‍पनीय उलझनों के अम्‍बारपूर्ण फैलाव से उवर पाना असम्‍भव सा प्रतीत होता है।

अतीत के लिये रोयें, विलाप करें अथवा भविष्‍य की तरफ देखें, अंधेरे में.......द्वन्‍द्व में घिरा इन्‍सान अनिर्णय की स्थिति में खड़ा रह जाता है। ठहराव, बेवश की भॉंति अनायास ही कोई मुसीबत झोली में आ टपकती है, जो चहेती लगने लगती है। जिसे त्‍यागना, जैसे शरीर से आत्‍मा अलग करना। इस आत्‍मीय आफत से कैसे समन्‍वय, तालमेल, मेल-मिलाप स्‍थापित किया जाये। जो समग्र चेतना पर छा जाये, बहुत आनन्‍दमयी, प्‍यारी-प्‍यारी सी लगने लगे तो उसे सम्‍हालना, सहेजना ही सुखद लगने लगता है। मगर दो नावों में सवारी, खतरों के, आ बैल मुझे मार की तरह आमन्‍त्रण देना है। बसा-बसाया दम्‍पत्ति घर संसार को बरबादी के बारूद को चिंगारी दिखाने जैसा है। कोई बीच का रास्‍ता, बात-विचार करके, सर्वमान्‍य सुलह, समझौता करने के लिये सम्‍बन्धित सदस्‍यों को मनाया जाय, अनुमति, राजी-खुशी के सर्वोत्तम, श्रेष्‍ठ प्रयास सफल होने से ही जीवन निर्विवाद अग्रसर हो सकता है।

‘............खासकर स्‍वरूपा पूछ रही थी।‘ यह सपना द्वारा बताने पर शक्ति सहम जाता है। तत्‍काल प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त नहीं कर पाता है, ना ही आभास होने देता है, कि स्‍वरूपा से किसी तरह का लगाव है या होगा। एैसे ही शक्ति ने हेमराज को उत्तर दिया, ‘यूनिक’ और उसके चेहरे पर उभरी रहस्‍यमयी रेखाओं को भांपकर अन्‍दर ही अन्‍दर भयभीत हो गया था शक्ति, उसे शंका थी, कहीं हेमराज कुछ अन्‍य अर्थ निकालकर स्‍पष्‍टीकरण ना पूछने लगे। जश्‍मंजश में है शक्ति। सामने समस्‍या को महसूस करके गम्‍भीरता पूर्वक उसमें उलझता सा प्रतीत हो रहा है। बैचेनी बढ़ती जा रही है। दिमागी दवाब पल-प्रति-पल अपना प्रभाव अपने पंजे कस रहा है।

..............हेमराज से भी बचाव व सावधानी परम आवश्‍यक है। वह भी सूंघता रहता है, खोज परक प्रश्‍नों के द्वारा किसी रहस्‍य, गुप्‍त जानकारी जानने हेतु उत्‍सुक, जिज्ञासु, तत्‍पर रहता है, हमेशा। हेमराज को अपने-आप पर बहुत आत्‍मविश्‍वास है कि वह अतीत के कलुसित क्षणों के दुष्‍प्रभावों से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। तभी वह सर्वश्रेष्‍ठ हितचिंतक कहलायेगा। परिवार का प्रमुख्‍य संचेतक, सम्‍भवत: हेमराज नहीं समझ पा रहा है कि अतीत की अथाह गहराईओं में जो कारनामों से उपजे काले कालखण्‍ड के अंगारे आज भी धधक रहे हैं। जिनके निकट जाते ही झुलसे बिना लौटना मुमकिन नहीं। इसीलिये तो उन्‍हें पाताल लोक की चट्टानों में दबा रखा है। मगर कभी-कभी उनके अदृश्‍य तपिस के प्रकोप से बचना दुर्लभ दुष्‍वार हो जाता है। सम्‍भवत: इसी कारण सर्वोच्‍य चोटी को पार कर जाती है, क्रोधाग्नि, जो समग्र अमन-चेन को ध्‍वस्‍त करने के लिये पर्याप्‍त है। इस स्थ्‍िाति से सुरक्षा ही श्रेष्‍ठ प्रयास का प्रमाण है।

हेमराज को उन्‍हीं काले कालखण्‍डों की तलाश है। जो उसके दिल-दिमाग को भ्रमित किये रहते हैं। समय-बे-समय।

शक्ति को आश्‍चर्य तो है कि वह जिस तरह आन्‍दोलित एवं उत्तेजित है। बेकरार है। स्‍वरूपा से मिलने के लिये बातचीत, गप्‍प-शप्‍प करने के लिये। उतना स्‍वरूपा क्‍यों नहीं, आतुर! वैसे तो वह बहुत बोल्‍ड और अग्रे‍सिव लगती है। ऐसा तो सम्‍भव नहीं है कि उसे कुछ याद ना आता हो, वह मंजर तो ऑंखों-दिल-दिमाग में अंकित हो गया, स्‍थाई रूप में।

शक्ति स्‍वयं कुछ तिकड़म नहीं लगा पा रहा है, कि स्‍वरूपा की सोच व मनोदशा क्‍या है; उस अप्रत्‍यासित वाकिये के पश्‍च्‍चात! सॉंसों में समाकर समग्र सम्‍वेदनाओं-भावनाओं में समाहित होकर मूल तत्‍व में तबदील होकर स्‍थाई स्‍थान स्‍थापित कर चुका है। शक्ति के दिल-दिमाग में स्‍वरूपा से रू-ब-रू मिलने का विचार उमड़ने-घुमड़ने लगा। व्‍याकुल, व्‍यग्र आतुर, उदित हो उठा, शीघ्र-अति-शीघ्र सानिद्ध हेतु तड़पने लगा, तरसने लगा। बैचेनी ने इस कदर जकड़ लिया कि वह रोजमर्रा के क्रिया-कलाप हेतु भी अपने-आपको एकाग्र नहीं कर पा रहा है। एक बिन्दु पर पूर्णत: केन्द्रित हो कर रह गया है। इस असाय, व लाचारी से निजात पाने की गरज से वह सपना के पास पहुँचा। कुछ तरकीब सूझ जाय शायद, बातों-बातों में।

‘’अरे वो।‘’ शक्ति को देखते ही सपना का शॉंत स्‍वर, ‘’आ रही है।‘’

‘’कब!’’ अति उमंग से शक्ति जैसे फुटबाल की भॉंति उछलने लगा, ....टप्‍प.....टप्‍प! उल्‍हास में उसका नियंत्रण बेकाबू होता महसूस हो रहा है। अपार खुशी में भूलवश जुबान फिसल ना जाये, कोई शब्‍द अनायास एैसा ना फूट पड़े कि सम्‍हालना, सफाई देना दूभर हो जाये। शक-शुवह को जन्‍म ना दे दे। शॉंत, सम्‍हल, सोच समझकर बात व्‍यवहार पर संयम रखना ही होगा।

‘’कुछ काम है? वगैर सूचना, अचानक।‘’ शक्ति के अधूरे वाक्‍य पर ही सपना बताने लगी, ‘’फोन पर बताई थी।‘’ सपना ने अपनी लापरवाही स्‍वीकार की, ‘’मैं ही तुम्‍हें नहीं बता पाई। ध्‍यान से..........।‘’

‘’खैर! कोई खास वजह आने की?’’ शक्ति ने मालूम करना चाहा; क्‍या बहाना लेकर आ रही है।

‘’हॉं।‘’ सपना ने शक्ति की ओर देखकर गम्‍भीर लहजे में, बहुत ही समझदारी पूर्वक बताया, ‘’अपने बवली-बन्‍टी के साथ ही आवासिय विद्यालय में अपना बेटा भर्ती करवाना चाहती है। साथ रहेंगे, निश्चिंत हो जायेगी। हम लोगों से भी जल्‍दी–जल्‍दी मेल-मुलाकात होती रहेगी। अच्‍छा ही सोचा, स्‍वरूपा ने। बच्‍चे साथ-साथ रहकर पढेंगे-बढ़ेंगे खुशी-खुशी.........।‘’ सपना बोलती ही जा रही है, मगर शक्ति ना जाने कहॉं खोया हुआ है। सुन भी रहा है कि नहीं, ‘’सुनते हो।‘’ सपना ने लगभग चीखते हुये, ‘’ध्‍यान किधर...।‘’ हाथ की उंगलियों से संकेत।

‘’हॉं हॉं...सुन रहा हूँ।’’ शक्ति चौंक कर रिरयाने लगा, ‘’यह तो अति उत्तम योजना बनाई स्‍वरूपा ने.....दोनों परिवार के बच्‍चे हिल-मिल कर रहेंगे मजे में।‘’ शक्ति ने अपने विचार को आगे बढ़ाया, ‘’एक दूसरे की हिम्‍मत रहेगी, सुविधा होगी.....।‘’ शक्ति को लगा कुछ ज्‍यादा ही बोल रहा हॅूं। आंतरिक प्रफुल्‍लता भॉंप ना ले, सपना। अपनी जुबान अनावश्यक चलाते रहना उचित नहीं होगी।

मौन हो गया शक्ति, बिन मॉंगे मोती मिलें..........कहावत चरितार्थ होती प्रतीत हो रही है। स्‍वरूपा की खामोशी एवं निस्क्रियता पर शिकायती नजरिया पाल बैठा था शक्ति, उचित संदेश के अभाव में। यादों की अथाह गहराईयों में विलुप्त होती सी प्रतीत होती थी। परन्‍तु आज उसके, आगमन के बहु प्रतिक्षित शुभ संदेश ने सारे हवाई विचार-विमर्श की धारणाओं को निर्मूल साबित कर दिया। ध्‍वस्‍त हो गये हवा में तैरते कागज के किले। स्‍वरूपा द्वारा हालातों के धुंधले बादलों को चीरकर प्रवेश किया चमकते चॉंद की भॉंति, जो किसी अजूबे से कम नहीं।

स्‍वरूपा की सूझ-बूझ, चतुराई, चालाकी का कायल हुआ शक्ति। सर्वोच्‍च गोपनीयता पूर्वक, सर्वसुरक्षा सहित, जोखिम रहित श्रेष्‍ठ योजना के तहत, परस्‍पर एक-दूसरे से निर्बाधित मिलते रहना कितना सरल, सुलभ सुविधाजनक मार्ग खोज निकाला, अपनी मंशा व चाहत को हासिल करने में पूर्ण सफल होगी तथा किसी को कानों-कान भनक तक नहीं होगा। अपने शारीरिक सम्‍पदा का भरपूर सुखद मुआवजा इच्‍छा अनुसार वसूल करके इतनी भावविभोर व मनोयोग से संतृप्‍त होकर भी निष्‍कलंक, निष्लांछित, पवित्रता पूर्वक पूर्ण शिष्‍टाचारिक, मर्यादित रूप में निकल आयेगी किसी को किसी तरह का रत्ती भर भी शंका की गुन्‍जाईश शेष नहीं रहेगी।

स्‍वरूपा से सम्‍पर्क की लचर-बचर पगडन्डियों पर ही विचार मंथन में ही उलझा रहा शक्ति, मगर कोई पुख्‍ता, संदेहरहित कोई प्रारूप नहीं तैयार कर सकी शक्ति की बुद्धि। वहीं स्‍वरूपा ने मेल-मिलाप का कितना दृढ़ और स्‍वभाविक कारण चुना है। जिससे चारों दिशाओं में आनन्‍द ही आनन्‍द खुशी ही खुशी वाह स्‍वरूपा मान गये तुम्‍हारी बौद्धिक कार्यकुशलता का कमाल। एक तीर से अनेक निशाने, वे भी अचूक, अकाट्ट!

शक्ति सोच में पड़ गया, स्‍वरूपा के बनाये तिलिस्‍म में उसका ठौर-ठिकाना कहॉं होगा!

प्रतीक्षा के पल परिस्थिति के मुताबिक लम्‍बे-छोटे, दु:ख-दर्द, शंका-कुशंका, लाभ-हानि के आवरण से ढके रहते हैं। पूर्णत: भविष्‍य के गर्भ में। प्रतिक्षारत इन्‍सान के वश में मात्र प्रतीक्षा करना एवं अनुमानों का अन्‍दाज लगाना ही होता है। रहस्‍य से पर्दा तभी उठता है, जब इन्‍तजार का अन्‍त होता है। तभी अनुमान व अन्‍दाज का खुलासा होता है। रहस्‍योघाटन के पश्‍चात परिस्थिति या मनोदशा का निर्धारण हो सकता है। अत: धैर्यपूर्वक शॉंत चित्त सही समय को आने दो सामने।

शक्ति शीघ्र अति शीघ्र स्‍वरूपा को सम्‍मुख देखना चाहता है। एैसा आकर्षण है कि वह अपने-आप पर, अपने मन पर काबू नहीं कर पा रहा है। समय तो अपनी गति से ही चलेगा।

शक्ति अपनी कल्‍पना में भविष्‍य के नजारे गढ़ रहा है, सपने बुन रहा है.....

..........स्‍वरूपा के समीप बैठा उसके सुर में सुर मिला रहा है। लालित्‍य लिये नजारे में मदिरा मानिन्‍द मादकता मस्‍त शुरूर घोल रही है, सारा आलम नशीला महसूस हो रहा है। स्‍वरूपा, हल्‍के-हल्‍के चिपकती सी जान पड़ रही है। शक्ति भी अपना शारीरिक दबाब बढ़ा रहा है। जैसे कुदरत उन्‍हें अपने सजीव वातावरण में बाध्‍य कर रही है, ऊर्जा से ऊर्जा संलिप्‍त होने के वास्‍ते; जैसे स्‍वछन्‍द बहके बादल ने चमकते चॉंद को अपने आगोश में सुरक्षित कर लिया हो। तड़पती-तड़पड़ाती बिजली कड़की…. शक्ति की तंत्रता भंग हो गई और इधर-उधर बगलें झांकने-ताकने लगा।

स्‍वरूपा आ रही है। बस इतना ही सपना ने बताया, अधूरी जानकारी हुयी ना। शक्ति को ध्‍यान ही नहीं रहा पूरी स्थिति को विस्‍तार से गम्‍भीरता पूर्वक याद कर लेना चाहिए था। शक्ति ना जाने किस तुनक में था कि आगे कुछ पूछा ही नहीं। सपना को तो बताना चाहिए कौन सी ट्रेन है, स्‍टेशन कौन सा है, कब पहुँचना है। इत्‍यादि-इत्‍यादि।

सपना अपने रोज मर्रा के घरेलू कामों में व्‍यस्‍त होगई एवं शक्ति अपने खास ख्‍यालों में खो गया............

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश: -- ११

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍