The Author Alok Mishra फॉलो Current Read बुरा तो मानों .... होली है ( व्यंग्य ) By Alok Mishra हिंदी हास्य कथाएं Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books गोमती, तुम बहती रहना - 6 ज़िंदगी क्या है ? पानी का बुलबुला ?लेखक द्वा... खुशी का सिर्फ अहसास 1. लालची कुत्ताएक गाँव में एक कुत्ता था । वह बहुत लालची था ।... सनातन - 1 (1)हम लोग एक व्हाट्सएप समूह के मार्फत आभासी मित्र थे। वह लगभ... सही या गलत... कहते हैं इंसान वही जिसमें इंसानियत जिंदा हो.... लेकिन कभी कभ... ख़्वाबों की दुनिया में खो जाऊं "मेरी उदाशी तुमे केसे नजर आयेगी ,तुम्हे देखकर तो हम मुस्कुरा... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे बुरा तो मानों .... होली है ( व्यंग्य ) (2) 1.3k 6.5k बुरा तो मानों...... होली है ( व्यंग्य) लो साहब होली आ गई । सब ओर नारा लगने लगा ‘ बुरा न मानो .... होली है । वैसे भी हम भारतियों की परंपरा रही है कि होली हो या न हो हम बुरा नहीं मानते । देश का पैसा कोई माल्या या कोई मोदी ले भागता है , हमें बुरा नहीं लगता । हमें तब भी बुरा नहीं लगता जब गाय के लिए इन्सान को मार दिया जाता है और तो और पाकिस्तान हमारे सैनिकों को मारता रहता है तब भी हमें बिलकुल बुरा नहीं लगता । हम इस वाक्य को अपने जीवन में इस कदर उतार चुके है कि जब हम खुद अपने दफ्तर या स्कूल -कालेज देर पहुॅचते है तो हमें बिलकुल बुरा नहीं लगता । हम रिश्वत देने या लेने में भी बुरा नहीं मानते । ये अलग बात है कि हम हमेशा ही रिश्वत बुरा बताते रहते है । अब केवल होली में बुरा न मानना छोटी - मोटी बात है । हम तो इतने महान है कि अपने नेताओं के बचकाने बयान रोज सुन कर भी बुरा नहीं मानते । नेता जी जो पिछली बार चुनाव जीत गए थे ,पॉच साल तक गायब रहने के बाद पुनः चुनाव के समय आपके चरणस्पर्श करते तो बुरा मानना तो दूर की बात है ; आप तो खुश हो जाते है । प्रवचन देने वाले पाखंडी धर्म गुरूओं के उनकी शिष्याओं के साथ रंगरेलियों के किस्से जब आम होते है तो लोग उसे चट्खारे ले कर पढते, सुनते और चर्चा करते है , बुरा नहीं मानते । कुछ लोग जब यह कहते है कि हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख्ख और इसाई हम सब है भाई-भाई परन्तु हमें आपस में एक दूसरे खतरा है तो भी हमें बुरा नहीं लगता । किसी सरकारी काम के पूरा होने पर पता लगता है कि इस काम में केवल दस प्रतिशत का ही घोटाला हुआ है तो आपको और हमें बहुत संतोष होता है , बुरा नहीं लगता । हम लोगों ने बुरा मानना छोड़ ही दिया है । हम तो यह मानते है कि जो हुआ अच्छा हुआ , जो हो रहा है अच्छा हो रहा है और जो होगा अच्छा ही होगा । इस विचार के साथ हम बड़े ही दार्शनिक अंदाज में अपने आप को सकारात्मक सोच वाला बताने में नहीं चूकते । कुछ लोग इस बात को धार्मिक दृष्टिकोण से भी लेते है । ये दोनों ही विचारों ने हमें बुरा न मानने के लिए ही प्रेरित किया है । वैसे एक और व्यवहारिक दृष्टिकोण भी है जिसके कारण आप और हम लोग बुरा मानने से बचते रहते है । वो है कि यदि आप बुरा मान भी गए तो किसका क्या बिगाड लेंगे ? ये सारे के सारे दृष्टिकोण ही हमें बुरा मानने से दूर रखते है । बस इसी चक्कर में हमें बहुत सी बुरी लगने वाली चीजें बुरी नहीं लगती । अब समय आ गया है जब आम जनता को बुरा मानना प्रारम्भ कर देना चाहिए । अब हमारा और आपका नारा यह होना चाहिए कि ‘‘बुरा तो मानों ....... होली है ..... या नहीं है । ’’ ओ भाई होली है तो क्या नषा करोगे , होली है तो क्या लड़कियों से छेड़खानी करोगे और होली है तो क्या अभद्र भाषा बोलोगे ? बुरा तो माना ही पड़ेगा यदि बुरा न माना तो यह सब स्विकार्य हो जाएगा । होली में ही क्यों हमें तो बुरी बातों पर हमेशा ही बुरा माना होगा । घोटाले , कालाधन और रिश्वत पर बुरा मानना हमारा अधिकार है , इन पर बुरा लगना ही चाहिए । अफसरों और नेताओं की सांढ-गांढ , भाई - भतीजावाद और जातिवाद या सांप्रदायवाद पर बुरा मानना ही होगा । जो लोग हमें इन्सान न मान कर वोट और जाति मानते है उन्हें बुरा कहने में कोई बुराई नहीं होनी चाहिए । अब हमें बुरा मानने की परंपरा प्रारम्भ करनी ही होगी । आपको बुरा लगे तो दूसरे को बताओ , वो तीसरे को बताऐगा । इस तरह हमारे आस - पास बुरी चीजें बुरी और अच्छी चीजें अच्छी बनी रह सकती है । बुराई और अच्छाई का अन्तर ही आपके बुरा मानने पर ही निर्भर करता है । अब आप होली मनालो इस नारे के साथ ‘‘ बुरा तो मानों ........ होली है। Download Our App