बिरजू Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बिरजू


चैत का महीना निकल गया, बैसाख लग गया है,आम के पेड़ों पर बौर लग गई है और कहीं -कहीं किसी- किसी पेड़ पर छोटी छोटी अमियां भी लग गई है, सुबह-सुबह तो मौसम थोड़ा ठंडा रहता है लेकिन दोपहर चढ़ते चढ़ते मौसम गर्म हो जाता है,सब अपने खलिहानों में दोपहर का खाना बनकर ले आते हैं और दिन अनाज,भूसा सम्भालने में बीत जाता है ,सबकी फसलें खेतों से कटकर खलिहानों में रख गई है,लोग अपने अपने खलिहानों में अनाजों से भूसे को अलग करने में लगे रहते हैं कि आंधी और बारिश से पहले अनाज घर में सुरक्षित रख जाए, किसान अपनी मेहनत से उगाई फसल को सालभर खाने के लिए सुरक्षित कर लेता और अगर बीच में कोई काज-अवसर निकल आता है तो इसे ही बेचकर अपने ख़र्चे की भरपाई भी कर लेता है, उसकी जीविका का एकमात्र यही साधन है।
एक बड़ा सा खलिहान है, बहुत सी फसल रखीं हैं वहां, खलिहान को फसल आने से पहले बहुत अच्छे से गोबर से लीपा गया है,एक घना सा नीम का पेड़ लगा है, उसके नीचे एक तरफ बैलों का जोड़ा बंधा है और एक बैलगाड़ी खड़ी है।
एक लड़का भूखा-प्यासा, बैलगाड़ी पर लेटा है, उसका चेहरा देखकर लग रहा है कि उसने दिनभर से कुछ नहीं खाया है,बस उसकी आंखों से चुपचाप आंसू बहे जा रहे हैं____
तभी उसके बड़े भाई ने आकर पुकारा____
ओ, बिरजू चल उठ, मैं तेरे लिए खाना लाया हूं,देख, अपनी भौजाई की बात का इतना बुरा मान गया,वो तो है ही ऐसी,चल उठ खड़ा हो, मैंने भी नहीं खाया अभी तक,तू चला आया तो।
बिरजू, आंसू पोंछते हुए उठा, खलिहान में रखे मटके से लोटे में पानी निकाला, मुंह धोया फिर भाई के साथ खाना खाने बैठ गया,खाने मे ज्वार की रोटी थी और प्याज की लाल मिर्च डालकर चटनी,साथ में राई से छौंक लगीं हुई छाज थी,जो कि मिट्टी के एक छोटे से मटके में रखी हुई थी, दोनों भाइयों ने खाना खाया फिर बड़े भाई ने बिरजू से कहा थोड़ा आराम कर ले, उसके बाद गेहूं की सूप से उड़लाई शुरू करेंगे ताकि भूसा -भूसा उड़ जाए और गेहूं अलग हो जाए।
बिरजू के मां-बाप बचपन में ही चल बसे थे, बड़े भाई ने उसे और उसके एक और भाई,बहन को बड़ा किया है ,दोनों भाइयों की शादी हो चुकी है,बहन भी ब्याहकर अपने ससुराल चली गई है,जब तक वो थी तो बिरजू को खाने-पीने की दिक्कत नहीं होती थी,वो कहीं ना कहीं से खाने का इंतजाम कर देती थी, उसे इस तरह से भूखा नहीं रहना पड़ता था।
ऐसे ही रोज की किच-किच से बिरजू तंग आ गया है,ना तो बड़ी भौजाई ठीक से खाना देती है और ना छोटी___
एक दिन तो उसने खलिहान में चूल्हा बाल के खाना बना लिया , दोनों भौजाइयो को बहुत बुरा लग गया, बोली ये हमारी बदनामी फैला रहा है, भाइयों को धमकी दी कि हम यहां नहीं रहेंगे।
बड़े भाई बोले,हम भी रोज-रोज की बातें सुनते-सुनते तंग आ गये है,बस अनाज घर में रखते ही बिरजू का ब्याह होगा, फिर अपने लुगाई की हाथ की रोटी खाएं और शांति से रहे।
और बिरजू के लिए लड़की पसंद कर ली गई__

बिरजू के लिए जो लड़की पसंद की गई उसका नाम मालती है लेकिन उसे अभी तक बिरजू ने नहीं देखा है, लड़के-लड़की को एक-दूसरे को देखने का रिवाज ही नहीं है, बड़े भइया और गांव के दो-चार बड़े बूढ़े गये थे, लड़की देखने।
जेठ का महीना लग गया है,गरमी भी बहुत पड़ने लगी है और
ब्याह की तैयारियां शुरू हो गई है,सबके लिए दर्जी के पास कपड़े सिलने लगे हैं,अनाज भी धुलकर सूखने लगा,दाल, बड़ियां तैयार होनी लगी,सारे रिश्तेदारों को न्योता भेजा जाने लगा।
होने वाली बहु के भी कपड़े, गहने आ गये है, बड़ी भौजाई बोली,आओ छोटे लल्ला, अपनी होने वाली दुल्हन के कपड़े-गहने देख लो,लल्ला जी शरमा के बाहर चले गए और खलिहान में नीम के पेड़ के नीचे बिछी चारपाई पर लेट गये, अपनी होने वाली दुल्हन के बारे में कल्पना करके मुस्कुराने लगे।
शादी का दिन भी आ गया,आज मण्डप है,घर के बड़े से आंगन में मण्डप तैयार किया गया है,ढेर सारे आम और जामुन के पत्तो से मण्डप को ढका गया है ताकि सूरज की धूप मण्डप के नीचे ना पड़े और मण्डप के नीचे होने वाले कार्यक्रम आसानी से हो सके,मण्डप सज जाने के बाद आज से दूल्हे को तेल,हल्दी भी चढ़ेगी,उबटन भी होगा।
सारे घर के द्वारे और दरवाजो की चौखटों पर सफेद और गेरू रंग की मिट्टी से चित्रकारी की गई,सारे घर को गोबर से लीपा गया है, दोपहर के खाने में कच्ची रसोई होगी, जिसमें चने की दाल हींग के छौंक के साथ, पकौड़ियों वाली कढ़ी,आम का ताजा अचार, दही-बड़े,सूखाये गये चने का साग,रोटी,चावल और लड्डू होगे, पहले मेहमानों और पुरुषों का भोज हुआ, फिर महिलाओं को बैठाया गया, बहुत ही अच्छा लग रहा है, जमीन में बैठकर,सब टेसू के पेड़ के पत्तों से बने पत्तल पर भोजन कर रहें हैं,दाल और पानी जैसी चीजों के लिए मिट्टी के कुल्हड़ है और शाम को सब्जी-पूडी बनेगी।
आज बरात है, धूप के ज्यादा चढ़ जाने से पहले ही बारात की सारी तैयारियां हो चुकी है,बस दूल्हा जैसे ही कुलदेवी के दर्शन करके आएगा,बारात चल देगी,सारी बारात अपनी-अपनी बैलगाड़ियों से ही जाएगी, बैलगाड़ियों में खाने-पीने का सामान रख लिया गया है,लोटे और पतली पतली रस्सियां रख ली गई है ताकि कहीं भी कुआं वगैरह मिले तो पानी निकाल कर पिया जा सके, बारात ज्यादा दूर तो नहीं जानी है, यहां से सत्रह-अठारह किलोमीटर दूर , दूसरे गांव में जानी है,शाम तक पहुंच जाएगी।
दोपहर तक बारात आधे रास्ते पहुंच गई,सड़क के किनारे एक गांव था, जहां एक कुआं था, वहां नीम और जामुन के पेड़ों की घनी छाया थी, सबने सोचा यही बैठकर खाते-पीते हैं, फिर आराम करके धूप कम होने तक चलेंगे।
सब बैलगाड़ियों को खड़ा कर दिया गया, बैलों को छाया में बांधकर पानी और भूसा दिया गया, फिर सबने पूड़ी-पकवान निकाले और खाएं, कुंए से सबने पानी निकाला और पीकर आराम किया।
शाम तक बरात लड़की वालों के गांव पहुंच गई, गांव के पास बड़े से खलिहान में बरात के रूकने का इंतजाम किया गया है, खलिहान के अगल-बगल जामुन और नीम के घने पेड़ है, स्नानादि के लिए एक कुआं है, खलिहान से एक बड़ा पहाड़ दिखाई देता है, जहां कुछ बबूल की झाड़ियां और करौंदे के झाड़ है।
रात को भोजन के बाद, विवाह के नेगचार शुरू हो गये,रात में दो तीन बजे,फेरे और सारी रस्में शुरू हो गई,सुबह तक विवाह सम्पन्न हो गया,उस समय तीन दिन लग जाते थे शादी ख़त्म होने में
सब बड़े आराम से होता था।
बिरजू की बारात बहु को लेकर अपने गांव आ रही हैं, बार-बार बहु का घूंघट हवा में उड़ रहा है और मेहंदी लगे हाथ उसे सम्भालने की कोशिश कर रहे हैं और बिरजू मालती का चेहरा देखने की,शाम तक सब गांव पहुंच गए,नई बहुत का स्वागत हुआ, महिलाएं मंगल-गीत गा रही है,बहु और बिरजू के हाथों से सारे परिवार के दरवाजों पर हत्थे लगवाये गए लेकिन आज रात और बिरजू को इंतजार करना पड़ेगा अपनी नई दुल्हन से मिलने के लिए,जब दोनों साथ में कुलदेवी के दर्शन कर लेंगे तब दोनों को मिलने दिया जाएगा।
इसी तरह दो साल बीत गए सोलह साल की उमर में मालती दो बच्चों की मां बन चुकी है, बिरजू की शादी के बाद बंटवारा हो गया, बिरजू का अलग घर है और अलग खेती-बाड़ी,वो दिनभर खेतों में काम करता है जब मालती को बच्चों और घर के काम से फ़ुरसत मिल जाती है तो वो भी उसका हाथ बंटाने खेत पहुंच जाती है
फिर एक दिन बड़े भइया पहाड़ों में जानवरों को चराने गए पता नहीं कैसे पैर फिसल गया, नीचे लुढ़क गये,साथ में एक बड़ा सा पत्थर भी उनके पैरो पर गिरा, बहुत चोट आई और वो हमेशा के लिए अपंग हो गये,अब उनके खेतों की जिम्मेदारी भी बिरजू के सर आ गई।
इसी तरह अब बिरजू की शादी को पांच साल हो चुके हैं, बिरजू अब चार बच्चों का बाप बन चुका है,घर में कुछ ना कुछ लगा रहा था,वो अब चिड़चिड़ा हो गया है, मालती की काया भी जल्दी जल्दी बच्चे होंने से ढलती जा रही है,अब बिरजू उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देता।
तभी गांव में ना जाने कहां से एक सुंदर विधवा आकर रहने लगी है, उसने गांव के कई पुरूषों को फंसा रखा है,अब बिरजू भी उसके रूप-रंग पर रीझ गया है और उसके मायाजाल में फंस गया है, ना तो बच्चों पर ध्यान देता है और ना खेती-बाडी पर ,ये सब देखकर मालती और बिरजू में रोज झगड़ा होता है फिर एक दिन मालती ने गुस्से में आकर धतूरे के बीज खा लिए_____

धतूरे के बीज खाने के बाद मालती की तबियत बिगड़ने लगी,बच्चे भागकर बड़ी ताई के घर गए,ताई से बताया मां की तबियत ख़राब हो रही है, मालती की बड़ी जेठानी भागकर आई, मालती से पूछा कि क्या हुआ? बहुत पूछने पर बताया कि मैंने धतूरे के बीज खा लिए है, मैं इस सबसे परेशान हो गईं हूं___
तभी जल्दी से जेठानी ने गुनगुना घी पिलाया, गुड़ खिलाया,इन दोनों चीजों से मालती का जी मिचलाने लगा और मालती को उल्टियां हो गई जिससे धतूरे के बीज निकल आए,अब मालती ठीक थी, बिरजू को भी ये बात पता चली,वो भागकर घर आया,उसे अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था, उसने मालती से माफी मांगी।
ऐसे ही दिन कट रहे थे ,अब बड़े भइया की बेटी बड़ी हो गई थी अब उसकी शादी के बारे में सोचा जाने लगा, बड़े भइया के अपंग हो जाने के बाद बिरजू ने उनके भी खेत सम्भाल लिए थे,तब से बड़ी भौजाई बिरजू से अच्छा व्यवहार करने लगी थी,अब बिरजू के पास दो परिवारों की जिम्मेदारी थी।
बिरजू ने खेतों में इस साल जमकर मेहनत की, रात-रात भर खेतों में बना रहता, खेतों की रखवाली करता कि कहीं से जानवरों का झुण्ड आकर फसल ना खराब कर दे, रात-रात भर खेतों में पानी लगाता,उसने सोचा कि इस बार फसल अच्छी हो गई तो बड़े भइया की बड़ी बेटी का ब्याह इस साल निपटा देगा,एक जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी फिर अगले एक-आध साल में दूसरी का ब्याह कर दूंगा फिर भइया का एक ही बेटा है वो पढ़ाई में अच्छा है ,उसको मैं ठीक से पढ़ाऊंगा ताकि वो बड़ा आदमी बन के सारे घर को सम्भाल सके, यही रूपरेखा बनाता रहता।
पूस का महीना चल रहा था, कड़ाके की ठंड पड़ रही थी, सुबह-सुबह खेतों में कोहरा छाया रहता लेकिन जैसे जैसे सूरज की रोशनी गहराती जाती,ठंड कम होने लगती,दिन में खेतों धूप पड़ती तो हरे-भरे खेतो में एक अलग सी चमक आ जाती,खेत सूरज की रोशनी में और भी खुश और लहलहाते हुए दिखते,अब तो चने और मटर के खेतों में फूल आने लगे थे, किसी-किसी में तो छोटी-छोटी फलियां भी लग गई थी, गेहूं में भी बालियां लग गई थी और सरसों भी फूलने लगी थी, खेतों को ऐसे लहलहाते हुए देखकर बिरजू का मन प्रसन्न हो जाता कि उसकी मेहनत सफल हुई,उसे अपने ऊपर गर्व होता।
फिर एक रात बिरजू की तबियत खराब थी, मालती बोली आज रात तुम आराम करो,आज रात छोटे जेठ जी को कह दो,वो कर लेंगे खेतों की रखवाली, बिरजू मान गया और उस रात बहुत जोर की बारिश हुई,ओले भी गिरे और बिरजू को सारी रात नींद नहीं आई,सुबह बारिश रूकी और बारिश रूकते ही बिरजू खेतों की तरफ भागा, खेतों की दुर्दशा हो गई थी,सारी फसल जमीन पर पलटी हुई पड़ी थी,ओले पड़ने से फसल के सारे फूल कुचल गए थे बिरजू ये देखकर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया और फूट-फूटकर रो पड़ा,तब तक मालती भी पहुंच गई,वो रोते हुए बोला देख मालती हमारी सारी मेहनत बर्बाद हो गई, मालती ने जैसे तैसे बिरजू को ढांढस बंधाया।
इस साल फसल ज्यादा अच्छी नहीं आई थी तो इस बार बिरजू को बड़े भइया की बेटी के ब्याह के लिए साहूकार से कर्जा लेना पड़ा, उसने सोचा अगले साल फसल अच्छी आएगी तो कर्जा चुका देगा,फसल तो अच्छी हुई लेकिन इस बार भइया के बेटे को पढ़ने के लिए शहर भेज दिया,उसका आई.टी.आई. में चयन हो गया था, उसकी पढ़ाई और शहर का रहना, खाना,इधर दो परिवारों का भरण-पोषण,इसी बीच बिरजू का एक बैल भी मर गया, जैसे-तैसै मालती के कुछ गहने गिरवी रख कर बैल खरीद लिया गया,समय का पहिया अपनी रफ्तार से चल ही रहा था कि इतना भयानक सूखा पड़ा कि जमीन में नमी नहीं रह गई ,सब तालाब, नहरें सूख गये, कुओं में भी तली में पानी रह गया, लोगों ने कपड़े धोना कम कर दिया कि पीने का पानी बचा रहे,उस कड़ी विपत्ति में बड़ी भौजाई और मालती के बचे-खुचे गहने भी बिक गये लेकिन बिरजू ने कर्जा ज्यादा नहीं होने दिया।
लेकिन अगले साल भगवान ने सुन ली, खूब बारिश हुई और फसल भी अच्छी हुई, बिरजू ने बड़े भइया की दूसरी बेटी के भी हाथ पीले कर दिये और कर्जा भी चुका दिया।
फिर कुछ दिनो बाद गांव में हैजा फ़ैला, जिससे बिरजू के भइया और भौजाई स्वर्ग सिधार गए साथ में बिरजू की एक बेटी भी स्वर्ग सिधार गई।
समय बीतता जा रहा था, भइया के बेटे की ट्रेनिंग के बाद रेलवे में नौकरी लग गई और उसने वहीं प्रेम विवाह कर लिया और कभी वापस गांव नही आया, बिरजू के तीनों बेटे बड़े हो चुके थे और खेती-बाडी में बिरजू का हाथ बंटाने लगे थे, तीनों में से कोई भी गांव के स्कूल के अलावा और कहीं नहीं पढ़ पाया था जोकि पांचवीं तक था, बिरजू ने बड़े बेटे का ब्याह भी कर दिया था।
अब मालती बहुत ज्यादा बीमार रहने लगी थी, उसके रोग का इलाज गांव के वैद्य के बस में नहीं था, वैद्य ने कहा शहर के डाक्टर के पास ले जाओ, बिरजू मालती को शहर के डाक्टर के पास ले गया, डाक्टर ने बताया कि मालती को कैंसर है,अब मालती के इलाज के लिए कर्जा लेना ही पड़ा, बहुत पैसे खर्च हुए लेकिन मालती ठीक नहीं हो पाई, कर्जा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा था लेकिन मालती ठीक नहीं हो पा रही थी फिर एक दिन वो चल बसी। बिरजू के ऊपर बहुत कर्जा चढ़ गया था, उसने सोचा अब थोड़ा-थोडा करके हर साल चुका दूंगा लेकिन अगले दोनों साल बारिश ही नहीं हुई, यही सब सोच कर बिरजू बीमार रहने लगा,उसे आय का अब कोई साधन नहीं दिख रहा था, पैसों की तंगी की वजह से दोनों छोटे बेटे भी ग़लत राह पर चल पड़े,एक शराबी हो गया और एक जुआरी, दोनों आए दिन बड़े भाई से पैसों के लिए लड़ते, बड़ा भाई भी दोनों छोटे भाइयों के व्यवहार से परेशान हो गया था, फिर एक दिन बिरजू ने अपने खेतों में जाकर फांसी लगा ली और अगर बिरजू का बेटा भी कर्जा ना चुका पाया तो शायद उसे भी फांसी लगानी पड़े क्योंकि ज्यादातर भारतीय किसानों को यहीं करना पड़ा है।

समाप्त___

सरोज वर्मा___🌱