सब्जी बाजार
हम सामाजिक रुप से बहुत ही समृद्ध होते जा रहे है । अब हमारी सामाजिक समृद्धता चाय-पान के ठेलों ढाबों और सब्जी बाजारों में दिखार्इ देती है। सामान्यत: मध्यमवर्गीय व्यक्ति ऐसे ही स्थानों का प्रयोग आज - कल मिलने - जुलने और सामाजिक सद्भावना बढाने के लिए करता हुआ देखा जाता है । मेल- जोल के चक्कर में या फिर घर और बीबी के झंझटों से परेशान हमारा आम आदमी हाथ में थैला पकड़ें बाजार और खासकर सब्जी बाजार में ही दिखार्इ देता है । वो अक्सर ही वास्कोडिगामा की तरह महंगार्इ के जमाने में सस्ते सामान की दुकानों की खोज करता हुआ पाया जाता है । बस वो खोजता रहता है .... खोजता रहता है .... यहाँ से वहाँ ...... वहाँ से यहाँ .... खोजता रहता है ।
साहब मजा तो सब्जी बाजार में आता है। नीचे जमीन पर बैठे ,ठेले वाले और कच्ची-पक्की दुकान वाले दुकानदार खरीददारों को आकर्षित करने के लिए नए - नए प्रयोग करते है । पालक ले लो ss......;धनिया है हरा- हरा ss.....; .अराररा ∙∙ss .... पूरा बिक गया ...... ;आज तो सेम का बाजार∙∙ss....... आ जाओ........आ जाओ......। सभी हांकों की मिली-जुली आवाजों की संगति कभी पा∙..धा∙∙..नी∙∙∙..सा∙∙∙∙.. सी सुरीली तो कभी आधुनिक गीतों की ओर ध्यान खीचती है । इन्हीं के बीच हमारा आम आदमी बाजार में दिखार्इ देता है । आपको तो मालूम ही होगा कि खास लोग जैसे नेता , अधिकारी ऐसे बाजारों में कभी भी दिखार्इ नहीं देते । अगर ये आपको दिख जाए तो समझ लीजिए कि इनके बुरे दिन चल रहे होंगे। कर्इ बार सोचा कि आखिर ये लोग इतने असामाजिक प्राणी क्यों होते है ? क्या इनकी रसोर्इ में सब्जी -भाजी नहीं पकती है ? फिर सोचा जनता का खून पी कर जीने वालों को सब्जी -भाजी की जरुरत ही क्या है ? फिर कुछ लोग अपने घरों की सब्जी से अधिक इनके घरों की सब्जी पहुंचाने की चिन्ता करते है और पहुंचाते रहते है । आदि... आदि... खैर छोडि़ए ।
हाँ साहब तो हम कहाँ थे .... ? ..सब्जी बाजार में । अचानक ही आज - कल कुछ सब्जियों के भाव बढने लगे तो सब को आशंका होने लगी कि कहीं चुनाव -वुनाव तो नहीं आ गए । पिछली बार प्याज के आंसूओं में सरकार का बहना किसी सुनामी से कम तो न था । तो साहब खेती - किसानी से अधिक क्रिकेट पर ध्यान देने वाले मंत्री जी वही है लेकिन प्याज की जगह टमाटर ने ले ली । हमारे एक सगे से सौतेले साथी है के.पी. सक्सेना । उनका अपहरण हो गया पिछले दिनों । फिरौती में अपहरण कर्ताओं ने प्याज मांगे थे । अब हम है कि टमाटर का भाव पूछते समय अगल -बगल देख लेते है। फिर तुरन्त ही याद भी आ जाता है कि हम उत्तरप्रदेश या बिहार में नहीं है तो भय थोड़ा कम हो जाता है । यहाँ लोगों के थैलों के साइज से ही अंदाज लगाया जा सकता है कि कौन कितना बड़ा आसामी है । वर्मा जी तो हमेशा ही दो बड़े-बड़े थैलों को भर के सब्जी खरीदते है । इनकी ऊपर की आमदनी बहुत होगी । वो देखिए तांड़े जी को आधे-एक घंटे से केवल भाव ही पूछ रहे है ; सब्जी लेने की तो हिम्मत ही नहीं जुटा पाए । एक शिक्षक की खरीददारी ऐसी ही होती है । मिसेस जोशी ... आप मिस्टर जोशी को नहीं जानते ...अरे वही जो राजस्व में है ... अरे वही जो हर बड़े अधिकारी के खास बन जाते है । हां ... तो मिसेस जोशी पूरी सजधज के साथ ही सब्जी बाजार में दिखार्इ देती है । उन्होने दो किलो टमाटर तौलने को क्या कहा सबका ध्यान ही अपनी ओर खींच लिया । वे समझते हुए भी बेफिक्र सी अपने साथ आर्इ नौकरानी को बोली ''ठीक से छांटना ।" अब तो सबको यह मालूम हो गया कि छोटी वेतन में भी मेम साहब पूरे ठाठ - बाट और नौकर-चाकरों के साथ सुखपूर्वक जीवनयापन कर रही है । इस बाजार से कुछ बड़े सेठ साहुकार तो चोरी-चोरी थोड़े से टमाटर खरीद कर ले जा रहे थे । बाद में मालूम करने पर सूत्रों के हवाले से जानकारी प्राप्त हुर्इ कि उन लोगों को लगता है कि कहीं कोर्इ उन्हे अधिक टमाटर खरीदता हुआ देखकर इन्कम टैक्स , सीबीआर्इ और लोकायुक्त को शिकायत न कर दे ।
इसी सब्जी बाजार में कुछ ऐसे भी लोग है जो इंतजार कर रहे है कि कब दुकानदार के पास न तौलने लायक कुछ बचेगा । वे ऐसे मौके पर ही दुकान से कुछ खरीद कर अपने बच्चों को सब्जी नसीब करवा पाते है ।
सब्जी बाजार एक बहुआयामी जगह है । यहाँ खरीदने और बेचने वाले अपने-अपने जीवन की कथा के कुछ दृश्यों के साथ जी रहे होते है । वे आपस में मिल रहे होते है ,सुख-दुख जान रहे होते है और एक दूसरे से प्रतियोगिता भी कर रहे होते है । यहाँ कुछ लोग कुछ छुपा रहे होते है तो कुछ लोग कुछ दिखावा करने में व्यस्त होते है । यहाँ के उठते -गिरते भाव जितने खरीददारों को प्रभावित करते है उतने ही बेचने वालों को भी । जो इन भावों से अछूते रह जाते है ; वे ही इस सब्जी बाजार में कभी दिखार्इ नहीं देते है ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"
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