अनमोल तोहफे Rama Sharma Manavi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अनमोल तोहफे

आज जीवन और उसकी पत्नी स्वस्थ होकर हॉस्पिटल से घर आ गए थे।दो दिन बाद ही उनकी मैरिज एनिवर्सरी थी।उसकी शादी को 15 वर्ष हो गए थे।पत्नी बगल में दवा लेकर गहरी नींद में सो रही थी,औऱ वह यादों की गलियों में भटक रहा था।
घरवालों की पसंद से राशि उसकी पत्नी बनकर उसकी जिंदगी में आई थी, हूर की परी तो नहीं थी,लेकिन गेहुएं रँग की आकर्षक, सीधी-साधी युवती थी,विवाहोपरांत शीघ्र ही अत्यंत कुशलता से गृहस्थी की बागडोर सम्हाल लिया था उसने,घर में सभी उससे प्रसन्न एवं सन्तुष्ट थे।एक जीवन ही था,जिसे उससे तमाम शिकायतें थीं,आधुनिक कपड़े नहीं पहनती है, फूहड़ की तरह घर में रहती है, उसके साथ खुल कर रोमांस नहीं करती है, पार्टियों में जाने से कतराती है, दिन भर घर के कामों में जुटी रहती है।वह कभी नहीं महसूस कर पाया कि घर को सुचारू रूप से चलाने के लिए राशि कितना अथक प्रयास करती है, उसके माता-पिता की देखभाल, भाई-बहनों की जिम्मेदारी फिर अपने दोनों बच्चों की परवरिश आसान तो कदापि नहीं था,वह तो पैसे देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता था।एडमिशन करवाने के बाद कभी बच्चों के स्कूल तक नहीं गया था।सभी राशि की तारीफ करते अघाते नहीं थे।राशि ने उससे कभी कोई शिकायत की ही नहीं, अतः जीवन को यह अहं हो गया था कि वह परफेक्ट है, जो भी कर रहा है पत्नी के लिए काफी है।
शिकायतों के बावजूद जीवन राशि से कभी अभद्रता नहीं करता था।हां, कभी कभी मजाक में अहसान प्रदर्शित करने से नहीं चूकता था।राशि कभी प्रतिवाद नहीं करती थी, बस मुस्करा कर रह जाती थी।राशि के जन्मदिन, अपनी मैरिज एनिवर्सरी, नए साल, दिवाली पर वह राशि को उपहार अवश्य देता था लेकिन जता भी देता था कि मैं कितना ख्याल रखता हूँ।राशि उसके लिए कपड़े लाती थी,तब भी वह कह देता कि कमाई तो मेरी ही है।आज वह सोच रहा था कि हम पुरुष महिलाओं के कार्यों को अपना अधिकार समझ लेते हैं, उसमें छिपे उनके अपनेपन को महसूस नहीं कर पाते, बस हमें अपनी श्रेष्ठता अर्थोपार्जन में नजर आती है, वे घर में नीवं के पत्थर की भांति अपना अमूल्य योगदान देती रहती हैं।
पिछले साल जीवन को किडनी में इंफेक्शन हो गया था, चिकित्सा से ठीक हो गया, लेकिन जल्दी-जल्दी इंफेक्शन होने लगा।एक वर्ष बीतते-बीतते उसकी दोनों किडनी खराब हो गईं, सभी हैरान थे कि उसने तो कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया था, और कोई भी गलत आदत नहीं थी,हर 15 दिन पर डायलिसिस की नौबत आ गई थी।अब डॉक्टर ने कह दिया था कि किडनी ट्रांसप्लांट करानी पड़ेगी।कुछ महीने तक डोनर का इंतजार किया गया, किंतु व्यवस्था न हो सकी।राशि जिद पर अड़ गई थी अपनी एक किडनी देने के लिए।जीवन डर रहा था कि कहीं दोनों को कुछ हो गया तो बच्चों का क्या होगा।लेकिन अंततः राशि की बात माननी पड़ी,यह गनीमत रही कि राशि का टेस्ट पॉजिटिव था जिससे उसकी एक किडनी जीवन के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दी गई।शीघ्र ही दोनों स्वस्थ होकर घर आ गए।छोटे भाई और उसकी पत्नी ने घर की सारी व्यवस्था सम्हाल ली थी।यह भी राशि के ही परिश्रम और सूझबूझ का सुपरिणाम था कि पूरा परिवार एकजुट था।इतनी बड़ी समस्या से सबके सहयोग से वे निकल आए थे।वह तो स्वतंत्रता की चाह में भाई के विवाहोपरांत अलग रहना चाहता था लेकिन राशि सबके साथ रहने की जिद पर अड़ी रही।नाराजगी में हफ्तों उसने राशि से बात तक नहीं की थी।
जो अनमोल उपहार राशि ने उसे दिया था उसका जीवन बचाकर, वह कभी स्वप्न में नहीं सोच सकता था।वैसे,देखा जाय तो दो प्यारे बच्चे, हर रिश्ते को असीम प्यार …..राशि के दिए सारे ही तोहफे अनमोल ही हैं, वही बेवकूफ था जो अबतक समझ नहीं सका था।अब उसने दृढ़ निश्चय किया था कि राशि की दी जिंदगी सिर्फ और सिर्फ राशि की है, उसे स्नेह से निहारते जीवन भी निद्रा के आगोश में समा गया।
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