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हमारे घर छापा


हमारे घर छापा


एक दिन अचानक ही मेरे मोहल्ले में हड़कम्प मच गई । पुलिस के एक बड़े से दस्ते का एक बड़ा सा फौज-फाटा हमारे मोहल्ले में दाखिल हुआ । हमें लगा , पड़ोस के वर्मा जी के घर आज छापा पड़ा । वर्मा जी कहने को तो सरकारी मुलाजिम है वो भी तीसरी श्रेणी के मगर उनके ठाट-बाट से पूरा महोल्ला ही जलता है । हमारे महोल्ले में बस एक वो ही है जिन्हे किसी छापे का ड़र हो सकता है । हम जैसे लोग तो सपने में भी छापे की कल्पना नहीं कर सकते । पुलिस के इस लावलश्कर से हमें न कोई चिन्ता होनी थी और न हुई । चिन्ता उस समय होने लगी जब चार पुलिस वाले हमारे दरवाजे पर आ कर रूके और बाकी ने हमारे घर को ऐसे घेर लिया जैसे हम भागने वाले हो । एक सफेद कार से चार लोग उतरे और उन्होंने पूछा ‘‘ यही है मिश्रा का घर है ? ’’ हमारी तो घिघ्घी ही बंध गई हमने हाॅ में सिर हिलाया । बस क्या था वे सीधे घर में अंदर दाखिल हो गए । वे बोले ‘‘ सब मोबाईल यहाॅ ला कर रख दो । ’’ मुझे लगा मोबाईल मेरे पास भी रहें तो भी मै क्या कर लुंगा , जादा से जादा अपने फटीचर रिश्तेदारों को फोन करता या अपने उन कमीने दोस्तों को जो ऐसे समय पर कभी साथ देने वाले नहीं है । पूरे मोबाईल टेबल पर पहुॅचनें के बाद वे बोले ‘‘ फोन है ?’’ हमनें कहा ‘‘ नहीं ..... बिल अधिक आता था कटवा दिया । ’’


वे बोले ‘‘ देखिए आपके यहाॅ छापा पड़ा है । हमें मालूम हुआ है कि आपके पास बहुत सा काला धन है । ’’ हम बड़ी मुस्किल से बोल पाए ‘‘ साहब यहाॅं तो गुलाबी नोट के भी लाले पड़े है , ये काला नोट कब जारी किया सरकार ने । ’’ वे कड़क कर बोले ‘‘ होशियारी नहीं .....अब आपके घर के कोने -कोने की तलाशी होगी । ’’ इस बीच हमारी पत्नी उनके लिए चाय और नाश्ता ले कर ऐसे आई जैसे उसे इनकी ही प्रतिक्षा रही हो । मैने उसकी ओर देखा और पूछा ‘‘ ये क्या है ?’’ वो धीरे से फुसफुसा से बोली ‘‘ देखो इनके आने से अब हमारा सम्मान बढ़ेगा । हमारी लड़कियों के रिश्ते फटाफट हो जाऐंगे और अब वर्मा की बीबी भी ड़ींग नहीं मार पाऐगी । ’’ नाश्ता उन्होंने छुआ भी नहीं , तलाशी चालू हो गई ।


उन्होंने पूछा ‘‘ तिजोरी कहाॅं है ? ’’ हम बोले ‘‘ तिजोरी तो नहीं है ..... तिजोरी कहाॅ ....... दो-तीन लोहे की अल्मारी है , उनमें कपड़े रखते है । ’’ वे बोले ‘‘ फिर होशियारी .... चाभी दो ।’’ मैने जवाब दिया ‘‘ साहब चाभी तो नहीं है ....... कपड़ों की अल्मारी है , खुली ही रहती है । वे अल्मारीयों से कपड़े निकाल कर फेकने लगे । उनमें हमारी पत्नि के अधोवस्त्र भी बाहर आ गिरे उन्हें उसनें जल्दी से उठा कर अपने पल्लू में छुपा लिया । वे कड़क कर बोले ‘‘ ऐ क्या छुपा रही है .... दिखा ..... दिखा क्या छुपा रही है ? ’’ वो क्या बोलती दिखाया और आॅखों में पानी लिए वहाॅ से चली गई । उन्हे अल्मारी में दो पुराने पाॅच सौ के नोट मिले । वे बोले ‘‘ये क्या है ? ’’ मै अब तक संयत हो चुका था बोला ‘‘ साहब ये मेरे पिता की निशानी है अब भले ही ये आपके लिए काला धन हो मेरे लिए ये मेरे पिता की याद है । ’’ उन्होंने अल्मारी पूरी उलट-पुलट ड़ाली अब वे घर के बाकी सामानों को उलट-पुलट रहे थे । उन्हें कुछ न मिलने पर वे और बौखलाहट में सामानों को फेक-पटक रहे थे । उन्होंने मेरी किताबों की अल्मारी देखी बोले ‘‘ इसमें क्या है ?’’ मैं बोला ‘‘किताबें ।’’ बोलते-बोलते ही मैने उसे खोल दिया । अब वे एक-एक पुस्तक का एक-एक पन्ना पलट कर सरस्वती नहीं लक्ष्मी ढूंढ रहे थे । सरस्वती पुत्र के घर उन्हें लक्ष्मी मिलती भी तो कैसे ? उन्होंने हमारे गद्दे - रजाईयाॅ फाड़ कर देखी , फर्श भी जहाॅ से पोला लगा खोद ड़ाला । अब हमारा घर किसी कबाड़खानें की तरह लग रहा था । उन्हें अब भी आशा थी , उन्होनें पानी की टंकी , टी.व्ही. , फ्रिज और कुलर तक को नहीं छोड़ा ।


आखिर वे हार गए । वो बोले ‘‘ तू या तो बहुत ही बड़ा बदमाश है या फिर बड़ा भिखारी । ’’ मै बोला ‘‘ साहब आप कुछ भी समझे कुछ भी कहें पर आपको भी सोचना चाहिए आप एक सरकारी कर्मचारी के घर महिनें की अंतिम तिथियों पर छापा मार रहे है । ’’ मेरी पत्नि विनम्रता से बोली ‘‘ साहब अब आप नाश्ता तो लें । ’’ वे नाश्ता करने लगे तब मेरी पत्नि बोली ‘‘ साहब अब आप मीड़िया से क्या बोलेगें ?’’ वे बोले ‘‘ बता देगें कि हम गलती से आप जैसे कड़के के यहाॅ आ गए थे । ’’ वो फिर बोली ‘‘ आपने इतनी मेहनत की है तो एक मेहरबानी और कर दें ।’’ वो बोले ‘‘ कहिए ।’’ मेरी पत्नि बोली ‘‘ आप मीड़िया को कुछ तो जप्ति बता ही दें नही तो हमारी बहुत बेइज्जती हो जाएगी । ’’ वे बोले ‘‘ ऐसा कैसे हो सकता है ........ खाली-फोकट में ? ’’ मेरी पत्नि ने हाथ जोड़े तो हमनें भी जोड़ दिए । वे बोले ‘‘ आपके पास तो कुछ है भी नहीं फिर......।’’ मेरी पत्नि बाहर जाने लगी , पुलिस वाले रोकने लगे और मीड़िया वाले उसकी ओर बढ़ने लगे । साहब के इशारे पर पुलिस की सुरक्षा में वो बाहर गई और कुछ ही क्षणों में वापस भी आ गई । उसनें नोटों की एक गड्डी साहब की ओर बढ़ा दी । बस सब के सब हमें हमारे कबाड़ा बने घर के साथ छोड़ कर चले गए ।


बाद में पत्नि ने मुझे बताया कि उसनें वर्मा जी की पत्नि से पैसे उधार ला कर साहब को केवल और केवल अपनी इज्जत बचाने के लिए दिए । रात को रजाई गद्दों के बगैर आग के आस-पास बैठ कर पूरे परिवार ने रात काटी । दूसरे दिन हम समाचारों में थें मगर साहब की दया से चोर साबित नहीं किए जा रहे थे । हाॅ इससे हमें जो लोग फटीचर समझते थे अब हैसियतदार समझनें लगे है।


आलोक मिश्रा


9425138926


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