सच कहते है लोग वक्त हवा जैसा होता है। पल भर मे उड़ जाता है। आज सोनिया को इस दुनिया से गए हुए दस साल हो चुके है। नन्ही सी जूही अपनी मां के जाने के बाद अपने मौसी के साथ चली गई उनके घर। तब से आज तक वो वही पर है। सुबह 5 बजे वो उठी नाहने के बाद स्कूल का यूनिफॉर्म पहना और सब के लिए नाश्ता बनाने लगी। नाश्ता तैयार होते ही उसने आवाज लगाई।
" नाश्ता तैयार है। दो औरते और एक मर्द आ जाओ।"
" आपको नहीं लगता मां, ये बोहोत ज्यादा बोलती है।" जूही की मौसी की लड़की तितली ने कहा। " क्या आज इसका जन्मदिन है? जो इतना सारा खाना बनाया है ? "
" क्या जन्मदिन। मनहूस कही की। आज मेरी बहन का मरण दिन है। आज दस साल हो गए उसे जाकर पर अब तक इस मनहूस की वजह से उसके इंश्योरेंस के पैसे नहीं मिले हमे।" जूही की मौसी ने नाश्ते की प्लेट हाथ मे लेते हुए कहा। उनकी बातो को अनसुना कर जूही अपना स्कूल बैग लेकर निकली।
" वो पासबुक जहा भी छिपाई है, मुझे देदो समझी। वरना बोहोत बुरा होगा तुम्हारे लिए।" उसकी मौसी ने पीछे से आवाज लगाई।
" आपको पता होगा वो कहा है। आपने वैसे भी मेरे सारे पैसे खत्म कर ही दिए है। अब और नाटक क्यों ?" जूही
उसकी मौसी ने नाश्ते की खाली प्लेट उस पर फेंकी, जो सीधा जूही के सर पर जा गिरी।
" अगली बार उल्टा जवाब दिया, तो जबान जला दूंगी याद रखना।"
जूही ने अपने आप को संभाला वो बाहर निकली तभी स्कूल जाने के रास्ते मे बारिश शुरू हो गई।
" बारिश हमेशा ही क्यों होनी है? जब की तुम्हे पता है मेरे पास छाता नही है। क्यो ? "
वो स्कूल पोहोची। वहा भी हालत ऐसी ही थी, कोई जूही से बात नही करता था। कोई उसके साथ नही रहता, नाही खाना खाता। वो सच मे इस पूरी दुनिया में अकेली थी। स्कूल का दिन खत्म कर वो वापस घर जाने निकली।
" ये सुनो। अनोखी दुल्हन।" उसने कहा।
उसे अनदेखा कर जूही मोबाइल के हेडफोन कानो मे लगा कर गाना सुनने लगी।
" ये सुनो ना । मुझे पता है, तुम हमे देख सकती हो।"
जूही अभी भी अपने रास्ते पर चल रही थी।
तभी अचानक से डरावनी शक्ल बनाए वो आत्मा अचानक उसके सामने आ गई।
" आ .....…...... अपनी शक्ल ठीक करो। मुझे डराओ मत प्लीज़।" जूही ने चीखते हुए कहा।
" अब आई ना अक्ल ठिकाने। कब से आवाज लगा रही हु।" वो एक महिला की आत्मा थी जो नजाने कब से जूही को ढूंढ रही थी। " अनोखी दुल्हन तुम भी अकेली हो में भी अकेली हूं। तो तुम मेरे साथ चलो, हम दोनो साथ रहेंगे।"
" जाओ यहां से, मुझे नहीं आना तुम्हारे साथ। समझी।" जूही ने कहा।
" देखो अच्छे तरीके से समझा रही हूं, चलो मेरे साथ। वरना ....." उसने अपनी आंखे लाल चमकीली की।
" तुम मुझे नहीं ले जा सकती। पता है न कौन हू में। अनोखी दुल्हन। तुम्हारे महाराज की बीवी। अगर मुझे खरोच भी आई तो वो तुम्हे नहीं छोड़ेगा।" जुहीने डरते हुए कहा।
" अच्छा । पर वो तो यहाँ..............."
वो कुछ कहते कहते रुक गई। कही कुछ देख उसकी सफेद आंखे बड़ी बड़ी हो गई।
" आ गया। महाराज आ गए। तुम सच मे उनकी दुल्हन हो। मुझे माफ कर देना।" एक पफ के साथ वो जूही के सामने से गायब हो गई।
जूही ने चैन की सांस ली। आत्माएं हमेशा अनोखी दुल्हन होने की वजह से उसकी बात माना करती थी। लेकिन कुछ आत्माएं उसे बोहोत ज्यादा डरा देती थी पर इस एक वजह से वो हमेशा उनसे बची रही।
अब वो वापस अपने रास्ते चलने लगी थी।
बारिश अभी भी शुरू थी।
तभी वो वहा से गुजरा। जूही और उसमे कुछ एक फीट की दूरी थी। इतनी भीड़ मे भी वीर प्रताप ने उसे घूरती उन दो नन्ही आंखो को देखा। बिल्कुल एक सेकंड के लिए दोनो की आंखे मिली, फिर दोनो अपने अपने रास्ते चले गए।