भोला की भोलागिरी - 11 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से) SAMIR GANGULY द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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भोला की भोलागिरी - 11 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

भोला की भोलागिरी

(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

कौन है भोला ?

भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.

उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.

भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.

भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.

और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!

और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.

तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’

... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.

कहानी नं. 18

भोला ने धर्म बदला

अब भोला स्कूल जाने लगा था उसकी कक्षा में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई हर धर्म को मानने वाले बच्चे थे. और आजकल भोला उनके धर्म में दिलचस्पी ले रहा था.

दरअसल भोला कुछ समय से हिन्दू धर्म से रूठा हुआ नजर आ रहा था. और उसकी वजह थी शिव मंदिर के पुजारी जी. मंदिर जाकर भोला की पहली नजर होती थी प्रसाद पर. भोला ने जन्माष्टमी के दिन सात बार प्रसाद लेने का रिकॉर्ड बनाया था. लेकिन अब वह पुजारी जी की नजर में था. वे उन्हें एक बार ही प्रसाद लेने देते थे. और प्रसाद भी दूसरों से कम देते थे. दूसरों को दो पूरी और एक लड्‍डू तो भोला को एक पूरी और आधा लड्‍डू. कभी-कभी तो सिर्फ़ दो बताशे. वो भी घूरते हुए.

इसलिए अब भोला का मन हिन्दू धर्म से उचट रहा था.

कक्षा में एक मित्र था माइकल. वह हर इतवार को चर्च जाता था. वह टिफिन में ब्रेड, केक, पेटीज, कटलेट लाता था. इसलिए भोला को ईसाई धर्म में कुछ संभावनाएं नजर आई. उसने मन ही मन अपना ईसाई नाम भी सोच लिया. भोला राम से जेन्टलमैन.

अगले इतवार को वह भी माइकल के साथ चर्च गया, पादरी का घंटे भर का प्रवचन सुना. मगर उसके बाद खाली हाथ लौट आया. माइकल ने बताया चर्च में प्रसाद जैसा कुछ नहीं मिलता. इस जानकारी से निराश होकर भोला ने फैसला लिया जो धर्म प्रसाद नहीं देता वह उसका नहीं हो सकता.

अब भोला ने इस्लाम को आजमाने की सोची. अनवर को अपना नया दोस्त बनाया. अपना नया नाम भी सोच लिया. भोला राम के समान मासूम अली. मस्जिद में प्रसाद वगैरह मिलता है या नहीं यह भी जानना जरूरी था. इसलिए वह एक दिन अनवर के साथ नमाज पढ़ने मस्जिद चला गया.

अनवर ने कहा, ‘‘ चलो पहले वजू कर लें.’’ वजू यानी हाथ-मुंह धोना. भोला ने मन ही मन सोचा, हाथ -मुंह धुलाया है तो खाने को भी कुछ मिलेगा.

इसी उम्मीद के साथ उसने नमाज पढ़ी, मगर यहां से भूखे पेट लौटना पड़ा और भोला ने मुसलमान बनने का इरादा भी छोड़ दिया.

अब अगला धर्म बचा था सिक्ख. और कक्षा में सिक्ख छात्र था सरबजीत सिंह. इस बार भोला ने पहले बात कर लेने में ही भलाई समझी. और सरबजीत ने बताया कि गुरूद्वारे में सुबह-सुबह गर्मागर्म हलवे का कड़ाह प्रसाद और दोपहर को लंगर में रोटी दाल- सब्जी मिलती है. इतना ही नहीं सरबजीत एक इतवार को भोला को गुरूद्वारे ले भी गया. भोला गुरूद्वारे जाकर और भरपेट प्रसाद, लंगर खाकर खुश हो गया उसने पक्का कर लिया कि अब सिक्ख ही बनना है

सरबजीत की सलाह पर केश बढ़ाने लगा, कड़ा, कच्छा पहनने लगा.

कृपाण की जगह फिलहाल नेल कटर रखने लगा. अपना नया नाम भी सोच लिया- भोला सिंह.

बाल जल्दी-जल्दी बढ़ाने के चक्कर में भोला सिर में सरसों का तेल तो खूब लगाने लगा, मगर सर्दी के दिन थे सो नहाने से बचने लगा. बाल गंदगी के साथ बढ़े, तो सिर में जुएं हो गई. फिर एक दिन ताऊ ने नाई को बुलाकर उसे गंजा कर दिया. इसी के साथ सिक्ख धर्म से उसका नाता टूट गया.

और वह हिन्दू धर्म में लौट आया.