भोला की भोलागिरी
(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)
कौन है भोला ?
भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.
उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.
भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.
भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.
और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!
और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.
तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’
... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.
कहानी- 11
भोला ने मेला में गधा बेचा
किशनगंज में पशु मेला लगा था. ताऊ ने भोला को बुलाकर कहा, ‘‘ जा तू भी, नीलामी में मिले इस तीन टांग के घोड़े को बेच आ.
वहां जाकर हांक लगाना-दो टांग के गधे का तीन टांग वाला गधा ले लो! देखना गधा बिक जाएगा.
मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. सांप, उल्लू और बैल तक बिक गए, लेकिन सुबह से शाम हो गई और भोला हांक लगाता रह गया.
मेला खत्म ही होने वाला था कि वहां रघ्घू कुम्हार आया और बोला, ‘‘ मैं तुम्हारा गधा खरीद सकता हूं, मगर मेरे पास पैसे नहीं है. गधे के बदले मैं तुम्हें सौ घड़े दे सकता हूं.’’
भोला खुश हो गया. एक के बदले सौ. भोला ने रघ्घू को गधा पकड़ा दिया और रघ्घू ने कहा कि वह रात तक उसके घर सौ घड़े पहुंचा देगा.
सुबह बरामदे में सौ घड़े देखकर ताऊ का पारा चढ़ गया. भोला को पीटने को उठे हाथ से अपना सिर पीटते हुए बोले, ‘‘ अब इनका क्या होगा?’’
एक कोने से बुआ बोली, ‘‘ बिजनेस!’’
ताऊ फिर दहाड़े, ‘‘ मगर कहां?’’
बुआ, ‘‘ जहां जरूरत हो वहां. ये भोला देखेगा!’’
और फिर भोला पड़ोसी मंगल राम की खटारा ठेली पर बीस घड़े लादकर उन्हें बेचने निकल पड़ा.
घूमते-घूमता दोपहर तक जा पहुंचा, कला विद्यालय के सामने! काफी देर तक कोई भी उधर नहीं फटका.
हालांकि यह एक भीड़भाड़ वाला हायवे था.
फिर एक मैडम आयी और पूछा, ‘‘भय्या कितने का है एक घड़ा?’’
भोला भोलेपन से बोला, ‘‘ चाहे जितने दे दो!’’
मैडम: मतलब?
भोला: एक भी तो नहीं बिक रहा.
फिर भोला ने मैडम को नीलामी में गधा मिलने से लेकर घड़ों तक की सारी कहानी सुना दी.
मैडम यह सुनकर पहले तो हंस दी और बोली, ‘‘ चलो अक्ल लगाते हैं, कुछ हल निकालते हैं!’’
और वो मैडम जो कि सामने वाले कला विद्यालय की आर्ट टीचर थी, अपना बैग खोलकर उसमें से पेन्ट और ब्रश निकालकर एक घड़े को पेंट करने बैठ गई.
घड़ा अब एक कलाकृति का रूप ले चुका था. टीचर की देखादेखी उनके विद्यार्थी भी वहां आ गए और सबने भोला को दस-बीस रूपए पकड़ाते हुए सभी घड़े खरीद लिए.
मैडम ने घड़े पर सुंदर पेंटिंग पूरी करके भोला को वह पकड़ा दिया और कहा, ‘‘ यह मेरी तरफ से तुम्हें भेंट!’’
बीस विद्याथियों को घड़े पर पेन्टिंग करते देख वहां काफी भीड़ जुट गई. लोग उन्हें तीन-चार सौ रूपए में खरीदने भी लगे. कई कारें भी वहां रूकी.
एक कार वाले ने भोला से उसके पेन्टिंग वाले घड़े को हजार रूपए में खरीदना चाहा.
मगर भोला ने उसे नहीं बेचा. यह उसके लिए एक अमूल्य सीख से भरा घड़ा था.
कहानी - 12
भोला ने रामलीला में भाग लिया
भोला खुश था कि इस बार रामलीला में उसे भी चुना गया है. उसे अशोक वाटिका के उस वृक्ष की भूमिका दी गई थी, जिसके नीचे सीता मय्या बैठी थी. इसके लिए उसे हरे कपड़े पहन कर दस मिनट तक खड़े रहना था. उसकी गर्दन हाथों और सिर पर तरह-तरह के फल जैसे कि केले, संतरे, सेब लटकाए या बांधे जाने थे. उसे एक भी डायलॉग नहीं बोलना था. बस चुपचाप खड़े रहना था. यह रोल करने को कोई भी दूसरा बच्चा तैयार नहीं था, इसलिए उसे चुना गया था, मगर भोला खुश था और हर रिहर्सल में वह सबसे पहले पहुंच जाता था.
हनुमान का रोल गज्जू कर रहा था. वह परले दर्जे का शरारती था और अब तो उसके हाथ में गदा आ गई थी. इसलिए राम, रावण, सीता समेत कोई भी नहीं बचा था उसकी गदा की मार से.
फिर आ पहुंचा नाटक का दिन. परदा खुला मंच पर दिखाई दिए अशोक वृक्ष, सीता मैय्या, दो राक्षसियां. दर्शकों ने तालियां बजाकर इनका स्वागत किया. और फिर अंगूठी फेंक कर हनुमान उर्फ गज्जू की एंट्री हुई. लाल मुंह, लाल बंडी और लंगोटी और लाल गदा.
एक बार फिर तालियां बज उठी.
हनुमान बने गज्जू को जोश आ गया और उसने अशोक वृक्ष बने भोला के पीठ पर गदा घुमा दी. भोला हिल गया.
अब गज्जू को अपना डायलॉग बोलना था, मगर डायलॉग तो वह भूल गया था. उसने सीता की तरह दोनों राक्षसियों की तरफ देखा और फुसफुसा कर बोला- मुझे क्या बोलना है. मगर कोई न बोला.
हनुमान उर्फ गज्जू के होश उड़ गए. बस वह बेहोश होकर गिरने ही वाला था कि अशोक वृक्ष बने भोला ने बड़ी ही गूंजती आवाज में कहा, ‘‘ हे माता सीते, मैं हूं श्रीराम का दूत हनुमान! मैं आपका पता लगाने आया हूं. श्रीराम की निशानी लाया हूं.
अब गज्जू की जान में जान आयी. वह हाथ जोड़कर सीता माता के आगे खड़ा हो गया. सबने समझा उसी ने डायलॉग बोला है. सो एक बार तालियां बज उठी. हनुमान जोश में आकर एक बार फिर भोला की पीठ, यानी वृक्ष पर एक गदा जमा दी और घूमकर सीता मय्या के आगे हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. दर्द को पीकर बेचारे भोला ने अगला डायलॉग बोला: माते बड़ी भूख लगी है, अनुमति हो तो कुछ फल खा लूं.
हनुमान अब पेड़ को हिलाते यानी भोला को परेशान करते हुए फल खाने लगा. भोला गिरते-गिरते बचा.
फल खाने के बाद हनुमान ने विदा लेने के लिए सीता मय्या के सामने हाथ जोड़े तो भोला ने उसकी तरफ से कहना शुरू किया- माते सीता! हम हनुमान बने गज्जू आज पब्लिक को वचन देते हैं कि आज से हम अपने पिता जगतराम के पैसे नहीं चुराएंगे. हम बीड़ी नहीं पीएंगे. हम पंडित बदरीनारायण के घर पर पत्थर नहीं मारेंगे.
जनता यह सुन हैरान. गज्जू परेशान. सीता मय्या , राक्षसियां और भी हैरान
और फिर पब्लिक ने खड़े होकर सीटियों के साथ इतनी तालियां बजायी कि रामलीला कमेटी दंग रह गई.