Bhola's Bholagiri - 3 (20 wonderful stories of Bhola for children) books and stories free download online pdf in Hindi

भोला की भोलागिरी - 3 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

भोला की भोलागिरी

(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

कौन है भोला ?

भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.

उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.

भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.

भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.

और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!

और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.

तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’

... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.

कहानी-5

भोला ने नीलामी में भाग लिया

एक दिन भोला अपनी पुरानी टीचर से टकरा गया. टीचर ने छूटते ही पूछा, ‘‘ अरे भोला, तू क्या अभी भी अक्ल की भूलभूलैय्या में भटक रहा है.’’

भोला ने मासूमियत से पूछा, ‘‘ मैडम, क्या आपको भी लगता है कि मैं बुद्धू हूं.’’

टीचर बोली, ‘‘ इसमें शक क्या है! तुझे तो छटी कक्षा में छटी का दूध याद आ गया.’’

भोला ने फिर पूछा, ‘‘ तो मैडम मैं क्या करूं?’’

टीचर बोली, ‘‘ पहले तो हर वक्त मन के घोड़े दौड़ाना बंद कर.’’

भोला: फिर?

टीचर: फिर , हवाई किले बांधना बंद कर

भोला: फिर?

टीचर: अपनी बहती लार पोंछ. और नौ दो ग्यारह हो जा.

इतना कहकर टीचर आगे बढ़ गई. भोला सिर खुजाता रह गया. टीचर की एक भी बात उसके पल्ले न पड़ी.

वह भी चुपचाप आगे बढ़ गया.

आगे एक मैदान में लोगों की भीड़ को एक खेल खेलते देखा. खेल का नाम एक बोर्ड पर लिखा था-सार्वजनिक नीलामी...पी डब्ल्यूडी विभाग.

एक आदमी मेज के सामने एक लकड़ी का हथौड़ा लेकर खड़ा था.

उसने बोला-आयटम नं.5

भीड़ से एक बोला- एक हजार

दूसरा बोला-दो हजार

तीसरा बोला -तीन हजार

फिर सन्नाटा छा गया. हथौड़ा वाला आदमी बोला-तीन हजार एक! तीन हजार दो! और तीन हजार तीन

-आइटम नं. 5 हुआ इनका. उनका नाम है

वह आदमी बोला-जगन

इसी तरह खेल चलता रहा, लोग तरह-तरह की चीजें जीतते रहें.

फिर आया आयटम नं.11. आखिरी बोली.

भोला पूरे जोश से बोल गया- सौ

भीड़ से दूसरा कोई नहीं बोला.

भोला खुद ही बोल उठा-दो सौ.

भीड़ में सन्नाटा छा गया, हथौड़े वाले आदमी ने भी चौंक कर भोला की तरफ देखा. और फिर मेज पर हथौड़े को ठोकते हुए कहा-दो सौ-एक, दो सौ-दो, दो सौ-तीन. आयटम नं. 11 हुआ इनका. आपका नाम?

भोला बोला-भोला राम.

भीड़ से कोई बोला उर्फ बुद्धूराम, अकलबंद.

वह आदमी बोला-दो सौ रूपए लेकर अपना आयटम ले जाओ.

तभी एक आदमी वहां एक लंगड़े गधे को घसीटता हुआ ले आया.

जी हां, भोला ने नीलामी में दौ सौ रूपए में तीन टांग का गधा जीता था और थोड़ी देर बाद वह जेब में पड़े स्मार्ट मोबाइल खरीदने के पैसों से तीन टांग का गधा लेकर घर लौट रहा था.

******

कहानी-6

भोला किताब को घुट्‍टी बनाकर पीने चला

भोला को दादाजी की बात सही लगी.

दादाजी गांव में वैद्यराज के नाम से मशहूर थे. भोला के यहां शहर आए और भोला की पढ़ाई-लिखाई से बेरूखी देखी तो उसके कान मरोड़ कर एक दिन बोल उठे, ‘‘ अबे बुद्धू अक्ल बढ़ाना चाहता है तो किताबों को घुट्‍टी बनाकर पी जा.’’

अक्लमंद बनने का इतना आसान तरीका तो कोई वैद्यराज ही दे सकता था.

सो भोला ने अगले दिन ही दादाजी की सलाह पर अमल करने की ठान ली.

किसी और की किताब नहीं मिली तो दादाजी की धार्मिक किताबों वाली पोटली ही उठा ली. और उसमें से एक किताब चुनी. उसे फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े करके पानी में घोलकर घुट्‍टी बनाने जा ही रहा था कि उसमें से तह किया हुआ एक पत्र नीचे गिर पड़ा.

उसे पढ़ा तो उसके होश उड़ गए.

यह दादाजी का लिखा पत्र था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वे ज़िन्दगी से तंग आकर आत्महत्या करने जा रहे हैं. उनकी मौत के लिए किसी को कसूरवार न माना जाए.

वह पत्र लेकर मां, बाबूजी सबके पास दौड़ पड़ा और तुरंत ही घर में हाहाकार मच गया.

इधर दादाजी का कहीं कोई पता नहीं था. सब उन्हें ढूंढने निकल पड़े.

मगर मुंह लटकाए लौट आए.

**

और थोड़ी देर में दादाजी भी दो थैले सब्जियां लेकर आते दिखाई दिए.

चाचा ने पूछा, ‘‘ तो आप आत्महत्या करने नहीं गए थे?’’

दादाजी बोले, ‘‘ आत्महत्या क्यों करूंगा?’’

चाचा पत्र दिखाकर बोले, ‘‘ तो ये पत्र?’’

दादाजी ठहाका मारकर हंस पड़े, और बोले, ‘‘ अरे बेवकूफों, पत्र की तारीख तो देख लेते. यह सन 1985 का पत्र है. तब एक बार गुस्से में लिख दिया था, पढ़ाई से तंग आकर, मगर मरने की हिम्मत ही नहीं हुई! मगर मुझे नहीं पता था ये किताब में रह गया था.’’

अब सबकी गुस्से भरी आंखें भोला की तरफ थी और भोला भागने का रास्ता ढूंढ रहा था.

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