भोला की भोलागिरी
(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)
कहानी- 13
भोला बुआ को मंदिर ले गया
साइकिल को खड़ी करते हुए भोला की नजर बुआ पर पड़ी. बुआ जाने क्या सोच-सोच कर हंसे जा रही थी.
भोला ने वहीं से आवाज लगायी, ‘‘ बुआ पगला गई क्या?’’
बुआ उसकी तरफ देख कर हंसते हुए बोली, ‘‘एक पुरानी बात याद आ गई. एक बार तुम्हारे फूफा ने कहा, धार्मिक पिक्चर आयी है, चलो चुपके से देख आते हैं. और हम चले गए. पिक्चर का नाम था-ओम शांति ओम.
- मगर वो धार्मिक नहीं थी. और सुनो गर्मी के दिन थे, सो ठंडे सिनेमा हॉल में जाते ही हम दोनों को नींद आ गई.
- होश तब आया जब सिनेमा हॉल के गेटकीपर ने हमें उठाकर कहा- बाहर निकलो, पिक्चर खत्म हो गई.’’
भोला ने मसखरी करते हुए पूछा, ‘‘ बुआ कहो तो तुम्हें हम दिखा लाएं पिक्चर?’’
बुआ दुखी स्वर में बोली, ‘‘ अरे भोला, अब ना तो आंख से ठीक से दिखाई देता है और न ही कान से सुनाई देता है. वरना एक दिन तेरे साथ मंदिर जाती और ईश्वर से प्रार्थना करती-हे भगवान मेरे भोला को अक्ल दे, ताकि उसके अच्छे दिन देख सकूं, उसका अच्छा सुन सकूं!’’
यह सुनकर भोला बोला, ‘‘ मंदिर जाना है, तो कल लिए चलता हूं. सवेरे नौ बजे!’’
बुआ बोला, ‘‘ मगर कल तो हमारा मौन व्रत है!’’
भोला बोला, ‘‘ तब तो और अच्छा!’’
अगले दिन भोला बुआ को रिक्शा में बैठाकर मंदिर ले गया. जहां वे रूके, शुक्र है बुआ ने बोर्ड नहीं पड़ा, वहां लिखा था-शंकर चिकित्सालय.
अहाते में शंकर भगवान की मूर्ति थी. भोला ने वहां बुआ से हाथ जुड़वाए और कहा चलो पहले भगवान के दर्शन कर लें. फिर वे एक कमरे में जा पहुंचे. जहां एक मेज के सामने सफेद कपड़ों में एक बूढ़ा आदमी बैठा था. उस आदमी ने मुस्कराकर भोला की तरफ देखा, जैसे कि उसे पहले से जानता हो. फिर बुआ को आंखेंखोलने को कहा, और उसमें कुछ पानी जैसा डाला. बुआ चकरायी, अब क्या चरणामृत आंखों में डाला जाता है. मौन व्रत था सो कोई सवाल नहीं कर सकती थी.
उस आदमी ने बुआ को कुछ मामूली से सवाल किए कुछ तस्वीरें दिखाई, कुछ आवाजें सुनाई और बुआ सिर हिलाकर जवाब देती गई-हां या ना.
फिर उस आदमी ने कहा, दो दिन बाद आकर दोनों चीजें ले जाना.
दो दिन बाद, बुआ की आंखों में चश्मा था और कान में सुनाई देने वाली मशीन लगी थी.
और उसी शाम को चाचा-ताऊ- पिताजी के सामने भोला की पेशी हुई.
ताऊ: परोपकारी भोलाराम, बुआ की आंखों और कान की रिपेयरिंग कराकर अगर तुम अपने को अकलमंद समझ रहे हो , तो ये तुम्हारी मूर्खता है. जल्द ही इसका नतीजा, तुम , ये घर और सारा मोहल्ला भुगतेगा.
सचमुच अगले दिन से घर के हर सदस्य पर बुआ की नजर थी. हर चर्चा में उनका दखल था और भोला को बाहर जाते देख टोकर बोली, ‘‘ लौटते वक्त सातवीं की किताबें ले आना. आवारा लड़के कल से तेरी पढ़ाई शुरू. अब मैं आसपड़ोस पर भी नज़र रखूंगी समझे!’’
कौन है भोला ?
भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.
उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.
भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.
भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.
और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!
और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.
तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’
... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.