छींक Lalit Rathod द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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छींक

छींक का आना दिन की सुखद घटना लगती है। हमेशा से छींक आने के बाद भीतर राहत महसूस करता हूं। तब इच्छा हाेती है कि छींक फिर आए। जादूगर के दूसरी बार जादू दिखाने की तरह। बचपन में जब अचानक उठकर आंगन में सूर्य देखने लगता तो मां समझ जाती मुझे छोड़ी देर में छींक आने वाली है। छींक के इंतजार में आसमान देख रहा हूं। मां कहती हैं, तेरे छींक और सूर्य से क्या रिश्ता? इस सवाल का जवाब आज तक ठीक-ठीक नहीं दे सका। बस यही कहता, मेरे हर दिन की छींक सूर्य के पास होती है। जब चाहूं ले सकता हूं। असल में मुझे छींक नहीं आती है, उसकी आवश्यकता शरीर में महसूस होती है। उसे पूरा करने सूर्य के पास चला जाता हूं। मां को मेरी ऐसी बातें हमेशा बचकानी लगती हैं। उन्होंने कई बार मेरी तरह सूर्य को देखकर छींक को महसूस करने का प्रयास किया, लेकिन हर बार उनकी आंखें तेज रोशनी में भींच जाती। जब असफल होती तब कहती हैं, क्यों सूर्य केवल तेरे लिए छींक बचाकर रखता है? उनका यह सवाल निजी के साथ बेहद गोपनीय लगता है, जिसे हमेशा अपने भीतर बचाए रखना चाहता हूं। सवाल का जवाब स्पष्ट नहीं देकर बहुत सारा... कहकर बात खत्म कर देता। रात में छींक आने पर वह बीच में रूक जाती तब मां समझ जाती कि मेरी तबियत खराब होने को है। शरीर में छींक की सख्त आवश्यकता को पूरा करने कभी लाइट की तेज रोशनी को देखता तो कभी आसमान में शून्य की ओर। लेकिन रात में सूर्य की अनुपस्थिति अस्पताल में डॉक्टर नहीं होने जैसी लगाती। ऐसे समय में आसमान में चंद्रमा मुझे बिना शिक्षित डाॅक्टर की तरह लगा, जो मेरी एक छींक का इलाज नहीं कर सकता।

हमेशा से मां को कहना चाहता था, असल में सूर्य और मां का रिश्ता एक तरह है। अगर मां से कोई चीजें एक बार मांग लूं, तो आसानी से देने को तैयार हो जाती हैं। दूसरी बार मांगने में थोड़ी नाराजगी। लेकिन मेरे रूठ जाने पर वह अपना नाराजगी त्याग देती हैं। जब सूर्य देखकर दूसरी छींक नहीं आती है। तब मुझे लगता है, सूर्य मेरे साथ खेल रहा है। मेरी छींक उसके पास है, लेकिन दोबारा आसानी से नहीं देना चाहता। जब सूर्य से नजर फेर लेता हूं, तो उसके थोड़े समय बाद छींक की जरूरत महसूस होने लगती है। सूर्य की ओर देखने पर वह छींक तुरंत शरीर में प्रवेश कर जाती है। मानो सूर्य ने छींक के लिए अपना खेल छोड़ दिया हो।

आज शाम अचानक मुझे छींक आई। जबकि शरीर को इसकी आवश्यकता नहीं थी। मैंने देखा शाम को कमरा सूर्य की उपस्थिति में घिरा हुआ था। दीवार में छाई रोशनी देखकर इच्छा हुई दिन की एक छींक मुझे सूर्य से मांग लेनी चाहिए। खिड़की से सूर्य को देखना शुरू किया। आसमान से आती रोशनी शरीर में छींक के रूप प्रवेश करने लगी थी। उस वक्त छींक के मुझ तक पहुंचने की दूरी महसूस कर रहा था। छींक के करीब आते ही शरीर में प्रवेश के सारे द्वार खुद-ब-खुद खुल चुके थे। मैंने मुस्कुराना शुरू कर दिया। छींक की संघता में पूरी तरह शामिल हो चुका था। जब उससे बाहर निकला तो खुद को हंसते हुआ पाया। यही हर दिन की सुखद घटना होती है।🍁