क्लीनचिट - 21 - अंतिम भाग Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्लीनचिट - 21 - अंतिम भाग

अंतिम अंक - बाईस/२२

स्वाति एकदम स्वस्थ थी। सबके चेहरे के हावभाव देखकर स्वाति पता चल गया कि अब सस्पेंस की चरमसीमा आ गई है इसलिए गहरी सांस भरकर बोली...

'मैं कल ऑस्ट्रेलिया जा रही हूं।'
'फॉर सेटल फॉरेवर। और ये कोई जोक नहीं है। आई एम टोटली सीरियस।'

पिनड्रॉप साइलेंट के बीच कुछ क्षणों के लिए सभी जिस स्थिति में थे ऐसे ही स्टैच्यू हो गए। कोई सपने में भी नहीं सोच सकता ऐसे स्वाति के विस्फोटक निवेदन के बाद एक दूसरे के चेहरे पर के प्रश्नार्थ चिन्ह् और अनपेक्षित प्रतिभावों से अंकित मुद्राएं देखते ही रहे। लेकिन, स्वाति का ये वाक्य सुनकर सबसे जबरदस्त धक्का अदिती को लगा। उसकी विचार शक्ति जैसे शून्य हो गई। स्वाति कुछ भी कर सकती है लेकिन अदिति को छोड़कर उससे दूर जा सकती है इस विचार मात्र ही अयोग्य स्थान पर ही था।

एक सुनामी जैसे सन्नाटे को तोड़ते हुए सबसे पहले विक्रम ने पूछा,

'स्वाति व्हाट इज़ धीज़?'
विक्रम अभी कुछ आगे पूछने जाए उससे पहले अदिती बहुत धीरे और भरे हुए स्वर में बोली,.

'प्लीज़.. सबसे पहले तो कोई भी स्वाति को कुछ भी नहीं पूछेगा। मैं मानती हूं जहां तक किसी के लिए कुछ भी सोचे बिना अगर स्वाति ने फाइनली इतना बड़ा कदम उठाने का अंतिम निर्णय ले ही लिया है तो उसके पीछे मैं मानती हूं, जहां तक कोई बहुत बड़ा कारण भी हो ही सकता है। सिर्फ़ मैं नहीं लेकिन हम सब आशा रखते है कि इसके बाद उसके आगे के निर्धारित भविष्य की व्युहरचना और सबको छोड़कर जाने के लिए ठोस कारणों के बारे में कोई कुछ भी सवाल पूछे उससे पहले उसके प्रमाणित प्रत्युत्तर स्वाति स्वयं ही दे उतनी अपेक्षा के अधिकारी तो हम सब हैं ऐसा मैं मानती हूं और आज.....'
इतना बोलकर अटककर आलोक को इशारा करते ही आलोक ने पानी का ग्लास अदिती को दिया। पानी पीने के बाद आगे बोलते हुए कहा,, 'और ये इसलिए कह रही हूं कि.. आज फ़िर..'
इतना बोलकर अदिती अटक गई।

देवयानी बोले, 'क्यूं अटक गई?'
'कुछ नहीं मम्मी, मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने स्वाति को बोलने का मौका नहीं दिया तो आज स्वाति को बोलने का और सब का.. और खास तौर पर मेरा सुनने का अवसर है। आगे स्वाति बोलेगी।'

तेज़ व्यंग बाण से सटीक लक्ष्यवेध से कांटों के जैसे चुभते अदिती के तेज़ाब जैसे संवादों से स्वाति बहुत व्यथित हो रही थी। लेकिन स्वाति को पता था कि ये तो अभी प्रारंभ ही है और उसके वाक्य की प्रस्तुति के प्रत्युत्तर में अनंत और निरंतर आवाज़ चारों ओर सुनाई ही देगी। सवालों की धाराएं फूटेगी। शंका कुशंका के षट्कोण बनेंगे। सबकी विचारधारा पर आधारित कल्पना और भ्रम की स्थिति के अरोह अवरोह को संतुलित मात्रा में संकलित के साथ स्थिर करने के लिए शांत वर्ग सर्व सामान्य समझ की पार्श्व भूमिका के साथ एक आंशिक पारदर्शी सीधे संवादों की संगोष्ठी इस विराट विषम विषय वस्तु की परिभाषा के विस्तृत परिचय के लिए ज़रूरी है।

थोड़े समय बाद गंभीर वातावरण के बीच विक्रम बोले,.
'स्वाति, अब मैं जो तुम्हें पूछूं उसका तुम मुझे लॉजिक के साथ जवाब देना।'

तब अदिती ने स्वाति से पूछा,
'स्वाति, पापा को तुम्हें कुछ पूछने का अधिकार तो है न?'
ओर एक व्यंग्य बाण, और स्वाति ऐसे अनेक तीव्र पीड़ा युक्त व्यंग्य बाणों के प्रहारों के आक्रमण के प्रतिक्रमण की पूर्व तैयारी के साथ ही अपने इस कठोर निर्णय पर पहुंची थी।

'सिर्फ़ पापा नहीं आप सबको अधिकार है।'
स्वाति ने जवाब दिया।

स्वाति के जवाब के प्रत्युत्तर में अदिती ने पूछा,
'मैं ऑस्ट्रेलिया जा रही हूं और मैं ऑस्ट्रेलिया जाऊ? इन दोनों वाक्यों में कोई फर्क है, स्वाति?'

'लेकिन अदि, तुमने मुझे प्रॉमिस दिया है कि मैं जो मांगूंगी वो तुम्हें मुझे देना पड़ेगा।'
'तो...'

अदिती आंशिक फटकार लगाने जैसे स्वर में बोली,

'स्वाति ये तुमने मांगा नहीं है.. शर्त की आड़ में तुमने हम सबके अधिकार को नज़र अंदाज़ करके उसे छीनकर हमें मनाने की कोशिश करी है। तुमने मेरे पास कुछ मांगने से पहले ही तुम्हारे स्क्रिप्टेड प्रिप्लान के मुताबिक सिर्फ़ अपने निजी निर्णय को मात्र औपचारिक तौर सार्वजनिक किया है धेटस इट।'अदिती ने एक सीमित आक्रोश के साथ वाक्य पूरा किया।

आरोप प्रत्यारोप, तर्क वितर्क और सवाल जवाब की चर्चा विचर विमर्श के साथ साथ अब धीरे धीरे वायुमंडल थोड़ा गंभीर होने जा रहा था। इसलिए विक्रम बोले,.

'बेटा स्वाति, चलो थोड़ी देर सब मान लेते हैं कि तुम अपने परिप्रेक्ष्य से अपने स्थान पर ठीक हो। लेकिन तुम्हारी फ़ैसला लेने का तरीका गलत है। तुमने फ़ैसला लेने से पहले एक बार हम सब को विश्वास में लेना उचित नहीं समझा? और तुमने ऐसा किस कारणवश सोच लिया कि हम तुम्हें ऑस्ट्रेलिया नहीं जाने देंगे। अरे हम तो इतने सालों से तुम दोनों को बोलते हुए थक गए कि चलो सब वहां सेटल हो जाते हैं। और लास्ट यर तुम्हें आने की ईच्छा थी तब अदिती ने ज़ोर डालकर कहा था कि तुम जा सकती हो। तुम ऑस्ट्रेलिया सेट होने का सोचो उसकी सबसे बड़ी खुशी अदिती को होगी। लेकिन बेटा इस तरह से इतना बड़ा फ़ैसला... एक झटके के रूप में.. आई कांट बिलीव धीज़।'

स्वाति को पता था कि सबको मर्यादा में रहकर एक संतोषजनक गले से नीचे उतरे ऐसा जवाब देना है इसलिए पहले से ही घुटे और रटे रटाए डिप्लोमेटिक आंसर में से किसी एक को पसंद करते हुए बोली,.

'यदि मैं ऑस्ट्रेलिया जा रही हूं, इसमें किसीको कोई प्रॉब्लम ही नहीं है तो फ़िर हम इस टॉपिक पर इतनी गंभीरता से क्यूं विचार विमर्श कर रहे हैं?'

ऐसा सुनकर अदिती हताश होकर बोली,

'प्रॉब्लम तो पहले भी किसी को कहां था? तुम्हें ही नहीं जाना था। कहां, क्यूं और कितनी गंभीरता है वो सिर्फ़ तुम अपना चेहरा एक बार आयने में देख लेना स्वाति। और तुम ऑस्ट्रेलिया जा नहीं रही हो लेकिन भाग रही हो। एण्ड इट्स फैक्ट। तुम हमें समझा नहीं रही हो, हमे समझाने की चेष्टा कर रही हो जो सहजता से परे है।'

'बट अदि नाउ व्हाट्स धी प्रॉब्लम?'स्वाति थोड़ी ऊंची आवाज़ में बोली।

उसके बाद अदिती बोली...

'स्वाति, मुझे अच्छे से याद है लास्ट यर जब तुम्हारे फ्यूचर प्लान के बारे में हम दोनों सीरियसली डिस्कस कर रहे थे तब तुमने कहा था कि तुम्हें भविष्य में ऑस्ट्रेलिया में सेटल होने की इच्छा है लेकिन तुमने ऐसा कहा था कि अदि तुम साथ में आओगी तो ही। जो किसी भी हाल में मुमकिन नहीं था और नहीं है। तुम किसी भी तरह मुझे अकेले छोड़कर जाने को तैयार ही नहीं थी। हम दोनों ने बहुत सिर खपाया था उस समय हमलोगों ने समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी फ़िर भी तुम अपनी बात पर अडिग थी। तुमने कहा था कि तुम्हारा पास्ट, प्रेजेंट और फ्यूचर अदि ही है। और मेरे दिल्ली जाने की पिछली रात को डिनर टेबल पर हुए हमारे डिस्कसन पर से मुझे अंदर से एक छिपा हुआ डर सता ही रहा था कि ज़रूर हमेशा के लिए मैं कुछ खोने जा रही हूं और आज मेरा वो डर सच साबित हुआ। और आज सिर्फ़ मुझे ही लेकिन यहां बैठे हुए सबको वो एक ही सवाल सता है कि क्या ये वही स्वाति है जो आत्मविश्वास के साथ कहती थी कि अदिती ही मेरी दुनिया है। दुःख उस बात का नहीं है कि तुम मुझे छोड़कर जा रही हो लेकिन तुम जिस तरह सबको छोड़कर जा रही हो दुःख उस बात का है समझी। बस इतना ही प्रॉब्लम है।'अब अदिती धीरे धीरे अपने इमोशन्स पर काबू खोती जा रही थी।

अदिती के शब्दों से ज़्यादा तो अदिती के अव्यक्त शब्दों की अंदर की पीड़ा से जिस तरह अदिती पीड़ित हो रही थी उसकी पीड़ा स्वाति को गहराई में अंदर तक धंसकर चुभती हुई फांस के जैसे निरंतर चुभ रही थी और पिछले कई दिनों के मनोमंथन के बाद अनुमानित विरोध के परिणाम भुगतने की पूर्व तैयारी के साथ आज स्वाति ने अपना फ़ैसला अमल में लाने का निश्चय किया था।

अब देवयानी से रहा नहीं गया तो पूछा कि,
'स्वाति हम सबको बताने के लिए सिर्फ़ २४ घंटे ही समय दिया वो तुम्हें सही लगा क्या? और एकदम से अचानक ही इस तरह अप्रत्याशित फ़ैसला लेने के लिए कुछ तो पूर्वभूमिका होगी न?'

स्वाति ने देवयानी को ज़वाब देते हुए कहा,

'मम्मी कुछ भी सही नहीं है। ये मेरा फ़ैसला भी नहीं। फ़िर भी मुझे आशा है कि जिस किसी भी सवाल का जवाब अभी मेरे पास नहीं है उसका जवाब शायद उचित समय के ऊपर निर्भर होगा। इसलिए मैं इस घड़ी कुछ भी कहने में समर्थ नहीं हूं ऐसा समझती हूं।'इतना बोलकर स्वाति रोने लगी तो संजना उसके पास आकर सांत्वना देने लगी।

आलोक और शेखर एकदम बुत बनकर बैठे थे। उनके मन में भी बहुत सवाल उठ रहे थे लेकिन उन दोनों ने सोचा कि पहले पारिवारिक विचार विमर्श खतम हो बादमें सभी हक के साथ बहस और राय के साथ अकेले में स्वाति के साथ उसके फैसले पर विवेचना करेंगे।

विक्रम ने पूछा,
'स्वाति क्या शेड्यूल है कल का?'
'पापा, रात को ११:५० की डायरेक्ट फ्लाइट है कल, मुंबई टु सिडनी। वहां बात हो गई है। एवरीथिंग हेज़ बीन अरेंज्ड देर। और नेक्स्ट मंथ तो आप और मम्मी आ ही रहे हो न।'

देवयानी ने पूछा,
'बट स्वाति इतने कम समय में तुम सब तैयारियां कैसे करेगी?'

'हो गई है, मम्मी। ओन्ली पैकिंग ही बाकी है इसलिए तो इन दोनों को बुलाया है।'

संजना बोली, 'हमारे अहो भाग्य कि इतना समय तो तुमने हमें दिया। थैंक्स स्वाति।'
'संजना अब तुम भी?'

तभी भीगी हुई आंखों के साथ भरी हुई आवाज़ में शेखर बोला,
'स्वाति तुम्हारा ये सरप्राइज़ मैं लाइफ़ टाईम याद रखूंगा। आई नेवर फरगीव यु।'

कोई भी अपने आंसु नहीं रोक सका। संजना भी हिचकियां लेने लगी। किसका दुःख करना? स्वाति ने सबसे इतनी बड़ी बात छुपाई उसका या सबको छोड़कर जा रही है उसका? और सबसे बड़ा रहस्य तो वही कि छुपाना किसलिए पड़ा? दुःख समांतर और अनंत था किसीको अभी भी कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

स्वाति को दोनों छोर का दुःख, सबको छोड़कर जानेका और सबको हो रही पीड़ा का दुःख। स्वाति ऐसा करेगी वो तो बहुत दूर की बात थी वो ऐसा सोच सकती है ऐसा कोई मान भी नहीं सकता वैसा था स्वाति का ये कठिन कदम।

अदिती से जब सहन नहीं हुआ तो विक्रम से लिपटकर रोते रोते बोली,.
'पापा.. पापा..' आगे कुछ बोल ही नहीं पाई। अदिती को शांत करते हुए विक्रम बोले
'अदिती प्लीज़ बेटा, कूल प्लीज़ कंट्रोल योरसेल्फ प्लीज़ बेटा।'

'पापा, स्वाति ने क्यूं ऐसा किया? कहां मेरी गलती हो गई? मैं स्वाति को पहचानने में कहां गलत साबित हुई, पापा? जिस स्वाति के बारे में मैं आंख बंद करके कोई भी सही प्रिडिक्शन कर देती थी आज उसी स्वाति ने अंधेरे में रखकर हम सब की आंखों पर पट्टी बांध दी। क्यूं पापा क्यूं? मुझे स्वाति पर नहीं बल्कि उसके फ़ैसले पर शक है। जो मैं सोच भी नहीं सकती वो आज स्वाति ने कर दिखाया।'

स्वाति की पीड़ा बाण सैया पर सोए हुए भीष्म पितामह जैसी हो गई थी। निरंतर एक के बाद एक तीर चुभते रहे लेकिन किसी के भी सामने प्रतिकार, जवाबी हमला या प्रत्युत्तर दे पाए? न तो स्वयं की पीड़ा का कारण बता सके और किसीको संतोषजनक जवाब दे सके।

इसलिए बादमें थोड़ा दृढ़ होकर सबके सामने एक नज़र फेरकर स्वाति ने बोलने की शुरुआत की,..

'नाउ प्लीज़ लिसन एवरीबॉडी केरफूली।'
'मेरी बातों में कितनी तटस्थता और तथ्य है वो अब आप तय कर लेना। और ये मेरा अंतिम सत्य है। मैं और अदिती दोनों एक दूसरे के लिए क्या है वो बात सर्व सामान्य और उससे सभी अच्छी तरह से अवगत होते हुए भी उस बात का पुनरावर्तन करना मुझे अच्छा लगेगा। और इस बात के सदर्भ से मैं मेरा ऑस्ट्रेलिया जाने के कारण को समर्थन देना नहीं चाहती। हम दोनों के बीच परस्पर एक दूसरे पर डेम ब्लाइंड ट्रस्ट के पर्याय के लिए मेरे अंतर्मन में एक दिन ऐसे विचार का अंकुर फूटा कि भविष्य में किसी कारणवश हम दोनों के बीच आनेवाले अवकाश की पूर्ति के हम दोनों में से एक के स्थान कौन ले सकता है? ऐसा धुंधला वैकल्पिक विचारचित्र समयांतर में क्रिस्टल क्लीयर होने के बाद ही मैंने इतना बड़ा फ़ैसला लिया है।'

'मतलब?' विक्रम ने पूछा।

'पापा अदि के लिए अब मैं एकदम से निश्चिन्त हूं, आलोक की वजह से। आलोक में अदिती के लिए इस हद तक प्यार देखा है कि अगर अदिती मुझे भूल भी गई तो भी मुझे दुःख नहीं होगा लेकिन हां, आलोक के प्रति मन में ईर्षा ज़रूर होगी। इसलिए कि आलोक ने मेरे उस अभिमान को पिघला दिया कि मेरे जैसा प्यार अदि को कोई नहीं कर सकता। और सामने अदि के लिए मुझे उतना ही प्राउड फील हो रहा है कि कोई अपने आप को मिटाकर और भूलकर मेरी अदिती को प्यार करे ऐसा पूरे स्नेह का साथ ढूंढने में सफ़ल रही।'
तभी आलोक कुछ बोलने गया, लेकिन आलोक अभी कुछ कुछ बोलने जाए उससे पहले ही तो स्वाति दौड़कर अदिती को लिपटकर फूट फूट कर रोने लगी, सामने अदिती की आंखों में जैसे कि बारिश का मौसम आया हो ऐसे ज़ार ज़ार आंसुओं का झरना फूट पड़ा था।

अदिती गले लगकर रोते रोते मुश्किल से बोली,
'बस.. बस.. बस.. पागल और कितना रुलायेगी?'

आगे अदिती बोली,
'स्वाति हम दोनों के सिर्फ़ शरीर ही अलग है लेकिन प्राण तो एक ही है और पागल कभी प्राण का कोई पर्याय नहीं होता। फिर भी, एक बात पूछूं स्वाति?
'हां, बिन्दास पूछो,' स्वाति ने रोते रोते कहा। थोड़ी देर चुपचाप निरंतर स्वाति की आंखों में देखकर अदिती बोली,
'नहीं, पूछकर मैं तुम्हारे भरोसे का अपमान नहीं करूंगी लेकिन तुम्हारे भरोसे का सम्मान करके मान लेती हूं कि तुमने जो कहा वही तुम्हारा अंतिम सत्य है।'

पंद्रह से बीस मिनट्स जितना समय निकल जाने के बाद विक्रम और देवयानी के सिवाय सभी फ़िर से गेस्ट रूम में चले गए।

अब गंभीर वायुमंडल को थोड़ा हल्का करना चाहिए ऐसे खयाल से शेखर फिल्मी अंदाज़ में बोला,
'अरे चलो इसी बहाने आलोक अब स्वाति के फंडे के फंदे से बच जायेगा।'

तब सामने आलोक ने भी उसी शैली में जवाब दिया,
'अरे यार अगर ये रुक जाती है तो लाइफ़ टाईम इसके सब फंडे कबूल है।'

इसलिए स्वाति थोड़ा रिलेक्स मूड में आकर आलोक के दोनों गाल खींचते हुए उसकी बिंदास अदा में बोली,

'ओ.. ओ.. ये मत समझना कि इतने सस्ते में तुम्हारा पीछा छोडूंगी। तुमने मेरी जान को मझसे छीन लिया है समझा। अरे... ये तो अदिती हमारे बीच में आ गई है, वरना इस प्यारे घोंचू को तो मैं कच्चा चबा जाती।'

फ़िर से एक बार सब की आंखें हर्षोल्लास से छलक गई। अभी भी किसी का दिल या दिमाग ये मानने को तैयार नहीं था कि सच में स्वाति सबको छोड़कर इस तरह जा सकती है।
लेकिन इतने गहन विचार विमर्श के अब तो स्वाति जा ही रही है उस ठोस वास्तविकता का स्वीकार किए बिना कोइ चारा ही नहीं था।

अंत में शेखर अदिती और स्वाति की ओर देखकर बोला
'सच में स्वाति तुम एक ऐसी पझल हो कि शायद उसका प्रिडिक्शन करने में खुदा को भी दो बार सोचना पड़ेगा। जिस मैंने तुमको पहली बार देखा तब से लेकर अभी तक मैं तुम्हें समझने में हमेशा असफल ही रहा। ऐसा क्यूं, तुम ऐसी क्यूं हो?'

स्वाति ने कहा, 'इसलिए कि मैं अपनी खुद की फेवरेट हूं, और हमेशा के लिए ऐसी ही रहूंगी।' उसके बाद

शेखर के सवाल का सही जवाब देते हुए अदिती बोली,
'आई एग्री विथ यू। बट आज तो स्वाति ने ऐसी गुगली डाली कि एक ही बॉल में सबको क्लीन बोल्ड कर दिया। लेकिन जो कुछ भी हुआ उसके बाद भी मेरी स्वाति को आज मैं टोटली लाइफ टाइम के लिए क्लीन चीट देती हूं।'

आलोक, स्वाति को एक ओर ले जाकर गंभीर होकर पूछा,

'स्वाति, तुमने जिस तरह से अपने भाषण से वशीभूत करके तुम्हारी बात सही है ऐसा निवाला सबके गले के नीचे हलवा की तरह उतार दिया लेकिन अब मुझे जो सच है वो बता दो। मैं किसीको भी नहीं बताऊंगा।'

स्वाति की आंखें नम होने ही वाली थी कि उसने आलोक की आंखों में आंखें डालकर जवाब दिया,

'वो सच्चाई अगर तुम्हें बता सकती तो आज मुझे अर्धसत्य का सहारा नहीं लेना पड़ता आलोक।'

'यानि.. मैं कुछ समझा नहीं।'आश्चर्य के साथ आलोक ने पूछा।

'आलोक, जल मछली का जीवन और जल ही मछली के मौत का कारण है। एक सनातन सत्य के जैसे जो बचाता है वहीं मारता भी है। मेरे लिए तुम्हारा यही वाक्य ही आजीवन घाव और मरहम दोनों का काम करेगा....

'मैं कुछ समझा नहीं।'

'स्वाति तुम इस तरह से समझा रही हो कि...' अभी आलोक आगे कुछ बोलने जाए उससे पहले आलोक के मुंह पर स्वाति अपनी हथेली रखते हुए बोली,

'अब मेरा सत्य एक्सपायर डेटेड हो गया है, आलोक बाबु। एण्ड प्लीज़ नाउ फूलस्टॉप हीयर।'

इतना बोलने साथ ही एक भारी भरकम हिचकी गले के नीचे उतारकर स्वाति जल्दी से वहां से निकलकर अपने बेडरूम में चली गई।

आज स्वाति की अंतिम रात थी इसलिए स्वाति के साथ जी भरके मिलियन्सऑफ़ मिलियंस टेराबाइट मेमोरी के मेले में माहौल की मोज और मज़ाक मस्ती के बीच होटेल में ग्रांड डिनर लेकर सबने सुबह तक लॉन्ग ड्राइव, म्यूजिक, डांस, गेम्स और जोक्स के साथ एक अनफॉरगेटेबल नाइट बिताकर बाद में घर में आकर सुबह जो पांच बजे आकर सोए, बादमें दोपहर १२ बजे के बाद एक के बाद एक उठते गए और फ्रेश होकर सब १ बजे के बाद फ़ूल ब्रेकफास्ट करके पांचों निकल पड़े शोपिंग के लिए, जब थक गए तो घर वापस आए एकदम सूर्यास्त के बाद।

जब शाम को ७:४५ का समय होते ही सभी आकर बैठे ड्रॉईंग रूम में। ८:३० तक एयरपोर्ट पर पहुंचने का तय हुआ। इसलिए एक कार में विक्रम, संजना और शेखर बैठे और दूसरी कार में देवयानी, आलोक, अदिती, शेखर और स्वाति बैठे।
हल्का ट्रेफिक भी था इसलिए धीरे धीरे चलाते हुए एक्जैक्ट ८:२५ के आसपास एयरपोर्ट आ गए।

सिडनी की एयरलाइन का काउंटर थोड़ी देर पहले ही ओपन हुआ था इसलिए कतार थोड़ी लंबी थी। उसमे स्वाति लगेज लेकर खड़ी हो गई। आधे घंटे में लगेज और बोर्डिंग पास की प्रोसीजर खतम करके स्वाति फ़िर से विजीटर्स लाउंज में जहां सब बैठे थे वहां आकर विक्रम और देवयानी दोनों के चरण स्पर्श करने के बाद देवयानी के गले लगते ही देवयानी एकदम इमोशनल हो जाते ही स्वाति बोली,
'अरे, मॉम व्हाय आर यू क्राईंग? आप और डैड तो आ ही रहे हो न नेक्स्ट मंथ, तो फ़िर क्यूं रो रहे हो?'

देवयानी ने स्वाति से पूछा,
'बेटा कुछ भूल तो नहीं रही हो, सबकुछ याद करके ले लिया है न तुमने?'

'मम्मी, अब मेरे पास सिर्फ़ मेरी यादें ही है, और बाकी सब तो भूल ही जाना है न।'
स्वाति हंसते हंसते बोली।

संजना लगातार स्वाति को ही देख रही थी, उसका ख्याल स्वाति को था ही, इसलिए संजना कुछ भी बोले उससे पहले स्वाति बहुत देर तक उसके गले लगी रही। अब संजना के धैर्य का बांध टूट जाने की कगार पर था ऐसा स्वाति को भास होते ही वो तूट जाए उससे पहले ही बोली,
'हेय मेरी संजू इतनी कमज़ोर कब से हो गई यार? तुम तो हमेशा मेरी हरेक तकलीफ़ के समय में मेरी ढाल बनकर खड़ी रही हो और आज तुम ही हिम्मत हार जाओगी तो कैसे चलेगा माय डीयर?'

'मैं हिम्मत नहीं हारी हूं स्वाति, लेकिन तुम ऐसे अचानक ही सबको इस तरह छोड़कर जा रही हो उस दुःख से उबर नहीं पाई हूं। बस बार बार यही सोचकर दुःख हो रहा है कि हम तुम्हें प्यार करने में कहां कम पड़ गए? तुम्हें कहां हमारा प्यार कम पड़ा? हमें पता कैसे नहीं चला? बस यही बात सहन नहीं हो रही है और इसलिए मैं....'
इतना बोलने तक तो संजना का गला भर आया। फ़िर से एक बार स्वाति ने संजना को कसकर गले लगाकर सांत्वना देने के शांत करने की। सोफे पर बिठाकर संजना का मूड चेंज करने के लिए बोली,
'अब बस तुम फटाफट मैरिज की डेट फाइनल करो तो मैं आ गई समझ लेना। अरे यार तुम एक कॉल करोगी यहां मैं हाज़िर हो जाऊंगी बस। बाद में हम साथ में जायेंगे न्यूजीलैंड, प्रॉमिस। ओ. के. नाउ बी ए गुड गर्ल, एण्ड स्माइल प्लीज़।'

शेखर और आलोक दोनों साथ में थोड़ी दूर खड़े थे वहां स्वाति आलोक के पास जाकर उसकी दोनों हथेलियां स्वाति अपने दोनों हाथों में लेकर आलोक की आंखों में आंखें डालकर बोली..
'आलोक, अब मैं किसको सताऊंगी? तुम्हें किसी भी हद तक सताने का हक एक मात्र मेरे ही था, लेकिन अब...'

'क्यूं ऐसा बोल रही हो स्वाति, कि 'था'? 'था' मिन्स? था, है और रहेगा ही फॉरएवर।' 'लेकिन, आलोक मैं अब तुमसे दूर जा रही हूं। बहुत ही दूर।'

'अरे, तो उसमें क्या हो गया? जगह बदल जाने से रिश्तों के मायने थोड़ी बदल जाते हैं?'

"बट आलोक आई डॉन्ट बिलीव इन लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप।'
'तो ऐसा करो कि तुम यहां रुक जाओ या हम तुम्हारे पास आ जाते हैं उसमें क्या है?'
'काश..'
इतना बोलकर स्वाति अटक गई तो...

'स्वाति, एवरीथिंग इज़ ओ. के.?'
'आई होप'
कहकर स्वाति ने अदिती को अपने पास आनेका इशारा किया तब अदिती शेखर के पास खड़े हुए स्वाति और आलोक के पास आकर आलोक से पूछा,
'क्या कह रही है स्वाति?'

'देखो न अदिती अभी भी आड़ी तिरछी, गोल गोल पजल जैसी बातें कर रही है स्वाति।'

'क्यूं अब तो ऐसा क्या कह दिया?' अदिती ने पूछा,
'कह रही है कि मेरा हक था, अब नहीं? ऐसा कैसे?' आलोक बोला।

'सच कहूं आलोक, स्वाति ने खुद ही हमें उससे दूर कर देने का फ़ैसला कर ही दिया है तो बाद में अब शब्द और संबोधन निरर्थक हो गए हैं। आप वास्तविकता को टालकर उसे नज़र अंदाज़ कर सकते हो लेकिन हमेशा के लिए खतम नहीं कर सकते। और आंखें बंध कर देने से रात नहीं हो जाती।'

'ओए.. बस अब अपनी और ये सब फिलोसॉफी की फाइल बंध करो और स्माइल करो मेरी चिकुड़ी।' स्वाति बोली
उसके बाद आलोक की ओर देखकर बोली...

'आलोक, समझ लो कि आज मेरे और अदि दोनों के बीच के एक साये का सेपरेशन हो रहा है, असंभव है फ़िर भी। इसलिए कि अब से अदिती के प्यार के परमिट का प्रतिनिधि और अधिकारी सिर्फ़ तुम अकेले ही रहोगे ऐसा भरे हुए विश्वास के साथ अब मैं एकदम एक छोटी सी ऐसी ओस की बूंद के जैसे हल्का महसूस करके जा रही हूं।'

आलोक अदिती को संबोधित करते हुए बोला,

'अदिती, स्वाति ने मेरे लिए जो कुछ भी किया है उसके लिए मैं रोज़ लाइफ़ टाईम स्वाति को थैंक यू बोलू तो भी कम पड़ेगा।'

'ओए बस बस हां, तुम अक्षयकुमार ही ठीक हो, अमोल पालेकर मत बनो अब समझे।' इतना बोलने के बाद स्वाति, अदिती और आलोक तीनों एक दूसरे से लिपटे रहे, बाद में स्वाति बोली,

'चल अदि.. मैं चलूं?'

दोनों की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी..
अदिती बोली,

'स्वाति वैसे भी तुम हम सबको अंधेरे में रखकर बचकर निकल गई हो न। घाव दिए बिना घायल करने की तुम्हारी ये कला मुझे पसन्द आई, उसके लिए मैं तुम्हें कभी भी माफ़ नहीं करूंगी, देख लेना और..'

बस इतना बोलते ही एकदम से स्वाति से लिपटकर अदिती ने फूट फूट कर शुरू कर दिया तो विक्रम, और देवयानी संजना सभी अदिती को संभालने लगे, विक्रम बोले.. 'अदि बेटा अब प्लीज़ अपने आप को संभाल तो। बस अब सब हंसते हंसते स्वाति को बिदा करेंगे और चलो अब ग्रुप फोटोस हो जाए। तब पास में खड़े हुए एक व्यक्ति को ४ से ५ ग्रुप फोटोस क्लिक करने का बोलकर स्वाति को मिडिल में खड़ा रखकर सभी दोनों साइड खड़े होते ही फोटोस क्लिक हो गए।

शेखर ने स्वाति को अपने पास आने का इशारा किया तब स्वाति ने उसके पास आकर पूछा,
'हां, बोलो शेखर।'
शेखर ने पूछा,
'मेरे साथ कॉफी शेयर करोगी?'
'ओ, या श्योर, क्यूं नहीं।'
'तो चलो हम दोनों उस कॉफी काउंटर पर चलते हैं।'
शेखर और स्वाति दोनों कॉफी काउंटर की ओर जाते हुए बोले,
'हम आते हैं अभी।'

शेखर ने पूछा, 'व्हिच वन यू लाइक?'
'जो तुम्हारी फेवरेट हो वो।'
'अच्छा।'
ऐसा बोलकर शेखर ने दो कैपाचिनो कॉफी का ऑर्डर देते हुए स्वाति को पूछा,
'स्वाति एक बात बताओ उस दिन जब तुम बैंगलुरू से मुंबई आई थी तब तुमने मेरे कैमरा के कार्ड से तुम्हारे और आलोक के फोटोस क्यूं डिलीट किए थे?'

'आई थिंक शेखर कि इट वॉज सम पर्सनल मोमेंट मेमोरी तो मैंने वो...
और अगर तुम्हें बूरा लगा हो तो आई एम सो सॉरी।'

'अरे इट्स ओ. के. मैंने तो इसलिए पूछा कि तुम्हारे कहने से ही वो सब फोटोस मैंने क्लिक किए थे। उसमें मेरी कोई गलती तो नहीं हो गई है न?'

'वो तो शेखर तुम्हें भी पता है कि किसलिए क्लिक किए थे कि जब आलोक नॉर्मल हो जाए तो उसे दिखायेंगे तो वो मेमरी रिवाइंड हो तो एक एक पल को याद करके फ़िर से.....'
इतना बोलकर अटक गई।
तब शेखर ने पूछा, 'तो वो फोटोस आलोक को दिखाए या नहीं?'
'अरे यार शेखर वो एक बार पता नहीं मुझसे क्या ऐसी मिस्टेक हो गई तो सभी फोटोस डिलीट हो गए.. लेकिन अब ऐसा लगता है कि अच्छा हुआ कि डिलीट हो गए.. क्योंकि अब देखो सब नॉर्मल हो गया है तो उस दुखद घटना के दिनों क्यूं याद करने का? ठीक है न?'
'अच्छा स्वाति कुछ देर के लिए अपने गॉगल्स उतारोगी?'
तब स्वाति ने गॉगल्स उतारे।
शेखर, एकटक स्वाति की आंखों में देखता रहा, तो स्वाति ने पूछा,
'क्या देख रहे हो?'
'मैं वो देख रहा हूं, जो अभी डिलीट नहीं हुआ।'
एक सेकेंड के स्वाति सकते में आ गई लेकिन दूसरे सेकंड में खिलखिलाकर हंसते हंसते शेखर की बात को काटते हुए बोली...
'शेखर सच कहूं तुम्हारी नज़दीक की नज़र कमज़ोर हो गई है। जल्दी से किसी अच्छे से आई स्पेशियलिस्ट के पास चेक अप करवा लेना यार।'

'स्वाति तुम्हें एक बात पूछूं..?

'शेखर तुम्हारी एक बात से पहले तुम मेरी एक बात ध्यान से सुन लो। बहुत ही मजे़दार और यादगार किस्सा है, सुनो।'

मैं और अदि एक बार बाय ट्रेन दार्जिलिंग जा रहे थे, करीब सुबह के ८ बजे का समय था। हमारी सामने की सीट पर एक ६० से ६५ साल की उम्र के एक बहुत ही पॉपुलर एस्ट्रोलॉजी की कोई एक बुक बहुत ही ध्यान से पढ़ रहे थे। अभी मैं उस बुक का नाम भूल गई हूं। लंबी श्वेत दाढ़ी, साथ में उनके चेहरे पर एक अलग ही प्रकार का तेज था। मुझे उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली लगा। इसलिए थोड़ी देर के बाद मैंने उन महाशय से पूछा, 'नमस्कार, अंकल आप एस्ट्रोलॉजर हो? एक हल्की मुस्कान के साथ मृदु स्वर में बोले, 'जी।'
एकाक्षरी प्रत्युत्तर के साथ उनकी शालीनता और विद्वता का परिचय मिल गया।
इसलिए मैंने और अदि ने एक दूसरे को उन महाशय को पता न चले ऐसे इशारे में ऐसा तय किया कि दोनों एक दूसरे के नाम की अदला बदली करके अपने फ्यूचर के बारे में कुछ पूछे। इसलिए पहले मैंने पूछा,
'अंकल, आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं?'
'पूछो बेटी'
'मेरा नाम अदिती है। मेरे भविष्य के बारे में कुछ कहिए।'
तब उन महाशय ने कहा कि, 'बेटा तुम्हारा भविष्य इस देश में नहीं है।'
बाद में अदिती ने पूछा, 'मेरा नाम स्वाति है। क्या मुझे ज़िंदगी में कभी मेरी बहन की कमी महसूस होगी?'
'बेटी ऐसा होगा तब ये तुम्हें उसके पर्याय में तुम्हें दुगनी खुशी का प्रावधान करके देगी।'

उन महाशय का हम दोनों के लिए प्रिडिक्शन सही नहीं लगा इसलिए हम दोनों मन ही मन में हंसने लगे तो थोड़ी देर बाद जब वो महाशय जो बोले वो शब्द, वो किस्सा और उन महाशय को मैं और अदि आज तक नहीं भूले।'

'क्या बोले थे वो।' शेखर ने आश्चर्य से पूछा।

'बेटा, ज़िंदगी में एक बात याद रखना। नाम बदलने से कभी किसी की तकदीर नहीं बदलती।'

'इसलिए आज तुम्हारे सभी सवालों का यही एक जवाब है..
नाम बदलने से तकदीर नहीं बदलती, शेखर।'
ये सुनकर शेखर कुछ बोलने जाए उससे पहले..
स्वाति ने इशारा किया तो शेखर आगे बोलते हुए रुक गया। उसके बाद स्वाति बोली,
'जब जब मानवीय संबंधों की परिभाषा मेरी समझ से बाहर की हो तब मेरी मोस्ट फेवरेट फिल्म "सागर" का एक संवाद जो हमेशा मेरे दिल के करीब है वो तुम्हारे साथ शेयर करूं तो शायद तुम्हें पसंद आए....'

"इन्सान बनना सब के नसीब में नहीं होता, किसी किसी को खुदा बनना पड़ता है"

'अब बहुत हुआ तुम्हारा केबीसी शेखर बाबु, अव हम निकले? इतना बोलकर स्वाति शेखर के गले लगी तब दोनों की आंखे नम हो गईं।

उसके बाद दोनों कॉफी काउंटर पर से उठकर सबके पास आए।

और फ़िर से एक बार सबके गले लगकर स्वाति बोली,
'अब जाने के अंतिम समय में सबको इतना ही कहूंगी कि,

'मैं ऐसा मानती हूं कि हम सभी किसी न किसी मिलन और बिदाई की क्षण और समय के किसी एक भाग्य बिंदु पर खड़े हैं, बस।'

छलकती हुई आंखों से ओझल न हो तब तक हाथ ऊंचा करके चली गई।

सबसे अलग होकर इमीग्रेशन, कस्टम, सिक्योरिटी सब में से गुजरकर अंत में फ्लाइट में अपनी विंडो सीट पर बैठने के बाद एज़ पर फाइनल अनाउंसमेंट के मुताबिक फ्लाइट राइट टाइम पर ही थी लेकिन बाद में किसी टेक्निकल इश्यू की वजह से टेक ऑफ़ होने में प्रॉब्लम हो रहा था।

तभी अदिती का कॉल आया..
'हां, अदि एवरीथिंग इज़ डन, आई एम ऑन माय सीट।'
'स्वाति एक बात कहूं?'
'हां, अदि बोलो।'
'मुझे क्यूं अभी भी ऐसा फिल हो रहा है कि... तुम फ्लाइट में से उतरकर, दौड़कर मेरे गले लगकर कहोगी कि सॉरी अदि मैं मज़ाक कर रही थी तुम्हारे साथ। मैं तुम्हें छोड़कर कहीं भी नहीं जाऊंगी?'

'अदि, प्लीज़ नाउ आई कांट कंट्रोल माइसेल्फ.. प्लीज़ फॉरगिव मी। ओ. के. मैं कॉल कट कर रही हूं फ्लाइट टेक ऑफ हो रही है.. बाय..'

फ़ोन रखते ही दोनों हथेलियों से अपना मुंह दबा दिया।

फ्लाइट में १०% सीट्स खाली थी और स्वाति के तीन सीट की रो में पास की दोनों सीट्स भी खाली थी। रात के ११:५५ का समय। फ्लाइट रन वे पर आते ही अब टेक ऑफ की अंतिम घड़ी के साथ उसके निर्देश अनुसार की दिशा में तीव्र गति के साथ उड़ान भरने के बाद कुछ देर में हवा में स्थिर हो गया।

इस ओर फ्लाइट की गति की तीव्रता से कई गुना ज़्यादा थी स्वाति की पीड़ा की गति। सीट बेल्ट के साथ साथ उसने बड़ी मजबूती से जकड़ के रखे हुए संयम के बांध को भी खोल दिया। फ्लाइट के ईंधन से भी ज्यादा उसका कलेजा जल रहा था। धीरे धीरे करके फ्लाइट अब उसकी लघुत्तम ऊंचाई पर आ गई थी लेकिन स्वाति की चुप्पी की वेदना गुरुत्तम सीमारेखा को क्रॉस कर गई थी। थोड़ी देर बाद पैसेंजर्स अब अपने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का प्रयोग कर सकते हैं ऐसा अनाउंसमेंट हुआ।

बस, बहुत देर तक एक के बाद एक पिछ्ले दो दिनों के अनुमानित संवाद उसके कानों में गूंजते रहे। सबके कांटे जैसे चुभते व्यंग बाण के अनुवाद में सिर्फ़ और सिर्फ़ बेहद प्यार के सिवाय कुछ भी नहीं था। लेकिन परिस्थिति की शिकार होकर सबका दिल दुखाया उसका प्रायश्चित कैसे होगा? सबकी लाड़ली, दिल का टुकड़ा अचानक सबको इतना बड़ा सदमा देकर २४ घंटे में इतनी दूर चली जायेगी वो सबके लिए एक कुठाराघात जैसे कोड़े के प्रहार के साथ एक अनसुलझी गुत्थी भी थी। क्षण प्रतिक्षण बवंडर के जैसे आते विचारों के झुंड को टालने की घंटों कोशिश करी।

ऐसा कठोर और दूसरे की नज़रों में निर्दय प्रतीत होता निर्णय लेने की गांठ बांधने से पहले स्वाति ने जडयुक्त मानसिकता से उसका तन, मन और मस्तिष्क को एकदम भावनाशून्य की चरमसीमा तक लेकर तो गई लेकिन अब इस जड़ता को अपने पिंड में से मुक्त करने का स्वाति पास अब एक ही अंतिम उपाय था जिसे अमल में लाने के लिए उसने अपने लेपटॉप बैग में से लेपटॉप निकालकर अपनी गोद में रखा और उसके बाद,

एक हिडन फ़ोल्डर सर्च करके ओपन करते ही..
शेखर का जवाब स्वाति के कानों में गूंजने लगा..

'जो अभी डिलीट नहीं हुआ वो', डिलीट नहीं हुआ,,, डिलीट नहीं हुआ.., नहीं हुआ।

एबनॉर्मल आलोक के साथ के मुलाकात की प्रथम रात्रि के संवाद की शुरुआत शेखर ने अपने परिचय से शुरू करके अपने हंसते खेलते आलोक को फ़िर से नवजीवन बक्षने की गुज़ारिश की उसी क्षण स्वाति ने मन ही मन लिए हुए कठिन प्रण की प्रणाली को निभाने के लिए स्वयं ने किया हुआ परकाया प्रवेश करके होश खो चुके आलोक को होश में लाते लाते स्वाति खुद ही होश खो बैठी कि कौनसे क्षण में आलोक उसका सबकुछ बन गया। सुख और दुःख की पराकाष्ठा के अंतिम बिंदु को छूकर पड़ी हुई एक अत्यंत पतली मन के मतभेद की रेखा के मध्य बिंदु पर अपने आप को पल पल संतुलित रखकर यहां तक पहुंची हुई स्वाति अब अपने टूटे हुए मनोबल के साथ अत्यधिक पीड़ा के ज़ोर से गिरते हुए झरने में कब तक गिरकर खुद को घिसटती रही।

'अतित' नाम दिए गए फ़ोल्डर को ओपन करते ही

पहला ही पीक....

कि जिसमे आलोक किसी छोटे बच्चे के जैसे स्वाति की गोद में सिर रखकर सो रहा है जिसे देखकर स्वाति के चेहरा पर एक अलग ही खुशी उमड़ रही थी..

वो पीक स्वाति ने डिलीट किया,,

दूसरा पीक...

आलोक जल्दी से लिपटे हुए टॉवेल के साथ ड्रॉईंग रूम में आता है और अचानक स्वाति को देखकर छुपने की कोशिश में उसका टॉवेल करीब करीब निकाल जाने की तैयारी में था तब खिलखिलाकर मुक्त मन से हंसती स्वाति,,,,

वो पीक भी रोते रोते डिलीट किया।

तीसरा पीक....

सोफ़ा पर बैठकर किताब पढ़ रहे आलोक के कंधे पर सिर रखकर बेहद खुश और विचारमग्न बैठी हुई स्वाति..

वो भी डिलीट..

आलोक के बाल बिखेरती, टाई बांधती, चॉकलेट खिलाती हुई, आलोक के गोद में बैठी हुई, गाल खींचती, आलोक गहरी नींद में सो रहा हो तब रंग बिरंगी कलर्स से उसके चेहरे को जोकर के चेहरे जैसे सजाती, आलोक आंखों में पट्टी बांधकर आंख मिचौली खेलती, पांव में मोच आई हुई स्वाति के मरहम लगाकर दे रहा आलोक, बात करते करते सो गए हुए आलोक के गाल पर किस करती हुई स्वाति। ऐसे एक एक दृश्य को कैमरे में कैद करते करते स्वाति खुद अदिती के किरदार में कैद हो गई। दो एक जैसे चेहरे के एक जैसे चित्र और चरित्र का भेद परखने में ईश्वर की आऊट ऑफ लिमिट मिस्टेक ने स्वाति को निरंतर उसकी उंगलियां सुन्न न पड़ जाए तब तक बस....

डिलीट.. डिलीट... डिलीट.. डिलीट.. करते करते उसके अंदर अविरात फट रहे लावा ज्वालामुखी को शांत करने के लिए हेड फ़ोन लगाकर अपना धी मोस्ट फेवरेट सॉन्ग प्ले किया..

"अपनी मर्ज़ी से कहां अपने सफ़र के हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर है उधर के हम हैं।"


समाप्त.


© विजय रावल