उपन्यास--
भाग—4
अन्गयारी आँधी
--आर.एन. सुनगरया,
हेमराज अत्यन्त चिन्तित, व्याकुल व भयभीत था। विषम परस्थितियों, तनावग्रस्त हालातों में, शक्ति को दौरा दबोच लेता तो? हॉं ज्ञात हो जाता कि किन कारणों से ऐसा अटेक्क हो सकता है। अगर हुआ तो उसके समाधान के लिये तत्काल व्यवस्था का भी ध्यान रखना है!
नये-नये शहर में ड्यूटि शुरू हो रही है। हेमराज ने दृढ़ संकल्प लिया कि इस काल खण्ड में शक्ति के दौरों के बारे में प्रमाणिक जानकारी हासिल कर लेगा। इस बार जरूर सफलता हाथ लगेगी।
हेमराज ने अपनी माथा-पच्ची प्रारम्भ कर दी,.......प्रत्येक व्यक्ति अपनी आयु के अधिक से अधिक समय अपने परिवार पास-पड़ोस, समाज एवं मित्रों-सहपाठियों के साथ, गुजारता है। क्यों न इनके अतीत को ही खंगाला जाये। सम्भव है, एैसा अवसर जरूर आया होगा कि शक्ति को दिमागी चौट लगी हो और उसके मस्तिष्क में क्रोध की अग्नि धधक उठी हो, जो अभी तक, धधक रही हो; ठहरी हुई ज्वाला तनिक हवा के झोंके से भभक उठती हो। हो सकता है; शक्ति इन सब इवेन्ट से अनभिग्य हो। रोग की खोज तो, हित चिन्तक अपने हितौसियों का ही होता है।
शक्ति अपने घरेलू सामानों को व्वस्थित करने में लगा था। तभी हेमराज का प्रवेश हुआ। दोनों सामान्य शिष्टाचारिक निर्वहन करके पलंग से सटी कुर्सियों पर बैठ गये।
‘’कैसे आना हुआ, हेमराज।‘’ शक्ति ने स्वभाविक रूप से पूछ लिया। ओपचारिकतावश!
‘’खाली-खाली लग रहा था......उदासीनता।‘’ हेमराज अपनी बात पूरी करता, इससे पूर्व ही शक्ति बोल पड़ा, ‘’हॉं, मुझे भी दिमाग कुछ भारी-भारी सा मेहसूस हुआ तो....।‘’
‘’घर परिवार में सब ठीक-ठाक है ना?’’ हेमराज ने हल्की सी चिन्ता जाहिर की और अपनी योजनानुसार, पूछ लिया, बच्चे, भाभीजी एवं आदर्णिय मॉंताजी, सब स्वस्थ व प्रसन्नचित हैं ना, ईश्वर की कृपा से!’’ एक सांस में बोल गया। ‘’हॉं ठीक हैं।‘’ शक्ति का बहुत ही संक्षिप्त जवाब।
हेमराज से अनेक अव्यक्त आसय निकालने लगा। बहुत ही औपचारिक उत्तर। सुनकर वह अचम्भित भी है। और हेरान भी। ऐसा लगा, जैसे शक्ति घर परिवार की चर्चा ही नहीं करना चाहता।
शक्ति परिवार के प्रति इतना उदासीन, बुझा-बुझा, अनमना सा, विरक्त क्यों है, आखिर! हेमराज के मन-मस्तिष्क में प्रश्नों का अम्बार लगता जा रहा था। जिनके उत्तर से ही शक्ति के रहस्य पर कुछ खुलासा होने की सम्भावना हो सकती है।
‘’मेरी बातें तो निकलती होंगी, कभी-कभार!’’ हेमराज ने परिवार का सुरअलाप ही दिया।
शक्ति उसे घूरने लगा। आराम की मुद्रा में, इतमिनान से कुर्सी पर बैठे-बैठे ही, जवाब दिया, ‘’तुम्हारा जिक्र!’’ वास्तविकता बताने लगा, शक्ति, ‘’उनका वश चले तो वे मेरा तक नाम ना लें, इतने खुदगर्ज हैं।‘’
बीबी, बन्टी एवं बवली तीनों। अपने-आपके लिये ही जीते हैं।‘’ निडरतापूर्वक, निसंकोच शक्ति अपनी तीखी जुबान में बखान करता गया, ‘’सबको अपनी-अपनी जरूरतों का ख्याल रहता है। बाकी जायें भाड़ में.....।‘’
हेमराज निर्वाक्य! इतना कसैलापन विचारों में। उफ! ये कैसे रिश्ते हैं। सगे, खून के!
शक्ति को अपने परिवार के प्रति इतनी विरक्ति क्यों है। विचित्र स्थिति है। पत्नि, बाल-बच्चे तो जीवन की सार्थकता माने जाते हैं। उनके लालन-पालन में तो आत्मिक सुख एवं परम खुशी मिलती है। वरदान की भॉंति। औलाद, नाती-पौतों के लिये अच्छी से अच्छी सुख-सुविधाऍं उपलब्ध कराने हेतु तो हर तरह के प्रयास किये जाते हैं। अभिभावक सदा उनके बेहतरी वास्ते ही सोचते रहते हैं। परिवार के दु:ख-दर्द में कितना सम्वेदनशील रहता है, घर का मुखिया! मगर शक्ति के पारिवारिक सम्बन्धों की कुछ भिन्न ही दास्तान प्रतीत होती है।
‘’एैसे अलगाव की कोई वजह.......?’’ हेमराज ने शक्ति को कुरेदा।
‘’कारण, तो सोचा नहीं कभी!’’ शक्ति ने कोई गम्भीरता नहीं दिखाई।
‘’ये खिंचाव कब से है?’’ हेमराज।
‘’एैसा ही शुरू से.....।‘’ शक्ति।
‘’परस्पर ट्यूनिंग सुधारने की चेष्टा नहीं की तुमने?’’ हेमराज ने जानना चाहा।
‘’की....।‘’
‘’तो फिर....।‘’
‘’परिणाम नहीं!’’ शक्ति ने कुछ परते हटाईं, ‘’बोलता खेत की हूँ; सुनती खलियान की है।‘’
‘’विपरीत ध्रुव!’’ हेमराज ने हल्की सी सहानुभूति दर्शाई।
‘’पत्नि ने हमेशा मेरे व्यक्तित्व को नकारा।‘’ शक्ति ने अपने मन की गॉंठ ढीली की, ‘’परस्पर तालमेल विकसित करने में कोई रूचि नहीं पत्नि को।‘’शक्ति ने अपनी विवशता को इंगित किया, ‘’सुसंस्कार का अभाव है।‘’ शक्ति ने जानकारी दी, ‘’शिक्षित तो खूब है, व्यवहारिक ज्ञान टपोरियों से भी गया बीता है। टुच्ची है!’’ शक्ति ने नाक-भौंय सुकोड़ी, ‘’सुअर की प्रवृति व प्रकृति की है! ढीठ!’’ खामोशी।
‘’ऐसा कैसे.........।‘’ हेमराज ने अपना विचार रखा, ‘’पढ़ी-लिखी है, भरे-पूरे परिवार की है। तो समझदार पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाली मिलनसार, बात-व्योवहार में कुशल तो होना ही चाहिए, इसमें कोई शंका की गुन्जाईश ही नहीं है। उसे तो विषम से विषम परिस्थिति में भी समुचित तालमेल बैठाकर, अपनी सुख-शॉंति बनाये रखनी चाहिए। बच्चों के खुशहाल उज्जवल भविष्य के बारे में प्रयत्न करते रहना चाहिए। सामाजिक मान-सम्मान प्रतिष्ठा, छवि, सर्वमान्य, सर्वउचित बनाये रखने का दायित्व गृहणी का ही कर्त्तव्य सदियों से चला आ रहा है। घर-परिवार को समाज में प्रतिष्ठित करना स्त्री का मूल उद्धेश्य होता है। तभी तो महिला देवी कहलाती है।
हेमराज अचम्भित! शक्ति को वह बहुत ही होशियार, निडर, तर्क-कुतर-बितर में माहिर मानता है। विषम परिस्थितियों से भी जूझकर सकुशल निकल आने वाला जुझारू शख्स । शक्ति जैसा दिलेर, कर्मठ, अद्भुत सूझ-बूझ का धनी। बेवाक, प्रखर वाक्य चातुर्य में प्रवीण, पलभर में सम्पूर्ण विषमताओं को अपने अनुकूल कर लेने का माद्दा रखने वाला आत्मविश्वासी मर्द।
शक्ति ने आत्म समर्पणकारी चोला किन कारणों से धारण कर रखा है, यह समझ से बाहर है।
जिन्दगी जितनी सीधी सपाट, सरल सुलभ समझ बैठते हैं; असलियत कुछ भिन्न होती है। आहिस्ता–आहिस्ता जीवन के नये-नये पहलू अपने पूर्ण स्वरूप में सामने आते-जाते हैं। अपना रंग, अपना असर दिखाने लगते हैं। जैसे-जैसे आन्तरिक रहस्य ज्ञात होते हैं; वैसे-वैसे नई-नई धारणाऍं परिभाषित होती रहती हैं। यह क्रम चलता ही रहता है, अनवरत।
ना जाने किस मोड़ पर कौन कैसा गुल खिला दे। किस अड़चन का सामना करना पड़े ? भविष्य के गर्भ में कौन सा मंजर स्वागतार्थ आ खड़ा हो। जिन्दगी के किस रूप से दो-दो हाथ करना पड़े!
शक्ति अपनी आयु की पगडंडियों के उलझे-पुलझे रास्तों से गुजरते हुये, किसी पड़ाव के उतार-चढ़ाव के दुष्परिणाम से टकराते हुये, अपनी मूल क्षमता खो बैठा है। उसी सदमें के गिरफ्त में वह निष्क्रय होकर उदास प्रतीत होता है। उसे अपने-आपकी विशेषताओं का आभास ही नहीं हो पा रहा है। शक्ति को क्रियाशील करने के लिये उत्प्रेरित एवं प्रोत्साहित करना होगा। वह स्वत: इस मोर्चे पर आ डटे एैसा माहोल बनाना होगा।
शक्ति को इस अदृश्य मकड़जाल से बाहर खींचना होगा। तभी वह अपनी वास्तविक स्थिति पुन: प्राप्त कर पायेगा। अपने जीवन-पथ पर आनेवाली चुनौतियों पर विजय हासिल करने में सफल होगा। इसके लिये शक्ति को अपने परिवार द्वारा उल्लेखनीय सहयोग देना होगा, निरन्तर।
हेमराज ने विचार मंथन करके सहानुभूतिपूर्वक शक्ति को समझाया, ‘’क्यों ना पत्नि को, हितचिन्तक बनाकर प्रेमपूर्वक बात-व्योवहार/व्यवहार के माध्यम से घर गृहस्थी पर ध्यान देने की सलाह दी जाय।‘’ हेमराज ने सुझाया, ‘’सलाह....।‘’
‘’सलाह!’’ शक्ति भड़क उठा, ‘’सलाह उस बददिमाग औरत को!?’’
‘’शायद कायापलट....।‘’ हेमराज आशान्वित लगा।
‘’कायापलट.........उस उलटी खोपड़ी का।‘’ शक्ति क्रोधित मुद्रा में, ‘’सुअर कौम है...।‘’
‘’फिर भी.....।‘’ हेमराज ने उम्मीद बंधानी चाही, ‘’हो सकता.....संस्कार जाग जायें,
‘’ठॅूंठ है, ठूँठ.......हेमराज।‘’ शक्ति ने मुस्कुराते हुये देखा, ‘’कोंपल आने से रहीं.......।‘’
‘’नाउम्म’दी ठीक नहीं, शक्ति!’’ हेमराज ने अपने दृष्टीकोण की दृढ़ता पर जोर दिया।
‘’हर हथकण्डा अपना कर......।‘’
‘’समस्या, समझकर, सूझ-बूझ से कोशिश करें तो समाधान अन्नत है......।‘’ हेमराज ने आशाजनक रास्ता सुझाया, ‘’बारीकी अध्ययन द्वारा ज्ञात करो, सारा मामला। वास्तविक अड़चन है कहॉं? ये देखा, सुलह की क्या तरकीब लगाई जाये।‘’
शक्ति गौर से सुनते हुये, गम्भीरता पूर्वक, अपनी धारणा एवं विचारों को उद्वोलित होते हुये महसूस करने लगा। विचार मग्न होकर अतीत के गर्त में दबे दृश्यों को खंगालने लगा। ख्ण्डरों को पुन: निर्माण करने की योजना बनाने लगा।
हेमराज की सलाह ठीक भी बैठ सकती है; क्यों ना स्वयं की कार्यपद्धति, रहन-सहन, बोल-चाल, बात-व्यवहार आदि-आदि में आवश्यकता अनुसार आमूल-चूल परिवर्तन करने की गुन्जाईश हो तो; जुगत करना होगा, ताकि सम्बन्ध सामान्य होने में मदद मिले। प्यार के बदले प्यार, सम्मान के बदले सम्मान, सहानुभूति के बदले सहानुभूति, चाहत के बदले चाहत सुव्यवहार के बदले सुव्यवहार, मिलना तो परम्परा तथा नैतिक बाध्यता है। यह योजना सुसंगठित, असरदार एवं अकाट्य प्रतीत होती है।
योजना निर्धारण के पश्चात उसे क्रियाम्वित कैसे की जाये। तत्काल क्या-क्या कदम बदलाव में उठायें। तद्अनुसार उसे कार्यरूप दिया जाना होगा। शुरूआत में, सबको आश्चर्य, शंका-कुशंकाऍं उत्पन्न हो सकती है। मन-ही-मन बहुत ही विश्वनीय अन्दाज में प्रारम्भ करने पर धैर्यपूर्वक प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा करनी होगी। सौ चूहे खाकर बिल्ली हज़ को चली वाली कहावत जैसा हाल ना हो जाये। पूर्ण सावधानी से फूँक-फूँ कर कदम बढ़ाना पड़ेगा। कुछ तान्हों, उल्हानाओं, उपेक्षाओं का भी सामना करना पड़ सकता है। इन सब अड़ंगों को पार करके अपने मुख्य लक्ष्य की ओर अग्रसर होना ही प्रधानता रहनी चाहिए। इन तात्कालिक, क्षणिक सम्भावनाओं को नज़र अन्दाज़ करते हुये, समाधान प्राप्ति के खास मकसद को हासिल करने का ही होगा।...........
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---क्रमश:--5
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय-
समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं
स्वतंत्र लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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