छापे का डर (व्यंग्य कथा) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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छापे का डर (व्यंग्य कथा)

छापे का डर
विभिन्न स्थानों पर चपरासी ,बाबू और बड़े-बड़े सहाबों के घर छापे पड़ने लगे । खबरों की दुनिया में तहलका मच गया क्योंकि इनके घर करोड़ों उगलने लगे । ऐसे समय में रामलाल की पत्नी बहुत परेशान हो गई । अब उनको रातों को नींद नहीे आती और वे दिन में भी चैन से नहीे रह पातीं । वे हमेशा ही खोई-खोई और उदास रहने लगी । अरे ..... आप रामलाल को नहीे जानते , रामललाल जी.... अरे वही जो शहर के एक विभाग में अफसर है । वैसे उनका इतना परिचय काफी है । रामलाल जी ने पत्नी को उदास देख कर एक दिन पूछ ही लिया ‘‘क्या बात है आज कल आप कुछ चिंता में दिखाई देती है ? ’’ इस पर उनकी पत्नी ने अखबारों की कतरनें ला कर दिखाने लगीं और बोली ‘‘ देखिए आज कल हर तरफ छापे पड़ रहे है । ‘‘मुझे मालूम है।’’ राम लाल बोले ‘‘लेकिन तुम क्यों परेशान हो रही हो ?’’ रामलाल की पत्नी की आँख में आंसू छलक आए वो बोल पड़ी ‘‘ सोचो ... कहीं हमारे घर भी छापा न पड़ जाए ? फिर.... हमारी कितनी बेईज्जती होगी?’’ रामलाल जी को लगा कि जैसे उनकी पत्नी ने उन्हे आईना दिखा दिया हो,वे बोले ‘‘ हाँ ऐसा हो सकता है ,लेकिन .... मुझे लगता है ऐसा होगा नहीं ।’’ अब दोनो ही चिंता में डूबे थे ।
रामलाल को अब घर पर पड़ने वाले काल्पनिक छापे का डर सता रहा था । वे बहुत सर्तक व्यक्ति है । पिछली बार जब उनका स्थानांतरण हो ने वाला था तब भी उन्होंने सर्तकता के साथ पहले ही व्यवस्था बनाते हुए ऊपर के अधिकारीयों कोे दान-दक्षिणा पहुॅचा दी थी । दान-दक्षिणा के पुण्य प्रताप से स्थानांतरण के शाप से वे मुक्त रहे थे । अब उन्हे छापे से बचे रहने की युक्ति खोजनी थी। उन्होंने अपने कुछ खास लोगों से सलाह ली तो इन्हे संतों की संगत के फल की ही तरह सतपाल सहाब की जानकारी का प्रशाद प्राप्त हुआ । सतपाल सहाब बहुत ही कड़क अफसर माने जाते है परन्तु उनकी सख्ती के पीछे बहुत कुछ छुपा हुआ है। सतपाल सहाब के विषय में कहा जात है कि उनके लिए कोई भी काम असम्भव नहीं है। आज कल वे छापामार दल के मुखिया है । संयोग से रामलाल जी का उन से पूर्व परिचय रहा है। रामलाल जी सीधे ही सतपाल सहाब से मिलने उनके आलिशान घर पर पहुॅचे । उन्होंने जैसे ही सतपाल जी को अपना परिचय दिया वे पहचान गए। वे बोले‘‘ अरे रामलाल जी आज कैसे आना हुआ ?’’ रामलाल ने सकुचाते हुए छापे के डर के विषय कह डाला। साथ ही साथ एक लिफाफा सतपाल जी की ओर बढा दिया और बोले ‘‘ अब तो बस आप का ही सहारा है । ’’ सतपाल जी के हाथ से उसे तौला और बोले ‘‘बस.... लेकिन अब आप बेफिक्र हो जाओ और भी कोई काम हो तो बता देना ।’’ रामलाल को तो मुहमांगी मुराद ही मिल गई । वे थोड़ी बहुत औपचारिक बातचीत के बाद खुशी-खुशी चल दिए ।
रामलाल ने घर में घुसते ही अपनी पत्नी को बताया कि अब छापे से डरने की जरुरत नहीं है । रामलाल की पत्नी प्रसन्न हो गई । उसने विस्तार से सारा किस्सा सुना और बोली ‘‘ देखो जी ... ये काम बहुत ही अच्छा हुआ क्योंकि आप तो हो एक बड़े अफसर। आप ही बताओ चपरासी और बाबू के घर से करोड़ों निकलते है और अगर हमारे घर छापा पड़ता तो क्या निकलता दो चार हजार रुपये, टूटा हुआ सोफा और कुछ नकली जेवर । बताइए छापा पड़ने पर हमारी कितनी बेइज्जती हो जाती ? फिर कोई ये थोड़े ही सोचता कि आप कितनी ईमानदारी से काम करते है । लोग तो थू-थू करते कि इतना बड़ा अफसर और घर में पैसे ही नहीं निकले । मोहल्ले, पड़ोस और शहर में हमारी बनी बनाई इज्जत खाक में मिल जाती क्योकि आज कल लोग ईमान को नहीं पैसे को ही प्रणाम करते है और.....। ’’ रामलाल जी बीच में ही बोल पड़े "चलो भाषण खत्म हो गया हो तो चाय पिलाओ क्योकि छापे का डर अब नहीं रहा । "
आलोक मिश्रा "मनमौजी"