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खेल नसीब का

एक घर में एक माता पिता की संतानें कितने अलग-अलग भाग्य लेकर पैदा होती हैं।किसी का भाग्य उसकी झोली खुशियों से भर देती है, तो कोई ताउम्र संघर्ष ही करता रह जाता है।
सबसे बड़ी विनीता,बीच की अनीता एवं सबसे छोटी सुनीता,तीनों बहनें गांव में अपने माता-पिता के साथ पुष्तैनी घर में रहती थीं। चाचा, ताऊ भी साथ साथ अपने बाल-बच्चों के साथ रहते थे, कुछ अपने हिस्से की खेती सम्हालते थे,कोई दुकान करता था।अनिता के पिता की आंटा चक्की थी।पहले लोग गेंहू पिसवाकर ही आँटा बनाते थे, पिसे पैकेट के आँटे का चलन नहीं था।माली हालत ठीक-ठाक ही थी।
दोनों बड़ी बहनें गांव के स्कूल में पढ़ने जाती थीं।अभी सुनीता 4 साल की ही थी कि किसी बीमारी से मां चल बसी।विनीता भी कुल 9 वर्ष की ही थी। बच्चों को सम्हालने के नाम पर दो माह के अंदर ही एक बच्ची की मां जो परित्यक्ता थीं, उनकी सौतेली माँ बनकर आ गईं।घर में सबने इस विवाह का विरोध किया था लेकिन पिता ने एक न सुनी।वे तब छोटी थीं, इसलिए विरोध का वास्तविक कारण नहीं समझ सकीं थीं।बड़े होने पर वास्तविकता पता चली थी कि पिता का सम्बंध विवाह से पहले का था लेकिन दादा जी ने जबरन मां से विवाह करवाया था।उस युवती की शादी उसके परिजनों ने भी कहीं और कर दी,लेकिन वह उस सम्बंध का निर्वाह न कर सकी,अतः बेटी के साथ मायके लौट आई।पिता के सम्बंध पुनः स्थापित हो गए थे उनके साथ, जिसका मां ने भरसक विरोध किया, किंतु पिता को रोक न सकीं, उस सदमे ने धीरे धीरे उन्हें घुलाकर मौत के मुंह में धकेल दिया।नई मां के आते ही कुछ ही समय में पिता पूर्णतः पराए हो गए।कुछ समय पश्चात ही एक भाई भी हो गया, अब तो बेटा होने के बाद बेटियां पूर्णतया अवांछित हो गईं।चाची,ताइयों की कृपा से उन्हें कपड़े-लत्ते मिल जाते थे।परिवार के दबाव में दो जून का खाना जैसे-तैसे नई मां दे देती थी।सरकारी स्कूल से इंटर करने के बाद विनीता का विवाह बाबा ने एक ठीक-ठाक घर-वर देखकर करवा दिया।
दुर्भाग्य तो अनिता अपनी किस्मत में लिखवा कर आई थी।पेट पर से सफेद दाग शुरू होकर जब होंठ के पास हो गया, तब बाबा ने देखा।सरकारी अस्पताल में चिकित्सा कराई,लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।अब बिना मां की बेटियों की देखभाल कौन करने वाला था, शायद पहले ज्ञात हो जाता तो कुछ फायदा होने की संभावना भी बन जाती।पिता तो अपनी पत्नी और बेटे के साथ मगन थे।अनिता ने ताई के पास शहर में रहकर बीए कर लिया एवं एक छोटे से स्कूल में अध्यापिका का कार्य करने लगी।न तो दान-दहेज देने के लिए धन था,उसपर सफेद दाग ने जीवन को और दुश्वार बना दिया था।धीरे धीरे सुनीता ने भी एमए पूर्ण कर लिया।बड़ी दीदी,जीजाजी तथा बाबा ने अपनी कोशिशों से सुनीता का भी खाते-पीते घर में विवाह संपन्न कर दिया।बाबा जानते थे कि उनकी आंखें बंद होने के बाद अनिता का विवाह असम्भव हो जाएगा।अतः समाज द्वारा करवाए जाने वाले सामुहिक विवाह के माध्यम से एक गरीब युवक से उसका विवाह करवा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली।अब सबका अपना भाग्य, सुख मिले या दुख।
विनीता दो बेटियों की तथा सुनीता दो बेटों की माँ बनकर अपने परिवार के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रही थीं।अनिता भी एक बेटी की माँ बन गई।उसके जीवन में संघर्षों ने स्थाई निवास बना लिया था लेकिन उसने हार नहीं मानी।प्रेग्नेंसी में स्कूल की नौकरी भी छोड़नी पड़ी क्योंकि तबियत अत्यधिक खराब रहती थी। पति एक दुकान में सहायक के तौर पर काम कर रहे थे।जैसे-तैसे वे गुजर-बसर कर रहे थे।जब बेटी 6-7 माह की हो गई तो अनीता ने पुनः कार्य प्रारंभ करने की सोची।छोटी बच्ची के साथ स्कूल में पढ़ा पाना सम्भव नहीं था, अतः घर पर ही कुछ छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया।फिर एक किराए की दुकान लेकर एक छोटा सा गिफ्ट स्टोर खोल लिया,साथ ही मोबाइल रिचार्ज का काम भी करने लगी।धीरे धीरे दुकान काम लायक चलने लगी थी।दोनों की आमदनी से घर खर्च निकल जाता था और कुछ बचत भी होने लगी थी।पति-पत्नी ने अपनी परिस्थितियों को देखते हुए एक बेटी पर ही परिवार नियोजन अपना लिया था।लेकिन समस्याएं आगे-आगे चल रही थीं, ठहरने न देने के लिए कसम खा रखीं थीं जैसे।दुकान मालिक ने अपने प्रयोग के लिए उन्हें दुकान खाली करने का आदेश दे दिया।अब आसपास पुनः कम पूंजी में दुकान मिलना मुश्किल था।कहते हैं न कि मुसीबत अकेली नहीं आती।पति दुकानों पर ब्रेड,बिस्कुट जैसे सामानों की सप्लाई का कार्य भी करते थे, जिससे थोड़ी अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी।एक दिन वे मोपेड से जा रहे थे कि अचानक सामने से आ रहे बच्चे को बचाने के चक्कर में बाइक से टकरा गए, परिणामस्वरूप एक पैर में बुरी तरह फ्रेक्चर हो गया, ऑपरेशन कर रॉड डाली गई।तीन-चार महीने लग गए ठीक होने में।नौकरी तो छूट ही गई।अनिता ने समान की सप्लाई का काम तो सम्हाल लिया था।कुछ मदद बड़ी बहन ने किया।एक साल लग गए पति को पूर्णतया सही होने में।चूंकि पैर कमजोर हो चुका था अतःएक ई-रिक्शा लेकर चलाना प्रारंभ कर दिया।अनिता ने एक ग्रॉसरी शॉप पर नौकरी शुरू कर दिया।
अभी जिंदगी की गाड़ी ठीक से पटरी पर आई भी नहीं थी कि अनिता के पेट में तीव्र दर्द रहने लगा।चिकित्सक को दिखाने पर ज्ञात हुआ कि उसे गर्भाशय में रसौली हो गई है, फिलहाल तो छोटी है लेकिन यदि बढ़ाव नहीं रुकेगा तो ऑपरेशन करना आवश्यक हो जाएगा।अभी इस समस्या का समाधान निकला भी नहीं था कि पति के पेट में एक दिन अचानक से दर्द हुआ,अल्ट्रासाउंड से पता चला कि उनके पित्ताशय में पथरी हो गई है।अब अनिता ने पहले पति का ऑपरेशन करवाना ज्यादा आवश्यक समझा।जिंदगी से संघर्ष जारी है।शायद समस्याएं लड़ने का हौसला भी देती हैं, बस जज्बा होना चाहिए और हिम्मत का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
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