मरा कुत्ता’ (व्यंग्य कथा) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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मरा कुत्ता’ (व्यंग्य कथा)

‘‘मरा कुत्ता’’
शहर से दूर एक माईन्स एरिया के थाने में उदासी का आलम हैैै। थानेदार को ऊपर से खबर आयी है कि किसी विशेष आयोजन के लिए पैसों का बंदोबस्त करना है। थानेदार ने हवलदारों को और उन्होनें सिपाहियों को ये खबर दी। यहाँ आमतौर पर छोटी-मोटी वारदात ही होती है। बड़े आसामियों ने ऊपर से ही सेटिंग की हुई है। इसलिए थाने की कुछ खास आवक नहीं। कभी-कभी सड़क पर आने-जाने वाले वाहनों से छोटे-मोटे केसों, शराबियों और जुआरियों से सबकी रोजी-रोटी चलती है। ऐसे में विशेष आयोजन हेतु व्यवस्था करना सभी को कठिन काम लगने लगा।
हवलदार मुच्छड़ सिंह जैसा दिखने में शैतान वैसा भी दिमाग का भी शैतान है। उसने बहुत सोचा मगर उसे कोई उपाय न सूझा। तभी थाने की दिवार के पास सुबह के मरे कुत्ते की छवि उसके दिमाग में आयी। अब उसका शैतानी दिमाग काम करने लगा। उसने सिपाही हैरानसिंह और अनोखेलाल को बुलाया और कहा- ‘‘देखो, सुबह जो कुत्ता मेरे लात मारने से मरा था वो वहीं पड़ा होगा। उसे उठाकर सड़क के बीचोबीच रख दो।’’ सिपाहियों ने हवलदार के कहे अनुसार किया। वे सोच रहे थे हवलदार भी अजीब है। इतनी बड़ी समस्या है और ये मरे कुत्ते के बारे में सोच रहा है। मुच्छड़ सिंह मन ही मन योजना बना चुका था वो दो-तीन सिपाहियों को लेकर सड़क के किनारे आराम से बीड़ी फूंकता हुआ खड़ा हो गया। एक ने पूछा- ‘‘फिर विशेष कार्यक्रम की व्यवस्था कैसे होगी ? ’’ मुच्छड़ सिंह बोला- ‘‘ये..... (सुविचार) मरा कुत्ता ही व्यवस्था करेगा।’’ दूसरे ने कहा- ‘‘कैसे ? ’’ हवलदार बोला- ‘‘मुँह बंद कर और देख तेरी तो......(सुविचार)।’’ हवलदार के सुविचारों को सुनकर सब चुप हो गये।
सड़क पर दूर से माईंस के आला अधिकारी की गाड़ी आती देखकर मुच्छड़ सिंह का चेहरा खिल गया। वो अधिकारी को पहचानता भी था। उसने देखा सरकारी गाड़ी में अधिकारी न था, उसे कोई जवान छोकरा चला रहा था। उसने तुरन्त सिपाहियों को कहा- ‘‘तैयार हो जाओ हमारा शिकार आ रहा है। रामरतन तु मोटर सायकल स्टार्ट रख।’’ गाड़ी चलाने वाले ने अचानक ही बीच सड़क पर कुत्ता देखा। हड़बड़ाकर ब्रेक लगाया लेकिन तब तक कुत्ता सामने वाले पहिये के नीचे आ चुका था। पूरा थाना सक्रिय हो गया। हवलदार सहित सभी गाड़ी पर टूट पड़े। छोकरे को बाहर खीच लिया गया। दो-तीन रसीद करने और सुविचार सुनाने के बाद नाम पता पूछा गया। छोकरा आला अधिकारी का बेटा था। गाड़ी, मरा कुत्ता और छोकरा अब थाने में थे। हवलदार अपने सुविचारों के साथ बोल रहे थे- ‘‘तेरी......(सुविचार) एक तो लायसेंस नहीं है और सरकारी गाड़ी चलाने का शौक चर्राया हैं.........(सुविचार) को और कुत्ता मार दिया, तेरी तो.........(सुविचार)।’’ दो डण्डे और मार दिये।
छोकरे ने गालियाँ और डण्डे खाने के बाद कहा- ‘‘आप जो कहेगें हो जायेगा। मेरे पापा से एक बार बात तो कर लेने दो।’’ मुच्छड़ सिंह तो यही चाहता था, बोला- ‘‘लगा उस... (सुविचार) को फोन और बोल 20,000/- (बीस हजार) रूपये भिजवा दें।’’ छोकरे ने घर फोन लगाकर सब बताया। उसे लग रहा था कि कुत्ता उससे ही मरा है और उसने घर में रूपये भेजने के लिए कहा। अधिकारी वर्मा जी कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे परन्तु मामला खुद के बच्चे का और सरकारी गाड़ी का था। उन्होंने विशेष व्यक्ति के द्वारा पैसे भिजवा दिये। इस तरह सब खुश हो गये। थाने वालों का काम बन गया और छोकरा भी छूट गया।
बात यहीं खत्म होती तो कहानी का सुखद अंत होता। परन्तु विशेष आयोजन के दौरान थाने को बहुत प्रशंसायें प्राप्त हुई। फिर क्या था रंग में आकर मुच्छड़ सिंह ने बड़े अधिकारियों को अपनी चतुराई का किस्सा सुना डाला। वे बड़े अधिकारी वर्मा जी के दोस्त निकले। उन्होंने वर्मा और मुच्छड़ सिंह के किस्सों को मिलाकर देखा तो समझ गये कि दोस्त के सामने पुलिस की ईमानदारी दिखाने का समय आ गया है। उन्होंने थानेदार को एकांत में बुलाया और कहा कि- ‘‘इसी समय जाकर वर्मा जी के पैसे वापस कर दें।’’ अब बेचारा दोहरी मुसीबत में है। मरे कुत्ते की कमाई तो आयोजन पर खर्च हो गई अब वर्मा जी को क्या दें ....... (सुविचार)

आलोक मिश्रा "मनमौजी"