मुलाकात - 4 दिलीप कुमार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुलाकात - 4


मुरादाबाद का नाम सुनकर अब मेरी परेशानियों ने मुझे घेर लिया था...!!

लेकिन वर्षा की आँखों मे भी अब वो हया औऱ नमी पूरी तरह से साफ झलक रही थी।जो मुझसे वो छुपा रही थी..!
शायद वो कुछ कहना चाह रही हो मुझसे पर कह नही पा रही...
और मैं इसी दुविधा में बैठे सोच रहा था।
कि मुरादाबाद से आगे का सफर अब कैसे कटेगा उसके बिना..!.!!उसके साथ कि कमी मुझे अभी से खलने लगी।

हम दोनों एक दूसरे से बाते नही कर रहे थे,लेकिन एक दूसरे के बारे में सोच जरूर रहे थे..!..!!

फिर ट्रेन ने अपनी रफ्तार पर अंकुश लगना शुरू कर दिया था..!.!जैसे जैसे ट्रेन धीरे होती जा रही वैसे वैसे मेरी धड़कनों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी।

और वर्षा बुझे मन से अपना समान समटने लगी,उसकी इस अदा से जाहिर होता था,कि इस सफर में वो अपना कुछ छोड़ कर जा रही थी।
ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुँच चुकी,और
"वर्षा मुझसे इजाजत लेते हुये....!..!

"फिर मुलाकत होगी अगर जिंदगी रही तो"
और वो अपना बैग उठा कर चल दी,और मैं अपनी इन नम हुई आँखों से उसे निहारता रहा..!!.!

वर्षा गेट से नीचे उतर गयीं,और आगे की ओर चल दी..वर्षा का गेट से उतरना और मेरा गेट पर जाना, खड़े होकर उसे देखना मानो ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अब मेरा न रहा उस शरीर से आत्मा निकल कर उस कदमो के साथ जा रही हो जो मेरी आँखों से अब ओझल होने वाले थे।

और फिर धीरे धीरे कदमो से वो आगे बढ़ती जा रही थी,अचानक रुकी और पीछे की ओर मुड़ी और फिर मुड़कर वो मुस्कुराई,,,आँखों की नमी से ज्यादा उसके होंठो से वो दर्द बयां हो रहे थे।जिस दर्द को वो अपनी झूठी मुस्कान में समेटे इस अधूरी मुलाकात को शायद हमेशा के लिये छोड़कर जा रही थी।

"उसका यू पलट कर देखना आज मुझे मेरे प्रति उसके प्यार के अपने दावे का प्रमाण दे रहा था...!..!..!!

और मैं भी उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।आँसुयो का बोझ आज आँखों पर कम और होठो पर ज्यादा महसूस हो रहा था।और ट्रेन अब धीरे-धीरे खुल चुकी थी।मैं गेट पर खड़े होकर उसे तब तक निहारता रहा जब तक वो मेरी वो आँखों से ओझल न हुई।

आज मुझे मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैने अपनी कोई बेशकीमती चीज मुरादाबाद स्टेशन पर छोड़ दी हो...!.!!

सूरज की किरणें फिर अब बादलों से आँख मिचौली करने लगी थी...और पूरे आसमां में फिर से उन बादलों का अंधेरा छाने लगा...!!

लगता था आज खुदा की आँखों में भी आँसु उमड़ आये और उन आँसुयो के सैलाब ने बारिश का रूप लेकर बरसना शुरू कर दिया हो...!!.!

फिर मैंने अपने जेब से रुमाल निकाल कर अपनी आंखों से उस नमी को दूर किया,जो वर्षा अपनी इस छोटी सी मुलाकात में मुझे तोफे के रूप में देकर जा रही थी,जो शायद ताउम्र मेरे साथ रहने वाला था।

भारी मन से दबे पाँव गेट से अपनी सीट पर जा कर बैठ गया।
बारिस की बूंदे ठंडी ठंडी हवा के झोंके के साथ खिड़की के रास्ते आज फिर से मेरे तन और मन दोनों को भिगो रही थी,परन्तु आज कोई खिड़की बंद कराने वाला नही था।

बारिस काफी तेज होती जा रही थी,मजबूरन मुझे खिड़की बंद करनी पड़ी पर मैंने आज वो काँच वाली खिड़की के साथ साथ दूसरी खिड़की भी बंद कर दी।और आँखे मूंद कर बैठ गया। आज न जाने क्यों बाहर का नजारा मुझे बिलकुल अच्छा नही लग रहा।

मुझे हर घड़ी अब वर्षा का ही ख्याल सताये जा रहा था,उसके सिवा मुझे अब कुछ नही सूझ रहा था,जब भी आँखे बंद करु तो वर्षा का ही चेहरा सामने आने लगता।

इसी उधेड़बुन में कब दिल्ली पहुँच गया मुझे पता भी न चला,फिर ट्रेन से उतर कर मैं प्लेटफार्म से बाहर जाते हुए स्टेशन के परिसर में से ख्याला के लिये एक टैक्सी बुक की।
मेरा घर ख्याला 830, E ब्लाक में था...!!

जैसे ही मैं टेक्सी में बैठा वैसे ही शौर्य का फोन आता है...!
शौर्य...कहा पहुँचे रोहन..??
मैं टैक्सी में हु शौर्य...! घर पहुँच कर बात करता हु तुमसे और "फोन काट दिया"

और फिर कुछ देरी के बाद मैं घर पर पहुँच गया।सफर में काफी थक चुके था तो आते ही मैंने माँ से चाय की फरमाइस कर दी और फिर में फ्रेश होने चला गया।

फ्रेश होने के बाद मैं अपने कमरे में जाकर लेटा ही था कि माँ चाय लेकर मेरे कमरे में आई और मुझसे सफर का हाल चाल जानने लगी। ये माँ की ममता होती ही ऐसी है, वो शायद इसलिये जानना चाह रही थी कि सफर कही मुझे तखलिफ़ तो नही हुई..!

परन्तु कैसे कहु अपना हाले दिल माँ से...!..!!
कि कितनी वैचेनी से कटा है ये सफर...!

कि तभी हर्षित दौड़ता मेरे पास आया और आते ही सीधे सवाल,,,
सफर अच्छे से कटा न रोहन..? मेरे लिये क्या लेकर आये...?
सफर में खाना ठीक से खाया न..?
उसने मुझसे सवाल की झड़ी लगा दी लेकिन मैं उसके सवाल का जबाब नही दे सकता इसलिये मैंने अपने बैग से उसकी मनपसन्द चॉकलेट "किंडर जॉय" उसके हाथ मे देते हुये,उसका मुँह बंद कर दिया,चॉकलेट पाकर वो अपने सवाल का जबाब लेना भूल गया जो मैं यही चाहता था।
और फिर वो मेरे कमरे से बाहर चला गया,मैंने चाय पी और माँ से मेरा सफर अच्छा था,कहते हुये।

फिर माँ बोली नीचे आ जाओ डाइनिंग टेवल पर मैं तुम्हारे लिये ब्रेकफ़ास्ट लगा देती हूं।

"मेरा कमरा ऊपर था"

पर मेरा मूड नही था ब्रेकफ़ास्ट करने का,तो मैंने माँ से प्लीज माँ मैं थोड़ी देर के बाद ब्रेकफ़ास्ट कर लूंगा,
"अच्छा बाबा ठीक बाद में कर लेना" और फिर माँ मेरे कमरे से चली गयीं।

सफर में मैं मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से थक चुका था,तो मुझे नींद आ गई।

तकरीबन सवा एक बज रहा था जब भाभी मेरे कमरे म आई और मुझे जगाने लगी,भाभी जो हर्षित की माँ थी जिनका नाम रीमा था।

वो मुझे उठाने की कोशिश कर रही थी,पर मेरी नींद आज मेरा साथ छोड़ने को राजी न थी,और मेरे मुँह से शायद नींद में वर्षा का नाम निकल रहा था,प्लीज वर्षा सोने दो मुझे....!.!!वैसे भी उसने अब मेरे ख्यालो में अपना आशियाना बना लिया था।

तभी भाभी ने मेरे मुँह पर पानी की थोड़ी बूंदे छिड़की जिससे मेरी नींद को मेरा साथ छोड़ना पड़ा,जैसे ही आँखे मलते मैं उठा,

ये वर्षा कौन है...??

भाभी के मुँह से वर्षा का नाम सुनकर मैं चौक गया,और मेरी नींद रफूचक्कर हो गई और फिर,,,, कौन वर्षा भाभी से कहते हुये..!

भाभी,अभी अभी तुम ही वर्षा का नाम ले रहे थे,
चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान लिए मुझसे कहती हुई...!..!.!

कि अचानक मेरे फोन की घन्टी बजी फोन शौर्य का था,मैं भूल चुका था,की मैंने शौर्य को घर पहुँच कर फोन करने के लिये कहा था।और ये भी याद नही रहा कि आज शौर्य की इंगेजमेंट में जाना है।

मैंने फोन उठाते ही हा शौर्य मैं रेडी हु,बस तुम्हें ही फोन लगाने वाला था और अब घर से निलने वाला हूँ,अगर मैं ये झूठ नही बोलता तो वो मेरे ऊपर काफी नाराज़ होता।

तभी मेरे कानों में शौर्य के पीछे से एक आवाज आई जिसमे कोई वर्षा का नाम लेकर पुकारता है...!!वर्षा नाम सुनकर मेरे मन मे एक अजीब कशिश जागने लगी,मैं कुछ पूछ पता कि शौर्य ने फोन काट दिया था



क्रमशः---