मुलाकात - 2 दिलीप कुमार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुलाकात - 2


उसे देख कर मेरी सांसे थम गई,,,,,मुझे अब भी अपनी आंखों पर विश्वास नही हो रहा कि वो मेरे सामने है।लेकिन सच तो ये था,कि वो मेरे सामने ही खड़ी थी,और मैं उसे एकटक नजरो से देखे जा रहा था।कि फिर एक बार ओ मिस्टर किस सोच में डूब गये।इतना सुनते ही मेरे अंदर एक खुशी की लहर दौड़ गई।

मैं कुछ बोल पता कि वो मेरे पास आ कर बैठ गई, और अपने पर्स से टिकट निकाल कर अपने टिकट पर सीट नम्बर चेक करने लगी कि कही वो गलत सीट पर तो नही बैठी,लेकिन वो सही सीट पर आकर बैठी थी उसका सीट नंबर मेरे सीट के पास में ही था,जो एक इतेफाक ही था।

उसे अपने पास देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न था,और फिर मैंने मन ही मन में भगवान का शुक्रियादा किया।

अब ट्रेन चल चुकी थी,,,,बारिश ने भी फिर अपनी झलकियां दिखानी शुरू कर दि बारिश की वो छोटी छोटी बूंदे हवा का रूप लेकर खिड़की के रास्ते मेरे चेहरे को छूती हुई,,,,जुलाई का महीना और बारिश का होना ये तो लाजमी था।

तभी वर्षा ने मुझसे खिड़की बंद करने के लिये कहा और मैंने काँच वाली खिड़की को नीचे की ओर करके बंद कर दीया,वैसे मुझे यात्रा करते समय बाहर का नजारा देखना बहुत अच्छा लगता था।इसलिये मैं जब भी यात्रा करता तो मन मे यही गुजारिश होती कि सीट मुझे खिड़की की तरफ ही मिले...!!

" मेरा मन बड़ा बेसब्र हुआ जा रहा था,,,,अपनी उस अधूरी सी मुलाकत को,पूरा करने को,मन में बस यही कल्पना थी... जो बातें अधूरी रह गई वो अब इस मुलाकात में पूरी हो.....

उसका यू फिर से मिलना महज कोई इतेफाक तो नही। शायद ये मुलाकात मेरी जिंदगी का वो सबसे खूबसूरत लम्हा बन जाये जो हर पल मेरे ही साथ हो....!

मेरे भीतर मेरे इस आवारा से मन ने तरह तरह के ख्याली पुलाव पकाने शुरू कर दिये थे।मैं कुछ कहने ही जा रहा था,कि

" तभी हैरानी भरी आवाज में वर्षा ने मुझसे पूछा,,,कल तो तुम मनोहर टाड़ में थे,और अचानक आज ट्रेन में....???
उसका यू सावल पूछना भी लाजमी था..!

हा जिस काम के सिलसिले से मेरा आना हुया था, वो काम तो पूरा हो चुका,तो अब अपने घर भी जाना जरूरी था...वैसे मैं दिल्ली से हु...!!!

और तुम...?? " मैं वर्षा से पूछते हुये

वैसे मैं भी आपके साथ मुरादाबाद तक हु, मेरा लास्ट स्टेशन मुरादाबाद ही है।सिस्टर (बहन) के घर कुछ दिनों के लिये आना हुआ था तो अब अपने घर जा रही हूं...!

उसके मुँह से मुरादाबाद का नाम सुनते ही मेरे चेहरे पर थोड़े चिंता के भाव प्रकट हो गये...!और फिर मैं मन ही मन बड़बड़ाते हुये,शायद फिर से कही ये मुलाकात अधूरी न रह जाय...?

तभी मेरे मित्र शौर्य का फोन आया...मैंने फोन उठाया हा शौर्य बोलो...!

शौर्य:~~ मेरी इंगेजमेंट का ख्याल है की नही सर,,,आपको ???
व्यंग वाले लहजे में....!!

" मुझे पता है मै कल सुबह तक पहुँच जाऊँगा यार तुम परेशान मत हो,,कहते हुये..!और फिर मैंने फोन काट दिया।

बर्षा:~क्या बात बात है....तुम्हारे चेहरे पर कुछ चिंता के भाव नजर आ रहे है....???
नही मैं बस....यूँ ही मैं ठीक हू।

कल मेरे दोस्त की इंगेजमेंट है जो उसमे मुझे सरीक होना है...तो उसी का फोन था।
ओह डेट्स ग्रेट...ये तो बहुत अच्छी बात है,फिर तो पहुचना जरूरी है...!!

लेकिन मैं कैसे कहु कि तेरा साथ भी मेरे लिये जरूरी है।उस अनजानी सी मुलाकात से मेरे दिल पर अब मेरा क़ाबू न रहा ,उसे सीधे लफ्जो में कहा जाये,तो शायद प्यार भी कह सकते है।
लेकिन वो प्यार अभी तक " वन साइडेड "( एक तरफा ) ही था

ट्रेन की रफ्तार अब धीमी होती जा रही थी,शायद आगे कोई स्टेशन आने वाला था, बरसात भी अब बंद हो चुकी थी।मैं सीसे की खिड़की को ऊपर उठा कर देखने लगा,,स्टेशन है या फिर ट्रेन युही स्लो हो रही है,बाहर की ओर देखा तो पता चला कि अब हम गया पहुँच चुके थे,तकरीबन हमने छे घण्टे की दूरी तय कर ली थी।अभी हमे अठारह से उन्नीश घण्टे का सफर तय करना बाकी था।
ट्रेन अब प्लेटफार्म के बीचों बीच आ कर रुक चुकी थी,की तभी एक बृद्ध महिला चहल कदमी करते हुये हमारे पास आकर बोली...भगवान के नाम पर कुछ दे बेटा सुबह से कुछ खाया नही है,
मुझे ये सुनकर बड़ा दुख और आश्यचर्य हुआ,पर मेरे पास खाने को तो कुछ नही था,लेकिन मैंने अपने बटुये से एक सो का नोट निकाला और उस बृद्ध महिला को देते हुए हाथ जोड़ लिये,जो मेरी ये एक आदत थी।
ये देखकर उसने हमें वो आशीर्वाद दिया,जिसके बारे में मैंने अभी तक सोचा नही था.....कि भगवान आपकी जोड़ी सलामत रखे,औऱ वो बृद्ध महिला वहां से चली गयी।उसके इस आशीर्वाद ने मेरे दिल को बड़ी तसल्ली हुई,
फिर वर्षा आपकी जोड़ी.... हाहा..हा..हा..! करते हुये इसी शब्द को रिपीट कर के जोरो से हँसने लगी।
मैंने उसकी हँसी का बीच मे कटाक्ष करते हुये तुम ये मत मानो की हमारी जोड़ी... परन्तु किसी का मजाक उड़ाना ये अच्छी बात नही।
फिर वर्षा मुस्कुराते हुये अच्छा बाबा सॉरी...!
अब आगे कभी ऐसा नही करूंगी प्रोमिश,उसका यू बोलना मानो
जैसे हमारे रिश्ते की अहमियत का बोध करा रहा हो,

अचानक वर्षा ने अपना मोबाइल फोन निकाला और फोन करना चाहा....परन्तु उसका मोबाइल फोन बंद था।" ओह...नो मेरा मोबाइल तो बंद है अब मैं घर कैसे कॉन्टेक्ट कर पाऊंगी,और यहां तो कोई चार्जिंग बोर्ड भी नही है।वर्षा परेशान सी मुद्रा में सर को पकड़े हुये आज मैं अपना मोबाइल चार्ज करना ही भूल गयी।
तभी मैंने वर्षा की तरफ अपना मोबाइल देते हुये " ये है न "तुम मेरे मोबाइल से बात कर लो..!!
वर्षा ने मेरे हाथ से मोबाइल लेकर अपनी माँ से बात की और साथ में ये भी कह दिया कि मेरा मोबाइल बंद है तो आप परेशान मत होना।और फिर फोन रखने के बाद वर्षा मुझे धन्यवाद करते हुये।

लेकिन उसके चेहरे से थोड़ी मायूसी झलक रही थी,वजह शायद उसका मोबाइल का न चार्ज होना भी हो सकता है,लेकिन मैंने जैसे ही जानने की कोशिश की,कि तभी चाय वाला चाय....चाय करते हुये हमारे पास आया,मुझे सफर करते समय में चाय पीने की आदत थी,वैसे मुझे चाय पीने का काफी शौख था।जिससे मुझे थोड़ा फ्रेश महसुस होता।
जो मैंने चाय वाले से दो चाय ली और एक चाय वर्षा की ओर बड़ा दी।
परन्तु मेरे लाख मना करने के बाद भी वर्षा ने चाय वाले को पे कर दिया,मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा था कि अचानक वर्षा ने मुझसे ये कहते हुये दोस्ती में सब जायज है सफर अभी बाकी है मेरे दोस्त,आगे तुम पे कर देना,और एक छोटी सी मुस्कान के साथ उसने मेरे दिल को तसल्ली दी।

लेकिन उस चाय का असर वर्षा पर उल्टा हुआ,शायद उसे कुछ ज्यादा फ्रेशनेष महसुस होने लगी," और उसे कुछ देर के बाद बैठे बैठे नींद सी आ गई,नींद में उसने अपने सर को मेरे कंधे पर रख दिया।
उसका यू मेरे कंधे पर सर रखना,मेरे अंतरमन को अंदर ही अंदर महका गया।
शायद आज मेरा मन मुझसे बस यही कह रहा था कि ये सफर कभी खत्म ही न हो और वो युही मेरे कंधे पर सर रख कर सोती रहे।
जैसे जैसे ट्रेन की रफ्तार बड़ रही थी वैसे वैसे मेरी धड़कने बढ़ती जा रही थी।

क्रमश:~