मुलाकात - 5 दिलीप कुमार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुलाकात - 5

मैं वर्षा का नाम सुनकर,मेरे मन ने मुझे सावलो के कटघरे में खड़ा कर दिया,वर्षा यहां? मैं चोंकते हुए,
फिर क्या था, मैं बिना देरी किये जल्दी से तैयार हो गया फिर मैंने अपनी बाइक "आर वन फाइब निकाली,और माँ को कहते हुये मैं वहाँ से शौर्य के घर मकुन्दपुर के लिए निकल गया।
मैं वर्षा का ख्याल मन में लेकर काफी तेजी मकुन्दपुर की ओर बढ़ रहा था,कि रास्ते मे जैसे मधुवन चौक पहुँचा वहाँ देखा कि काफी लम्बा जाम लगा हुआ है,समय तरीबन दो बज रहे थे,
मेरे मन की उलझनों बढ़ती जा रही थी उधर शौर्य के गुस्से का ख्याल और इधर मोटर गाड़ियों का जाम ऊपर से वर्षा का नाम जो मेरे जेहन में बार-बार सिरकत किये जा रहा था।कि अचानक मेरा ध्यान अपने जेब पर गया,और मैं अपना मोबाइल ढूंढने लगा पर मोबाइल मेरे पास नही था।
तभी याद आया कि मैंने शौर्य से बात करने के बाद मोबाइल अपने कमरे में बेड पर ही छोड़ दिया था,आधा रास्ता तय करने के बाद अब मुझे फिर यहाँ से लौटना पड़ेगा,जैसे ही ग्रीन लाइट जलती है मैं वहाँ से यू टर्न लेकर अपने घर की तरफ बढ़ चला घर पहुँचते जैसे ही मैंने घर का गेट खोला ही था कि सामने मेरी भाभी जी चेहरे पर रहस्मयी मुस्कान लिए मुझसे,-'लो आ गये जनाब भुलक्कड़ दास,क्या बात है किसके ख्यालो में खोये खोये रह रहे है आजकल ज़नाब ?

मैं भी अपने चेहरे पर मुस्कान लिए ऐसा कुछ नही है मेरी प्यारी भाभी जी,कह कर टालते हुए जैसे ही मोबाइल लेने के लिये ऊपर की ओर जा ही रहा था कि अचानक भाभी ने मोबाइल अपने हाथ से मेरे हाथ मे देते हुए,-'कुछ तो है जो तुम सिंदरी से आने के बाद बदले-बदले से लग रहे हो कभी वर्षा फिर मोबाइल का भूलना,शायद ये सब नॉर्मली रहने पर तो नही होता था,कुछ तो जरूर है,मुस्कुराहट भरे चेहरे से मुझ पर तंज कसती हुयी।

मैंने उनकी बातों का जबाब देना उचित नही समझा और चल दिया कि तभी पीछे से एक आवाज आयी । जनाब कहा जा रहे है इतनी तेजी में ?
रौबदार आवाज में,वो मेरे पापा थे जो एक रिटायर कर्नल थे।
"जिनका नाम दिप सिंह चौहान था,
जी पापा मैं अपने फ्रेंड के घर जा रहा हूँ कह कर चलता बना,घर से निकल कर में तेजी से बाइक चलाते हुऐ मैं शौर्य के घर पहुँचा और जैसे ही मैं शौर्य के सामने खड़ा हुआ वो मुझे घड़ी दिखाता है ।
"सर आप इतनी जल्दी कैसे ?
"सॉरी...सॉरी.यार प्लीज मैं उसके सामने,मुझे आने में कुछ ज्यादा ही लेट हो गया।
पर मैं उसे अपने दिल का हाल कैसे बताऊ कि आजकल मुझे भूलने की बीमारी सी हो गयी है तेरे दोस्त को अब प्यार हो गया है,मन में बड़बड़ाते हुए।
"क्या सोच रहे हो रोहन ? किस दुनिया में हो ?
"कुछ नही यार बस ऐसे ही,
अच्छा वो वर्षा कहा है ? मेरे मुँह से तपाक से ये बोल निकल पड़े दीवानगी इस कदर थी। और मैंने ये भी जानने की कोशिश नही की कि वो मेरी ही वर्षा है या उसके नाम का कोई औऱ चेहरा।

शौर्य मेरे मुँह की तरफ देखता है और पूछता वर्षा को कैसे जानते हो तुम ?
वो तो मेरी मंगेतर है और उससे तो तुम कभी मिले भी नही,
खैर छोड़ो मैं तुम्हे अभी वर्षा से मिलाता हूँ।इतना कहते ही शौर्य मुझे घर में ले जाते हुए कि इतने में गौरब और अतुल भी वहाँ पहुँचते है।
ओह, हाय..रोहन कैसे हो ? दोनों एक साथ,
"तुम्हारा सिंदरी का सफर कैसा रहा ?
वैसे मैं ठीक हूँ और सफर भी बहुत अच्छा था।
तुम अपनी सुनाओ यारो,मैं गौरब और अतुल से कहते हुए।
गौरब हम भी ठीक है यार..पर सोनिया का हाल बुरा है वो तुझे पूछ रही थी,अतुल मुझसे कहते हुए, मैं अतुल से,-'तुम फिर शुरू हो गये कितनी बार कहा है तुम उसका नाम मत लिया करो मेरे सामने, मैं झिझकते हुये ।

सोनिया कोई और नही हमारे ऑफिस की ही एक आकाउंटेंट थी, जो मुझे हमेशा डोरे डालती रहती,काम पर कम और उसका ध्यान मेरी तरफ ज्यादा रहता।शक़्ल से वो बुरी नही थी पर मैं उसे पसन्द नही करता था।
मैं उसे हमेशा इग्नोर करता रहता।
हमारा ऑफिस कनाट पैलेश में था,मैं एक डिजिटल प्रिंट का चीफ इंजीनियर था। वही शौर्य,गौरब और अतुल मेरे साथ ही वहीं एम्ब्रॉइडरी डिजाइनर का जॉब करते थे। हम सब एक ही ऑफिस में काम करते थे,इसलिए वो मेरी इस समय टाँग खिंच रहे थे।और फिर गप लड़ाते हम घर के अंदर पहुँचे,शौर्य का घर एक कोठी नुमा था,जो दीवान जी ने अपने बदौलत बनवाया था।
दीवान जी शौर्य के पापा थे,जो एक बहुत बड़े कारोबारी थे,उनका ट्रेडिंग का बहुत बड़ा व्यपार था,लेकिन फिर भी शौर्य दूसरी जगह जॉब करता था,उसका कहना था मुझे भी पापा की तरह अपने बल बुते पर कुछ करना है,ऐसा नही था कि पापा उसकी माँगो को पूरा नही करते हों,पर उसका एक ही कहना था कि मुझे आत्म निर्भर बनना है।
घर को काफी सुंदर ढंग से डेकोरेट किया गया था,अंदर हॉल में बड़े बड़े गुब्बारे लगे हुये थे,और एक छोटा सा स्टेज बना हुआ था जिसको चारों ओरो से रंग बिरंगे फुल के गमलो से साजया गया था।
तभी मेरी नजर उस हॉल में एक दीवार पर पड़ी जिसपे एक बैनर लगा हुआ था,और उस पर गोल्डन अक्षर में वर्षा और शौर्य का नाम लिखा था।
उसे पढ़ कर मैं वर्षा को देखने की चाह में बैचेन हुए जा रहा था । लेकिन वहाँ लोगो की चहल पहल काफी थी,पार्टी शुरू हो चुकी थी,तो उसमें उसे ढूंढना मुश्किल था।
तभी अतुल एक बेटर से,- लम्बा हाथ करके बेटर इधर आओ,
वेटर अतुल के पास आकर जी सर बोलिये,
अतुल,-'तीन गिलास विस्की ले आओ यहाँ।
तुम पागल तो नही हो गये अतुल,मैं अतुल को आँखे दिखाते हुये।

तभी गौरब अरे चिल यार...एक पैक में क्या होगा,वैसे मैं कभी कभार ड्रिंक कर लिया करता था।
लेकिन आज मुझे,वर्षा का ख्याल बखूबी सता रहा था,कि तभी पीछे से ओह हाय हैंडसम,कैसे हो?

मैंने पीछे की ओर मुड़कर देखा तो वो सोनिया थी..ओह इन्हें भी इनवाइट किया है, अच्छा हूँ बस तुम्हारी ही कमी थी,उसे चिढ़ाते हुये।

"तभी बेटर एक ट्रे में विस्की के तीन गिलास लेकर हाजिर होता है,
और मैं भी बिना देरी किये तपाक से एक गिलास लेकर आँख बंद कर एक ही साँस में उस विस्की को गटक जाता जाता हूँ,विस्की की कड़वाहट आज मुझे उतनी कड़वी नही लग रही थी। शायद वो वर्षा का ख्याल था,जो मेरे मन को उसके सिवा किसी दूसरी चीज का एहसास नही होने दे रहा था।

तभी एक छोटी सी अनाउसमेंट हुयी ।

"फ़ॉर यॉर काइंड अटेंशन प्लीज लेडीज एंड जेंटलमैन,
तभी उस आवाज ने सबकी नजरों को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया,वो दीवान अंकल थे,जो शौर्य की इंगेजमेंट का अनाउंस कर रहे थे।
और फिर शौर्य और वर्षा स्टेज पर आते है,और उसे देख कर मेरे अंदर की बैचेनी का तूफान अब धीरे धीरे शांत हो जाता है,वो मेरी वर्षा नही थी,परंतु मुझे हर वर्षा नाम में ही अब अपनी वर्षा ही नजर आती,

मुझे वर्षा के साथ बिताये वो सफर के पल बहुत याद रहे थे,
उस पूरे सफर में सबसे मजे की बात तो ये थी मैंने वर्षा से उसका नंबर नही लिया,उसने मुझसे मेरा नाम जानने की कोशिश नही की,
तभी मुझे याद आया कि वर्षा ने मेरे मोबाइल से अपनी माँ को फोन किया था,फिर मैंने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और उसमें वो नंबर ढूंढने लगा जो वर्षा ने मेरे मोबाइल से डायल करके अपनी माँ से बात की थी।
और फिर वो नम्बर मुझे मिल गया,और मैंने बिना देरी किये उस पर फोन मिलाया,और घन्टी बज रही थी।

क्रमशः