मुलाकात - 1 दिलीप कुमार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुलाकात - 1







शाम का समय था... हल्की हल्की हवाओं के साथ छोटी छोटी बारिस की बूंदे पड़ रही थी। बड़ा ही सुहाना मौसम था...
मैं ग्राउंड में टहल रहा था अचानक मेरे कानों में आवाज आई ।
ओ मिस्टर मैंने पलट कर देखा मुझे कोई दिखाई नही दिया। वही वाक्य फिर से मेरे कानों में गूंजा।
मैं रुका और चारो तरफ देखने लगा, तभी सामने की ओर से आवाज आई ओ हेलो मिस्टर मैं यहां हू ....
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
इस अंजान शहर में मुझे पहचानने वाला कोई नही था ।
फिर ये कोन थी जो मुझे इस तरह से पुकार रही थी जैसे मानो हमारी पहले कभी मुलाकत हो चुकी हो।
छोटा सा टाउन "सिंदरी"जो झारखंड के धनवाद जिले में है,
जो उर्वरक के कारखाने की वजह से जाना जाता है।

कुछ काम के सिलसिले से आना हुआ था ।
दूर के रिश्तेदार के घर पर रहने का प्रवन्ध हुआ था...
इस जगह को लोग मनोहर टाड़ के नाम से जानते थे।
यह एक बहुत ही सुंदर सी कॉलोनी थी...
चारो तरफ छोटी छोटी विल्डिंगें और उसके मध्य में एक छोटा सा ग्राउंड बड़ा ही खूबसूरत था, जो अपनी ओर आकर्षित करता था।

उस दिन हवाओं के साथ साथ हल्की हल्की बारिश की फुहारे मन को अपनी आगोश में खिंचे जा रही थी...

तभी फिर से, एक बार फिर आवाज आई,
मौसम विभाग ने अलर्ट जारी किया है कि अपने घरों से न निकले तेज बारिस के साथ तूफान आने वाला है,
मैंने उन बातों को ज्यादा महत्व न देते हुये अनसुना कर दिया...
और मौसम का लुफ्त उठाने लगा।
तभी मैंने देखा कि एक सुंदर सी लड़की रेड कलर के कमीज सलवार में सर पे दुप्पटा ओढ़े बारिस की बूंदों से अपने आप को बचाते हुये मेरी तरफ तेजी से चली आ रही है।

चेहरे से मासूमियत झलक रही थी...उसका वो मासूम चेहरा मेरे दिल की धड़कनों को बढ़ा रहा था।कि तभी अंदाजे बेखोफ होकर,बेबाक ढंग से ऐसे बोली मानो जैसे वो मुझे पहले से जानती हो।
बेहरे हो सुनाई नही देता तुम्हे,मैं तुम्हें कब से आवाज दे रही हु...
मैं उसके मासूमियत भरे चेहरे की ओर देखता रहा,मैं कुछ बोल पाता कि तभी अचानक मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी...
जी हा अंकल,हा मैं पास में ही हू..जी अभी आया। उन्होंने भी मुझे फोन के जरिये यही हिदायत दी...

अगले पल मैं कुछ सोच पता,कि अचानक कहा रहते हो ? मुझसे सवाल दागते हुये।मैं थोड़ा हिचकिचाया और हिचकिचाते हुये जी..जी प्लाट नंबर- 277 ।
वही पास में तो मैं भी रहती हूँ,लेकिन कभी देखा नही तुम्हे।
जी मैं आज सुबह ही आया हूँ।फिर मेरी बातों को अनसुना क्यो कर रहे थे,अगर मैं अनसुना नही करता तो शायद आप से मुलाकात नही होती।वैसे नाम क्या है आपका ?
वर्षा,
आप मुझे मिस्टर कह कर पुकार सकती है।
तभी जोर से आसमान में बिजली गरजी और पूरे वातावरण में सन्नाटा पसर गया।उसका मुझसे मिलना और बाते करना मुझे काफी प्रभावित कर गया।
अब बारिस भी धीरे धीरे तेज हो गई थी।
हम दोनों अपने अपने घर की ओर भागे कुछ ही दूरी पर हमारा घर था,और फिर हम अपने अपने घर चले गये।
मैं थोड़ा भीग गया था,अंकल ने कहा चेंज करलो मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर लाता हू।
थोड़ी देर में, मैं और अंकल आमने सामने बैठे चाय की चुस्की ले रहे थे,
बाहर बारिस ने अपना रौद्र रूप ले रखा था,झमाझम बारिस का कोतुहल और वो चाय दिल को बड़ा ही सुकून दे रहे थी।
हम बातों में इतने मशगुल हो गये की समय का पता नही चला।तकरीबन रात के साढ़े दस बज चुके थे।
हम उठे और रात्रि का भोजन करने के बाद, मैं पलंग पर जाकर लेट गया।
आज मुझे नींद नही आ रही थी, बार बार मेरे मन मे उस अजनवी लड़की का ख्याल आ रहा था।
आखिर वो कौन थी जो मुझे इतना बैचेन किये जा रही थी,क्या इससे पहले हमारी मुलाकात हो चुकी है ?
क्या वो मुझे जानती है ?
क्या हम पहले मिल चुके है, कई तरह के सावल जो मेरे जेहन में बार बार उमड़ रहे थे।मैं एक बार और मिलना चाहता था उससे...
उससे मिलने की ख्वाहिश ने मुझे रातभर सोने नही दिया।
मैं ठीक से सो नही पा रहा था, बार बार उसकी ही बाते मुझे सोने नही दे रही थी।
मैं रात भर करवटे बदलता रहा लेकिन मुझे नीद नही रही थी,तभी मै अचानक उठा और डिम लाइट जलाई और घड़ी के तरफ देखा तो चौक गया,क्योकि सुबह के पाँच बजे रहे थे।जो कि
सात बजे मुझे वहां से निकला था।क्योंकि अगली दिन मुझे दिल्ली पहुँचना था।जहां की मेरे दोस्त शौर्य की इंगेजमेंट ( मंगनी ) होने वाली थी
Good morning बेटा,
जी Good morning अंकल...
अब अंकल भी जाग चुके थे,मैंने अंकल से बाहर घूमने की गुजारिश की बारिस भी बंद थी।अंकल हा में सर हिलाते हुए,टहलते टहलते कुछ देर में,मैं और अंकल उस ग्राउंड में पहुंचे सुबह का दृश्य बड़ा ही सुहाना था।लेकिन मेरे दिल मे अभी भी बैचेनी थी।मेरी नजरे उसे ही ढूंढे जा रही थी।कि अचानक अंकल ने मुझसे पूछा,बैचेन नजरो से किसे ढूंढ रहे हो मिस्टर...
मैं अंकल की बातों का पूर्ण रूप से कटाक्ष करते हुये,
नही..नही ऐसा कुछ नही है।
हमने ग्राउंड के दो चक्कर लगा लगा दिये लेकिन मेरी नजरो की बैचेनी कम नही हुई, और हम घर की ओर वापस लौटे,
बुझे मन से मैंने अपनी पैकिंग की और न चाहते हुये मुझे उन सारी बातों को पीछे छोड़ना पड़ा जो मेरे दिल में उसके प्रति हलचल मचाये हुये थी।
मैं स्टेशन समय से दस मिनट पहले पहुँच चुका था,स्टेशन पर मैने एक पानी की बोतल खरीदी,और पानी पिया फिर एक बेंच पर जा कर बैठ गया।थोड़ी ही देर में ट्रेन प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ती हुई,
जैसे जैसे ट्रैन प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ रही थी, वैसे वैसे मेरे दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी।फिर थोड़ी देर में ट्रैन प्लेटफॉर्म पर रुकी।मैंने अपनी जेब से टिकट निकाल कर अपना बोगी नंबर देखा उस पर S2 लिखा था,जो काफी आगे की ओर निकल चुका था।
मैंने हड़बड़ाहट के साथ दौड़ना शुरू किया क्योंकि ट्रैन सिर्फ दो मिनट के लिऐ ही रुकी थी।
बोगी के सामने पहुँचते ही मुझे मैराथन वाली फिलिंग आ रही थी। जैसे मैने कोई मैराथन दौड़ जीत ली हो।और फिर मैं अपने अंदर फूटे हुये ज्वालामुखी को समेटे हुये अपनी सीट पर जा बैठा।
उदास सी नजरो ने उस शहर को अलविदा कहना चाहा ही था,कि एक आवाज ने मुझे,बिचलित कर दिया,
ओ मिस्टर.... मुझे मेरे कानों पर यकीन नही हुआ,कि फिर से ओ मिस्टर...
मुझे यकीन नही हो रहा था कि ये सपना है या फिर हकीकत,,,,
मैंने पलट कर देखा तो वो वर्षा थी जो मुझे देख कर काफी जोर से हँसने लगी।
क्रमश:-