लेकिन दूसरी ओर विवाहेतर संबंधों के बारे में कई बुद्धिजीवी अपनी ही बात काटते हैं और इससे नुकसान निकलते हैं
और दूसरी और दूसरों की पत्नी की रक्षा करने की सलाह देते हैं_
कामवासना का केंद्र सूर्य होताा हैैं
इसलिए कामवासना स्त्री और पुरुष मेंं उत्तेजित होती है काम क्रीड़ा एक सहज प्रेम
हैं यदि कोई व्यक्ति अपने भीतर के सूर्य को
जान लेता हैं/ तो वह व्यक्ति कामवासना की प्रेम अनुभूति कोोसमझ जाता हैं
जैसे सूर्य और चांद से जीवन हैैं वैसेे ही
कामवासना से जीवन हैंं।
(✿^‿^)
जैसे जैसे दिन से शाम होनेेे लगी सूर्य के
साथ साथी पक्षी अपने चरम की ओर जाने
को भी थे_वैसे वैसे शीत पवन की लहर मानो मोहने वाली शाम सूर्य अस्त के साथ-साथ एक मदहोशी की ओर ले जा रही थी मानो कि जैसे एक नई नवेली दुल्हन अपने घर में किसी का इंतजार कर रही हो_
कहानी के मुख्य किरदार:-
'अजय,
और
'शेफाली,
इन दोनों की नई-नई शादी हुई थी,
"अजय" दिन भर की थकान से थक कर अपने घर की ओर चल पड़ा
घर पर आने पर घर के आंगन में लगे झूले पर लेट कर मन ही मन में अपने जीवन के प्रेम का
अनुभव कर रहा था'मन ही मन में "अजय"अपनी पत्नी "शेफाली" के साथ काम क्रीड़ा का आनंद ले रहा था।
उधर उसकी पत्नी "शेफाली" शीशे के आगे खड़ी होकर सज धज कर अपने पति "अजय"का इंतजार कर रही थी/
इन दोनों में काम उत्तेजना चरम सीमा तक जा रही थी ,वह दोनों एक दूसरे का आलिंगन करने को व्याकुल थे /इंतजार की घड़ियां लंबी होती जा रही थी /उधर "अजय"घर के आंगन में लगे झूले पर लेटे-लेटे ही अपने वैवाहिक जीवन की क्रीड़ा का अनुभव करते करते सो गया।।
और दूसरी तरफ "शेफाली" अपने पति का इंतजार करते हुए जब दरवाज़ पर आती हैं वह देखती हैं कि उसका
पति "अजय"आंगन में लगे झूले पर सोया हुआ हैं/
जब वह उसके पास जाकर देखती हैं, तो उसके पति "अजय" के चेहरे पर मंद मंद मुस्कान होती हैं, वह दोनों ही यह जानते थे कि उन दोनों के जीवन में ईश्वर की कृपा से किसी भी प्रकार की पीड़ा या कष्ट ना था!
"शेफाली" रूपवान और गुणवान थी और "अजय" के पास भी शोहरत और दौलत की कमी ना थी शेफाली के पास वह सभी गुण थें जो एक स्त्री को परिभाषित करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
"शेफाली" भी झूले पर बैठ कर अजय को देख रही थी वह जानती थी कि "अजय" उसे अपने समक्ष पाकर उसे अपनी बाहों में भर लेगा,
शेफाली:-उठो "अजय" आप यहां क्यों लेट
गए,मैं आपका ना जाने कितने
समय से इंतजार कर रही थी/
चलो अब उठ भी जाओ हाथ मुंह धो लो मैं आपके लिए खाना लगाती हूं मुझे
भी बहुत भूख लग रही हैं
देखिएआपका इंतजार करते करते
समय कितना बीत गया।
अजय:-ठीक हैं उठ जाता हूं पहले इधर तो
आओ।
शेफाली:-क्या हुआ,
अजय:-कुछ नहीं बस तुम्हें अपनी बाहों में
भरकर बहुत सारा प्यार करना चाहता
हूं पर तुम समझ ही नहीं रही हो।
शेफाली:-ओके बॉस पहले पेट पूजा फिर
काम दूजा और रही बात समझने या
ना समझने की तो पत्नी हूं मैं आपकी
कौन सा भागी जा रही हूं/यही रहूंगी
मैं आपके पास।
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"अजय" बहका जा रहा था वह पहले से ही आंगन में लगे झूले पर लेट कर काम क्रीड़ा का अपनी पत्नी संग अनुभव कर रहा था तो वह अपने आप से ही लड़ रहा था_बस "शेफाली" को कह नहीं पा रहा था।।
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क्रमशः