यह कैसी सीख SAMIR GANGULY द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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यह कैसी सीख


मणि ने सब्जी का थैला एक ओर रखा. मां को पैसे लौटाने के लिए जेब में हाथ डाला. फिर एक ही सांस में सारी जेबें टटोल डाली.

‘‘ क्या हुआ?’’ मां ने पूछा.

‘‘ मां, पांच का नोट शायद कहीं गिर गया है, ’’ मणि रोंआसा सा हो कर बोला.

‘‘सब्जी वाले ने तो कहीं कम नहीं दिए?’’मां ने शंका प्रकट की.

‘‘ नहीं. उस ने तो ठीक दिए थे. शायद रास्ते में कहीं गिर गया. मैं एक बार जाकर उस रास्ते में ढूंढ कर आता हूं.’’

मां जानती थी मणि को पांच का नोट खो जाने का दु:ख हुआ है, क्योंकि वह कभी भी पैसे बैकार नहीं खरचता था.

बाहर घना अंधेरा छा गया था. सड़क भी लगभग सुनसान ही थी. मणि टॉर्च जलाए इधर-उधर देखता जा रहा था. अचानक उसे रास्ते में चमड़े का छोटा सा बैग पड़ा दिखाई दिया.

कुछ हड़बड़ी और कुछ घबराहट के साथ उसने बैग उठा लिया. जब उसे खोला तो कांप सा गया. बैग 500 और 100 रूपए के नोटों से भरा हुआ था.

वह तेजी से घर पहुंचा और मां से बोला, ‘‘ मां...मां, देखो मुझे पांच के बदले हजारों रूपए मिल गए हैं’’

मां ने रूपयों से भरा बैग देखा तो एक पल को अवाक रह गई. फिर उन के मुंह से निकल पड़ा-बेचारा.

‘‘ मां, इन्हें लौटाने को मत कहना. मैं इन्हें नहीं लौटाऊंगा.’’ मणि के मन में अब लालच आ गया था.

‘‘ मणि!’’ मां का चेहरा कुछ सख्त हो गया था. वह फैसले के स्वर में बोली, ‘‘ अभी तुम्हरे पिताजी आते होंगे. तुम उन के साथ पुलिस स्टेशन जाओगे और वहां रूपया जमा करवा कर रिपोर्ट लिखवा कर आओगे.’’

रात को वह पिता के साथ पुलिस स्टेशन गया. वहां पुलिस इंस्पेक्टर ने बैग के रूपए गिने. उसमें 7,350 रूपए थे. इंस्पेक्टर ने रूपए लौटाने के लिए मणि को शाबाशी दी.

इस घटना के कुछ दिनों बाद की बात है. उन दिनों भारत व पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मुकाबला चल रहा था. अत: कुछ छात्र आधी छुट्‍टी में आंखों देखा हाल सुनने के लिए जेब वाला ट्रांजिस्टर साथ लाते थे.

मणि की कक्षा के एक लड़के राजू का ट्रांजिस्टर किसी ने चुरा लिया. जब गुरूजी ने तलाशी ली तो मणि के बस्ते में मिला.

मणि तो भौचक्का रह गया. सारी कक्षा भी चौंक उठी. गुरूजी ने ट्रांजिस्टर की चोरी की खबर प्रधानाचार्य को भिजवा दी.

दोपहर बाद जब प्रधानाचार्य ने मणि को बुलवाया तो वह कांप उठा. उस ने प्रधानाचार्य के कमरे में प्रवेश किया. वहां एक और सज्जन बैठे थे.

‘‘ मणि जानते हो मैंने तुमको यहां क्यों बुलवाया है?’’

मणि चुप रहा. उसकी आंखें नीची हो गई थी. वह समझ नहीं पा रहा था कि गुरूजी को कैसे बताए कि उसने चोरी नहीं की है.

‘‘ इन्हें पहचानते हो? अपने सामने बैठे व्यक्ति की ओर इशारा कर प्रधानाचार्य बोले.

‘‘ नहीं’’ मणि ने गरदन हिला दी.

‘‘ यह राजू के पिताजी है.’’

मणि चुप रहा.

‘‘ और यही है न वह ट्रांजिस्टर?’’

‘‘ लेकिन....गुरूजी...लेकिन मैं...’’ मणि और न कह सका. वह फफक कर रो पड़ा.

अब राजू के पिताजी ही उठ खड़े हुए. उस की पीठ थपथपाते हुए वह बोले, ‘‘ घबराओ नहीं, बेटे! तुमने कोई चोरी नहीं की है.’’

‘‘ कोई चोरी नहीं की ? क्या मतलब?’’

‘‘ हां बेटे, मैं वही आदमी हूं, कुछ दिनों पहले जिस के एक बैग में भरे रूपए तुमने पुलिस स्टेशन में जमा कराए थे. कुछ दिनों पहले मैं तुम्हारे पिताजी से भी मिला था. तुम्हारे बारे में जानकर मुझे बड़ी खुशी हुई थी.

‘‘ फिर मैंने सोचा, तुम्हें जिन्दगी के कुछ और पाठ सिखा दूं. जो बड़े होने पर तुम्हारे काम आएंगे.

‘‘ लो यह ट्रांजिस्टर, यह तुम्हारा पुरस्कार है’’. इतना कह कर राजू के पिताजी चुप हो गए.

अब प्रधानाचार्य बोले, ‘‘ मणि, विद्यालय को तुम पर गर्व है. अब तुम चोरी और पुरस्कार में अंतर भी समझ गए होगे. यही समझाने के लिए हमें यह नाटक करना पड़ा.

इधर कक्षा में गुरूजी ने पहले ही सबको असल कहानी सुना दी थी. अत: ज्योंही मणि कक्षा में घुसा, सारी कक्षा ने तालियां बजा कर उसका स्वागत किया . ऐसे समय में मणि की आंखों के सामने मां का चेहरा अनायास ही तैर आया था.