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भूत कथा - तो क्या ?

तो क्या...?

तो क्या चंदन की बात सही है? क्या सचमुच रात के बारह बजे नगर की समूची टेलीफ़ोन व्यवस्था पर भूतों-जिन्नों और पिशाचों का कब्जा हो जाता है? वे सारी रात आपस में हंसते-बाते करते और खिलखिलाते रहते हैं. यदि मूड में हुए तो वे आप से भी बात कर सकते हैं. पर सावधान उनको अपना टेलीफ़ोन नंबर या घर का पता नहीं बताना चाहिए.

बात हर्ष को झूठी लगी थी, जब यह उसने चंदन के मुंह से सुनी थी. पर आज भुवनेश ने यह कहकर कि उसकी भी भूतों से बात हुई है, हर्ष को चौंका डाला. हर्ष अब गंभीरता से सोच रहा था कि रात वह भी भूतों से बात करे-टेलीफ़ोन पर.

घने सन्नाटे को भंग करते हुए ज्यों ही घड़ी ने बारह बजाए, हर्ष बिस्तर से उठकर दबे पांव ड्राइंगरूम में चला आया. टेलीफ़ोन का रिसीवर उठाकर, चंदन का बताया वह भूतहा नंबर घुमाते हुए उसका हृदय जोरों से धड़क रहा था. चोगे को कान से सटाते ही एक खनकती आवाज सुनाई दी, ‘‘ हैलो... किससे बात करना चाहते हैं आप?’’ हर्ष उत्तेजना लिए बोल उठा ‘‘ भूतों से!’’

जवाब में दूसरी ओर से, जोरों से हंसने की आवाज सुनाई दी. अजीब-सी हंसी. फिर आवाज आई ‘‘ जनाब! भूत कह देने से ही हम आपकी किसी भूत से मुलाकात नहीं करा सकते, आप उनका नंबर अथवा कार्य क्षेत्र जैसे- मास्टर, खिलाड़ी, लेखक, संगीतकार, पहलवान या खूनी आदि .. आदि कुछ बता सकेतो हम....’’

‘‘ ठीक है, मैं खिलाड़ी भूत से मिलना चाहूंगा.’’ ‘‘ तो मिलिए’’ भूत टेलीफ़ोन ऑपरेटर की आवाज गूंजी. और तुरंत ही टेलीफ़ोन पर ‘‘ हलू..हलू.. मैं विख्यात धावक भूत नं. 1721 बोल रहा हूं.. तुम से

हर्ष: नमस्कार भूत अंकल

खिलाड़ी भूत: नमस्कार-नमस्कार. पर ये ‘अंकल’ क्या चीज है?

हर्ष: चचा, ये अंग्रेजी है.

खिलाड़ी भूत: ओह! मैं तो समझा था कि कोई जायकेदार चीज होगी पर भतीजे मुझे गाली क्यों?

हर्ष: नहीं चचा! आप जैसी महान हस्ती को कौन गाली दे सकता है. मैंने तो इस वक्त आपकी सफलताओं के बारे में जानने के लिए आपको फ़ोन किया है.

खिलाड़ी भूत: ओ! कल वाली दौड़ बड़ी थका देने वाली रही. तुम्हीं सोचो, पंद्रह सेकंड में एक हजार किलोमीटर. आज एक-एक हड्‍डी दु:ख रही है. हवा भी उल्टी चल रही थी, सो बड़ा कष्ट हुआ. इतना कष्ट तो सन 1960 की बाधा दौड़ में भी नहीं हुआ था.

हर्ष: 1960 की बाधा दौड़?

खिलाड़ी भूत: हां भतीजे, उस दौड़ में शहर के घंटाघर को फांदकर, मेनहाल के गटर के भीतर गंदे नाले को तैरकर, दस गंजों की खोपड़ी पर थप्पड़ मारकर, तब कहीं अंतिम बिंदु पर पहुंचना था. मुझे काफी वक्त लगा था. अपने हिसाब से-साढ़े सात मिनट. अच्छा भतीजे अब फ़ोन रखता हूं. अपना नंबर बता दो, फिर तुमसे बातें करेंगे.

लेकिन हर्ष ने टेलीफ़ोन नंबर नहीं बताया.

थोड़ी देर बाद टेलीफ़ोन ऑपरेटर ने पूछा, ‘‘ खिलाड़ी भूत से आपकी बात हो गई?

‘‘ हां.’’ हर्ष ने जवाब दिया, ‘‘ अब किसी टीचर भूत से मिलवाइए.’’

‘‘ ठीक है. इंतजार कीजिए.’’ टेलीफ़ोन ऑपरेटर ने कहा.

और पल भर बाद ही आवाज गूंजी, ‘‘ हेलो! मैं भूत नं. 2513 , गणित अध्यापक, भत विद्यालय बोल रहा हूं.’’

हर्ष: मास्साब प्रणाम! मैं आपसे कुछ बातें करना चाहता हूं.

मास्टर भूत: किस क्लास में पढ़ते हो?

हर्ष: पांचवीं में.

मास्टर भूत: सही बताओ-साढ़े चौथी में या साढ़े पांचवी में. याद रखो छमाई परीक्षा हो चुकी है और गणित का अध्यापक हूं. भिन्नों और दशमलव से मुझे अपने बच्चों से भी ज़्यादा प्यार रहा है.

हर्ष: मास्साब, साढ़े पांचवीं में

मास्टर भूत: हूं. पौने उन्नीस का पहाड़ा याद है तुम्हें?

हर्ष : नहीं.

मास्टर भूत: नहीं? हां, याद होगा भी कैसे? सारी रात सोते रहो. ठीक है, तुम्हारे जैसे नालायक की खबर लेनी पड़ेगी. अभी पहुंचता हूं. क्या है तुम्हारे घर का पता?

‘‘ कुछ नहीं.’’ हर्ष हंसा, भूतों को भला घर का पता बताया जाए! ‘‘ अब किससे मिलवाऊं?’’ टेलीफ़ोन ऑपरेटर की आवाज गूंजी, ‘‘ किसी और टीचर से बात करेंगे?’’

‘‘ नहीं-नहीं, माफ कीजिए. टीचर हर जगह के एक से होते है.’’ हर्ष घबराकर बोला,‘‘ उन्हें तो बच्चों को डांटने -फटकारने का बस बहाना चाहिए. अब तो मुझे मिलवाइए, यही किसी मस्त लड़के से.’’

‘‘ ठीक है’’. टेलीफ़ोन ऑपरेटर की आवाज आई.

पल भर बाद, रिसीवर पर आवाज गूंजी, ‘‘ हेलो-हेलो! कौन बोलिंग?’’

हर्ष: भय्या समझो तुम्हारा एक दोस्त. मेरा नाम हर्ष है. तुम्हारा परिचय?

आवाज : मेरा नं. 4861 है. वैसे हम बाल भूत नंबर प्रथा को समाप्त कर फिर से नाम-प्रथा को प्रचलित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस हिसाब से मेरा नाम है राधा.

हर्ष: राधा? अरे, तो यह तो लड़कियों का नाम है?

राधा भूत: है! लड़की का नाम? नहीं यार मजाक मत करो.

हर्ष: मैं मजाक नहीं कर रहा दोस्त! खैर तुम इस वक्त क्या कर रहे हो?

राधा भूत: पिक्चर जाने की तैयारी कर रहा हूं.

हर्ष: कौन सी पिक्चर?

राधा भूत: ‘हड्‍डियां बोल रही है.’

और टेलीफ़ोन ऑपरेटर ने लाइन काट दी. हर्ष चौक कर बोला, ‘‘ क्या बात है भाईसाहब?’’

वक्त काफी हो गया है जनाब, ‘‘ टेलीफ़ोन ऑपरेटर ने जवाब दिया, ‘‘ मुझे 1600 किलोमीटर दूर जाना है. अंधेरा रहते ही. अत: अब आज आप और ....’’

‘‘ प्लीज, मतलब ऑपरेटर साहब, एक भूत से और बातें कर लेने दीजिए. सिर्फ़ पांच मिनट.’’ हर्ष गिड़गिड़ा उठा.

‘‘ ठीक है, कहो किससे मिलना है? ’’ भूत टेलीफ़ोन ऑपरेटर बोला, ‘‘ लेकिन बातें संक्षेप में करना.’’

‘‘ जी हां... जी हां. ’’ हर्ष खुश हो उठा, ‘‘मुझे किसी बच्चों की पत्रिका के संपादक भूत से मिलवा दीजिए.’’

‘‘ लेकिन यहां की प्रसिद्ध बाल पत्रिका ‘हड्‍डी चूस’ की प्रधार संपादिका तो एक भूतनी है!’’

‘‘ तो उन्हीं से मिलवा दीजिए.’’

‘‘ ठीक है.’’ टेलीफ़ोन ऑपरेटर ने अपनी अभ्यस्त आवाज में कहा.

टेलीफ़ोन के रिसीवर पर: हेलो-हलो... मैं प्रधान संपादिका बाल-पत्रिका हड्‍डी चूस बोल रहा .. मतलब बोल रही हूं.

हर्ष: आंटी, मैं आपकी पत्रिका के दफ्तर में आना चाहता हूं, कहां है इसका दफ्तर?

संपादिका भूतनी: भूत बंगले में, शमशान घाट पर हमारी प्रेस है और संपादकीय विभाग मुर्दाघर में. कहां आओगे?

हर्ष: अरे बाप रे!

एकाएक ही कमरे में बत्ती जल उठी. हर्ष थरथरा उठा. भू..त...नहीं भूत नहीं, पीछे दरवाजे पर गाउन पहने पापा खड़े थे. हर्ष को देखकर वे हैरत में बोले, ‘‘ क्या कर रहे हो तुम यहां हर्ष?

‘‘ कुछ नहीं पापा.. कुछ भी नहीं. मैं ..भूत.. मतलब... कुछ नहीं.’’ हर्ष हड़बड़ा सा गया. टेलीफ़ोन का रिसीवर अब भी उसके हाथ में था.

पापा ने आगे बढ़कर फ़ोन का रिसीवर उसके हाथ से छीन लिया और दूसरी ओर को लक्ष्य करके बोले. ‘‘ हैलो! मैं डी.एस.पी पुलिस मिश्रा बोल रहा हूं आप कौन है दूसरी तरफ... ओह टेलीफ़ोन ऑपरेटर! अच्छा तो आप यही सब करते फिरते हैं? नाम आपका?... गोली मारो अमां माफी वाफी को? कब से चल रहा था ये?... ठीक है, कल ही तुम्हारी नौकरी खत्म करवाता हूं.’’

‘ हां-हां’ घबराए हर्ष को हंसी आ गई. पापा भूतों की नौकरी खत्म करेंगे. हा-हा, पुलिस अफसर होने का रौब पापा भूतों पर भी गांठना नहीं भूले. लेकिन भूत अगर जोर से छींक भी दें तो?

यही सब सोचता हर्ष बिस्तर पर आ लेटा. घड़ी एक बजा रही थी तब ... यानी हर्ष ने पूरे एक घंटा भूतों से बात की थी.

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