किताबों की क़ैद से आजाद SAMIR GANGULY द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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किताबों की क़ैद से आजाद

मुनिया से गर्मी की दोपहर का वक्त काटे नहीं कटता.

नानी मुटल्ली भरपेट दाल-भात खाकर खर्राटे लेकर सोने लगती है.

मम्मी और डैडी ऑफिस.

अब मुनिया करे तो क्या? बालकनी पर कितनी देर? और टीवी देखने का तो सवाल ही नहीं.

डैडी डियर ने उसे पहले ही सावधान किया है-नानी से बचकर रहना, वो तुम्हारी मम्मी की जासूस है. जो कुछ भी करोगी शाम को सारी रिपोर्ट मम्मी के पास पहुंच जाएगी.

डैडी ने एक बात और भी बताई थी. वो ये कि उन्होंने ही एक बार नानी की चाय में इमली डाल दी थी, जिसके लिए डांट पड़ी थी मम्मी को.

आज यही बात याद करके मुनिया बालकनी में खड़ी-खड़ी हंस रही थी.

तभी उसकी नजर लंबी सफेद दाढ़ी वाले एक बूढ़े पर पड़ी जो कंधे पर एक बोरी उठाए था.

मुनिया ने उसे पुकार कर कहा, ‘‘ ओ बूढ़े बाबा तुम्हारी बोरी में क्या है?’’

आवाज सुनकर ऊपर देखते हुए बूढ़ा बोला, ‘‘ गुड़िया रानी , पिलाओ ठंडा-ठंडा पानी तो सुनाऊ बोरी की कहानी.’’

मुनिया बोली, ‘‘ रूको पानी लाती हूं! फिर सुनाना अपनी कहानी.’’

इतना कहकर मुनिया ने अपनी पुरानी वॉटर बोतल में फ्रिज का पानी भरा, और एक रस्सी की मदद से उसे बालकनी से नीचे लटका दिया.

बूढ़ा गडगड करते हुए एक सांस में सारा पानी पी गया. फिर हाथ उठाकर मुनिया को दुआ दी.

सयानी मुनिया अपना सिर हिला कर बोली, ‘‘ मैं जानती हूं तुम बच्चा पकड़ने वाले हो. हो ना? बोलो-बोलो तुम्हारे बोरे में कितने बच्चे हैं?’’

यह सुनकर बूढ़ा जोर से हंस पड़ा, फिर बोला, ‘‘ अरे नहीं गुड़िया! मैं बच्चे पकड़ने वाला नहीं, मैं तो बच्चों का दोस्त हूं.’’

मुनिया ने पूछा, ‘‘ तो तुम्हारे बोरे में क्या है?’’

बूढ़ा बोला, ‘‘ कहानी किस्सों की फटी-पुरानी किताबें! रंग-बिरंगी किताबें. टूटे -फूटे खिलौने.

मुनिया ने आगे पूछा, ‘‘ बूढ़े बाबा तुम क्या करते हो इनका. किताबें पढ़ते हो?, खिलौने से खेलते हो?’’

बूढ़ा बोला, अरे नहीं, मैं इन्हें जंगल से जाता हूं और किताबों में तस्वीर बन कर कैद जीवों को आजाद कर देता हूं.’’

मुनिया सिर खुजाते हुए बोली, ‘‘ आजाद मतलब?’’

बूढ़ा अपनी आंखों को बड़ी करते हुए बोला, ‘‘ बच्चों की कहानी की किताबों में जो फूल, पक्षी, पशु और दूसरे प्राणी होते हैं, मैं उनको किताबों से झाड़कर जंगल में छोड़ देता हूं और किताबों को खाली कर देता हूं.’’

मुनिया एक सयानी की तरह सिर हिला कर बोली, ‘‘ मुझे बुद्धू समझते हो क्या? ऐसा कब होता है?’’

बूढ़ा भी कहां हार मानने वाला था, वह उंगली उठाकर बोला, उधर देखो, पेड़ पर वो बंदर बैठा है न!’’

मुनिया ने उधर देखते हुए जवाब दिया, ‘‘ हां, उसने लाल टोपी पहन रखी है!’’

बूढ़ा आगे बोला, ‘‘ वो बंदर उस किताब का है जो तुम्हारे घर से पिछले महीने मैं ले गया था. और ये लाल टोपी, तुम्हारे घर में रहने वाली बूढ़ी औरत ने मेरे नाती के लिए दी थी.’’

मुनिया आगे बोली, ‘‘ हां, वो मेरे बचपन की टोपी है! मगर वो बंदर के पास कैसे?’’

बूढ़े ने बताया, मैंने जैसे ही इस पाजी बंदर को आजाद किया, वो पास पड़ी टोपी को उठाकर भाग गया, अब देखो वहां बैठ कर हमारा मजाक उड़ा रहा है.’’

अब मुनिया को लगा कि बूढ़ा बाबा झूठ नहीं बोल रहा है, फिर भी पूरी तसल्ली करने के लिए उसने पूछ ही लिया, ‘‘ बाबा जब तुम किताबों से पशु-पक्षियों को आजाद कराते हो तो वे क्या करते हैं?

बूढ़ा अपनी गठरी को नीचे रखते हुए बोला, ‘‘ छोटे पशु-पक्षी तो तुरंत भाग जाते हैं या फुर्र से आसमान में उड़ जाते हैं. पौधे भी पास या दूर जाकर उग जाते हैं मगर....

-मगर क्या?

- मगर बड़े पशु जैसे कि शेर , भालू, बाघ, मगरमच्छ खतरनाक होते हैं. वे अहसान नहीं मानते और हमला कर देते हैं.

-फिर

इसलिए उन्हें बहुत सोच-विचार कर आजाद करता हूं या आजाद करता ही नहीं, बोलो अपनी जान को खतरे में क्यों डालूं?

- और हाथी?

- हाथी शरीफ होते हैं! मगर वे इतनी जोर से चिंघाड़ कर धन्यवाद देते हैं कि कान के परदे फटने लगते हैं.

- और सांप?

- बाप रे बाप! एक बार एक सांप तो आजाद होते ही मेरे गले पड़ गया.

- फिर?

- फिर क्या, सरसराते हुए नीचे उतर गया और फिर फुसफुसाकर बोला-डर गए ना?

- और जिन किताबों मैं बच्चों या आदमियों या राक्षस की तस्वीर होती है?

-उनका मैं कुछ नहीं करता हूं. बच्चे और आदमी अगर बोलने लगे मेरे घर चलेंगे तो मेरी मुसीबत बढ़ जाएगी ना!

-ओ ये बात है!

बूढ़ा अपनी दाढ़ी को खुजाता हुआ आगे बोला, ‘‘ तुम लोगों को अपनी किताबों को संभाल कर रखना चाहिए जब मैं कटी-फटी किताबों से पशु-पक्षियों को निकालता हूं, तो कई बार उनकी टांगें टूटी होती है तो कभी वे ठीक से उड़ नहीं पाते.’’

मुनिया को यह सुनकर बड़ी शर्म आई. सचमुच उसकी कहानी की कई किताबें भी कटी-फटी थी. उसने सोच लिया आज ही फटी किताबों को टेप या गोंद लगाकर चिपकाएगी. नई किताबों को भी संभाल कर रखेगी.

मुनिया को सोच में पड़ा देखकर बूढ़ा बोला, ‘‘ क्यों गुड़िया रानी, तुम्हारे पास भी कुछ पुरानी किताबें हैं, तो इतवार के दिन आऊंगा, जब तुम्हारे मम्मी पापा घर पर हों. अपनी किताबों के बीच सौ-पचास का एक नोट भी रख देना.’’

मुनिया को बूढ़े की यह बात पसंद नहीं आई, पूछा, ‘‘ नोट क्यूं’’

बूढ़ा बोला, ‘‘ ताकि मैं तुम्हारी किताबों के पशु-पक्षियों के लिए कुछ दाना भी खरीद सकूं. पता नहीं कितने समय से भूखे-प्यासे हों वे.’’

मुनिया ने देर नहीं की. बूढ़े बाबा को रूकने को कहकर अंदर से नानी की एक पुरानी तोता-मैना की किताब उठा लाई. उसके अंदर सौ का नोट रखा और बालकनी से नीचे गिरा दिया.

बूढ़ा किताब को उठाकर, नोट को जेब में रखकर हंसते हुए चल दिया.

***

अगले दिन दोपहर को ना जाने कहां से एक तोता आकर सामने के पेड़ पर बैठा जोर-जोर से टांय-टांय करने लगा.

मुनिया उसे गौर से देखती रही और सोचती रही, कि कहीं ये नानी की किताब का तोता तो नहीं?

थोड़ी देर बाद मम्मी स्कूल से लौटी तो उनके हाथ में एक घायल पक्षी था.

नानी को उसे दिखाते हुए बाली, ‘‘ ये दीवार पर बैठी थी और उड़ नहीं पा रही थी और एक बिल्ली इसे खाने के लिए घात लगाए बैठी थी. शायद इसके डैने पर चोट लगी है. हल्दी तेल लगा दूंगी.’’

नानी उसे गौर से देखते हुए बाली, ‘‘ ये तो मैना है.’’

और मुनिया चौंक उठी. पहले तोता, फिर मैना... तो क्या बूढ़े की गठरी.... नानी की किताब तोता-मैना??