Kinnar (poem) books and stories free download online pdf in Hindi

किन्नर ( कविता)

रोटी

रोटी हमें जीवन देती हैरोटी पाने के लिए
आदमी घर छोड़ता है
और
रोटी खाने के लिए घर आता है

रोटी जीवन देती भी है
और
जीवन लेती भी है

रोटी के लिए मुंबई गए
रामदीन,सोहन मोहन,दाताराम
करीमबख्श, फत्ते खां और नूरे ईलाही
कोरोना काल में जब
रोटी पाने-जुटाने में हो गए असमर्थ और लाचार

तो चल पड़े रोटी खाने
अपने घर, अपने गांव
रेल की पटरियों पर रखते
अपने छाले-फफोले वाले पांव

क्योंकि सड़के अब गांव तक
जाने से मना कर चुकी थीं
और बैठे थे
हर चौक पर पुलिस - कोतवाल

वहां भी आ गईं रोटी
मचलती भूख के साथ
नींद थी पलकों पर उमड़ी

ले मृत्यु की सौगात
धर- धराती मौत आकर दौड़ गई
उन मजदूरों- मजबूरों को रौद गई
खत्म हो गया सब कुछ
क्षत - विक्षत शरीर
और पोटली का सामान

लेकिन मौत - कराली भी
रौंद न पाई सुखी रोटी
और
वही रोटी थीं उनकी पहचान ।

-

(ट्रेन हादसा के शिकार गांव लौट रहे मजदूरों की स्मृति में-)

-आदित्य अभिनव उर्फ डॉ.सी.पी. श्रीवास्तव
असिस्टेंट प्रोफेसर,हिंदी विभाग
भवंस मेहता महाविद्यालय, भरवारी
कौशांबी, यूपी-212201
मोबाइल-7972465770
7767031429


सत्ता

भारतीय लोकतंत्र का महाकुंभ
जो,हर पांच साल बाद लगता है
जनता स्वयं सिंहस्थ
होने के अवसर पर,
पुण्य-सलिला मध्य
पवित्र जल में
अवगाहन हेतु
ढूंढती है पालयुक्त नाव
और दूरदर्शी खिवैया।
लेकिन
जब हो नहीं पाता ऐसा
तो,
होता है गांठ-बंधन
जूना अखाड़े का किन्नर अखाड़े से ;
तट पर अलासाए-लेटे हुए
देवता मुस्काते हैं
और, इधर
ताक में रहने वाले उचक्के
जनता के चप्पल-जूतें
उड़ाने की जुगत लगाते हैं----
--- आदित्य अभिनव उर्फ डॉ सी पी श्रीवास्तव
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग
भवंस मेहता महाविद्यालय, भरवारी
कौशांबी (यू पी)-212201
मो-7972465770 ,77670314
कोरोना

अनवरत प्रवहमान
जीवन और मृत्यु
प्रकृति के ही दो पहलू हैं।
जीवन-मृत्यु में
जीवन ही हमेशा
हावी रहा है
लेकिन ,
आज मृत्यु का संवाहक
भस्मासुर कोरोना
अपने विश्व्वव्यापी
विशालकाय-प्रलयंकारी स्वरूप से
जब भस्म कर रहा है
सम्पूर्ण मानवता को
तो ,
यह महाप्रश्न
बार-बार उठता है,
क्योंकि,
हे मनु संतानों !

तुमने ही प्रकृति को
नोच-खसोट और लूट-लूट कर
किया है मजबूर और बदहाल।
प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया
बराबर एवं विपरीत होती है
और
यह नियम प्रकृति पर भी
लागू हो रहा है।
-- आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. सी. पी. श्रीवास्तव
भवंस मेहता महविद्यालय, भरवारी , कौशाम्बी
उत्तर प्रदेश – 212201
28 मार्च, 2020



किन्नर
हाँ , मैं स्त्री हूँ
और पुरुष भी ;
आपके इस सभ्य समाज का
एक अंग भी ।
मुझमें स्त्री-पुरुष दोनों
प्रवाहित होते हैं
लेकिन , कोई भी
प्रकट नहीं हो पाता
अपनी पूर्णता के साथ
क्योंकि ,
मैं सदा बहने वाली
वह नदी हूँ
जिसका कोई किनारा नहीं।
लोगों को कहते सुना है कि ,
गलती करना इंसान की फितरत है
और ,
इस सापेक्ष जगत् में
केवल ईश्वर ही
निरपेक्ष, निष्पाप , निर्विकार,
दया का सागर और करुणा निधान है।
तो फिर ,
स्त्री और पुरुष के बीच
हवा में त्रिशंकु के भाँति
लटके ,
लांछित और अपमानित
जीवन के लिए अभिशप्त ,
हम सब के रूप में
क्या , वह असीम अगोचर ही
अपनी ही भूल से
साकार रूप में
व्यक्त है ?
बंधु !
यदि ऐसा नहीं तो
वह ईश्वर भी नहीं,
क्योंकि यदि हम
गलत हैं तो
हमें रचने वाला
सही कैसे हो सकता है ? ? ?
-- आदित्य अभिनव

दीवारें

मुझे लगता है
कि ,
मांडले जेल की दीवारें
आज भी ,
तिलक के “ स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है “
के मंत्रोच्चार से
हिल रही हैं
और
कब्र से उठती
जेलर की काँपती चीख
आकर
इन दीवारों से
टकरा रही है ।
-- आदित्य अभिनव


सुबकती बेटी

चिंतामग्न हिमालय
अपनी बेटी को,
जो चेहरे पर
केसरिया घूँघट डाले
सुबक रही है
अपलक निहार रहा है।
सूख चुकी केसर की क्यारियाँ ,
सेब के उजड़े हुए बाग ,
चिनारों से झरते पत्तें देख
हो गई हैं आँखें विषष्ण ।
नौनिहालों के
खतरनाक खिलौनों के
हिंसात्मक खेल से आती
बारूदी गंध ने
कर दिया है उसे
शोकाकुल ,व्यथित और निस्पंद ।
चारों तरफ आशाभरी नजरों से
ढूढ़ता है , वह
अपने प्यारे जानुल-आबद्दीन को ;
श्रवणेंद्रियाँ बेताब हैं
सुनने को
भामह ,अभिनवगुप्त और कल्हण के
शाश्वत सत्य को व्यक्त करने वाले
शब्दोच्चार ,
और
गलियों में गूँजते
ललद्यद के मीठे बोल
जो करते थे
जन-जन में
नव जीवन-संचार ।
-- आदित्य अभिनव


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED