रुका न पंछी पिंजरे में आदित्य अभिनव द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रुका न पंछी पिंजरे में


रुका न पंछी पिंजरे में

धनेसर को यह समझ में नहीं आ रहा है कि क्या हो गया है, जिसको देखो वहीं मास्क लगाए हुए है। हर आदमी के चेहरे पर काला, नीला, पीला, हरा, सफेद, लाल कपड़ा न जाने कहाँ से आ गया। ये सब लोग एकाएक डागडर वाला मास्क क्यों लगा लिये ? पिछले साल होली के तीन दिन पहले साथ में काम करने वाले अकरम का एक्सीडेंट हुआ था तो देखा था डागडर बाबू लोग ऐसे ही लगाए हुए थे चेहरे पर। केवल आँखें ही दिख रही थी। होली के पहले तो ऐसा कुछ नहीं था। इस बार होली में वह घर गया था, तो आते वक्त अपने इकलौते बेटे मोहित को भी साथ लाया था । मोहित की माँ कुसुमी मोहित के जन्म के साल भर बाद ही टायफायड से चल बसी थी। पूरे गाँव में वह दिन भर इधर-उधर लफेरिया की तरह घूमता रहता। धनेसर की माँ पार्वती भी तो अब बूढ़ी हो गई है, कहाँ-कहाँ देखे उसे? कभी आम –अमरूद तोड़ने, तो कभी मछली पकड़ने, तो कभी गाँव के चरवाहों के साथ कबड्डी-चिक्का खेलने में मग्न रहता। इस साल जुलाई में पाँच साल का होने वाला है।
फैक्ट्री के गेट के सामने ही नया- नया स्कूल खुला है। रामबरन कह रहा था कि नर्सरी से किलास पाँच तक बच्चों तक का सकुल है। रंगरेजी मेडियम में पढ़ाई होगी। उसने अपने बेटे रीतेश को नर्सरी में डाला है। फीस तो ज्यादा है लेकिन बच्चें के भविष्य को बनाने के लिए थोड़ा कष्ट उठा लेंगे। खर्चा में काट-कटौती करेंगे। अच्छा सकुल में पढ़ेगा तभी तो बाबू बनेगा। यहीं सब सोच-गुन कर वह भी अपने मोहित को लाया है। एक दिन नाईट ड्यूटी ऑफ में जाकर पता लगाया तो साफ-साफ गोर-गोर मैडेम जो काउंटर पर बैठती हैं बोली “ बच्चा कितने साल का है ?’’ तो बताया कि चार पूरा होई गवा है। जुलाई में पाँच साल को होई जावेगा। मैडेम बोली थी कि “ले आओ, लकेजी में डमिशन हो जायेगा।‘’
घर से यहाँ आया तो पता चला कि फैट्री बंद है। करओना नाम की कोई नई बीमारी चली है इसी कारण फैट्री बंद होई गवा है। अब धनेसर के लिए बड़ा ही लमहर मुसीबत होई गवा है। पहले गाँव-जवार के चार-पाँच मजदूरों के साथ रहता था तो क्वाटर भाड़ा भी कम पड़ता था, खाना-खुराकी भी कम लगता था। रामबरन से बात करने के बाद मोहित को यहाँ लाने को मन बनाया तो सोचा, बच्चा को पढ़ाना-लिखाना है तो क्वाटर सेपरेट होना चाहिए। यहीं सोचकर उसी मुहल्ले में एक कमरे का क्वाटर ढूँढ़ा। लैट्रीन-बाथरूम शेयरिंग है। रूम बड़ा है, किचेन के लिए भी काफी जगह है। किराया सुनकर तो तिलमिला गया था लेकिन बच्चे के केरियर का सवाल है , सोचकर कहा ‘ ठीक है साहेब !’’
धनेसर जनवरी में अपने नए क्वाटर में आ गया। खाने-पीने का अपना अलग व्यवस्था कर लिया। एक फोल्डिंग चारपाई भी खरीद लाया। आखिर बच्चे को तो नीचे नहीं न सुला सकता है, वो भी पढ़ने वाला बच्चा। जनवरी से उसका दरमाहा एक हजार रुपये बढ़ा है। पहले सात हजार मिलता था अब आठ हजार मिलेगा। इसी बल पर उसने सारा पिलान किया था। मगर भगवान् को कुछ दूसरा ही मंजूर था।
धनेसर के नए मकान-मालिक प्रभूदयाल त्यागी, मेरठ के रहने वाले थे। गुड़गाँव में उनका इलेक्ट्रॉनिक की दुकान है। बारह कमरे और तीन लैट्रीन-बाथरूम उन्होंने बनवाया है। ज्यादातर यूपी-बिहार के मजदूर इनमें रहते हैं। कुछ परिवार वाले तो कुछ अकेले। प्रभूदयाल जी ने धनेसर को बता दिया था कि किराया एडवांस में देना होगा यानी फरवरी का भी किराया जनवरी में देना होगा। किराया तीन हजार रुपये प्रति माह तय हुआ है। जनवरी में आठ हजार रुपये तनख्वाह मिली, तो वह जनवरी-फरवरी के किराया और राशन-पानी में ही चला गया।
मार्च में होली की छुट्टी जाते समय ही उसे मार्च और अप्रैल का किराया चुकाना पड़ा था। घर से आते वक्त केवल एक हजार रुपये ही बचे थे। सोचा था वहाँ फैट्री पहुँचने पर सब ठीक हो जायेगा लेकिन यहाँ तो सबकुछ बंद पड़ा है।
एक दिन घूमते-घूमते कॉन्वेंट की तरफ गया तो देखा ताला लगा हुआ है। मोहित भी साथ गया था। बड़ा खुश था वह स्कूल जाने के नाम पर, लेकिन वहाँ तो मायूसी ही हाथ लगी थी। आते समय राशन दुकान वाले लाला रघुवंश अग्रवाल मिल गये। देखते ही बोले “ धनेसर ! तुम्हारे नाम पर सात सौ रुपये बाकी हैं। दो महीने से ज्यादा हो रहे हैं। कब दोगे ?’’
“ पा लागी लाला जी ! फैट्री खुलने तो दो सब चुका देंगे। कभी मेरे ऊपर बकाया रहा है क्या ? धनेसर ने पास आकर कहा।
“ सो तो ठीक है, लेकिन आजकल बड़ी कड़की चल रही है। कोरोना महामारी पूरे दुनिया में छाई गवा है – फैक्ट्री सब बंद हो गये हैं -- न जाने कब खुलेंगे --- सब मज़दूर अपने गाँव जा रहे हैं। हमारी हालत भी पतली हो गई है। प्रेम से दे दो , जोर जबरदस्ती करना ठीक नहीं लगता है।‘’ लाला ने अपनी टेढ़ी निगाह से धनेसर को देखते हुए कहा।
“ हाँ- हाँ ! ठीक है , ये लीजिए पाँच सौ रुपये। बाकी के लिए थोड़ा धीरज रखिए ,वो भी दे दूँगा।‘’ शर्ट के भीतर वाले पॉकिट से पाँच सौ का नोट निकाल लाला को थमाते हुए धनेसर ने नरम आवाज में कहा।
क्वाटर में जो राशन था, बड़े मुश्किल से सात दिन तक चला। अब आगे क्या होगा? कैसे चलेगा ? धनेसर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। रामबरन, अशरफ, मकेशर, फूलचंद, शशिभूषण, चंदेसर, गणेश , सब गाँव-जवार वाले बार-बार घर जाने की बात कर रहे थे। जब यहाँ फैक्ट्री बंद होई गवा तो हम लोग यहाँ क्या करेंगे ? जब सब कुछ सब जगह बंद है तो क्या किया जाए ? सरकार टेलीविजन पर कह रही है कि घर से बाहर नहीं निकलो नहीं तो कोरोना पकड़ लेगा। टी. वी. पर खबर देख कर बहुत डर लग रहा है। बाहर कोई काम नहीं घर के अंदर खाने के लिए अन्न का दाना नहीं। ऐसे में कोरोना से मरे या ना मरे लेकिन भूखे जरूर सब मर जायेंगे। सब मिलकर फाइनल किए कि जब मरना ही है तो अपने धरती पर मरेंगे। वहाँ एक-दो मुट्ठी जो भी मिल जायेगा गुजारा कर लेंगे। जैसे पहले ज़िनगी काटते थे वैसे फिर काटेंगे। यहाँ परदेस में कोई पूछने वाला नहीं ,वहाँ तो अपना गाँव-समाज है। अपनी माटी की बात ही कुछ और होती है। मरने पर चार आदमी कंधा देने वाला तो मिलेगा। यहाँ तो कुत्ता-कौवा की तरह भी पूछने वाला कोई नहीं।
धनेसर बड़ा असमंजस में था। उसने पड़ोसी परमेसर के मोबाइल पर अपने माई से बात किया।
“ प्रणाम माई ! ‘’
“खुश रह बेटा ! युग युग जी-अ –।‘’
“ माई ! यहाँ तो फैट्री बंद है। सब कुछ बंद है। यहाँ तक कि ट्रेन-बस भी बंद है। क्या करे ? उस पर से मोहित भी साथ है। माई ! कल से उसे बुखार है। कुछ समझ नहीं आवत है? ‘’
“ तू किसी तरह चली आव बेटा ! मोहित का चेहरा मन से बिसरत नाहीं हवै। मोहित को देखने को मन छछनअ ता । तू बेकार ही मोहित को ले गइल --। चली आव बेटा ! कइसे भी चल आव -- मोहित को देखे बड़ी मन करत बा बेटा -- मोहित को ले आव बेटा -- मोहित को ले आव व-- ले आव-- ।‘’
“ठीक है माई !’’ कहकर धनेसर ने फोन काट दिया।
गाजीपुर और बलिया के आस-पास के सभी मज़दूरों ने अपने गाँव जाने का निर्णय लिया। सब एक साथ मोटरी-गेठरी बाँध चल पड़े। रास्ते में हर दस–बीस किलो मीटर की दूरी पर यूपी- बिहार के मजदूरों का झुंड दिखाई देता। कहीं- कहीं टेम्पु या पीक-अप जैसे छोटे-मोटे वाहन भी दिख जाते थे जिनपर धान की बोझा की तरह लदे हुए स्त्री-पुरुष और बच्चें दिखाई पड़ते। जो जैसे है वैसे ही अपने घर की तरफ बढ़ता दिखाई देता। बड़ा भयावह मंजर था। मानवता का ऐसा विवश- विकल रूप शायद ही कभी देखने को मिला हो। बाप के कंधे पर बैठी बेटी, माँ के गोद रोता दूधमुँहा बच्चा, माथे पर बैग को रखे चल रहे किशोरावस्था के लड़के-लड़कियाँ हृदय में अजीब-सी करुणा जगा रहे थे। मोहित बुखार में बड़बड़ा रहा था – दादी— -- दादी-- दादी--। उसका शरीर गर्म तवे की तरह तप रहा था। धनेसर उसे रास्ते में पारले-जी बिस्कुट देकर पानी पिलाता फिर कंधे पर लाद चल देता। पूरा काफिला पैदल ही चल रहा था। ट्रेन-बस बंद, सारे साधन बंद, पूरा देश बंद लेकिन इनको इनकी धरती बुला रही थी। वे चल पड़े थे एक जुनून के साथ अपने गाँव, अपनी धरती के लिए।
जहाँ एक ओर किराया न दे पाने के कारण घर से सामान बाहर फेकने वाले गुड़गाँव के मकान-मालिक थे, राशन का बकाया वसूलने के लिए मार-पीट पर उतारु लाला-साहू- महाजन –बनिया थे वहीं इसी देश में राह चल रहे इन बेबस-मज़बूर मज़दूरों के लिए लंगर चला रहे लोग भी। रास्ते में जहाँ लंगर दिखता वहीं काफिला रुक जाता। दयालु लोग अपने-अपने घरों से खाना बनवा कर लाते। भरपेट खिलाने के बाद रास्ते के लिए भी देते। आखिर यह देश राजा बलि, दानवीर कर्ण, महावीर जैन, गौतम बुद्ध, कबीर और नानक का देश है। खाने-पीने के साथ-साथ दवा-दारू की व्यवस्था भी कर रहे थे लोग। धनेसर ने मोहित को लंगर के एक सज्जन को दिखाया।
“अरे ! इसका शरीर तो गर्म तवे की तरह तप रहा है। कुछ दवा दिया या नहीं।‘’
“ साहेब ! जो भी पैसा था सब राशन-पानी में खर्च हो गया। मकान-मालिक अगले महीने का किराया नहीं देने पर क्वाटर से निकाल दिया। जिस फैट्री के नौकरी के भरोसे पर बेटे को लाया था वहीं फैट्री बंद होई गवा , साहेब – क्या करें ----- कुछ समझ में नहीं आवत है – साहेब-- ।’’ धनेसर फफक –फफक कर रोने लगा।
“चलो,कोशिश करते हैं। हमारे पास जो दवा है देते हैं,लेकिन स्थिति बहुत खराब हो गई है। बचने का चांस बहुत कम है। दूसरे में कोरोना का ऐसा कहर है कि यदि गलती से पता चल जाए तो तुम्हें और तुम्हारे बच्चे दोनों को चौदह दिनों के लिए क्वारेंटाइन सेंटर में डाल देंगे।‘’ उस सज्जन ने ठण्डी साँस लेते हुए कहा।
उन्होंने दो टेब्लेट को आधा-आधा टुकड़ा और एक टेब्लेट पूरा मोहित को खिलाया लेकिन दवा खाने के एक मिनट बाद ही मोहित ने उल्टी कर दी। सज्जन अपना माथा पकड़ कर बैठ गए।
धनेसर रोये जा रहा था। उस सज्जन ने धनेसर के बगल में बैठे अशरफ को को अपने पास बुलाकर कहा “ देखो ! तुम्हारे साथी का लड़का दो-तीन घण्टे का ही मेहमान है। इसकी अंतिम घड़ी आ गई है। इससे अपनी भाषा में समझाना कि रास्ते में यह किसी को पता न चलने दे कि इसके कंधे पर लदा चार साल का बच्चा मरा हुआ है। यदि किसी को पता चल गया तो बच्चे का चीड़ –फाड़ करेंगे और उसे कम-से-कम चौदह दिनों के लिए क्वारेंटाईन कर देंगे। फिर तो घर जाना भूल ही जाना पड़ेगा। ठीक से समझ गए न ।‘’ इतना कह सज्जन अपने आँखों में आए आँसुओं को पोछने लगे।
धनेसर अपने पीठ पर मोहित को लादे चल रहा था। अशरफ ने उसके कंधे पर हौले से हाथ रख कहा “ देखो धनेसर भाई ! खुदा की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती शायद मोहित का तुम्हारा साथ इतने ही दिनों का हो। अगर मोहित चला जाता है तो किसी को पता नहीं चलने देना नहीं तो इसका मरा मुँह भी इसकी दादी नहीं देख पायेगी। यदि ज़रा भी भनक लग गया तो इसके शरीर को अस्पताल में ले जाकर चीड़-फाड़ करेंगे और तुम्हें भी कम-से-कम चौदह दिनों के लिए क्वारेंटाईन कर देंगे। उस ऊपर वाले के आसरे ही हम लोग हैं। ध्यान रखना, धनेसर भाई-- ।‘’
धनेसर को माई की बात याद आ गई “मोहित को देखे बड़ी मन करत बा बेटा -- मोहित को ले आव बेटा -- मोहित को ले आव -- ले आव— - मोहित को ----।‘’
धनेसर ने मोहिता ! मोहिता ! पुकारा लेकिन मोहित के शरीर में कोई हलचल नहीं थी । पिंजड़े का पंछी उड़ा चुका था।
धनेसर और अशरफ दोनों सड़क किनारे झाड़ी में जा बैठे। मोहित को कंधे से उतारकर धनेसर ने नब्ज टटोला। नब्ज कब का बंद हो चुकी था। वह पथराई आँखों से मोहित के शव को देख रहा था। वह एकाएक झोके से उठा और मोहित के शव को अपने कंधे पर डाल चल पड़ा।
रास्ते में जहाँ कहीं भीड़ या पुलिस दिखाई देती, धनेसर के मुँह में जुबान आ जाती।
“बेटे ! अब बस दो दिनों में हम पहुँच जायेंगे अपने घर , दादी के पास -- ।‘’
“ हाँ ! हाँ ! ठीक है , दादी के हाथ का बना महुआ का हलवा खाना -- हाँ—हाँ -- खाना भाई -- खूब जमके खाना -- ।‘’
“ क्या -- मकई की रोटी – भैस के दूध में -- चीनी मिलाकर खाओगे – ठीक है खाना – खाना नाक डुबो – डुबो के खाना -- ।‘’
चाँदनी रात में आकाश में चमकता चन्दा अपनी चाँदनी धरती पर दिल खोलकर लुटा रहा था । धनेसर मोहिता को अपने कंधे पर डाले काफिले का साथ अपने धुन में बढ़े जा रहा था। वह चंदा को देख कर गाने लगा-
चन्दा मामा --
आ - रे - आव
वा-रे -आव
नादिया किनारे आव
चांदी के कटोरिया में
दूध -भात लेले आव
हमारा मोहित के
मुहवा में गुटुक----- कहकर पीठ पर लदे मोहित के मुँह में अपने दाहिने हाथ को कौर बना-बना कर डालने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने मोहित को सच में दूध-भात खिला रहा हो। वह प्रमुदित -आनंदित बच्चे की भाँति उछल-उछल कर मग्न बढ़े जा रहा था।
घर पहुँचते ही धनेसर ने मोहित को खाट पर लिटा दिया और स्वयं धम्म से जमीन पर बैठते हुए बोला “ देखो माई ! मैं ले आया तुम्हारे मोहिता को ।‘’
खाट पर पड़े मोहित को हिलाते हुए बोला “ मोहित ! देखो – दादी – दादी – बात करो दादी से । पाय लागो अपने दादी को -- मोहित उठो – उठो- -- अब काहे नहीं बोलत हव-- -- रास्ते में तो बहुत बोलत रह – दादी – दादी -- --।‘’
धनेसर का पड़ोसी परमेसर धनेसर की आवाज सुनकर आ गया। खाट से उठती सड़ाध के भभका से मन मिचलाने लगा। उसने खाट के पास जाकर मोहित को ध्यान से देखा। वह बिल्कुल निस्पंद पड़ा था। उसके चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिना रही थी। उसने मोहित के नब्ज को टटोला । हाथ बिल्कुल ठण्डा था। उसे समझते देर न लगी कि मोहित को मरे हुए दो-तीन दिन हो चुके हैं। उसने धनेसर के कंधे पर हाथ रखकर कहा “ धनेसर भाई ! मोहिता तो मर चुका है । कैसे बोलेगा ? ‘’
“बाक पगला ! मोहित और हम रास्ते भर बात करते आए हैं। तोहे कोई भरम हुआ है । देखो—देखो—कैसा सुग्गा नियर नाक है , देखो – देखो—होठ देखो -- -- अरे – अभी नींद में है -- - - तोहे पता नाही रास्ते में खूब बोलत रहे --- रतिया में दूध -भात भी खइलक --गुटुक - गुटुक --- खूब दादी -- दादी – करत रहे -- -- सो के उठिहै तो अपने दादी के गोद में चली जैहे -- - -- -- । छोड़ द -- - सुते दै ओह के -- ।‘’ धनेसर एक रौ में बोल गया।
“माई ! बड़ी भूख लगी है । कुछ खायके होये तो लाओ , माई !‘’ कहकर धनेसर बाहर चापाकल पर हाथ मुँह धोने चला गया।
“ चाची ! धनेसर तो पगला गया है । तुमको तो सुधी है , देखो—ई – देखो -- मोहित मर गया है। हाथ पकड़ के देखो, नब्ज कब से बंद पड़ी है। शरीर एकदम ठण्डा है। आँख-नाक पर मक्खियाँ भिनभिना रही है। अब तो सड़ाध भी आने लगी है-- चाची-- ।‘’ परमेसर ने खाट पर पड़े मोहित का हाथ पार्वती के हाथ में देते हुए कहा।
पार्वती बार- बार मोहिता का नब्ज पकड़ कर देखती है।नब्ज कब की बंद पड़ी है। कहीं लेशमात्र भी जीवन शेष नहीं है। उसका शरीर एकदम ठंडा पड़ चुका था। वह पछाड़ खाकर मोहित के शरीर पर गिर पड़ती है “ ओ—हमार—मोहिता – रे – मोहिता – तू तो – दगा दे कर चला गया रे रे – मोहिता ।‘’ बदहवास हो अपना सिर पटकने लगती है।
जैसे ही धनेसर आँगन में आता है पार्वती उसके गले से लिपट पुक्काफाड़ कर रोने लगती है “ बेटा – हो – बेटा -- -- मोहिता तो दगा देकर चला गया हो – बेटा -- -- मोहिता -- हम सब के छोड़ के चला गया – हो बेटा-- -- अरे—मोहिता – रे मोहिता -- ।‘’
“ माई ! तुम क्या कह रही हो ? काहे रो रही हो ? तुम भी लोगों के कहे में आ गई। अरे-- मोहिता बीमार था इसीलिए नींद नहीं खुल रही है-- चलो – ले चलते है – डॉक्टर के पास -- चलो – चलो-- ।‘’
वह झटके से मोहित को उठाकर चल दिया। दो कदम चलने के बाद लड़खड़ा कर औंधे मुँह गिर पड़ा। परमेसर ने दौड़कर उठाया। सीधा करने पर देखता है कि उसके आँखों की पुतलियाँ उलट गई हैं। शरीर बिल्कुल निस्पंद हो गया है । वह मोहिता को लाने मोहिता के पास जा चुका था।
-- आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
सहायक आचार्य, हिंदी विभाग
भवंस मेहता महाविद्यालय ,भरवारी ,कौशम्बी – 212201
मोबाइल – 7972465770, 7767031429