360 डिग्री वाला प्रेम - 28 Raj Gopal S Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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360 डिग्री वाला प्रेम - 28

२८.

स्वप्न हमेशा खूबसूरत नहीं होते

आज आरिणी का मन डायरी लिखने का था. उसने डायरी निकाली और लिखा,

“स्वप्न हमेशा खूबसूरत नहीं होते. ऐसे ही जिन्दगी के रंग हमेशा इन्द्रधनुषी- नही होते . यदि हर दिन आकाश में इन्द्रधनुष खिल उठे, हर शाम सुहानी हो जाए तो जिन्दगी की कशमकश, कुछ द्बद्घ विराम न पा जाएँ. और ऐसी स्थिति में जिजीविषा का रोमांच कैसे बना रहेगा ?”

“इसलिए, जिन्दगी से शिकायत कैसी. सुख-दुःख, अच्छा-बुरा, प्रसन्नता-अवसाद यह भी नैसर्गिक आविर्भाव ही तो है इस जीवन का. उनसे कैसा मुंह मोड़ना. चाहे पपीहा अपनी गर्दन उठाकर बारिश की राह में उमड़ते बादलों का आह्वान करे, या शुतुरमुर्ग रेत के ढेर में मुंह छिपा ले, और मोर खुले जंगल में अपना नृत्य न भी करे…. बादलों को अगर बरसना होगा, तो जरूर बरसेंगे.”

“खुशियों की कुंजी मानव मन के पास ही तो है. कोई बहाना नहीं चाहिए खुश होने का, जैसे अवसादित होने के लिए अवसरों की कमी नहीं होती. मेरी प्रसन्नता मेरा विश्वास है, मुझे लगता है कि मेरी खुशियाँ जरूर मेरे साथ रहेंगी.”

-आरिणी,

लखनऊ, जुलाई २९, २००४. ८.३२ पी एम.

 

आरिणी आज सवेरे ही गूगल पर आरव के रोग के विषय में सर्च करने के लिए जुटी थी. जो उसने खोजा, उसके अनुसार यह बीमारी १९ वर्ष के आसपास अधिक होती है, और यह भी कि इसके रहते हुए भी व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है. ऐसे जैसे उच्च रक्तचाप के लिए आप नियमित औषधि लेते ही हैं, और अपने हृदय को सामान्य बनाये रखते हैं. डॉक्टर्स की सलाह के अनुसार ऐसे इंसान को लगातार स्नेह और आपका साथ चाहिए. अकेलापन अवसाद को किसी भी सीमा तक बढ़ा सकता है.

 

उसे आरव पर प्यार आ रहा था. वह अभी सो रहा था. और उसको आम लोगों से अलग अच्छी नींद की आवश्यकता थी, यह वह अच्छे से समझ गई थी. औंधे मुंह सोया आरव सच में किसी बच्चे-सा निश्छल लग रहा था.

 

थोड़ी देर टेरेस पर टहलती रही वह. न कोई शिकायत थी उसे किसी से, न कोई अफ़सोस. अच्छे से समझ गई थी वह रोग का मूल. बेहतर शिक्षा का यही तो लाभ है. यदि इसके बावजूद भी हम इंसानी भावनाएं और रिश्तों की कद्र न कर पायें तो अफसोसजनक है, सोचा उसने.

 

कई बार खाली बैठे-बैठे मन में नकारात्मक विचारों का सैलाब भी आता. लगता कि अभी उसने देखा ही क्या है… और आरव. आरव से उसकी पहचान ही कितने दिन पुरानी है. कॉलेज का परिचय... प्रोजेक्ट की मुलाक़ात, रिश्ता, विवाह और अब यह पता चला कि वह किस प्रकार अपनी बीमारी के संग जी रहा है.

 

पर क्या उसके साथ यह एक धोखा नहीं था. स्वयं आरव ने उसको क्यों अँधेरे में रखा… और आरव ही क्यों उसकी मां, पिता और बहन-- चारों में से कोई भी मुझे संकेत कर सकते थे. तब शायद मैं भी इस रिश्ते को और बेहतर ढंग से निभा सकती. पर धोखे की बुनियाद पर बेहतर रिश्तों की नीव रखना तो सरासर बेईमानी है. अगर इस मामले में धोखा दिया, तो न जाने कितने और मामलों में धोखा दे सकते हैं यह लोग. तब एक प्रकार की वितृष्णा-सी होने लगती, और मन अवसाद के साथ संशय के बादलों के बीच विचरित करने लगता. ऐसे में कुछ अच्छा कैसे लग सकता है.

 

आरिणी सोचती कि कैसी दुविधा में डाल दिया ईश्वर तुमने मुझे ! क्या मुझे पल-पल पर परीक्षा देनी होगी, अथवा अपने इस अंतर्द्वंद्व से निकलकर एकबारगी ही मैं कोई कड़ा निर्णय क्यों न ले लूँ. मेरे सामने पूरी जिन्दगी पड़ी है. सलाह देने वाले तो बहुत हैं…कोरी आदर्श की बातें... पर क्या आदर्शवाद का मुखौटा मेरे ही हिस्से में आया है. क्यों नहीं मैं यथार्थ को परख कर एक सुकून भरा निर्णय ले सकती हूँ?

 

पर, दूसरे ही क्षण वह ऐसे नकारात्मक विचारों को सिरे से खारिज कर देती. उसे अफ़सोस होने लगता अपनी उस सोच पर जिससे वह पलायनवादी स्थिति के लिए सोचने पर विवश हुई हो. नहीं..., जो है अब आरव ही तो है. रिश्ते यूँ ही थोड़े बन जाते हैं. उसने भी तो पूरा समय दिया है इन रिश्तों को. फिर वह भी तो उतना ही प्रेम भाव करता है उससे. कोई भी कमी नहीं है. जो है भी वह सिर्फ बीमारी से ही उपजी है. उसका क्या दोष इसमें. ऐसी डोर जो उसके हाथ में ही नहीं, उसके छूट जाने का दोष आरव के माथे कैसे मढने की सोच सकती है वह.

 

जब अधिक सोचने लगती तो उठकर वाश रूम में मुंह पर छींटे मारकर उस नकारात्मक सैलाब को बह जाने देती आरिणी और घर के किसी काम में व्यस्त होने का इरादा बना लेती.

 

वर्तिका उसकी ननद ही नहीं, अच्छी मित्र भी थी. उसके साथ समय बेहतर कटता था. दोनों एक दूसरे के मन से इस तरह जुड़ गयी थी, जैसे बहुत पुरानी सहेली हों. कोई छिपाव नहीं था उन दोनों में. जब भी फ्री होती या तो वह वर्तिका के पास चली जाती, अथवा उसे साथ ले आती.

 

आरव के स्वभाव में पिछले कई दिन से अब ऐसा कोई परिवर्तन नहीं दिखा था, जिससे उसे लगता हो कि वह उसके प्रति कुछ असामान्य व्यवहार दर्शाता हो. यहाँ तक कि वह हल्की-फुल्की मजाक, चुटकुलों और गुनगुनाने में भी आरिणी और वर्तिका का साथ देता था.

००००