तेरा साथ हैं तो मुझे क्या कमी है?
मम्मा! आपका टिफिन, फिर छोड़ दिया ना किचन में,आज फिर आपको कैन्टीन का लंच करना पड़ता, कितनी लापरवाह हैं ना आप! और मुझे कहती हो कि तू भुलक्कड़ है, कूहू ने अपनी माँ जाह्नवी से कहा॥
अरे,मेरी प्यारी बेटी है ना ! मेरा ख्याल रखने के लिए तो मुझे किस बात की चिंता, जाह्नवी बोली।।
हाँ...हाँ..बस..बस अब रहने भी दीजिए, ज्यादा बहाने मत बनाइए,कूहू बोली।।
क्या करूँ बेटा! सुबह से इतने काम होते हैं कि अपना ख्याल रखना भूल जाती हूँ, जाह्नवी बोली।।
इट्स ओके, मम्मा! मैं हूँ ना! कुहू बोली।।
तू है तभी तो मुझे चिन्ता नहीं हैं, जाह्नवी बोली।।
अच्छा! ड्राइवर भइया से कहतीं हूँ कि कार निकालें, कूहू बोली।।
वो तो अच्छा है कि आज स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग है,अगर तुझे जल्दी स्कूल जाना होता तो आज तो मेरा प्रेजेंटेशन गया था समझों, जाह्नवी बोली।।
डोन्ट वरी मम्मा इतना लोड मत लिया करो आप,कूहू बोली।।
लोड कैसे ना लूँ बेटा! कोई और सहारा भी तो नहीं है हमारा,कोई बुजुर्ग होता तो उसके सहारे मैं बेफ्रिक होकर आँफिस का काम करती रहती,तू स्कूल से आ जाती है तो तुझे मेरे आँफिस से आने तक घर में अकेले रहना पड़ता है, जाह्नवी बोली।।
कोई बात नहीं मम्मा! मैं आपकी मजबूरी समझती हूँ, कूहू बोली।।
अच्छा! मुकेश से कह की कार निकाले,जाह्नवी बोली।।
ओ के मम्मा! कूहू बोली।।
यूँ तो कहने के लिए जाह्नवी का बहुत बड़ा परिवार लेकिन सिर्फ़ कहने के लिए,सालों हो गए उसके परिवार ने उससे मुँह मोड़ रखा है वो भी केवल कूहू की वजह से,जाह्नवी बहुत बड़ी कम्पनी में काम करती है, कम्पनी ने ही उसे बँगला और कार दे रखीं है, साथ में सर्वेन्ट क्वार्टर भी है, उसी में मुकेश अपनी बीवी सुशीला के साथ रहता है, सुशीला ही बँगले का सारा काम करती थीं लेकिन इस समय वो गाँव गई है क्योंकि वो माँ बनने वाली है इसलिए इस समय सारे काम का बोझ जाह्नवी के सिर पर आ गया है।।
जाह्नवी जैसे ही दरवाज़े से निकलकर लाँन में आई,देखा तो एक बुजुर्ग महिला लाँन की बेंच पर सोई हुई है,वो थोड़ी थोड़ी काँप रहीं थी,लगता है सारी रात खुले आसमान के नीचे लेटे रहने से उसे ठंड लग गई थीं, तब तक मुकेश और कूहू भी आ गए।।
ये कौन है दीदी,मुकेश ने पूछा।।
पता नहीं, जैसे ही मैं बाहर निकली,मैने इन्हें बेंच पर लेटे देखा,जाह्नवी बोली।।
ठीक है मैं इन्हें जगाता हूँ, मुकेश बोला।।
मुकेश ने जैसे ही उस बुजुर्ग महिला के हाथ को छुआ तो उनका शरीर बुखार से तप रहा था,मुकेश बोला___
दीदी! इनका शरीर तो बहुत गरम है, अब क्या करें?
क्या करें! क्या मतलब है तेरा? कुछ नहीं ,तू इन्हें कार से हाँस्पिटल लेकर जा,मैं आँफिस में फोन कर देती हूँ कि मीटिंग अब शाम तक होगी,मैं और कुहू टैक्सी से पैरेंट्स मीटिंग के लिए स्कूल चले जाते हैं, स्कूल से लौटते समय मैं सीधे हाँस्पिटल आ जाऊँगी, जाह्नवी बोली।।
ठीक है दीदी लेकिन कौन से हाँस्पिटल ले जाऊँ,मुकेश ने पूछा।।
अच्छा तो ऐसा कर हाँस्पिटल मत ले जा ,तू डाँक्टर बत्रा के क्लीनिक ले जा,वो हमारे फैमिली डाक्टर हैं, वो सब सम्भाल लेंगें, मैं उन्हें फोन करके सब बता देती हूँ, जाह्नवी बोली।।
ठीक है दीदी! मुकेश बोला।।
मुकेश उस बूढ़ी महिला को लेकर डाँक्टर बत्रा के क्लीनिक पहुँचा, डाँक्टर बत्रा ने उनका चेकअप करके कहा___
कुछ नहीं, लगता है कोई दिमाग़ी टेंशन है और रातभर खुले में लेटी रहीं शायद इसलिए बुखार हो गया है, मैने इंजेक्शन दे दिया है कुछ देर में आराम लग जाएगा,घबराने वाली बात नहीं हैं और मुकेश से इतना कहकर डाक्टर बत्रा चले गए।।
मुकेश उन बूढ़ी महिला के पास बैठकर जाह्नवी का इन्तज़ार करने लगा,करीब दो घंटे बाद जाह्नवी और कूहू स्कूल से लौटे और उन्होंने आते ही मुकेश से उस बूढ़ी महिला का हाल पूछा, मुकेश से बात करके जाह्नवी डाक्टर बत्रा के केविन में पहुँची और उस बूढ़ी महिला की तबियत के विषय में पूछा, डाक्टर ने वही जवाब दिया जो मुकेश को दिया था और बोले आप उन्हें घर ले जा सकतीं हैं,मैने दवाइयाँ मुकेश को दे दी हैं,मैं कल आपके घर आकर उनका फिर से चेकअप कर लूँगा।।
थैंक्यू,डाक्टर साहब अच्छा! अब मैं उन्हें घर ले जाती हूँ और इतना कहकर जाह्नवी उन बूढ़ी महिला के पास आई ,तब तक उन्हें होश आ चुका था और वो बिस्तर पर बैठी थीं।।
अब आप कैसीं हैं?जाह्नवी ने पूछा।।
अब बेहतर हूँ बेटी! तुम जैसे लोगों से ही दुनिया में अब तक इन्सानियत जिंदा है, बूढ़ी महिला बोली।।
ऐसा नहीं है आँटी जी! ये तो मेरा फ़र्ज था लेकिन आप हमारे घर के लाँन में क्या कर रहीं थीं?जाह्नवी ने पूछा।।
बहुत लम्बी कहानी है, बूढ़ी महिला बोली।।
ठीक है, पहले हम कार में बैठते हैं, उसके बाद आप अपनी बात कहिएगा और मुकेश ने बूढ़ी महिला को सहारा देकर कार मे पहुँचा दिया,
अच्छा, अब बताइए,आँटी जी क्या हुआ था,जाह्नवी ने पूछा।।
बेटी अगर तुम मुझे माँ कहो तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं, बूढ़ी औरत बोली।।
अच्छा तो अब बताओ माँ! क्या हुआ था आपके साथ,जाह्नवी ने फिर से पूछा।।
मेरा नाम श्यामा है, अब तक गाँव में थीं, बेटा अभी छः महीने पहले शहर लिवा लाया,गाँव का घर और पुर्खों की जमीन जायदाद सब बेच दी,लगभग तुम्हारी उम्र का होगा,मैं कब से कह रही थी कि शादी कर ले,लेकिन उसने शादी भी नहीं की,ना जाने कितनी लड़कियों को धोखा दे चुका है, फिर शहर मे उसकी नौकरी लग गई तो यहां चला आया,मुझे वहाँ छोड़कर,उसे अपनी अय्याशी के लिए उसकी तनख्वाह कम पड़ रही थी तो गाँव का सब बेच दिया,कुछ दिन मुझे अपने साथ रखा और अभी एक महीने पहले मुझे वृद्धाश्रम छोड़ आया,वृद्धाश्रम में मेरा जी ना लगता था,वो मुझसे मिलने भी नहीं आता था,उसे देखने का मन कर रहा था,इसलिए कल रात मौका देखकर वृद्धाश्रम से भाग आई,चलते चलते बहुत थक गई थी,प्यास भी लग रही थी,इसलिए तुम्हारे लाँन में जाकर बेंच पर बैठ गई, आँख कब लग गई पता ही नहीं चला,बस यही कहानी है मेरी,श्यामा जी बोलीं।।
ओह.. कोई बात नहीं, जब बेटा ऐसा है तो क्यों जाना उसके पास ,अब आप मेरे साथ रहेंगीं, ये हैं आपकी नातिन कूहू, देख कूहू !तेरी नानी नमस्ते करो इन्हें,कूहू ने नमस्ते की और श्यामा जी ने कुहू के सिर हाथ फेरा,ये बात मुकेश को ना भायी।।
और अकेले मौका देखकर उसने जाह्नवी से कह ही दिया कि दीदी! अन्जानो पर इतनी जल्दी भरोसा नहीं करते।।
जब तू आया था तो तू भी तो अन्जान ही था,मेरे साथ रहते तुझे पाँच साल हो गए ना! तूने तो नहीं दिया ना धोखा और माँ सही कह रहीं हैं, मैने उनकी आँखों में देखा है और भरोसे पर ही तो दुनिया कायम है,जान्ह्वी बोली।।
ठीक है दीदी! जैसा आपको सही लगे,अब मैं जाता हूँ और इतना कहकर मुकेश चला गया।।
श्यामा जी,दो चार दिनों में एकदम स्वस्थ हो गई और घर के बहुत से काम सम्भाल लिए,अब जाह्नवी को कूहू की चिंता भी नहीं रहतीं, आँफिस और घर अब वो ठीक से सम्भाल पा रही थीं, श्यामा जी खाने में रोज कुछ ना कुछ नया बनातीं, जाह्नवी मना भी करती लेकिन वो ना मानतीं,श्यामा जी के आने से जाह्नवी की जिन्द़गी में बहार आ गई थीं, तीनों माँ बेटी खुश़ थे।।
श्यामा जी को जाह्नवी के घर रहते एक साल हो रहे थे,तभी एक दिन बातों बातों में श्याम जी ने पूछ लिया कि बिटिया तुम्हारा सच में कोई नहीं हैं।।
हैं माँ !मेरा भरा पूरा परिवार हैं, मम्मी पापा, दो भाई,दो भाभियाँ और दो भतीजे एक भतीजी, सब हैं, जाह्नवी बोली।।
और ससुराल में कौन कौन हैं?क्या हुआ था कूहू के पापा को, श्यामा जी ने पूछा।।
माँ ! मेरी ससुराल हैं ही नहीं और ना ही कूहू के पापा हैं,जाह्नवी बोली।।
तो ये कूहू, श्यामा जी ने पूछा।।
कूहू! वो भी लम्बी कहानी हैं, अच्छा सुनिए सब बताती हूँ, मैं उन दिनों काँलेज कर चुकी थी,प्राइवेट नौकरी कर रही थी ,साथ साथ और अच्छी ,नौकरी के लिए तैयारी भी कर रही थीं, तभी एक रोज मैं एक कचरें के ढे़र के पास से गुजरी तो एक कार्डबोर्ड बाक्स में से मैने किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनी ,मैने पास जाकर देखा तो कपड़ो में लिपटी हुई एक छोटी सी बच्ची उस बाक्स में थी,मैं उसे लेकर फौरन हाँस्पिटल भागी और डाक्टर को सब बताया, दो दिनों के इलाज के बाद बच्ची ठीक हो गई, लेकिन उस बच्ची से मुझे ममता हो गई और मैने उसे गोद लेने का विचार बनाया, घरवालों ने सख्त मना किया कि बिन ब्याहे तू किसी को गोद नहीं लेगी और अगर इसे गोद लिया तो तुझे हम हमेशा के लिए छोड़ देगें,तुझसे कोई भी रिश्ता नहीं रखेगें, मैने अपना घर छोड़ दिया लेकिन बच्ची नहीं छोड़ी,इसलिए कभी कभी अकेलापन सा महसूस करती हूँ लेकिन जब कूहू का फूल सा हँसता हुआ चेहरा देखती हूँ तो मेरा मन कहता है कि तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी हैं?
बेटी ! तूने तो मुझे रूला ही दिया,सच में अब तुझे देखकर मैं भी कह सकती हूँ कि तेरा साथ हैं तो मुझे क्या कमी है?
समाप्त__
सरोज वर्मा___