चैप्टर 30
सरीसृप से प्रचण्ड द्वंद।
शनिवार, 15 अगस्त। समुद्र अभी भी अपनी उस मनहूसियत की एकरसता को बरकरार रखे हुए था। वही धूसर रंजीत रूप में जिसपर वही शाश्वत चमक था। कहीं से भी ज़मीन नहीं दिख रहा था। जितना हम आगे बढ़ते, क्षितिज हमसे उतना ही पीछे हटता प्रतीत हो रहा था।
मेरा सिर, अभी भी सुस्त और मेरे असाधारण सपनों के प्रभावों से भारी था जिसे मैं अभी तक अपने दिमाग से मिटा नहीं पा रहा था।
प्रोफ़ेसर, जिन्होंने ये सपना नहीं देखा है, वो अपनी चिड़चिड़ाहट और बेहिसाब हास्य में कहीं गुम थे। कम्पास के हर बिंदु पर क्षितिज के निरीक्षण में अपना समय व्यतीत कर रहे थे। अपनी आँखों पर बार-बार अपनी दूरबीन को उतार-चढ़ा रहे थे और जब उन्हें हमारे ठिकाने का कोई सुराग नहीं मिलता, तो वह नेपोलियन जैसे रवैये को अपनाकर बेचैनी से चहलकदमी करते।
मैंने बताया था कि मेरे मौसाजी यानी प्रोफ़ेसर, अपने पुराने वाले अधीर चरित्र में फिर से घुसने की एक अलग प्रवृत्ति रखते हैं, और मैं उनकी इस असहनीय परिस्थिति को बिना लिखे नहीं रह सकता था। मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि उनके इस मानवीय भावना की एक झलक पाने के लिए मुझे खतरे और पीड़ा के सभी कोनों से गुज़रना होगा। अब जब मैं बीमारी से काफी उबर गया था, तो उनके मूल स्वभाव ने जीत हासिल कर ली थी और सब उनके अधीन था।
और पहले से भी ज़्यादा नाराज और चिड़चिड़े होने की उनकी वजह क्या थी? क्या यात्रा को सबसे अनुकूल परिस्थितियों में पूरा नहीं किया गया था? क्या बेड़े रूपी नाव ने सबसे अद्भुत गति के साथ सफर पूरा नहीं किया था?
फिर, क्या बात हो सकती है? एक या दो प्रारंभिक भूमिकाओं के बाद मैंने पूछताछ करने का निर्णय लिया।
"आप असहज लग रहे हैं मौसाजी," मैंने कहा, जब लगभग सौवीं बार उन्होंने अपनी दूरबीन को नीचे रखा और खुद के साथ कुछ बुदबुदाते हुए आगे-पीछे चहलकदमी करने लगे।
"नहीं, मैं असहज नहीं हूँ," उन्होंने सूखे कठोर लहजे में कहा, "किसी भी तरह से नहीं।"
"शायद मुझे अधीर कहना चाहिए था," मैंने अपने लहजे में थोड़ी नरमी बरतते हुए कहा।
"हाँ मुझे भी यही लगता है।"
"और फिर भी हम जिस तेजी से आगे बढ़ रहे हैं शायद ही कोई बेड़ा इस रफ्तार से बढ़ता होगा," मैंने टिप्पणी की।
"क्या फर्क पड़ता है?" मेरे मौसाजी ने भावुक होते हुए कहा, "मैं इस बात से परेशान नहीं हूँ कि हम किस तेजी से बढ़ रहे हैं, मैं परेशान हूँ इस समुद्र के विस्तार से जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी।"
मुझे तब याद आया कि प्रोफ़ेसर, हमारे जाने से पहले, इस भूमिगत महासागर की लंबाई का अनुमान लगाये थे जो कि लगभग तीस लीग के बराबर था। और बिना किसी किनारे को खोजे हम अब तक कम से कम तीन बार उसकी यात्रा कर चुके थे। मुझे अपने मौसाजी के गुस्से का कारण समझ आने लगा।
"हम नीचे नहीं जा रहे हैं।" अचानक प्रोफ़ेसर ने जोर से चीखा।
"हम अपनी महान खोजों के साथ आगे नहीं बढ़ रहे हैं। यह सब समय की बर्बादी है। इतनी दूर मैं घर से किसी खुशी में जश्न के लिए नहीं आया हूँ। इस तालाब पर इस बेड़े रूपी जहाज से मैं परेशान और चिंतित हूँ।"
उन्होंने इस साहसिक यात्रा को खुशी का जश्न और इस महान अंतःसमुद्र को एक तालाब कह दिया!
"परंतु," मैंने तर्क दिया, "यदि हमने महान सैकन्युज़ेम्म द्वारा इंगित मार्ग का अनुसरण किया है, तो हम ग़लत नहीं हो सकते।"
"यही तो सवाल है जैसे महान अमर शेक्सपियर के पास है। क्या हम उस चमत्कारिक ऋषि द्वारा संकेतित मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं? क्या सैकन्युज़ेम्म कभी इस महान पानी के ऊपर आया होगा? यदि उसने ऐसा कुछ किया, तो क्या उसने इसे पार किया होगा? मुझे डर से लगने लगा कि जिस धारा को हमने अपना मार्गर्देशक माना था उसने हमें कहीं ग़लत पहुँचा दिया है।”
"किसी भी हालात में, हम कभी भी यहाँ तक आने पर पछतावा नहीं कर सकते हैं। यह पूरी यात्रा आनंद के लायक है जहाँ बेमिसाल चीजें देखने को मिले हैं।"
"मुझे ज़रा भी परवाह नहीं है कि क्या दिखा या कैसा नज़ारा था। मैं एक उद्देश्य के साथ पृथ्वी के अंदरूनी हिस्से में आया हूँ, और मुझे उस उद्देश्य के पूरे होने से मतलब है। मुझसे किसी भी दृश्यावली या किसी अन्य भावुक कचरे के बारे में बात मत करो।"
इसके बाद मैंने अपनी ज़बान पर काबू करने के लिए सोच लिया, और आगे टिप्पणी किये बिना प्रोफ़ेसर को अपने होंठों को काटने का मौका दे दिया, जब तक कि रक्त नहीं आये।
शाम के छः बजे, हमारे तथाकथित मार्गदर्शक, हैन्स ने अपने साप्ताहिक वेतन के लिए कहा और अपने तीन रिक्स-डॉलर प्राप्त करके, उन्हें सावधानी से अपनी जेब में डाल लिया। वह पूरी तरह से संतुष्ट और तृप्त था।
रविवार, 16 अगस्त। करने के लिए कुछ भी नया नहीं है। पहले जैसा ही मौसम। हवा में एक छोटी सी प्रवृत्ति होती है, वो एक ताज़ा झोंके से सबकुछ तरोताज़ा कर देती है। जब मैं जाग रहा था, मेरा पहला अवलोकन प्रकाश की तीव्रता के संबंध में था। हर दिन मैं डरता रहता था कि कहीं विशिष्ट विद्युतीय क्रम पहले धूमिल होते हुए पूरी तरह से बन्द होकर हमें घने अंधेरे में छोड़ ना दें। हालाँकि, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बेड़े की छाया, इसके मस्तूल और पाल, पानी की सतह पर स्पष्ट रूप से दिखते हैं।
यह अद्भुत समुद्र अपने आप में और हर हाल में अनंत है। इसे भूमध्यसागरीय जैसा व्यापक होना चाहिए या शायद महान अटलांटिक महासागर के जैसा। आखिरकार, इसे ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए?
मेरे मौसाजी ने कई मौकों पर इस गहरे समुद्र में ध्वनि उत्पन्न करने की कोशिश की। उन्होंने हमारे सबसे भारी सब्बल के सूली वाले हिस्से को आखिरी सिरे तक बांध दिया, जैसे उसे अनंत गहराई में उतारना हो। इस नए तरीके से आगे बढ़ने में हमें काफी कठिनाई हो रही थी।
जब अंत में बेड़े की सतह पर सब्बल को घसीटा गया, हैन्स ने उसपर उभरे कुछ विलक्षण निशान की ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया। वो लोहे का टुकड़ा ऐसा लग रहा था जैसे उसे किसी दो बहुत कठोर पदार्थों के बीच कुचला गया हो।
मैंने जिज्ञासु नज़रों से अपने मार्गदर्शक को देखा।
"टैंडर," उसने कहा। निश्चित रूप से मैं कुछ भी समझने में असमर्थ था। मैं अपने मौसाजी की ओर मुड़ गया जो किसी गहन चिंतन में लीन थे। मेरी इच्छा थी कि मैं अपनी श्रद्धा से उन्हें विचलित करूँ। तदनुसार मैं अपने योग्य आइसलैंडर की ओर एक बार और मुड़ गया। हैन्स ने खामोशी से कई बार अपना मुँह को खोलकर कुछ इशारा किया, जैसे कि दाँत से काटना हो और तब मुझे उसका अर्थ समझ में आया।
"दाँत!" मैं मूर्ख के तरह चीखते हुए कहा, क्योंकि मैंने तब तक उस लोहे की पट्टी को अधिक ध्यान से जाँचा।
हाँ। इस मामले को लेकर कोई संदेह नहीं किया जा सकता है। लोहे की पट्टी पर दाँतों के निशान हैं! इस तरह के दाढ़ वालों के जबड़े कैसे होंगे! क्या हम उन अज्ञात प्रजातियों के पास हैं, जो अभी भी इस पानी के विशाल गहराई में मौजूद हैं और जो किसी विशालकाय शार्क से अधिक भयानक, व्हेल की तुलना में अधिक खतरनाक और भारी हैं? मैं अपनी आँखों को उस लोहे की पट्टी पर से हटाने में असमर्थ था, वास्तव में वो आधा कुचला हुआ था!
तब क्या मेरा डरावना और भयानक सपना अब सच होने वाला है?
पूरे दिन मेरे विचार इन अटकलों से जूझ रहे थे, और कुछ घण्टों की नींद होने तक मेरी कल्पना और सोचने समझने वाली शक्ति को भी कुछ देर के लिए शांति मिली।
अन्य रविवारों की तरह, इस दिन हमने आराम करने और ध्यान लगाने में दिन को बिताया।
सोमवार, 17 अगस्त। मैं द्वितीयक काल के उन प्राचीन जानवरों की विशेष प्रवृत्ति को याद कर के महसूस करने की कोशिश कर रहा था जो घोंघे और कड़े खोल वाले समुद्री जीव और मछलियों से पहले स्तनधारियों की प्रजाति से थे। फिर सरीसृपों की पीढ़ी ने पृथ्वी पर सर्वोच्च शासन किया। इन राक्षसी समुद्री प्राणियों ने द्वितीयक काल के समुद्रों में एकछत्र राज किया जिससे जुरा पहाड़ों की रचना हुई। प्रकृति ने उन्हें एक सटीक व्यवस्थापन से संपन्न किया था। कितना विशालकाय उनका रूप था और कितने शक्तिशाली थे!
रेंगने वाली मौजूदा प्रजाति, जिनमें छिपकली, मगरमच्छ और इन जैसे अन्य सरीसृप भी शामिल हैं, आदिकाल में इन्ही की श्रेणियों के सबसे बड़े और दुर्जेय प्राणी इनके ही पूर्वज थे। यदि उस काल में दैत्य होते थे, तो विशालकाय जानवर भी होते थे।
अपने दिमाग में इन भयानक राक्षसों के विचार और रूप को स्मरण कर के ही काँप गया था। किसी भी जीवित मनुष्य ने उन्हें ज़िंदा नहीं देखा था। मनुष्य के अस्तित्व में आने से पहले ही वे पृथ्वी के हजारों वर्ष पहले ही गुम हो गए थे और जब उनके जीवाश्म हड्डियों को चूना पत्थर में खोजा गया, तब फिर से उनके विशाल शारिरिक गठन को समझने के लिए उन्हें पुनः संगठित करने का विचार आया।
मुझे याद है मैंने एक बार हैम्बर्ग के महान संग्रहालय में इन अद्भुत रेंगने वाली प्रजाति में से एक कंकाल को देखा था। वो नाक से लेकर पूँछ तक तीस फीट से कम नहीं था। क्या फिर, मैं जो कि वर्तमान समय में धरती का निवासी हूँ, मेरा इस प्राचीन कालीन समुद्री जानवर के प्रतिनिधि से सामना करना, पहले से मेरी किस्मत में लिखा था? मैं शायद ही इसपर विश्वास कर सकता हूँ; मैं शायद ही इसे सच मान सकता हूँ। और फिर यह लोहे की पट्टी पर शक्तिशाली दाँतों के निशान! क्या उनके बदले आकार से ऐसा नहीं हो सकता है कि काटने वाला प्राणी मगरमच्छ हो?
मेरी आँखें बेचैनी से अंतःसमुद्र के ऊपर किसी भयानक आतंक के लिए घूर रही थी। मुझे उम्मीद है कि किसी भी पल इन राक्षसों में से कोई एक अपनी विशाल गुफा की गहराई में से उठेगा।
मुझे लगता है मेरे कुछ विचारों से योग्य प्रोफ़ेसर भी सहमति रखते हैं, मेरे डर से नहीं; क्योंकि उन्होंने भी चौकस निरीक्षण के बाद, अपनी आँखें तेजी से उस शक्तिशाली और रहस्यमयी महासागर पर गड़ा दी।
"भूमि छोड़ने के लिए कौन सा भूत सवार था।" मैंने सोचा। "जैसे कि इस पानी की गहराई हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हो। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने अपने जलाशय घर के कुछ भयानक राक्षस को परेशान किया होगा और अब शायद हमें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़े।"
सबसे खराब स्तिथि में भी तैयार रहने के लिए चिंतित होते हुए मैंने अपने हथियारों की जांच की, और देखा कि सभी इस्तेमाल की स्तिथि में थे। मौसाजी ने मुझे देखा और मंजूरी देते हुए सिर हिलाया। उनको भी समझ आ गया था कि कोई खतरा हो सकता है।
पहले से ही सतह पर पानी के लहरों से इशारा मिल रहा था कि नीचे कुछ तेज गति में सक्रिय है। खतरा करीब आता है। वह और भी करीब आ जाता है। वो हमें देखते रहने के लिए उकसा रहा था।
मंगलवार, 18 अगस्त। आखिरकार शाम आयी और तब, जब नींद के लिए हमारी पलकें भारी हो चुकी थीं। सही तरीके से कहा जाए तो उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में जितना समय गर्मियों के लिए है उससे भी कम समय की यहाँ रातें हैं। हालाँकि हैन्स अपने पतवार के साथ अचल है। वह कब आराम का एक पल चुराता होगा मैं वास्तव में नहीं कह सकता। मैं उसकी सतर्कता का फायदा उठाकर थोड़ा आराम कर लेता हूँ।
लेकिन दो घंटे के बाद एक भयानक झटके ने मुझे अपनी गहरी नींद से जगाया। हमारा बेड़ा एक ऐसे चट्टान से टकराया जो जलमग्न था। कुछ चमत्कारिक और रहस्यमयी शक्ति द्वारा इसे पानी से बाहर निकाला गया और फिर छत्तीस मीटर की दूरी तय की गई।
"ए, यह क्या है?" मेरे मौसाजी ने चीखना शुरू किया। "क्या हमारा पोतभंग हुआ है या कुछ और?"
हैन्स ने अपना हाथ उठाया और उस तरफ इशारा किया जहाँ लगभग दो सौ गज दूर, एक बड़ा काला ढेर ऊपर-नीचे हो रहा था।
मैंने खौफ से उसे देखा। मेरा सबसे बड़े डर का एहसास हुआ।
"यह एक विशाल राक्षस है!" मैंने छटपटाहट के साथ कहा।
"हाँ।" प्रोफ़ेसर उत्तेजित स्वर में चीखे। "और वहाँ भयानक आकार की एक विशाल समुद्री छिपकली है।"
"और वहाँ थोड़ी दूर में उस भयावह मगरमच्छ को देखो। उसके विकराल जबड़े और उसके राक्षसी दाँतों की पंक्ति को देखो। हा! वह चला गया।"
"एक व्हेल! एक व्हेल!" प्रोफेसर चिल्लाये, "मैं उसके विशाल पंख देख सकता हूँ। देखो, देखो कैसे वह हवा और पानी को उड़ाता है!"
दो तरल स्तंभ जैसे समुद्र के स्तर से ऊपर उठे और एक ऊँचाई तक बढ़े और फिर उसी समुद्र में ऐसे गिरे कि वो भयावह जगह गूँज गया। हम इस वास्तविकता से भयभीत थे, इन समुद्री राक्षसों के इस समूह को देखकर आश्चर्यचकित और आतंकित होते हुए भी खड़े होकर देख रहे थे, जो मेरे सपने की तुलना में अत्यधिक डरावना था। वे अलौकिक आकार के थे; उनके समूह का सबसे छोटे प्राणी भी आसानी से और अपने एक ही काट से हमारे बेड़ा सहित हमें भी नष्ट कर सकता था।
हैन्स उस पतवार को जब्त करना चाह रहा था जो उसके हाथ से उड़ गया था और वह उसे मजबूती से पकड़ कर स्थिर कर देना चाहता था; लेकिन जितनी फुर्ति से उसने ऐसा किया है उतनी ही तेजी से वह खुद को सायला से चैरीबडिस तक उड़ता देख सकता था। अनुवात की दिशा में एक कछुआ है जो लगभग चालीस फीट चौड़ा है, और एक काफी लंबा साँप है जिसका सिर काफी बड़ा और गूढ़ है और पानी पर रह-रहकर ऊपर की ओर दिखता है।
अब देखना है कि हम किस रास्ते पर चलेंगे क्योंकि अभी तो हमारे लिए उड़ान भरना असंभव है। वो भयानक सरीसृप हमारी तरफ मुड़े और अपने आक्रामक तरीके से हमारे बेड़ा को एक बार में घुमाकर मोड़ दिया। उन्होंने हमारे पोत के चारों ओर गहरे घेरे की एक श्रृंखला बनाई। मैंने हताशा में अपनी राइफल उठा ली। लेकिन जिनके शरीर पर तराजू जैसे कवच हों उनपर किसी राइफल की गोली का क्या प्रभाव हो सकता है?
डर की वजह से हम अभी भी जड़ बने हुए थे। वो हमारे निकट आ रहे थे और बढ़ते जा रहे थे। हमारा भाग्य निश्चित, भयभीत और भयानक प्रतीत हो रहा था। एक तरफ पराक्रमी मगरमच्छ, दूसरी ओर महान समुद्री नाग। समुद्र के बाकी विलक्षण भयानक जीव लहरों के नीचे डुबकी लगाकर गायब हो गए थे!
मैं अब हर हाल में गोली दाग कर उसका एक असर देखना चाहता हूँ। हालाँकि, हैन्स ने एक संकेत द्वारा मुझे रोकने की कोशिश की। दोनो हिंसक और भयंकर राक्षस हमारे बेड़ा से पचास मीटर की दूरी से गुजरे, और फिर एक-दूसरे के पीछे दौड़े - वो अपने रोष और गुस्से की वजह से हमें नहीं देख रहे थे।
मुकाबला शुरू हुआ। हम उन दोनों विलक्षण राक्षसों के हर वार को स्पष्ट रूप से देख पा रहे थे।
लेकिन मेरी कल्पना को उत्साहित करने के लिए अन्य भयंकर व्हेल, छिपकली और कछुए भी उस संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रकट हुए। मैंने स्पष्ट रूप से उन्हें हर क्षण में देखा। मैंने इसके लिए आइसलैंडर को इशारा भी किया। लेकिन उसने केवल अपना सिर हिलाया।
"तवा," उसने कहा।
"क्या? उसने केवल दो कहा। निश्चित रूप से वह गलत है।" मैं आश्चर्य से एक स्वर में बड़बड़ाया।
"वह काफी सही है," मेरे मौसाजी ने शांत और दार्शनिक होते हुए जवाब दिया और अपने टेलीस्कोप से उस भयानक द्वंद्व को ध्यानपूर्वक देखते हुए ऐसे कहा जैसे वह किसी व्याख्यान कक्ष में हों।
"ऐसे कैसे हो सकता है?"
"हाँ, ऐसा ही है। इन भयावह राक्षसों में से एक की सूँस जैसी नाक, छिपकली के जैसा सिर, मगरमच्छ के जैसे दाँत हैं, और इसी वजह से हमें धोखा हुआ है। प्राचीन काल के रेंगने वाले जीवों में से यह सबसे खतरनाक सरीसृप है, विश्व-प्रसिद्ध मीनसरीसृप या विशाल मछलीरूपी छिपकली।"
"और दूसरा?"
"दूसरा एक राक्षसी सर्प है, जो कछुए के जैसे कड़े ढाल के नीचे छुपा है जिसका प्रबल प्रतिद्वंद्वी, भयानक प्लिसिओसोरस या समुद्री मगरमच्छ है।"
हैन्स काफी सही था। केवल दो समुद्री राक्षसों ने समुद्र की सतह को परेशान कर दिया था!
अंत में ये नश्वर आँखें उस महान प्राचीन महासागर के दोनों सरीसृपों पर टिक गयीं! मैं मीनसरीसृप की ज्वलंत लाल आँखों को देख रहा था जो किसी आदमी के सिर से बड़ा, या उससे भी ज़्यादा बड़ा था। प्रकृति ने अपने विशाल कोष में से इस चमत्कारिक समुद्री जीव को असीम शक्ति वाला प्रकाशीय उपकरण उपहार में दिया था, जो पानी की भारी परतों के दबाव का सामना करने में सक्षम था जब यह पानी की गहराई में आमतौर पर अपने भोजन में जुटा होता होगा। कुछ लेखकों द्वारा इसे सही मायनों में छिपकली की जाति का व्हेल कहा गया है, क्योंकि यह समुद्र के राजा की तरह ही आकार में काफी बड़ा और गति में भी काफी तेज है। इसकी लंबाई सौ फीट से कम नहीं है और जब वह अपनी विलक्षण पूंछ को पानी से बाहर निकालता है तो उसके कमर के अंदाज़ मिल जाता है। उसके जबड़े भयानक आकार के और शक्तिशाली हैं और सबसे अच्छे जानकार प्रकृतिवादियों के अनुसार इनके दाँत एक सौ बियासी से कम नहीं होते।
अन्य शक्तिशाली प्लेसियोसॉरस, एक बेलनाकार सूँड़ वाला सर्प था जिसकी पूँछ छोटी और ठिगनी थी और रोम शहर में लंबे नाव को खेने वाले लाग्गियों के जैसे उसके पंख थे।
इसका पूरा शरीर एक कवच या खोल से ढंका होता है, और इसकी गर्दन, हंस की तरह लचीली होती है जो लहरों से तीस फीट की ऊँचाई पर घूमती है, एक मांसल स्तंभ जैसा!
इन जानवरों ने एक दूसरे पर अकारण रोष के साथ हमला किया था। इस तरह के द्वंद पहले कभी इन नश्वर आँखों ने नहीं देखा था और हम में से जिसने भी इसे देखा, उसके लिए यह एक सपने में मायाजाल की तरह दिखाई देने जैसा था। उन्होंने पानी के पहाड़ खड़े किए, जो लहर के ऊपर फव्वारों के रूप में धराशायी हो गए, जो कि पहले ही लहरों से लड़कर इधर-उधर बहक रहे थे। करीब बीसीयों बार ऐसा लगा जैसे लहरों से टकराकर हम सिर के बल गिरकर सब खोने वाले हैं। उस शक्तिशाली गुफा की गगनचुंबी ग्रेनाइटयुक्त छत को हिला देने वाला भयावह फुफकार दिखा जिसने हमारे दिलों को दहला दिया था। दोनों भयानक लड़ाके एक दूसरे में गुत्थमगुत्थ थे। मैं दोनों में से किसी भी एक को नहीं पहचान पा रहा था। फिर भी मुकाबला हमेशा के लिए नहीं टिकता; और चाहे जो भी विजेता बन गया हो, हमारे लिए शोक का विषय था।
एक घंटा, दो घंटे और फिर तीन घंटे बीत गये बिना किसी निर्णायक परिणाम के। उनका संघर्ष उसी घातक लगन के साथ जारी रहा, लेकिन बिना किसी स्पष्ट परिणाम के। दोनों घातक विरोधी एक बार फिर से भिड़े और इस बार हमारे बेड़ा से दूर चले गए। एक या दो बार हमें लगा कि वो हमें छोड़कर कहीं आगे निकल जाएँगे, लेकिन इसके बजाय वो और ज़्यादा निकट आ गए थे।
हम किसी भी पल के इशारे से उन पर गोली चलाने के लिए तैयार होकर बेड़ा पर डटे हुए थे, हालाँकि उन्हें चोट पहुँचाने या डराने की कोशिश बेकार ही होनी थी। फिर भी हम बिना किसी संघर्ष के हार नहीं मानने वाले थे।
अचानक से मीनसरीसृप और प्लेसियोसॉरस लहरों के नीचे से गायब हो गए, जिससे उनके पीछे समुद्र के बीच में एक भंवर बन गया था। उस भंवर द्वारा हम काफी नीचे तक खींचे गए थे!
कुछ भी देखने से पहले तक कई मिनट बीत चुके थे। क्या यह अद्भुत मुकाबला समुद्र की गहराई में समाप्त होने वाला था? क्या दर्शकों के बिना ही इस भयानक नाटक को अंजाम देना था?
हमारे लिए यह कहना असंभव था।
अचानक से कुछ ही दूरी पर, एक विशालकाय पिंड पानी से बाहर निकला - विशालकाय प्लेसियोसॉरस का सिर। ये भयानक राक्षस अब मृत्यु के लिए घायल अवस्था में था। मैं उसके विशाल शरीर के अब कुछ भी नहीं देख सकता था। जो कुछ भी पहचाना जा सकता था, वह उसकी सर्प जैसी गर्दन थी, जिसे उसने मरते-मरते बचा लिया था। उसने पानी को इस तरह से मारा जैसे कि एक विशालकाय कोड़ा हो, और फिर ऐसे छटपटाया जैसे एक कीड़े को दो भागों में काट दिया गया हो। सभी दिशाओं में और काफी दूर तक पानी की तेज फुहार फैल गयी। इसकी एक बड़ी धार हमारे बेड़े पर भी बह गयी और लगभग हमें अंधा कर दिया था। लेकिन जल्द ही जानवर का अंत और भी निकट आने लगा; उसकी हरकतें सुस्त पड़ गईं; उसका अंतर्विरोध लगभग समाप्त हो गया; और अंत में शक्तिशाली सांप का शरीर एक शांत, मृत ढेर की तरह पानी की सतह पर निष्क्रिय था।
क्या मीनसरीसृप समुद्र के अंदर अपनी गुफा में आराम करने चला गया या फिर वापस हमें नष्ट करने के लिए आएगा?
इस सवाल का जवाब नहीं मिला। और हमें साँस लेने का समय मिल गया था।
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