क्लीनचिट - 17 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्लीनचिट - 17

अंक - सत्रह/१७

स्वाति का दिमाग अब आलोक का निशान पाने की दिशा की ओर निरंतर कार्यरत रहने लगा। कहीं से भी एक तिनके के बराबर आलोक के अस्तित्व की हिंट मिल जाए उसी आशा में करीब स्वाति ने अदिती के सभी क्लोज़ फ्रेंड्स के साथ आलोक के नाम का उल्लेख करते हुए जांच कर ली लेकिन हर एक के पास से एक जैसा एकाक्षरी प्रत्युत्तर मिला, 'ना'

उसके बाद निराधा की एक हद पार करने के बाद स्वाति ने एकदम से अपने आप को ही कोसने का मन होते ही उसे लगा कि, अगर उस रात को डिनर पर उसने थोड़ी ज़िद करके अदिती को आलोक के बारे में पूछा होता तो आज शायद....
इतना सोचते ही स्वाति एक अत्यंत अद्वितीय मजबूरी जैसी लघुताग्रंथी की पीड़ा से पीड़ित होने लगी।

ऐसे ही ऐसे दिन पर दिन गुजरते गुजरते २७ दिन पूरे हो गए फिर भी अदिती की स्थिति में ज़रा भी फर्क पड़ने के कोई भी आसार नहीं दिख रहे थे। स्वाति अदिती के बेड के पास उसका हाथ पकड़कर बैठी थी कि तभी स्वाति के मोबाइल में उसकी एम. बी. बी. एस. की कॉलेज मेट औैर बहुत ही खास से भी कुछ विशेष ऐसी फ्रेंड संजना का बैंगलुरू से कॉल आया।
'हार्इ.. स्वाति।'
'ओह,,, संजू, हेल्लो... व्हाट ए सरप्राइज़ यार, कैसी हो तुम?'
'आई एम फाइन डियर। हाऊ आर यू?'
'क्या बताऊं संजू? बस पिछले २७ दिन औैर रात से ऐसा लग रहा है कि कब अदिती के होंठ हिले औैर हम सब की सांसें ठीक से चले। दुनिया जैसे थम सी गई है। जैसे जैसे ट्रीटमेंट की साइलेंट पीड़ा से अदिती भेदित हो रही है वैसे वैसे हमारी सांसें रुक सी जाती है। तुम बोलो संजू क्या कह रही हो? कैसी चल रही है एम. डी. की प्रिपरेशन?'
'वो सब बातें बाद में पहले तुम मुझे येे बताओ कि अदिती के फ्यूचर के बारे में डॉक्टर क्या प्रिडिक्शन कर रहे हैं?'
'नथिंग यार.. ओनली वेइट एण्ड वॉच, पापा ने अपने ऑस्ट्रेलिया ग्रुप के कॉन्टैक्ट्स से वहां के एक्सपर्ट के पास से भी ओपिनियन जान लिए। उनका भी वहीं सेम रिप्लाइ वेइट एण्ड वॉच। बोलो लेकिन तुमने क्यूं आज अचानक याद किया वाे बोलो?'

'सॉरी यार इस सिचुएशन में तुम्हें डिस्टर्ब करना नहीं चाहती लेकिन..' संजना बोली।

'ओये.. संजू अरे यार तुम कब से मेरे साथ इतनी फॉर्मल होने लगी?
तुम मेरी संजू ही है न? मिस यू ए लॉट डार्लिंग, बट यू नो ऑल अवर सिचुएशन। राइट नाउ आई नीड यू संजू।'
इतना बोलते ही स्वाति का स्वर थोड़ा नरम पड़ गया।

'स्वाति, बात ही ऐसी है कि इस स्थिति में भी तुम्हारे पास शेयर करे बिना नहीं रह सकती। औैर शायद शेयर नहीं करूंगी तो लाइफ टाइम मुझे तुम्हारी गालियां सुननी पड़ेगी वो भी श्योर है।'

अरे बोल यार संजना ऐसी तो क्या बात है कि तुम इतनी कन्फ्यूज़्ड है?'

'स्वाति माय इंगेजमेंट हेज़ बीन डिसाइडेड ऑन नेक्स्ट वीक।'
'ओ.. तेरी तो यार..'इतना बोलते ही स्वाति की आंखें भर आईं..
'हेय संजना आर यू श्योर?'
'हा, स्वाति पिछले १५ दिनों से दोनों फ़ैमिली के बीच कन्वर्सेशन चल रहा था, समीर तीन दिन पहले ही न्यूज़ीलैंड से आया एण्ड आफ्टर ए शॉर्ट मीटिंग वी बोथ डिसाइडेड टु बीकम ईच अधर्स लाइफ पार्टनर।'

'ओए.. ओए.. संजना बात एकदम इंगेजमेंट तक पहुंच गई तब तक तुमने मुझे एक मैसेज तक नहीं किया? आई एम नॉट एग्री। मुझे संबंध मंजूर नहीं। तुमने मेरी परमिशन ली? तुम मुझे बिना पूछे वॉशरूम भी नहीं जाती थी याद है न...
औैर आज... आई लिटरली किल यू। एण्ड...'
बस इतना बोलते ही स्वाति का गला भर आया। खुशी से रोते हुए वाे आगे कुछ न बोल सकी।

शांत होते हुए थोड़ी देर बाद स्वाति बोली,
'लिसन, संजना अभी मॉम, डैड थोड़ी ही देर में हॉस्पिटल आ रहे हैं तब मैं उनके साथ डिस्कस करके तुम्हें मिलने के लिए कुछ सोचती हूं। यू कांट बिलीव माय डार्लिंग हाऊ मच आई एक्साइटेड एण्ड हैप्पी। मैं तुम्हें घंटे भर बाद कॉल करती हूं। ओ. के.'
'मिस यू डार्लिंग। बाय एंड टेक केर।'

एक ओर अदिती की लंबे समय की चुप्पी औैर आज संजना ने स्वाति की हालत को ध्यान में रखकर लाइफ के मेजर डिसीज़न औैर जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी की बात भ्रम की स्थिति में संजना ने स्वाति के सामने इस तरह रखनी पड़ी कि स्वाति दोनों तरफ़ के दुःख के बीच अपने आपको किसी को उसकी फ़र्ज़ चूक से अन्याय न हो इस तरह संतुलित रखना था।

करीब आधे घंटे की प्रतीक्षा के बाद विक्रम को अकेले आते देखकर आश्चर्य से स्वाति ने पूछा,
'पापा, मम्मी क्यूं नहीं आई? कहां है?'

'वाे मंदिर गई है, कह रही थी कि ब्राह्मणों को बुलाकर अदिती के स्वाथ्य के लिए कोई पूजा की विधि करवानी है। आ जायेगी थोड़ी देर में बोलो कोई ज़रूरी काम था?'

'पापा संजना का कॉल था हाफ़ अवर पहले। पापा नेक्स्ट वीक उसकी इंगेजमेंट है। मुझे उसके पास जानेकी बहुत ईच्छा है लेकिन अदिती को इस हालत में छोड़कर जाने का मेरा मन नहीं मानता। संजना ने येे गुड न्यूज़ भी मुझे संकोच के साथ शेयर किया। पापा अगर अदिती...' आगे स्वाति बोल नहीं पाई।

'प्लीज़ स्वाति, पहले तुम अपनी बात पूरी करो..'विक्रम ने कहा।

'मैं ऐसा सोच रही हूं पापा कि अगर अदिती होश में आए औैर उसे पता चले कि, इस स्थिति में मैं उसे छोड़कर बैंगलुरू चली गई हूं, तो अदिती मेरे बारे में क्या सोचेगी? औैर नहीं जाऊंगी तो संजना....?'

'बेटा स्वाति, अपने दृष्टिकोण औैर विचारसशक्ति से तुम अपने जगह पर सही हो। संबंधों की कसौटी हमेशा संकट समय में होती है बेटा। औैर बात रही अदिती या संजना की तो वो दोनों तुम्हें तुम से भी ज्यादा अच्छी तरह पहचानती है। मेरी मानो तो तुम्हें संजना के पास जाना चाहिए। औैर मान लो कि अगर अदिती होश में आ गई तो तुम्हें बैंगलुरू से यहां आने मेें कितनी देर लगेगी?'

स्वाति विक्रम के गले लग कर रोते रोते बोली..'यू आर ग्रेट। लव यू पापा।'
'लव यू बेटा। रिलैक्स होकर जाओ। मम्मी आ जाए तो बाद में तुम दोनों आराम से संजना के साथ बात कर लेना औैर संजना औैर उसके मम्मी, पापा को मेरा नमस्ते बोलना।'
ऐसा विक्रम बोले।
देवयानी के मंदिर आने के बाद स्वाति ने संजना के साथ हुई बात मम्मी को बताते हुए पूछा कि,
'मम्मी, अब तुम बताओ मुझे क्या करना चाहिए?'
'तुम्हारे पापा का निर्णय सही है, यू शुड गो टु संजना। डॉन्ट वरी स्वाति। तुम यहां की बिलकुल चिंता किए बिना जा सकती हो।'

उसके बाद स्वाति ने संजना को सरप्राइज़ देने का सोचा औैर किसी भी तरह की सूचना या मैसेज दिए बिना बैंगलुरू की फ्लाइट से नेक्स्ट डे लंच टाइम तक संजना के बंगले पर जाकर सीधा डोरबेल बजाते जब संजना ने ही डोर ओपन किया तो... संजना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

'ओह माय गॉड.. स्वाति येे सिर्फ़ तुम ही कर सकती हो।बार तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से तुम मेरी जान हो यार। एक तुम्हारी गैरहाजरी से मेरी सब समृद्धि फीकी लग रही थी। बस अब मुझे मेरी दुनिया मिल गई।'

संजना इतना बोली फिर दोनों गले लगकर रोने लगे।

संजना बेहद खुश थी। इतनी कठिन स्थिति में स्वाति को अपने पास बुलाने के लिए हिचक रही थी, लेकिन इतनी बैचेनी भरी स्थिति में भी अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अदिती से दूर होते ही मन ही मन अपराधभाव से पीड़ित स्वाति जैसे अपने मन पर बोझ लेकर घूम रही थी फिर भी उस बात की उसने संजना को भनक तक नहीं लगने दी। औैर संजना अपने पक्ष में ऐसा सोच रही थी कि वो स्वाति का येे ऋण किस तरह उतारेगी?'

दोनों पूरा दिन शॉपिंग के लिए बहुत घूमे। संजना का टोटली शॉपिंग स्वाति की मर्ज़ी के मुताबिक था। स्वाति संजना की हर एक टेस्ट औैर चॉइस से वाकिफ थी।

आज संजना औैर स्वाति ने बाहर डिनर लेने का प्लानिंग किया था तो संजना ने अपने फेवरेट रेस्टोरेंट में पहले से ही बुक करवायेे हुए टेबल पर आकर बैठे। दोनों को एक दूसरे की चॉइस का पता होने से संजना ने ऑर्डर देते देते कहा कि..'अरे यार स्वाति तुम्हें एक खास बात बोलने की तो भूल ही जा रही हूं।'
'हां, बोलो कौनसी बात?' स्वाति ने पूछा।
स्वाति, तुम्हारे साथ आखिर में जब बात हुई थी तब तुमने ऐसा कहा था कि अदिती की अभी की हालत देखते हुए कोई भी डॉक्टर इज़ अनेबल टु डू एनी प्रिडिक्शन अबाउट हर फ्यूचर सिचुएशन, राइट?'
'हां, संजना अभी तक तो ऐसा ही है। मैंने औैर पापा ने इंडिया के धी टॉप मोस्ट सीनियर एण्ड एक्सपीरियंस्ड डॉक्टरों के ओपिनियन के साथ साथ इंटरनेट पर भी लेटेस्ट इनफॉरमेशन सर्च कर ली। कुछ भी बाकी नहीं रखा यार। मम्मा भी कहीं कितनी मन्नतें औैर व्रत कर रही है अदि के लिए। लेकिन...'

'प्लीज़ स्वाति, आई डॉन्ट वांट टु हर्ट यू बाय टॉकिंग घिस टॉपिक बट..
मुझे एक विचार आ रहा है कि मेरे पापा के बहुत ही निजी मित्र से भी क्लोज़ ऐसा एक डॉक्टर कपल है। हम एक बार उनका ओपिनियन ले ले तो कैसा?
'संजना तुमने सोचा होगा तो कुछ सोच समझकर ही येे बात मुझे कही होगी। नॉट बेड आइडिया।'
'एक काम करते है, मैं अभी कॉल करके उनकी अपॉइंटमेंट कन्फर्म करने की कोशिश करती हूं। डिनर करते करते डॉक्टर आंटी को कॉल लगाया।
'हेल्लो..'
'हेल्लो आंटी। जय श्री कृष्ण, संजना बोल रही हूं। संजना पारेख।'
'जय श्री कृष्ण। ओह.. माय डार्लिंग व्हाट ए सरपाइज अनबिलिवेबल, हाऊ आर यू माय डियर?'
'आंटी एकदम ठीक, आप कैसे हो, औैर अंकल?'
'आई एम अब्सोल्यूटली फीट एण्ड फाइन बेटा औैर तुम्हारे अंकल को तो मेरे रियासत में क्या तकलीफ़ हो सकती है? हा.. हा... हा'
'हां वो भी सही है आंटी। औैर हां, आंटी कल की रींग सेरिमनी का इनविटेशन कार्ड आपको मिला की नहीं?'
'हां, संजना वो कल ही तुम्हारे पापा खुद आकर दे गए थे औैर कार्ड नहीं न भी मिला होता तो भी हम आ ही जाते। तुम हमारी बेटी जैसी हाे तो कैसे भूल सकते है।'
'आंटी मुझे आप से औैर अंकल से मिलना है तो कब की अप्वाइंटमेंट मिल सकती है?'
'अरे बेटा ये तुम कैसा मज़ाक कर रही हो? तुम्हारे लिए अप्वाइंटमेंट? आर यू मेड?'
'लेकिन आंटी आप दोनों व्यस्त रहते हाे इसलिए ऐसा सोचा कि..'
'प्लीज़ संजना नाउ डॉन्ट बी फॉर्मल। तुम्हें जब भी ठीक लगे तब रात के ९ बजे के बाद एनी टाईम घर पर आ सकती हो औैर हा सुनो डिनर यहां ही करना है इसी शर्त पर ही आना है समझी।'
'ओ. के. आंटी, अंकल बात कर सके ऐसा हाे तो उन्हें फ़ोन दीजिए प्लीज़ मुझे बात करनी है।'
'ओ.. श्योर।'
'हेल्लो'
'हेल्लो अंकल जय श्री कृष्ण, संजना'
'हां, बोलो बेटा कैसी हो?'
'एकदम फाईन।'
'बैंगलुरू छोड़कर अब न्यूजीलैंड भाग जाने का प्लान है ऐसा?'
'हा. हा.. हा.. फ़िलहाल तो कुछ ऐसा ही सोचा है अंकल।'
'कल आप दोनों बिना भूले आ रहे हैं रींग सेरिमनी में ओ.के.'
'यो यस बेटा तुम्हारा अवसर हाे औैर हम भूल जाएं ऐसा कभी होता होगा?'
'थैंक यू अंकल बाय गुड नाईट।'
'गुड नाईट बेटा।'

'स्वाति हमेें परसों रात को अंकल के घर पर ही डिनर लेना है इट्स डन।'

नेक्स्ट डे
अत्यंत चमक दमक औैर भव्य सुशोभन से सजे हुए शहर के प्रेस्टीजियस फाइव स्टार होटल के बड़े स्पेशल ऑकेशन हॉल में शहर के सभी टॉप मोस्ट बड़े अफ़सर, राजकारणी, मल्टीमिलेनियर बिजनेस मैन, इंडस्ट्रियलिस्ट, सेलिब्रिटीज, पुलिस अधिकारी औैर दोस्तों औैर सभी रिलेटिव्स की उपस्थिति में संजना औैर समीर की रींग सेरेमनी एक यादगार शाम की सबके आशीर्वाद, शुभेच्छा के साथ साथ एक ग्रांड डिनर के खतम होने के बाद सबने बिदा ली।

रात को संजना ने बेडरूम में सोने से पहले स्वाति से कहा,
'स्वाति कल हमें आंटी से मिलने जाना है इसलिए तुम एक काम करना कि अपने पापा के साथ बात करके अदिती के लेटेस्ट रिपोर्ट्स मेल से मंगवा लेना तो हमें डॉक्टर् के साथ डिटेल में डिस्कसन करने का आइडिया आए औैर उन्हें भी केस स्टडी करने में इजी रहे औैर पॉसिबल हो तो कंसल्टिंग डॉक्टर का कॉन्टेक्ट नंबर भी ले लेना। ओ.के. माय डार्लिंग राइट नाउ आई एम फीलिंग टू मच स्लीपी, देन गुड नाईट,. बाय।'
'गुड नाईट संजू।'

दूसरे दिन ठीक रात के ९ बजे संजना औैर स्वाति आंटी के वहां पहुंच गए।
अंकल औैर आंटी दोनों ने संजना का स्वागत करते हुए कहा..
'वेलकम वेलकम संजना।
कितने समय बाद तुम हमारे घर आई हो तुम्हें याद है? आफ्टर सो लॉन्ग टाईम।'
'यस, आंटी लेकिन एम. बी. बी. एस. कंपलीट किया औैर अब एम. डी. की प्रिपरेशन इसलिए टाईम बहुत ही कम मिलता है। आंटी येे मेरी बहुत ही खास औैर निजी फ्रेंड से भी ज्यादा मेरी सिस्टर कहूं तो भी गलत नहीं होगा... स्वाति फ्रॉम मुंबई।'
दोनों हाथ जोड़कर स्वाति बोली,
'नमस्ते अंकल, नमस्ते आंटी।'
'आओ आओ वेलकम।' अंकल बोले।

चारों ड्रॉईंग रूम में बैठे बाद में संजना की रींग सेरेमनी औैर समीर के फैमिली और संजना औैर समीर के फ्यूचर प्लान के बारे में अलग अलग मुद्दों पर औपचारिक बातों का दौर औैर डिनर के बाद संजना को लगा कि अब असली मुद्दे की बात करने का सही समय है इसलिए..

संजना बोली, 'अंकल, आंटी एक खास बात करने के लिए आज मैं औैर स्वाति आपके पास आए हैैं।'
'हां बोलो संजना क्या बात है?'आंटी ने थोड़ा आश्चर्य के साथ पूछा।
'वो बात स्वाति ही आपको कहेगी।'
ऐसा बोलकर संजना ने स्वाति की ओर इशारा करते ही..

स्वाति ने सब से पहले कम शब्दों में अपना देकर अदिती की दुर्घटना की बात कही, बाद में सभी लेटेस्ट रिपोर्ट्स के मेल दिखाए।

अंकल ने स्वाति को पूछा,
'क्या नाम है तुम्हारी बहन का?'
'अदिती, अदिती मजुमदार।'
'फ्रॉम?'
'मुंबई।'
'तुम्हारे पापा रिटायर्ड आर्मी मैन हैं?'
'ओ यस। लेकिन अंकल आपको कैसे पता चला?'
'अदिती ने साइकोलॉजी में मास्टर्स किया है औैर किसी एन. जी. ओ. के साथ भी जुडी हुई है?'
'यस यस यस .. लेकिन अंकल येे सब आपको किस तरह...'
स्वाति औैर संजना दोनों अति आश्चर्य के साथ एक दूसरे की ओर देखते रहे।

'अदिती ने कभी किसी आलोक नाम के व्यक्ति का ज़िक्र किया था?'

अब स्वाति की हार्ट बिट्स अनियंत्रित गति मेें थी।
फ़िर भी बोली..'ओह माय गॉड। लेकिन.. अंकल आप येे सब..'

उसके बाद स्वाति ने अपने औैर अदिती के बीच आलोक के नाम का ज़िक्र ही हुआ था उसी वार्तालाप का अंश कहकर सुनाने के बाद अंत में ऑपरेशन टेबल पर सिर्फ़ 'आलोक' लिखे हुए शब्द के उस कागज़ की बात कही।

'लेकिन अंकल प्लीज़ प्लीज़ अब आप ज्यादा सस्पेंस क्रिएट मत कीजिए। आई कांट कंट्रोल माइसेल्फ। उस आलोक को ढूंढने के लिए हमने कुछ भी बाकी नहीं रखा लेकिन..'

'औैर आप लोगों की जानकारी के लिए बता दूं कि.. उस आलोक ने भी कुछ भी बाकी नहीं रखा..' अंकल बोले।

'यानि.. यानि कि उस आलोक को आप पहचानते हैं? कहां है वो? कौन है वाे? प्लीज़ अंकल।'

अंकल ने आंटी की ओर देखा.. दोनों थोड़ी देर चुप रहे। उन दोनों को देखकर स्वाति औैर संजना भी सोच में पड़ गए की येे क्या चल रहा है? कुछ समझ नहीं आ रहा है।

'स्वाति बेटा अब मैं जो कुछ भी कहूं वो एकदम ठंडे दिमाग से सुनो उसके बाद मैं तुम्हारे सभी सवालों के जवाब दूंगा।'

'आलोक, आलोक देसाई वो मेरा ही पेशेंट है।'

उसके बाद शेखर ने आलोक औैर अदिती के बारे में शुरू से लेकर अंत तक की बातें कही थी वो सभी बातें स्वाति को बताने के बाद अंकल बोले..

'आज वो सिर्फ़ अदिती की एक शर्त को न्याय देने की खातिर अपना सब कुछ खो बैठा है। औैर अब...' अभी अंकल आगे कुछ बोले उससे पहले तो..

स्वाति का रोना काबू बाहर का था। अब स्वाति को संभालना काफ़ी मुश्किल था। आंटी ने स्वाति को गले लगाकर शांत करने की कोशिश करी, संजना भी अंकल की बात सुनकर स्तब्ध हो गई। थोड़ी देर के लिए सभी चुप हो गए। आंटी ने स्वाति को पानी पिलाकर तसल्ली देकर शांत करने की कोशिश करी।

अपने आप को संभालते हुए स्वाति बोली,
'आंटी येे कुदरत भी कैसे कैसे खेल खेलती है? हम सब ऊपर वाले के हाथ की सिर्फ़ कठपुतली से ज़्यादा कुछ भी नहीं है ऐसा सुना था लेकिन साक्षात अनुभव से उस बात की पुष्टि भी हो गई। लेकिन अंकल अब क्या....?'

'स्वाति बेटा सब बातें मेरी समझ में आ गई लेकिन.. अभी तुम्हारी एक बात अभी भी मेरे गले नहीं उतरी। तुम्हारी सब बातों के साथ उस एक बात की कड़ी ठीक से नहीं बैठती।'

'कौनसी बात अंकल?'

'तुम ऐसा कह रही हो कि पिछले एक महीने से अदिती वहां मुंबई हॉस्पिटल में कोमा की सिचुएशन में है। तो इस तरफ़ आलोक क्यूं ऐसा कह रहा है कि उसने अदिती को यहां बैंगलुरू में एक बार नहीं लेकिन दो बार देखा है? वो किस तरह संभव है? अभी भी कुछ रहस्य बरकरार है। पूरी बात में कहीं कोई एक कड़ी छूट रही है।'

येे सुनकर स्वाति औैर संजना स्माइल देकर एक दूसरे के सामने देखने लगी। येे देखकर अंकल बोले,
'अब मुझे लग रहा है कि तुम दोनों कोई नया सस्पेंस या सरप्राइज़ क्रिएट करने जा रही हो।'
'ना., ना.. अंकल उससे पहले हम कुदरत की शतरंज की बिछाई गई चाल समझ लेते हैं, उसके बाद तय करते हैं कि.. सरप्राइज़ है या सस्पेंस?

'मतलब क्या है? मैं कुछ समझा नहीं?'

स्वाति ने अपने मोबाइल की गैलरी मेें से इमेज सर्च करके अंकल को दिखाते हुए कहा..

'येे देखिए औैर अब आप ही सोचकर बताइए कि येे सस्पेंस है या सरप्राइज़?'

इमेज देखकर थोड़ी देर के लिए तो अंकल भी सकते में आ गए। अंकल के हावभाव देखकर आंटी ने इमेज देखने के लिए मोबाइल अपने हाथ में लेते ही वो भी एकदम दंग रह गई।

'अब आपको समझ में आ गया होगा अंकल आलोक ने दो बार यहां अदिती को बैंगलुरू में देखा था वाे बात १००% सही है लेकिन वो अदिती नहीं, मैं थी स्वाति। हम दोनों जुड़वा बहनें हैं। वी आर ट्वींस। आलोक तो क्या कोई भी व्यक्ति इवन हमारे एकदम क्लोज़ है वो भी कई बार हम दोनों को पहचानने में गलती कर जाते हैं।'
अब अंकल चक्कर खा गए।

आगे अगले अंक में.....


© विजय रावल

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