तूफान के बाद Rama Sharma Manavi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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तूफान के बाद

इंसान की फितरत होती है जब तक चोट नहीं खाता, तब तक वह न समझना चाहता है, न सम्भलना।और जब समझ आता है तो सब कुछ बर्बाद हो हाथ से निकल चुका होता है।
यही हुआ था अमित के साथ।अच्छा प्यारा सा हंसता खेलता परिवार था उसका, अच्छी सी पत्नी, दो प्यारे बच्चे, एक बेटा एवं एक बेटी।मां-पिता के साथ रहते थे वे, क्योंकि पास के शहर में ही वह एक प्राइवेट फेक्ट्री में सुपरवाइजर था,दो घंटे की दूरी थी,शनिवार को आ जाता एवं सोमवार की सुबह लौट जाता।पिता बड़े पद वाले सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे, अतः बड़ा सा मकान बनवा लिया था, दो हिस्से में किराएदार थे,एक में वे रहते थे।मकान मुख्य सड़क पर था अतः 4 दुकानें किराए पर उठी हुई थीं।
बड़ी विवाहिता बहन थी,जो तीज त्योहारों पर आ जाती थी।घर में शुरू से मां का वर्चस्व रहा था, विवाह के बाद आम युवती की भांति उसकी पत्नी नीता भी पति के साथ अकेले रहना चाहती थी किन्तु मां ने स्पष्ट रूप से साथ भेजने से मना कर दिया था कि पास में ही तो जॉब है, यहां इतना बड़ा घर है, किराए में पैसे बर्बाद करने की जरूरत नहीं है।चाहता तो अमित भी था किंतु मां का विरोध करने का साहस उनमें नहीं था, अतः मन मारकर उन्होंने समझौता कर लिया था।
बीतते समय के साथ दो बच्चे उनकी जिंदगी में शामिल हो गए।इधर अकेले रहते हुए दोस्तों के सोहबत में अमित को शराब पीने की आदत पड़ गई, जो कभी कभी से रोजाना में बदल गई।एक बुरी आदत अपने संग और बुराइयों को जोड़ लेती है।एक बार दोस्तों के उकसाने पर रेड लाइट एरिया में भी हो आया।इन सबका परिणाम यह हुआ कि जहां हर शनिवार को घर भागने की पड़ती थी, अब वह दोस्तों की महफ़िल में गुजरती थी।नीता, मां-पिता से ओवर ड्यूटी का बहाना बना देता।
पति की बढ़ती दूरी से नीता परेशान रहने लगी।मुस्कुरा कर हर जिम्मेदारी निभाने वाली नीता चिड़चिड़ी होती जा रही थी।उसे भय सताने लगा था कि अमित कहीं किसी अन्य स्त्री के चक्कर में तो नहीं पड़ गया है।परिणामस्वरूप अक्सर उनके मध्य फोन पर भी विवाद हो जाता था, जब अमित घर आता तो बार बार कम आने का कारण पूछती,और अन्ततः झगड़ा बढ़ जाता।सास भी सदैव नीता को ही भला-बुरा कहतीं।बच्चे भी सहमे से रहते थे।अमित को बाहर की दुनिया इतनी रास आ गई थी, घर में मन ही नहीं लगता था।
जब पिछली बार अमित घर आया तो विवाद होने पर शराब के नशे में नीता की बुरी तरह पिटाई कर दी, क्रोध और अपमान से तिलमिलाई नीता ने कहा कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह आत्महत्या कर लेगी।थोड़ी देर रोने धोने के बाद वह शांत हो गई।लेकिन एक बार हाथ उठाने के बाद अमित शेर हो गया, अब उसने नीता को नियंत्रित करने का यह तरीका अपना लिया।
सही कहा गया है विनाश काले विपरीत बुद्धि।इस बार की लड़ाई में अमित ने कह दिया कि केवल मरने की धमकी देती हो मर क्यों नहीं जाती।क्रोध के आवेग में नीता ने चूहे मारने की दवा खा लिया।आनन फानन में हॉस्पिटल ले जाया गया, त्वरित चिकित्सा सुविधा मिलने के कारण जान तो बच गई, लेकिन नीता होश में नहीं आई,वह कोमा में चली गई।एक माह बाद डॉक्टरों ने घर भेज दिया क्योंकि कोमा में जाने पर कब वापस आए मरीज पता नहीं होता।अब नीता न जिंदा थी,न मृत्यु को प्राप्त होकर मुक्ति प्राप्त कर सकी।
आत्महत्या के मामले को दबाने में लाखों रुपए खर्च हो गए।हॉस्पिटल में एक माह का लाखों का बिल बना।नीता की देखभाल के लिए एक फुल टाइम की नर्स रखनी पड़ी।फिर भी अमित को घर पर ही रहना पड़ा देखरेख के लिए, परिणामतः नोकरी भी जाती रही।पिता के पेंशन एवं मकान दुकान के किराए से घर तो जैसे तैसे चल जाता था, किन्तु समाज में भी अच्छी-खासी बदनामी हो गई थी।
जमां पूंजी समाप्त हो गई थी।घर में जहां खुशियों का डेरा था, मनहुंसियत ने स्थाई घर बना लिया था।देखते देखते एक बसा हुआ परिवार उजड़ गया, शेष रह गया तूफान गुजरने के बाद कि बर्बादी।
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