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भारत और इंड़िया (व्यंग्य )

वो अक्सर आता और एक ही बात करता सर मोबाईल चार्ज कर लॅूं ? मै उसे ऐसा करने देता । एक दिन मैने उससे पूछा ‘‘यार तुम मेरे यहाॅ मोबाईल चार्ज करने ही आते हो क्या’’ ? उसने कहा ‘‘हां’’ मैने उससे पूछा ‘‘क्यों....... क्यों भाई कारण क्या है ?’’ वो बोला ‘‘सर.....सर हमारे यहाॅं बिजली नही है ।’’ मै आवाक रह गया । सोचने लगा इतना विकास फिर भी कुछ जगह ऐसी है जहाॅं आज भी बिजली नहीं है । मैनें उससे युं ही पूछा ’’कहाँ रहते हो ?’’ तो मुस्कुराते हुए बोला ’’सर........सर......... भारत में ।’’ उसका वाक्य ‘‘सर भारत में’’ मेरे दिमाग को छेद कर जैसे पार हो गया। वो सही कह रहा था विकास कि हवा इंडिया में है वहाँ तो यह हवा अभी पहुँच भी नही पाई जहाॅं असली भारत रहता है । भारत आज भी बस से उतर कर अपने गाँवों तक पैदल ही जाता है । अक्सर तो उसके आवागमन हेतु पक्की तो क्या कच्ची सड़के भी नहीं होती । भारत अपने गाँव पगडंडियों पर चल कर नदी नाले पार करता हुआ पहुँचता है । ये और बात है कि जब चुनाव होते है तो कुछ लोग इन्हीं नदी नालो को पार करके विकास के नाम पर वोट मांगने इस भारत के पास पहुंच ही जाते है । भारत अभी भी वही खेतों और जंगलों में मेहनत करता हुआ पाया जाता है । उधर बहुत दूर इंडिया में इसी भारत के विकास की जब योजनाएँ बन रही होती है तो फोर लेन, मेट्रो और बुलट ट्रेन पर रूक जाती है । विकास भारत का होने की जगह इंडिया का होता जाता है । सुना है कि इंडिया में कही शौचालय की सुरक्षा हेतु कार्ड को चाभी का रूप दिया गया है । इससे केवल कार्डधारी व्यक्ति ही उस शौचालय का उपयोग कर सकेगा । यहाँ भारत में आज भी सुबह-सबेरे युद्व के मैदान सा दृश्य गाँव के बाहर झाडि़यों में आम है । कोई इस झाड़ी के पीछे बैठा है तो कोई उस पेड़ के पीछे । एक और भारत है जो इंडिया के पैर पर पैर रखकर चलना चाहता है । वो महानगरीय झुग्गीयों में निवास करता है । वो सुबह-सुबह पेट को दबाकर सार्वजनिक शौचालय की लम्बी लाईन में अपनी बारी के आने का इंतेजार करता है । कभी बारी आती है और कभी इतनी देर हो जाती है कि उसे सार्वजनिक नल पर मजबूरी में स्नान करना पड़ता है । अभी-अभी टी.वी पर देखा भारत में किसी गाँव में लोग अपनी लड़कियाँ नहीं ब्याहना चाहते जिसके चलते उस गाँव के लड़के कुंवारे रह जाते है । कारण बहुत छोटा सा है । इस गाँव में आज तक पानी की उपयुक्त व्यवस्था नही हो पाई है । यहाॅ के लोंग बहुत दूर से मेहनत करके पानी को घरों तक पहुंचाते है । इधर इंडिया मे एक समारोह के दौरान मंत्री जी की टेबल पर पानी की बोतल न होने के कारण एक अधिकारी को तबादला झेलना पड़ता है । न जाने कितने बांध बने, कितने तालाब और कितनी सिंचाई परियोजना लेकिन भारत आज तक प्यासा क्यो रहा ? अब भारत प्यासा है तो भी क्या ? चलो आपने बहुत हल्ला मचा दिया। सब को ये भी दिखा दिया कि भारत अभी भी प्यासा है । इन्हें तो ऐसी खबरों में भी राजनीति कि गंध आने लगती है । बस कुछ पार्टी के कार्यकर्ता जमा करो, पार्टी के बैनर वगैरह बनाओ और कुछ बोतल पानी लेंकर भारत के पास चलो । ध्यान रहे प्रचार जरूर करना ताकि सारा इंडिया जाने कि हमने भारत की प्यास बुझाई है किसी और पार्टी ने नहीं । ऐसा भी नही कि इंडिया में भारत नही बसता । यहाँ भी ईमान की बात करने वाला, मेहनतकश और गरीबी मध्यम वर्ग में भारत बसता है । ये ऐसा भारत है जो अपने दिल में इंडिया बनने के सपने देखता है । उसके सपने, सपने ही रह जाते है जब उसकी झुग्गी, खेत और जमीन पर विकास के नाम पर बहु मंजिला इमारतें बनती है और वो इस विकास की आश में सड़क पर आ जाता है। भारत आज भी उन्हीं सरकारी स्कूलों में पढ़ता है जिनमें शिक्षक, शिक्षक कम बाबू, चपरासी और बावर्ची अधिक हो गया है । भारत उन्ही शिक्षकों से पढ़ता है जिन्हें इंडिया की नजरों में नकारा माना जाता है । भारत के स्कूल में आज भी पाँच क्लास पढ़ाने के लिये एक ही शिक्षक कई जगह देखा जा सकता है । उसे अब वे गुरूजी नहीं मारते जिनके बारे में उसके पिताजी बताया करते थे कि ‘‘गुरूजी के मारने से ही मै पढ़ पाया हॅूं।’’ यहाँँ इंडिया में पहली कक्षा से भी पूर्व की कक्षा में प्रवेश हेतु इतना पैसा लोग देने को तैयार है जितनी भारत की शायद वार्षिक आय भी न हो । भारत को देखना हो तो आपको आम रेलवे स्टेशनों पर पुड़ी-सब्जी खरीदता हुआ मिल जाएगा । वो ट्रेन आने के पहले वहाँ खड़ा होगा जहाँ सामान्य डिब्बा आकर रूकता है । फिर उस डिब्बे में कितनी भी भीड़ हो सवार अवश्य होगा । यहाॅ सामान रखने की जगह से लेकर सीट के नीचे तक सब जगह आपको भारत अपनी जगह लेता दिखेगा । आवश्यकता हो तो शौचालय के अंदर और ट्रेनो की छत पर भी सफर करने में उसे कठिनाई नहीं होती । वो देखिये चार कुलियों से सामान उठवाकर ए.सी.डिब्बे के सामने आराम से इंडिया खड़ा है । इंडिया को और अधिक देखना हो तो हवाई अड्डो पर जरूर घूम आईये । तीज त्यौहारों और उत्सव, मेलो में मन मसौस कर या खोमचो के ठेले लगाता भारत । वहीं बिना कीमत देखे बेशुमार खरीदी करता इण्डिया । जाति, धर्म और मतों के नाम पर सड़कों पर उतरता भारत । जब भारत दंगो और हिंसक घटनाओं में दम तोड रहा होता है तब इण्डिया अपनी अगली योजनाओं को अंजाम देने में लगा होता है । वैसे इण्डिया हमेशा ही भारत को सिखाने में लगा रहता है । इण्डिया उस भारत को जीवन जीने का तरीका, रहने, उठने, बैठने और बात करने का तरीका सिखाना चाहता है जो अपने खास अंदाज में यह सब करता है । दोनों एक दूसरे के दुश्मन तो नही है परंतु भारत को अक्सर लगता है इण्डिया ने उसका हक मारा है । पर इण्डिया को ऐसा लगता है कि उसके पास आज भी वे सुविधाएँ नहीं है जिसका वो हकदार है । न जाने ये दोनों कब साथ चलेंगे ? न जाने कब भारत तक मूलभूत सुविधा और इंडिया को सभी सुविधाएँ प्राप्त होगी ? यदि इण्डिया भारत का हाथ बिना किसी लोभ, लालच और लालसा के थाम ले तो समझ लीजिये प्रगति का सूर्य उदय हो गया ।

आलोक मिश्रा मनमोजी


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