भाग- 8
बंद कमरे में बेड पर लेटी लिली ने अपनी नजरें सामने दीवार पर सटाई हुई थी।कोरोना के कारण शरीर में बिल्कुल भी जान नहीं थी। कोरोना के ये दिन लिली के लिए बहुत कष्ट दायक साबित हो रहे थे। वह चाहकर भी अपने परिवार वालों से नहीं मिल पा रही थी। दूसरी तरफ पिता शेखर कुमार को भी कोविड हो जाने के कारण उनकी चिंता भी लिली को मन ही मन सता रही थी।
तभी पीपीई किट पहने डॉक्टर अंदर कमरे में प्रवेश करते है, तो लिली अपनी आंखें दरवाजे की तरफ फेर लेती है। साथ में आई नर्स लिली का टेंपरेचर मापती है।
"ओह, डॉक्टर इनका फीवर तो 101° आ रहा है।" - नर्स पास खड़े डॉक्टर से कहती है।
"तुम्हें फीवर के अलावा कोरोना के और कौनसे सिंप्टम्स महसूस हो रहे है लिली। क्या सांस लेने में कुछ तकलीफ है या फिर कुछ खाँसी महसूस हो रही है।" - टेंपरेचर देखने के बाद डॉक्टर लिली से पूछते हैं।
यह आवाज सुनते ही अचानक से लिली का दिल तेजी से धड़कने लगता है। उसके मस्तिष्क में चल रहे सारे ख्यालात सहसा शिथिल पड़ जाते है। उसे ऐसा लगता है मानो वह जिसे बरसों से ढूंढ रही थी, उसकी यादों को रोज अपने में महसूस कर रही थी, उसे वह आज सामने से आकर पुकार रहा हो। जब भी उसके मुंह से लिली नाम सुनती है, तो उसकी वाणी की मधुरता में अपने नाम के सहारे खो जाना चाहती है।
"क्या सच में मैं आज अपनी मंजिल तक पहुंच पाई हूँ या आज फिर से मेरे मन ने मेरे साथ धोखा किया है।आखिर कब तक मैं उसे उसके होने के भ्रम में ढूंढती रहूंगी। वह मैं ही तो थी जो उसे बिना कुछ बताए छोड़कर चली आई थी। लेकिन बरसों बाद आज मुझे उसकी बोली की मिठास का एहसास हुआ है। यह झूठ तो नहीं हो सकता है। लेकिन इस पीपीई किट के कारण तो मैं इसको ठीक से पहचान भी नहीं पा रही हूँ, और तो और इससे कुछ पूछ भी तो नहीं सकती हूँ । प्लीज देवी माँ मेरी आंखें जिसे हर जगह तलाशती हो आज उसे मुझसे मिलवा देना। आज मेरे साथ कोई छलावा ना हो पाए। मुझ पर दया करना माँ दया करना।"
लिली अपनी आँखे बंद करते हुए देवी माँ से अरदास करती है।
"यह लीजिए डॉक्टर अनुराग इंजेक्शन"
नर्स के मुख से यह शब्द सुनते ही लिली डॉक्टर अनुराग की तरफ देखने लगती है। लिली के हृदय के हर कोने में अनुराग का नाम गूंज उठता है। और दिल की बात को जुबा तक आते देर नहीं लगती है। अभी तक उसकी हृदय पटल पर अंकित अनुराग का नाम कब उसकी जिह्वा तक आ जाता है, उसे खुद भी पता नहीं चलता है। अनुराग, अनुराग कहते हुए लिली की आंखों से आंसुओ की नदियाँ बहने लगती है।
"मैंने तुम्हें पहचान लिया अनुराग। तुम मेरे अनुराग होना जो मेरी खुशियों के लिए कुछ भी कर सकता है। आज देवी माँ ने मेरी पुकार सुन ली। उन्होंने मुझे तुम से मिलवा दिया । आज मैं सच में बहुत खुश हूँ अनुराग। अनुराग तुम मुझे देख क्यों नहीं रहे हो। मैं तुम्हारी लिली हूँ, देखो। मुझसे इतनी नाराजगी अनुराग। मैं तुम्हें नहीं पहचान पाई लेकिन तुम तो मुझे पहचान गए थे ना और फिर भी तुमने मुझे एक बार भी नहीं पुकारा ऐसा क्यों अनुराग।"
- कहते हुए लिली अनुराग को देखने लगती है।
"देखो लिली मुझे अपनी ड्यूटी निभाने दो। मैं यहां एक डॉक्टर हूँ और तुम एक पेशेंट। इसीलिए मुझे तुम्हारा इलाज करने दो। यह सब बातें हम बाद में भी कर सकते है। लो यह कुछ दवाइयां है, इन्हें तुम टाइम पर खा लेना। मैं हर दो घंटे में तुम्हें देखने के लिए आता रहूंगा। नर्स इन्हें सभी दवाइयों का शेडयूल समझा देना।"
यह कहकर डॉक्टर अनुराग वहाँ से चल पड़ते है।
"अनुराग तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो। रुक जाओ अनुराग मेरे लिए।" - कहते हुए लिली फफक- फफक कर रोने लगती है।
जिसका वह इतने वर्षों से इंतजार कर रही थी आज वही उससे मुंह मोड़ कर चला गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आज वह अपनी किस्मत पर खुश होए या तरस करें, क्योंकि एक तरफ उसे अनुराग तो मिल गया था, लेकिन वह चाहकर भी उससे अपने दिल की बात नहीं कह पाई। नर्स द्वारा दी गई दवाइयां खाने के बाद लिली सोने का प्रयास तो करती है, लेकिन आज उसे कहा नींद आने वाली थी। उसके दिमाग में तो केवल अनुराग का ही विचार घूम रहा था।
तभी मोबाइल की रिंग बजती है। लिली कॉल रिसीव करती है, तो लिली के फोन उठाते ही माँ कंचन बोल पड़ती है-
" बेटा लिली कैसी है तू मेरे बच्चे। तुम्हारी और शेखर बाबू की बहुत फिक्र होती है। माजी तो पूरे दिन बस मंदिर में ही बैठी रहती है और भगवान से तुम्हारे जल्दी स्वस्थ हो जाने की कामना करती है। तू इतनी चुप क्यों है बेटे। तबीयत ज्यादा खराब है क्या।"
"नहीं, नहीं मम्मा ऐसा कुछ भी नहीं है। मेरी तबीयत में अब सुधार है। मैंने दवा भी टाइम पर खाई है। कहते हुए लिली अचानक से शांत हो जाती है और मन ही मन सोचने लगती है कि क्या मामा को बता देना चाहिए कि मैं आज अनुराग से मिली और वही मेरा इलाज कर रहा है। वैसे भी मैंने आज तक मम्मी से कुछ नहीं छुपाया, तो यह कैसे ना बताऊं। मुझे यह बता देना चाहिए।"
सोचते हुए लिली मन ही मन बुदबुदाती है।
"मम्मा मुझे आपको कुछ बताना है।" - लिली अपनी माँ कंचन से कहती है।
"क्या बताना है मेरे बच्चे, बताओ ना।"
"मम्मा आज मैंने अनुराग को देखा और वह तो डॉक्टर भी बन गया है और आपको पता है मम्मा यहाँ मेरा डॉक्टर कौन है। अनुराग, अनुराग ही तो है मेरा डॉक्टर मम्मा।" लिली खिलखिलाते हुए बोलती है।
"अच्छा बेटा, अचानक इतने सालों बाद अनुराग का आना बड़ा अजीब- सा लग रहा है। बेटा एक बात मैं तुमसे कहूं तुम अभी अपने पापा से कुछ मत कहना। वह बेवजह टेंशन लेंगे।"
"ठीक है मम्मा आप जैसा कहती हैं मैं वैसा ही करूंगी।" -कहते हुए लिली फोन रख देती है।
शरीर का ताप अब कम होता जा रहा था। अनुराग ने लिली का इस कोरोना संक्रमण के वक्त में बहुत साथ दिया। जब भी लिली के मन में इस वायरस के प्रति खौफ़ पैदा होता, तो वह उसे हिम्मत बंधाता और उसे बहुत जल्दी स्वस्थ हो जाने का आश्वासन देता। कोरोना के लगभग 72 घंटे बीत जाने के बाद आज लिली का कोरोना टेस्ट होने वाला था। शेखर कुमार की रिपोर्ट भी आने ही वाली थी। इसीलिए लिली के प्रार्थनाओ का दौर चल रहा था।
तभी अंदर कमरे में अनुराग नर्स के साथ प्रवेश करता है और लिली से कहता है- "लिली आज तुम्हारा पहला कोरोना टेस्ट है। तुम्हारी तबीयत में सुधार देखकर तो मुझे पक्का यकीन है कि आज तो तुम्हारी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आ ही जाएगी। चलो लिली अपना सैंपल दो।"
अनुराग लिली की कोरोना जाँच करता हैऔर लिली सैम्पल लेकर जाती है।
लिली मैं आशा करता हूँ कि मैं इस बार तुम्हारी कोरोना रिपोर्ट की नेगेटिव वाली सूचना लेकर आऊं।और अंकल के भी जल्द ही हेल्दी होने की प्रेयर करूंगा।कहते हुए अनुराग कमरे से बाहर की तरफ गुजरता है।
अनुराग के मन में अपने लिए अभी भी इतनी फिक्र देखकर लिली के मन को असीम शांति की अनुभूति होती है।
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