Corona - Ek prem kahaani - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

कोरोना - एक प्रेम कहानी - 1

भाग- 1

अचानक से खिड़की की तरफ से आई बॉल के कारण टेबल पर रखा पानी का गिलास टूट जाता है। पास ही सोफे पर बैठी लिली, जो अपना प्रोजेक्ट बनाने में व्यस्त थी, गिलास के टूटने की आवाज सुनकर भौहें चढ़ाते हुए उठ खड़ी होती है और खिड़की से नीचे की तरफ झांकती है।

खिड़की के ठीक नीचे कुछ लड़के हाथ में बैट लिए खड़े हुए थे। सभी की नजरें खिड़की पर सटी हुई थी।

तभी लिली अपनी आंखें निकालती हुई बोल पड़ती है - "तुम लोग ये आंखे फाड़- फाड़ कर क्या देखे जा रहे हो। आज तुम्हें कोई बॉल नहीं मिलेगी।"

"क्या यार लिली बॉल दे ना। तू हमेशा इतना गुस्सा क्यों करती है।"

"बिल्कुल नहीं, बिल्कुल नहीं। मैंने तुम लोगों से कितनी बार कहा है, अगर तुम्हें खेलना ही है, तो कहीं और जाकर खेलो मेरी खिड़की के पास ही खेलने की क्या जरूरत है। तुम्हारी इस बॉल की वजह से रोज मेरे कमरे की कोई ना कोई चीज टूट जाती है।"

"अरे यार लिली टेंशन क्यों लेती है। एक दिन हम सब मिलकर तेरी सारी टूटी हुई चीजों का हिसाब चुका देंगे फिर तो तू खुश होगी ना। चल ला बॉल दे अब।"

"एक बार से समझ नहीं आता है मैं बॉल नहीं दूंगी, नहीं दूंगी।"

यह कहते हुए लिली कमरे की खिड़की को झटककर बंद कर लेती है। और पुनः अपना प्रोजेक्ट बनाने में व्यस्त हो जाती है। लेकिन 5 मिनट बाद ही कोई खिड़की को जोर से खटखटाता है। लिली एक बार फिर प्रोजेक्ट बनाते हुए रुक जाती है और मन ही मन बुदबुदाती है-

"ये खिड़की पर कौन हो सकता है। पहले तो कभी किसी ने इस तरह खिड़की नहीं खटखटाई।"

 

यह सोचते हुए लिली आगे बढ़ती है और खिड़की को धीरे से खोलती है जैसे खिड़की खुलती है लिली चीख पड़ती है

"अनुराग तुम, तुम यहाँ खिड़की पर क्या कर रहे हो?"

 

"क्या कर रहा हूँ मतलब, ऑफकोर्स तुमसे मिलने आया हूँ।"

 

"आर यू मैड अनुराग अगर तुम्हें कोई इस तरह आते देख लेता तो क्या होता। यूँ नो अनुराग मुझे ना कभी-कभी तो समझ ही नहीं आता है कि तुम क्या- क्या करते हो।"

 

"ओ लिली, प्लीज रिलैक्स। देखो मेरा मन किया तुमसे मिलने का तो मैं पाइप से चढ़कर ऊपर आ गया, लेकिन तुम हो कि कब से............।"

"ओके बायदवे पहले तुम अंदर आओ।"

अनुराग कमरे में प्रवेश करता है कमरे में बॉल से टूटे हुए गिलास के टुकड़े जमीन में बिखरे हुए थे। एक लाल रंग की बॉल पलंग के पास वाले कोने में पड़ी हुई थी। सोफे के इर्द-गिर्द पेन पेंसिल और बहुत से सामान फैल रहे थे। यह सब देखकर अनुराग की हंसी छूट पड़ती है।

 

लिली अनुराग को आश्चर्य भरी नजरों से देखती हुई पूछ बैठती है- "ये तुम हंस क्यों रहे हो अनुराग?"

 

नहीं लिली कुछ नहीं बस वो तो कमरे की ऐसी हालत देखकर मैं तो अपनी हंसी रोक नहीं पाया। आई एम रियली सॉरी लिली ...........।"

 

"बाइदवे कमरे का यह हाल कैसे हुआ" - अनुराग लिली से चुटकी लेते हुए पूछ बैठता है।

 

"मैं क्या बताऊं तुम्हें अनुराग ये कॉलोनी के लड़कों का रोज क्रिकेट खेलने के कारण मेरे कमरे का यह हाल

 

हुआ है। इनकी बॉल रोज मेरे कमरे का कुछ ना कुछ सामान तोड़ देती है। आज तो मैंने सोच लिया है कुछ भी हो जाए मैं इनको इनकी बॉल वापस नहीं लौटाऊंगी।"

 

"यार लिली मै क्या कहता हूँ कि तुम्हें इनकी बॉल लौटा देनी चाहिए और तुम्हें क्या लगता है कि तुम इनकी बॉल नहीं लौटाओगी तो क्या यह बॉल खेलना बंद कर देंगे। ऐसा तो ये बिल्कुल नहीं कर सकते है।"

 

"ओह तो अब समझी मैं तुम यहाँ मुझसे मिलने नहीं आए बल्कि तुम तो अपने उन दोस्तों की तरफदारी करने आए हो।"

 

"नहीं, नहीं ऐसा नहीं है लिली।"

 

"बिल्कुल ऐसा ही है अनुराग। चलो निकलो यहाँ से बाहर जाओ, बाहर जाओ बस।"

 

तभी माँ की आवाज सुनकर लिली उठ कर बैठ जाती है और सकपकाई- सी इधर- उधर देखती है। मानो किसी

 

ने शान्त बहती हुई जलधारा में पत्थर फेंक कर उसकी ध्यान मुद्रा को नष्ट कर दिया हो। वह सिर को स्पर्श करती है तो सिर बहुत भारी- सा नजर आता है।

 

सामने खड़ी माँ अपनी लिली के माथे पर हाथ फेरते हुए पूछती है- "बेटा लिली क्या हुआ कोई बुरा सपना देखा क्या?"

 

"नहीं-नहीं माँ।"

 

"तो फिर बेटा नींद में किसे बार-बार तुम कह रही थी कि बाहर जाओ, बाहर जाओ।"

 

माँ का प्रश्न सुनकर लिली निरूत्तर हो जाती है। उसे आभास होता है कि अभी चंद मिनटों पहले जिस सपने में वह किसी तारे की भांति चमक रही थी। उसमें अचानक से विस्फोट होता है और वह दूर नीचे जमीन में आकर गिर जाता है। उसे अपने सपने की वे यादें भी उस तारें के राख के कणों के समान प्रतीत होती है।

 

तभी माँ लिली के कंधे को जोर से हिलाती हुई पूछती है- "लिली तेरी तबीयत तो ठीक है ना बेटा। अगर कुछ तकलीफ है, तो मैं अभी डॉक्टर को बुला देती हूँ ।"

 

लिली माँ को आलिंगन में भरते हुए कहती है -

" नहीं मेरी प्यारी माँ कुछ परेशानी नहीं है। आप इतना ज्यादा मत सोचिए और मुझे जल्दी से चाय पिला दीजिए तब तक मैं फ्रेश होकर आती हूँ।"

 

"ठीक है बाबा, तू जल्दी आ मै तेरे लिए चाय बनाती हूँ " कहते हुए माँ कंचन नीचे की ओर जाती है।

 

लिली मोबाइल में अनुराग की फोटो को निहारते हुए और बाथरूम की ओर बढ़ती है।

 

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