कोरोना - एक प्रेम कहानी - 2 Neha Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना - एक प्रेम कहानी - 2

भाग - 2

नीचे लिविंग रूम में सोफे पर बैठे हुए शेखर कुमार अखबार पढ़ रहे थे। लिविंग रूम के बगल में ही बने मंदिर में बैठकर दादी अपनी रामायण की चौपाइयाँ पढ़ रही थी। लिली सीढ़ियों से नीचे उतर कर आती है और शेखर कुमार के गले लगते हुए कहती है -

"गुड मॉर्निंग पापा"

पिता शेखर कुमार अखबार से ध्यान हटा कर उसे एक तरफ रख देते है और बेटी लिली को बड़े प्यार से अपने पास बिठा लेते है। पिता- पुत्री का यह तालमेल देखते ही बनता था। लिली पिता से पूछती है- "पापा अब आपकी तबीयत कैसी है? क्या आपने अपने सुबह वाली गोली खाई या फिर आज भी आप हमेशा की तरह भूल गए।"

 

"नहीं मेरे बच्चे मैंने अपनी दवाई एकदम टाइम पर खाई है और खाता भी क्यों नहीं तुम्हारी डांट ने मुझे रोज वक्त पर दवा खाना जो सिखा दिया है।"

 

"क्या पापा आप भी ना कुछ भी बोलते है। वैसे मुझे याद आया कि आज तो हमें डॉक्टर त्रिपाठी के यहां आपके चेकअप करवाने के लिए भी जाना था ना।"

 

"हाँ बेटा लिली इसलिए आज मैं वक्त से पहले ही तैयार हो गया हूँ।"

 

"पापा आप ना अभी सिर्फ कॉफी ही पी लेना नाश्ता हम चेकअप करवाने के बाद ही करेंगे। डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया था कि उन्हें कुछ चेकअप खाली पेट करने है

इसीलिए।"

 

तभी कंचन चाय की ट्रे लेकर आती है और ट्रे को टेबल पर रखते हुए कहती है- "अरे भाई आखिर क्या बातचीत हो रही है पापा बेटी में जरा हमें भी तो कोई बताएं।"

 

"नहीं मम्मा कुछ नहीं बस मैं तो पापा को याद दिला रही थी कि आज हमें डॉक्टर त्रिपाठी के यहां चेकअप करवाने जाना है।"

 

"देखा शेखर बाबू कितने भाग्यशाली है आप जो मेरी लिली जैसी बेटी मिली है आपको। बस पूरे दिन आप ही की देखभाल में लगी रहती है।"

 

"हां, तो आखिर बेटी भी तो किसकी है ना कंचन" पिता शेखर कुमार लिली की पीठ थपथपाते हुए बोल पड़ते है।

 

"हां बिल्कुल शेखर बाबू सही ही तो कह रहे है आप। लीजिये यह पकड़िये आपकी कॉफी और ये लो लिली तुम्हारी चाय। मुझे तो बहुत से काम है अभी। माजी के लिए काढा भी बनाना है। मैं तो चलती हूँ।"

 

"ओके मम्मा आप जाइए" कहते हुए लिली अपनी बड़ी- सी मुस्कान बिखेरती है।

 

चाय का आखरी घूँट भरते हुए लिली सोफे से उठ खड़ी होती है और पिता शेखर कुमार से कहती है-

"पापा आप जल्दी से कॉफी फिनिश करिए तब तक मैं तैयार होकर आती हूँ।"

 

"ठीक है बेटा लिली तब तक मैं भी अपना पर्स और रुमाल अपने कमरे से लेकर आता हूँ।"

 

"ओके पापा" कहते हुए लिली अपने कमरे में की तरफ बढती है।

 

तकरीबन 15 मिनट बाद शेखर कुमार कमरे से बाहर आते है। तब तक लिली भी तैयार होकर नीचे आ जाती है पापा मैंने जिन चीजों की जरूरत है, वो सारी चीजें रख ली है।" - पर्स में एक नजर डालते हुए लिली बोलती है।

"ठीक है बेटा मुझे लगता है अब हमें चलना चाहिए।"

 

तभी मंदिर में बैठे दादी लिली और शेखर कुमार को टोकती है।

 

"मैंने तुम लोगों से कितनी बार कहा है कहीं भी बाहर जाओ तो सबसे पहले भगवान से आशीर्वाद लेकर जाओ ताकि काम आसानी से और बिना किसी भी विघ्न के पूरा हो जाए।"

 

"ओ वी आर सॉरी दादी, हमें तो ध्यान ही नहीं रहा।"

चलिए पापा अभी चलकर भगवान का आशीर्वाद ले लेते है।"

 

पिता- पुत्री मंदिर की ओर बढ़ते है, तो दादी प्लेट में रखा प्रसाद लिली और शेखर कुमार की तरफ बढ़ाती है। दोनों प्रसाद ग्रहण करते है। शेखर और लिली दादी के पैर छूते हुए उनका आशीष लेते है।और दरवाजे से बाहर की ओर बढ़ते है।

 

"पापा आज कार ड्राइव मैं करूंगी" लिली पिता के हाथ से चाबी लेते हुए कहती है।

 

"ठीक है बेटा तुम गाड़ी बाहर निकालो"

 

लिली गाड़ी बाहर निकालती है ।और पिता शेखर को गाड़ी में बैठ जाने के लिए कहती है। पिता और बेटी लिली गाड़ी में बैठ जाते है और गेट के बाहर निकलते है।

 

मौसम बहुत सुहाना था। सूर्य क्षितिज पर चमक रहा था। वृक्षों की लंबी कतारें बहुत तीव्र वेग से गाड़ी के पास से गुजर रही थी। लिली गाड़ी की खिड़की को खोल लेती है। मध्यम ठंडी पुरवाई मन को असीम शांति प्रदान कर रही थी। लिली म्युजिक बटन ऑन करती है, तो उसमें से गाना बजता है।

 

"आने से उसके आए बहार जाने से उसके जाए बहार बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा....................."

 

गाना सुनते ही शेखर कुमार चहक उठते है-

 

" अरे, वाह मेरा फेवरेट सॉन्ग। कितने दिनों बाद सुना है।"

कहते हुए शेखर कुमार भी गाने के बोल के साथ जुगलबंदी करने लग जाते है।

 

पिता के चेहरे पर इतनी खिलखिलाती हुई खुशी देखकर लिली का मन किसी नव प्रस्फुटित पुष्प की तरह खिल उठता है। इसी तरह हंसते मुस्कुराते घर से हॉस्पिटल तक का सफर पूरा हो जाता है। लिली गाड़ी को पार्किंग में लगा देती है। शेखर और लिली हॉस्पिटल में प्रवेश करते है।

और लिली ऊपर स्थित डॉ त्रिपाठी के चेंबर का दरवाजा नॉक करती है।

डॉक्टर त्रिपाठी का इशारा मिलते ही लिली और शेखर कुमार अंदर प्रवेश करते है। और सामने डली कुर्सी पर जाकर बैठ जाते है।

 

" आइए शेखर कुमार अब कैसी तबीयत है आपकी?" डॉक्टर त्रिपाठी शेखर कुमार से पूछते है।

 

"अब पहले से बेहतर फील कर रहा हूँ त्रिपाठी। बेटी लिली मेरा इतना ख्याल रखती है, तो मुझे तो ठीक होना ही है ना।"

 

"त्रिपाठी अंकल पापा तो कोई मौका नहीं छोड़ते हैं मेरी तारीफ करने का आप जल्दी से पापा के चेकअप करिए ताकि पापा की कंडीशन के बारे में पता चल सके।"

 

"ठीक है बेटा लिली मैं सभी टेस्ट कर लेता हूँ।फिर मैं सोच रहा था कि आज लंच में अपने जिगरी यार शेखर कुमार के साथ ही करूंगा।"

 

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