भाग- 4
सहसा पीछे से आई आवाज सुन कर लिली के कदम चलते- चलते रुक जाते है। उसकी आंखों में एक नई चमक आ जाती है। पता नहीं क्यों जब भी लिली अनुराग का नाम सुनती है, तो एक पल वहीं ठहर जाने को मन करता है।अनुराग के साथ बिताई यादें आज भी लिली के मन में कहीं ना कहीं जिंदा है। और समय-समय पर हिलोरे खाने लगती है। जब भी अनुराग का नाम जेहन में आता है, तो मन में आशा जगती है कि शायद अनुराग यहीं कहीं आस-पास हो। बस सिर्फ एक बार वह उससे मिल पाए, तो फिर क्या पीछे अभी जिसकी आवाज सुनी वह सच में अनुराग है। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? अनुराग को तो मालूम भी नहीं कि हम यहाँ दिल्ली में रहते है।"
वह मन ही मन बुदबुदाती है।
"लेकिन एक बार पीछे मुड़ कर देखने में भी तो कोई हर्ज नहीं है ना। क्या पता इस बार कोई भ्रम नहीं हुआ हो।"
- इसी आशा के साथ लिली थोड़ा धीमे से घूमती है।
पीछे मुड़के ही उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर जाता है। हर बार की तरह इस बार भी वह अपनी किस्मत को कोसने लगती है। अनुराग से मिलना तो उसका सपना बन चुका है, लेकिन यदि ऐसे ही हालात रहे, तो कही उसका सपना हकीकत बनने से पहले टूट कर बिखर ना जाए। इसी उधेड़बुन में लिली गाड़ी की तरह बढ़ती है और बेमन से गाड़ी का दरवाजा खोलती है।
बेटी के चेहरे की मायूसी देखकर पिता शेखर कुमार पूछ बैठते है - "क्या हुआ बेटा लिली सब ठीक तो है ना। बड़ी अपसेट नजर आ रही हो।क्या कुछ परेशानी है।"
"नहीं पापा सब कुछ तो ठीक है। आप चिंता मत कीजिए।"
- अपनी दबी- सी मुस्कुराहट में लिली अपना दर्द छुपाने का प्रयास करती है।
चाहकर भी लिली अपना दर्द पिता शेखर कुमार के सामने जाहिर नहीं कर सकती है। आखिरकार अनुराग से अपने प्रेम को भुला देने की कुर्बानी उसने पिता शेखर कुमार की खुशी के लिए ही तो दी है। अनुराग के बारे में सोचते हुए एकदम चुपचाप शांतिपूर्ण तरीके से पूरा रास्ता तय करने के बाद दोनो पिता-पुत्री अपनी मंजिल अपने घर तक पहुंच जाते है।
दादी दोनों के इंतजार में दरवाजे पर ही बैठी हुई थी, सो दोनों को देखते ही बोल पड़ती है - "बड़ी देर लगाई दोनों ने आने में। बेटा लिली मेरा वो चूर्ण का डब्बा तो तू याद से लाई है ना, वरना पता चले पिछली बार की तरह इस बार भी भूल गई।"
"नहीं दादी मैं लेकर आई हूँ "
डब्बा दादी के हाथ में थमाते हुए लिली बोलती है।
इतने में माँ कंचन की रसोई का काम निपटा कर आ जाती है और सामान शेखर कुमार के हाथ से लेते हुए कहती है- "अंदर चलो बेटा मैं खाना लगा देती हूँ।"
"नहीं मम्मा आज का लंच तो हमने त्रिपाठी अंकल के साथ कर लिया था। अभी भूख नहीं है।" -लिली माँ कंचन से कहती है।
"तो फिर ठीक है तो बेटा लिली चलो हमारे साथ बैठो माँ और कंचन को कोरोना के बारे में बताते है।"
- पिता शेखर कुमार बेटी लिली से कहते है।
"नहीं पापा बहुत थकावट महसूस हो रही है। मैं अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहती हूँ, तब तक आप दादी और मम्मा के पास बैठिये।" -कहते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ती है।
लिली कमरे में प्रवेश करते ही पलंग पर मुंह के बल लेट जाती है। पूरे कमरे में मौन का पहरा पसरा हुआ था। लिली कमरे की शून्यता में पुनः अनुराग के सपनों में खो जाना चाहती थी। अनुराग का चेहरा उसकी बंद आखों के सामने घूमने लग जाता है। तभी सहसा मन में एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि - "क्या अनुराग भी उसे इसी तरह याद करता होगा। या फिर वक्त के साथ अनुराग के दिल से उसका ख्याल मिट गया होगा।"
"नहीं, नहीं लिली और अनुराग का प्रेम इतना तो कमजोर नहीं, जो समय के दिए जख्मों से मृतप्राय हो जाए। अनुराग थी उसे कहीं ना कहीं इतना ही याद करता होगा।"
- लिली सोचते हुए अपने मन को सांत्वना देती है।
तभी दरवाजे की तरफ चहलकदमी होती है, तो लिली अपनी आंखें खोल लेती है और पलंग पर उठकर बैठ जाती है। दरवाजे की तरफ देखती है, तो उसी महक दिखाई पड़ती है।महक उसकी सबसे बेस्ट फ्रेंड है,जो रोज उसके लिए इधर-उधर की मजेदार गॉसिप्स लेकर आती है।
महक दरवाजे में प्रवेश करते ही बोल पड़ती है- "लिली मैं तेरे लिए ऐसी ब्रेकिंग न्यूज लेकर आई हूँ, जिसे सुनकर तू एकदम शॉकड रह जाएगी।" - कहते हुए महक धम्म से पलंग पर बैठती है।
"हाँ, हाँ मुझे पता है तू तेरे ब्रेकिंग न्यूज़ में वही रोज वाले घिसे-पिटे राग अलपाएगी, पड़ोस की कुछ चुगलियां सुनाएगी और है ही क्या तेरे पास महक।" लिली महक से कुछ मजाकिया अंदाज में बोल पड़ती है।
"अरे नहीं लिली आज मैं किसी की कोई चुगली नहीं लेकर आई हूँ, बल्कि तुझे एक बहुत जरूरी बात बताने आई हूँ ।"- महक लिली से कहती है।
"अच्छा तो वो कौनसी जरूरी बात है, जो मुझे बतानी है।" - लिली अपनी बालों को संवारते हुए बोलती है।
तुझे पता है लिली हमारे देश में किसी कोरोना जैसी महामारी के फैलने की आशंका के चलते पन्द्रह दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया गया है। अभी न्यूज़ चैनल देखने पर मुझे पता चला।"
महक टीवी की ओर इशारा करते हुए बोल पड़ती है।
"अरे हाँ महक आज जब मैं पापा को त्रिपाठी अंकल के पास दिखाने गई, तो उन्होंने हमें इस महामारी के बारे में सचेत किया था और महक लॉकडाउन इसके लिए एक अच्छा कदम साबित हो सकता है। एक निश्चित समय अन्तराल के लिए सामाजिक मेल मिलाप को रोककर हम इस पर कुछ हद तक काबू पा सकते है" -लिली महक को बताती है।
कुछ देर तक इसी तरह लिली और महक के बीच कोरोना को लेकर चर्चा चलती है।
"हां यार लिली तू ठीक कह रही है। हमें पूर्ण सतर्कता बरतनी चाहिए। अच्छा तो अब मुझे चलना चाहिए मैंने तो तुझे आज की ब्रेकिंग न्यूज़ परोस दी है और हाँ तू अपना ख्याल रखना" - महक लिली के प्रति अपनी चिंता जाहिर करती है।
"ठीक है महक तू भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना।"
"ओके बाय, सी यू सून"
कहते हुए महक दरवाजे की ओर बढ़ती है।
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