भाग - 5
अगली सुबह सूर्य देव परदो की ओट से झांकने लगते है। सूर्य की एक रंगीन किरण परदो के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए लिली के मुख पर अपना प्रकाश बिखेरती है। तो लिली को भोर होने का आभास हो जाता है। वह सामने दीवार पर लगी राधा-कृष्ण की छवि को नमस्कार करते हुए बिस्तर से उठ खड़ी होती है और खिड़की की तरफ अपने कदम बढ़ाती है। लिली खिड़की से पर्दों को साइड में करती है और खिड़की से नीचे की तरफ अपनी दृष्टि फेरती है।
जहाँ नीचे गली में रोज लोगों की चहलकदमी नजर आती थी। सड़क पर सब्जी व अन्य चीजें बेचने वाले दिखाई पड़ते थे, वे सभी आज नदारद थे। सड़क पर दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था। सामने वह चाय की दुकान जिस पर रोज सुबह दस से पन्द्रह लोगों की भीड़ चाय का लुफ्त उठाते हुए आसानी से नजर आ जाती थी, आज अचानक से वहाँ गहरी शांति छाई हुई थी। ऐसा लग रहा था, मानो अनायास ही सब कुछ रुक गया हो। लोग सिर्फ अपने घरों तक सिमट कर रह गए थे। किसी ने नहीं सोचा था कि सहसा आई कोरोना नामक महामारी लोगों की दिनचर्या में इतना परिवर्तन ला देगी।
तभी नीचे से आई माँ कंचन की आवाज सुनकर लिली अपने सोच- विचार भरी दुनिया से बाहर आती है और नीचे लिविंग रूम की तरफ बढ़ती है।
लिली को देखते ही माँ कंचन बोल पड़ती है- "ये लो लिली बेटा चाय पी लो।"
लेकिन लिली का ध्यान तो टेबल पर रखे बैग और सोफे पर बैठ कर अपने जूते के फीते बांध रहे पिता शेखर कुमार की तरफ था। जब दो-तीन बार भी चाय के लिए टोकने पर लिली की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है, तो माँ कंचन लिली के कंधे को धीमी से झटकाते हुए बोल पड़ती है-
"अरे बेटा लिली किस सोच में डूबी है। कब से आवाज लगा रही हूँ तुझे चाय के लिए।चल चाय पी ले वरना ठंडी हो जाएगी।"
तभी लिली माँ की तरफ देखते हुए बोल पड़ती है- "मम्मा क्या पापा आज भी बैंक जा रहे है। न्यूज़ चैनल पर कोरोना की इतनी भयावह स्थिति देखकर तो मुझे पापा की चिंता होने लगी है।"
बेटी लिली की बात सुनकर पिता शेखर कुमार जूते की लेस बांधते हुए बोल पड़ते है- "अरे बेटा लिली काम पर जाना तो मेरी ड्यूटी है। कोरोनाकाल में जब सब कुछ बंद है, तो लोगों की पैसों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए हम बैंकर्स को तो अपने कर्तव्यपथ पर चलना ही होगा ना।"
"लेकिन पापा हम सब घर के अंदर है और आप बाहर जाकर काम करेंगे, तो हमें आपके स्वास्थ्य की चिंता होना तो लाजमी है ना" - लिली पिता शेखर कुमार के थोड़ा निकट जाते हुए बोलती है।
पिता शेखर कुमार लिली को अपने बगल में बिठाते हुए कहते है- "बेटा लिली सरहद पर खड़े हमारे वीर जवान हर विषम से विषम परिस्थिति में भी अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहकर देश की सेवा करते को तत्पर रहते हैं, तो क्या मैं इस कोरोना के डर से अपने देश के लोगों के कठिन समय में उनकी मदद करने से पीछे हट जाऊं। नहीं बेटा मैं ऐसा तो नहीं कर सकता हूँ। और रही मेरे स्वास्थ्य की चिंता तो मैं अपना पूरा ध्यान रखूंगा।"
लिली पिता शेखर कुमार के हाथ में हाथ डालते हुए बोलती है- "यू नो पापा, यू आर ग्रेट। आप जाइये लेकिन प्रोमिश करिए आप मास्क एक बार भी नहीं उतारेंगे और समय-समय पर हाथ सेनीटाइजर करते रहेंगे और सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा- पूरा पालन करेंगे।" -लिली पिता शेखर कुमार को हिदायत देते हुए कहती है।
"हाँ बेटा लिली तुम जैसा कह रही हो मैं बिल्कुल वैसा ही करूंगा। अच्छा तो मां मैं अब चलता हूँ" - कहते हुए शेखर कुमार बैंक के लिए रवाना हो जाते है।
दादी वहीं सोफे पर बैठे हुए अपनी माला का जाप करने लगती है और माँ कंचन उन्हें अपने किचन के कार्यों में व्यस्त हो जाती है। लिली बालकनी में बैठकर सुबह के मनोरम मौसम में चाय का लुत्फ उठाने लगती है। तभी लिली की नजर बाहर घूम रहे उस छोटे से पपी पर पड़ती है, जो सड़क पर इधर-उधर कुछ ढूंढ रहा था। शायद आज लॉक डाउन के कारण उसे कुछ खाने को नहीं मिल पाया था। इसी वजह से वह भोजन की तलाश में था। लिली अपने चाय के कप को टेबल पर रखते हुए झट से अंदर जाती है और कुछ ब्रेड्स लाकर पपी के सामने डालती है। पपी को इतनी मासूमियत से ब्रेड खाते हुए देख कर लिली सोचने लगती है सभी लोग इस लॉक डाउन पीरियड में अपने-अपने घरों में परिवार वालों के साथ इंजॉय कर रहे होंगे। लेकिन यह बेचारे बेजुबान जानवर जिन्हें पहले सड़कों पर घूमते लोगों से या दुकानों से कुछ ना कुछ खाने को मिल जाता था अब इन्हें पेट पूर्ति के खातिर भटकना पड़ रहा है।
तभी दादी अपनी सुपुत्री लिली को आवाज लगाते हुए बाहर आ जाती है।
"अरे बेटा लिली तू ये इस पपी के साथ क्या कर रही है"
- दादी मुस्कुराते हुए लिली से पूछती है।
" दादी देखो ना इस पापी को यह बहुत भूखा था और जब मैंने से इसे यह ब्रेड खाने को दिए, तो इसकी आंखों में देखो ना कितनी चमक दिखाई पड़ रही है।"-लिली चहकते हुए बोल पड़ती है।
"हाँ बेटा लिली ये बेचारे मासूम जीव कभी अपने मुंह से अपना हाल नहीं बता पाते है। इसीलिए हमारा फर्ज है कि हम इनकी जरूरतों को पूरा कर कर इनकी मदद करें" - दादी लिली को समझाते हुए कहती है।
"यस दादी ग्रेट, आपकी बात सुनकर मेरे दिमाग में एक आईडिया आया है।"
"वह क्या मेरे बच्चे" - दादी लिली से पूछती है।
"दादी आप अभी दो मिनट रुको, मैं अभी आती हूँ" - कहकर लिली दौड़ती हुई अंदर जाती है।
और कुछ देर में एक थैले में कुछ सामान लेकर बाहर आती है और अपनी दादी को थैला दिखाते हुए बोलती है- "दादी यह देखिए मुझे एक आईडिया आया है कि क्यों ना हम दोनों चलकर जितने भी भूखे जीव है, उन्हें यह कुछ ब्रेड्स और रोटियां खिला कर आते है।"
"वाह बेटा लिली यह तो बहुत अच्छा विचार है। चलो फिर जल्दी नेक काम में देरी किस बात की" - दादी अपनी पोती के विचार पर गर्व अनुभव करते हुए बोल पड़ती है।
"लेकिन दादी पहले यह मास्क तो पहन लीजिए"- लिली दादी की तरफ मास्क बढ़ाते हुए कहती है।
लिली और दादी दोनों बाहर की ओर बढ़ते हैं ।
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