कोरोना - एक प्रेम कहानी - 6 Neha Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना - एक प्रेम कहानी - 6

भाग- 6

गली एकदम सुनसान थी। दूर-दूर तक कोई इंसान नहीं दिखाई पड़ रहा था। दिख रहे थे तो सिर्फ ईट की बुनियाद पर खड़े हुए मकान। सभी लोग अपने- अपने घरों में कैद परिवार वालों के साथ अपनी खुशियाँ बटोरने में लगे हुए थे। लेकिन सड़क पर घूम रहे बेजुबान अपने उदर में लगी भूख की अग्नि को शांत करने के लिए भोजन की खोज में यहाँ -वहाँ भटक रहे थे। कोरोना के लॉक डाउन का यह दिन इन बेजुबानो के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं था। गली से थोड़ा बाहर आते ही इन बेजुबान जीवो के अलसाए मुख आसानी से दिख जाया करते है। लिली और दादी ने जैसे ही रोटी का टुकड़ा एक कुत्ते के सामने डाला, तो दूर बैठे हुए कुछ और कुत्ते अपनी उदास आंखों से उनके समक्ष आकर खड़े हो जाते हैं मानो वे सब लिली से रोटियों की गुहार लगा रहे हो।लिली उनके सामने कुछ बिस्किट, ब्रेड और रोटियाँ डालती हैं, तो उन सभी के चेहरे किसी नव सुमन की भांति खिल उठते है। पेट भर जाने के बाद कुछ पपी एक- दूसरे के साथ अठखेलियां करने लगते है। यह देख कर लिली और दादी के मन को अत्यधिक संतुष्टि मिलती है और वे दोनों घर की ओर बढ़ चलते है।

घर पहुंचते ही लिली की नजर पिता शेखर कुमार पर पड़ती है, जो सोफे पर कुछ अस्वस्थ की भांति लेटने की स्थिति में गिरे हुए थे। उनका बैग नीचे जमीन में रखा हुआ था और पैर जूते सहित सहारा लेने के उद्देश्य से टेबल पर रख रखे थे।

पिता को इस तरह देख लिली दौड़ती हुई पिता शेखर कुमार के पास आती है और चेहरे पर चिंता के गहरे भाव लिए हुए पूछती है- "पापा क्या हुआ आप इस तरह सोफे पर क्यों लेटे हुए है। आपकी तबीयत तो ठीक है ना।"

 

"बेटा लिली दोपहर तक तो तबीयत बिल्कुल ठीक थी। फिर अचानक से शरीर में बहुत थकावट महसूस होने लगी। सिर भी बहुत भारी- भारी सा लग रहा है।"

 

"पापा आपने जरूर ऑफिस में अपना बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा होगा। इसीलिये आपको इतनी अस्वस्थता महसूस हो रही है।"

 

" नहीं बेटा लिली ऐसा बिल्कुल भी नहीं है" - पिता शेखर कुमार मुख पर हाथ फेरते हुए बोलते है।

हे भगवान आपका सिर तो एकदम आप की तरह उभर रहा है ललिता शेखर कुमार के माथे पर हाथ रखते हुए बोलते है ।

 

हे भगवान पापा आपका सिर तो एकदम आग की तरह उबल रहा है - लिली पिता शेखर कुमार के माथे पर हाथ फेरते हुए बोल पड़ती है।

तभी माँ कंचन भी छत से कपड़े उतार कर नीचे की तरफ से आती है और दादी भी अंदर आकर सोफे पर बैठ जाती है।

"अरे बेटा शेखर सुबह तो अच्छे भले थे, फिर अचानक से तबीयत कैसे बिगड़ गई" - दादी बेटी शेखर कुमार से पूछती है।

 

"पता नहीं माँ लेकिन शरीर बहुत टूटा हुआ सा महसूस हो रहा है" - शेखर कुमार कहते है।

 

" पापा मैं अभी थर्मामीटर लेकर आती हूँ । अभी पता चल जाएगा कि टेंपरेचर कितना है"- कहते हुए लिली कमरे की तरफ बढ़ती है।

 

"हाँ मैं भी आपके लिए अदरक वाली चाय बना कर लाती हूँ। शायद कुछ राहत मिले"- कहकर माँ कंचन रसोई में चाय बनाने के लिए चली जाती है।

तब दादी बेटे शेखर के कुछ निकट आते हुए उसके सिर को सहलाने लगती है, तो बेटा शेखर कुमार भी बच्चों की तरह माँ की गोद में सिमट जाता है। तभी लिली कमरे से तत्परता से निकल कर आती है और पिता शेखर कुमार की तरफ थर्मामीटर बढ़ाते हुए कहती है-

"ये लीजिए पापा थर्मामीटर इसे अपनी जीभ के नीचे लगाइए"

 

पिता शेखर कुमार थर्मामीटर अपने मुंह के अंदर रखते है और कुछ देर बाद थर्मामीटर मुंह से बाहर निकालते हुए लिली की तरफ बढ़ाते है।

 

लिली थर्मामीटर देखते ही चौक पड़ती है-

" पापा आपका टेंपरेचर तो 102° आ रहा है।"

 

"क्या 102° बुखार आया है बेटा लिली" - माँ कंचन हाथ में चाय का कप लिए हुए ही बोल पड़ती है।

 

"हे परमेश्वर यह कैसी विपदा आई है हमारे परिवार पर। एक तरफ कोरोना का आतंक और दूसरी तरफ मेरे बेटे शेखर की तबीयत इतनी बिगड़ गई है। अब तुम ही हमारी सहायता करो प्रभु" - दादी सोफे पर बैठे हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए बोलती है।

 

" चलिए पापा हम हॉस्पिटल चलते हैं " -लिली पिता शेखर कुमार का हाथ थामते हुए बोल पड़ती है।

 

"हाँ बेटा लेकिन पहले ये चाय तो पी लो फिर चले जाना" - माँ कंचन लिली से कहती है।

 

"नहीं मम्मा पहले हम डॉक्टर के जाकर आते है। वैसे भी पापा का फीवर बहुत ज्यादा आ रहा है" -लिली अपनी माँ कंचन से बोलती है।

 

" हां बेटा जाओ लेकिन पूरी सहूलियत बरतना। कोरोना के कारण हॉस्पिटल जाना भी किसी खतरे से कम नहीं है" - दादी बेटी लिली और शेखर कुमार को नसीहत देते हुए कहती है।

"ठीक है दादी। चलिए पापा आराम से उठिए।" - पिता शेखर कुमार का हाथ पकड़ कर लिली बाहर गाड़ी तक जाती है।

दोनों गाड़ी में बैठकर अस्पताल की ओर रवाना होते है।

रास्ते में शहर की सड़क के चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात थी। अनावश्यक निकल रहे लोगों को समझा-बुझाकर वापस घर भेज रही थी। तभी तो पुलिस वाले बीच रास्ते में उनकी गाड़ी को रुकवा लेते है और उन से बाहर निकलने की वजह है पूछते है। लेकिन पिता शेखर कुमार की बिगड़ती हालत स्वतः ही सब कुछ बयां कर रही थी। इसीलिए पुलिस ने उन्हें आगे जाने की अनुमति दी। लिली गाड़ी को ड्राइव करते हुए कुछ देर में हॉस्पिटल पहुंच जाती है।

" पापा ये लीजिए पहले आप अपने हैंड सैनिटाइजर कर लीजिए। फिर हम चलेंगे।"

कहते हुए लिली पिता शेखर कुमार के हैण्ड वॉश करवाती है।

 

और दोनों हॉस्पिटल के अंदर प्रवेश करते है। लिली और शेखर कुमार सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन करते हुए डॉक्टर त्रिपाठी के केबिन तक पहुंचते है।

 

केबिन के अंदर डॉक्टर त्रिपाठी के सामने टेबल पर सैनिटाइजर रखा हुआ था। कुर्सियां निश्चित दूरी पर डली हुई थी। डॉक्टर त्रिपाठी के केबिन का यह नजारा पहले से बिल्कुल भिन्न था। जैसे ही डॉक्टर त्रिपाठी की नजर उन पर पड़ती है, तो वे उन्हें देखते ही बोल पड़ते है-

 

"अरे भाई शेखर कुमार क्या हुआ तुम्हें। इतने सुस्त से क्यों नजर आ रहे हो।"

"त्रिपाठी अंकल पता नहीं क्यों पापा को अचानक से 102° फीवर हो गया है। इसीलिए मैं पापा को आपके पास लेकर आई हूँ " - लिली पिता शेखर कुमार को कुर्सी पर बिठाते हुए कहती है।

 

"शेखर कुमार अगर तुम्हें फीवर आया है, तो तुम्हें कोरोना का टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। मैंने तुम्हें पहले भी इसके लिए आगाह किया था। मैं यह कुछ टेस्ट लिख देता हूँ । तुम अभी जाकर करवा लेना।" - डॉक्टर त्रिपाठी शेखर कुमार से कहते है।

 

" ठीक है अंकल हम पहले पापा के टेस्ट करवा लेते है। ध्यान से उठिए पापा"- कहते हुए लिली पिता शेखर कुमार को कोरोना जाँच करवाने के लिए लेकर जाती है।

 

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