अनमोल सौगात - 3 Ratna Raidani द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अनमोल सौगात - 3

भाग ३

रवि के पिता बृजभूषण मैनी का तबादला कुछ दिनों पहले ही जबलपुर में हुआ था। वे उसी डिपार्टमेंट में जूनियर पद पर थे जहाँ नीता के पिता कार्यरत थे। रवि की माँ कल्पना एक गृहणी, बहुत बातूनी और रूढ़िवादी महिला थी। इकलौते पुत्र रवि से बहुत लगाव और अपेक्षाएं थी। रवि ने इसी वर्ष M.Com. पास किया था और जबलपुर में ही एक प्राइवेट फर्म में काम शुरू किया था।

उस दिन नीता को पहली बार देखने के बाद से वह उसी के विचारों में खोया रहता था। उसके बारे में जानने की उत्सुकता भी बहुत थी किन्तु उन दिनों किसी लड़की से सीधे बात करना इतना आसान नहीं था। लेकिन भाग्य दोनों के साथ था और खेल के वार्षिक आयोजन की प्रैक्टिस के दौरान दोनों का अक्सर आमना सामना होने लगा।

नीता बैडमिंटन और रवि वॉलीबॉल के खेल में प्रतिभागी थे। अब तक एक दूसरे को देखना और मुस्कुराना, बात यहीं तक सीमित थी। किन्तु एक दिन अचानक आपस में बात करने का मौका भी मिल गया।

संध्या के भाई नवीन के जन्मदिन की पार्टी थी। नवीन और रवि दोनों ही वॉलीबॉल टीम में थे और अब अच्छे दोस्त भी बन गए थे। इसलिए वह भी पार्टी में आमंत्रित था। संध्या ने नीता को भी बुलाया था। नीता ने हल्के गुलाबी रंग का चूड़ीदार और कुर्ता पहना हुआ था। रवि की आँखें उस पर से हट ही नहीं रही थी। पार्टी के दौरान दोनों को बात करने का मौका मिला जिसका पिछले एक माह से दोनों को ही इंतज़ार था। नीता मेहमानों को जूस और नाश्ता देने में संध्या की मदद कर रही थी। नीता ट्रे लेकर रवि के पास गयी। दोनों के चेहरे पर मुस्कान के साथ साथ थोड़ी सी झिझक भी थी। लेकिन रवि ने हिम्मत करके बात शुरू की।

 

"हैलो! मैं रवि मैनी। कुछ महीनों पहले ही हमारा परिवार यहाँ शिफ्ट हुआ है। मैंने आपको बैडमिंटन कोर्ट में खेलते हुए देखा। आप बहुत अच्छा खेलती हैं।" रवि ने बात शुरू की क्योंकि वह इस मौके को कतई छोड़ना नहीं चाहता था। खेल के दौरान रवि उसे देखते रहता है यह बात नीता को आश्चर्यमिश्रित खुशी दे रही थी।

 

नीता ने भी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "तारीफ़ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मैं नीता पांडे। आप भी बहुत अच्छा खेलते हैं।"

 

दोनों ने कुछ देर और बातें की और बातों के दौरान यह भी जान लिया कि दोनों के ही मन में एक दूसरे के लिए भावनायें हैं जो अब हिलोरें ले रही थी।

 

दूसरे दिन रवि प्ले ग्राउंड में पहुंचकर नीता के आने का इंतज़ार कर रहा था। परन्तु उस दिन उसे निराशा ही हाथ लगी। इसी तरह तीन दिन बीत गए। अब उसकी बेचैनी बढ़ने लगी। आखिर उसने हिम्मत जुटा कर संध्या से पूछा, "अरे संध्या! आजकल तुम्हारी पार्टनर नहीं दिखाई दे रही है। तुम दूसरी पार्टनर के साथ प्रैक्टिस कर रही हो।"

 

संध्या ने पूछा, "कौन? नीता? कुछ काम था आपको उससे?"

 

"नहीं मुझे कुछ काम नहीं था। दरअसल मुझे सभी खिलाडियों के नाम की लिस्ट बनाने का काम सौंपा गया है, बस इसलिए ही पूछ रहा था।" रवि ने हकलाते हुए कहा।

 

"ओह अच्छा, नीता तो एक हफ्ते के लिए अपने होम टाउन गयी है। आप उसका नाम भी लिस्ट में लिख लीजियेगा। खेल आयोजन तक वो वापस आ जाएगी।" संध्या ने बताया।

 

नीता सकुशल है यह सुनकर रवि को राहत मिली लेकिन यह एक हफ्ता मानों एक युग लग रहा था उसे। आज एक हफ्ता पूरा हो गया था। रवि सुबह जल्दी से तैयार होकर ग्राउंड में पहुँच गया। कुछ देर के बाद नीता आयी पर उसके साथ संध्या भी थी। बात करना तो मुमकिन नहीं था पर दोनों ने एक दूसरे को जी भर के देखा और एक दूसरे की आँखों में यह भी पढ़ लिया कि दोनों का ही मन एक दूसरे से मिलने के लिए कितना बेचैन था।

 

खेल आयोजन की तैयारियां जोर शोर से शुरू हो गयी थी। पूरे ग्राउंड को बहुत अच्छी तरह से सजाया गया था और कॉलोनी के सभी लोग बहुत उत्साहित थे। नीता और रवि के माता पिता भी ग्राउंड में मौजूद थे। सबसे पहले वॉलीबॉल का मैच शुरू हुआ। रवि की टीम मैच जीत गयी। नीता ने आँखों ही आँखों में रवि को बधाई दी। उसके बाद कई और खेल भी हुए। बैडमिंटन की प्रतियोगिता बस अब शुरू ही होने वाली थी। नीता की आँखें रवि को ढूंढ रही थी। शशिकांत, उर्मिला, संध्या सबने खेल शुरू होने से पहले नीता को शुभकामना दी। नीता जैसे ही पानी की बोतल लेने पास के टेबल पर गयी तो एक छोटे बच्चे ने आकर उसके हाथ में एक चिट थमाई। उसने खोलकर देखा तो लिखा था, "All The Best... R. M."

 

उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी और वो दूगने उत्साह से खेलने लग गयी। गेम खत्म होने के बाद घोषणा हुई, "बैडमिंटन के खेल की विजेता हैं, नीता पांडे" तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा पंडाल गूँज उठा। एक घंटे का ब्रेक हुआ। उस बीच एक और चिट फिर से नीता को मिली। अबकी बार चिट के साथ साथ एक लाल गुलाब था जिसे देखते ही नीता का चेहरा भी उस गुलाब की तरह खिल उठा। उसने चिट खोलकर पढ़ा - "Congratulations!! कॉलोनी के बाहर वाले मंदिर में इंतज़ार कर रहा हूँ। - R.M."

 

एक तरफ मिलने की चाहत भी थी पर दूसरी तरफ किसी के देखने का डर भी था। इसी दुविधा में फंसी नीता बेचैन हो उठी।

 

कुछ देर सोचने के बाद वह उर्मिला के पास गयी, "मम्मी मैं थोड़ी देर के लिए घर जाकर आती हूँ। थोड़ी थकान लग रही है।"

 

"चलो मैं भी चलती हूँ।" उर्मिला ने खड़े होते हुए कहा।

 

"अरे नहीं मम्मी आप आराम से यहाँ रुकिए। मैं थोड़ी सी देर में जाकर आती हूँ।"

 

"ठीक है। ये लो चाबी।" उर्मिला ने घर की चाबी नीता को देते हुए कहा।

 

कॉलोनी के बाहर कुछ दूर पर गणेशजी के मंदिर के पीछे रवि नीता के इंतज़ार में खड़ा था। उसे पूरा विश्वास था कि नीता जरूर आएगी। आज उसने निश्चय कर लिया था, अपने मन की बात नीता तक पहुँचाने की और उसके मन की बात भी जानने की।