अनमोल सौगात - 4 Ratna Raidani द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

श्रेणी
शेयर करे

अनमोल सौगात - 4

भाग ४

नीता मंदिर के पिछवाड़े पहुँची। चूँकि दोपहर का समय था इसलिए मंदिर में सन्नाटा था। "ट्रॉफी जीतने की बहुत बहुत बधाई" रवि के शब्दों में खुशी थी क्योंकि उसके सामने नीता खड़ी थी, जो कि किसी मीठे सपने के सच होने जैसा था।

"Thank you!! अब बताओ मुझे यहाँ क्यों बुलाया?" नीता ने धीमे स्वर में पूछा।

"तुम्हें नहीं पता?" रवि ने मुस्कुराते हुए सवाल का जवाब देने के बजाय नीता से ही सवाल किया।

नीता ने सर हिलाते हुए ना में जवाब दिया और दूसरी तरफ देखने लगी।

"नीता, आज मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना चाहता हूँ। मैंने जबसे तुम्हें देखा है, मेरा किसी काम में मन लगाना मुश्किल होता जा रहा है। दिन में ख्यालों में और रात में सपनों में बस तुम ही तुम रहती हो। अब मैं तुम्हारे मन में क्या चल रहा है वह भी जानना चाहता हूँ। कहो ना।" रवि ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा।

 

नीता भी उसी कश्ती में सवार थी लेकिन अपनी भावनाओं को शब्दों में बयान करने में उसे संकोच हो रहा था।

 

"क्या हर बात शब्दों में बताना जरूरी है?" नीता ने भी रवि की आँखों में आँखें डाल कर कहा।

 

"नीता मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ और अपनी पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ।" रवि ने आखिर वो शब्द बोल ही दिए और उसे सुनकर नीता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। दोनों की आँखें खुशी से झिलमिला रही थी।

 

अब दोनों के लिए एक दूसरे से दूर रहना मुश्किल होता जा रहा था, अतः सबकी नज़रों से बचते हुए मिलने का सिलसिला शुरू हुआ। कभी पार्क में, कभी मंदिर, कभी कॉलेज के बाहर, कुछ ही देर के लिए सही पर दोनों लगभग रोज मिलने लगे। अगर एक दिन भी ना मिले तो दोनों को बेचैनी होने लगती। दोनों के पास एक दूसरे के घर के लैंडलाइन नंबर्स थे लेकिन कई बार माता पिता के फ़ोन उठाने के कारण बात करना मुश्किल हो जाता था।

 

एक दिन दोनों ने सिनेमा हॉल में पिक्चर देखने का प्रोग्राम बनाया। घर से नीता आज बॉर्डर वाली सुन्दर नीली साड़ी पहनकर निकल रही थी, क्योंकि वह रवि को सरप्राइज देना चाहती थी। उर्मिला ने पूछा, "अरे वाह नीता! ये साड़ी तो तुझ पर बहुत जँच रही है। आज कॉलेज में कुछ ख़ास प्रोग्राम है क्या?"

 

"हाँ माँ, आज कॉलेज में कल्चरल डे का आयोजन किया गया है और सभी सहेलियों ने तय किया था कि साड़ी पहनकर कॉलेज आयेंगे। बस इसीलिए। और हाँ माँ, आज आने में थोड़ी सी देर हो जाएगी।" नीता ने अपना उत्साह छुपाते हुए बहाना बनाया।

 

"ओह, तो तेरे पापा लेने आ जायेंगे। मैं उन्हें दफ्तर में फ़ोन करके बोल दूंगी।" उर्मिला ने कहा।

 

"अरे नहीं माँ, इसकी जरूरत नहीं है। मैं अपनी सहेलियों के साथ वापस आ जाऊंगी। अच्छा अब मैं चलती हूँ।" यह कहकर नीता फटाफट घर से निकल गयी।

 

घर से निकलकर वो सीधा मार्केट गयी। नीता रवि के लिए कुछ अच्छा सा गिफ्ट लेना चाहती थी। काफी देर देखने के बाद उसे एक वॉलेट और टाई पसंद आयी और उसने वही लेने का निर्णय किया। दुकानदार से गिफ्ट रैप करकर उसने सुन्दर अक्षरों में लिखा "फॉर माय लव" और एक छोटा सा दिल बना दिया। उसके बाद वो कॉलेज पहुंचकर क्लास में जाने के बजाय लाइब्रेरी में जाकर रवि का इंतज़ार करने लगी।

 

उधर रवि भी ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी लेकर निकल गया। उसने नीता के लिए पहले से ही एक घड़ी लेकर रखी थी और इत्तेफ़ाक़ से उसने भी गिफ्ट पर वही लिखा था - "फॉर माय लव"...

 

तय प्रोग्राम के अनुसार रवि, नीता को लेने कॉलेज गेट पर पहुँचा तो नीता को साड़ी में देखकर उसकी निगाहें उसके इस रूप पर टिक गयी।

 

"अरे जनाब! कहाँ खो गए? पिक्चर का समय हो रहा है।" नीता ने उसकी नज़रों को पढ़ लिया और मुस्कुराते हुए कहा।

 

"पिक्चर का प्रोग्राम कैंसल करते हैं। लग रहा है तीन घंटे तुम्हें यूँ ही देखता रहूँ।" रवि ने प्यार से कहा।

 

"हम कॉलेज के गेट पर खड़े हैं।" नीता ने इधर उधर नज़रें घूमते हुए मस्ती भरे अंदाज़ में कहा।

 

वो दिन दोनों के लिए यादगार दिन बनता जा रहा था। पिक्चर, उसके बाद आइसक्रीम और ढेर सारी बातें, सब मिलाकर दोनों को यूँ लग रहा था कि ये दिन और उनकी ये मुलाकात बस खत्म ही न हो। दोनों ने अपने अपने गिफ्ट निकाले और एक दूसरे को दिए। गिफ्ट के ऊपर लिखे मैसेज को देखकर दोनों के चेहरों पर मुस्कान आ गयी।

 

"नीता, मैंने सोच लिया है कि अब मैं जल्दी से जल्दी अपने मम्मी पापा को हमारे बारे में बता दूंगा और उनको तुम्हारे घर जाने के लिए बोलूँगा जिससे वो लोग तुम्हारे माता पिता से मिलकर हमारी शादी की बात कर सके।हो सके तो इसी रविवार को।" रवि ने उत्साहित होते हुए कहा।

 

रवि की बात सुनकर नीता खुश हो गयी पर फिर अचानक ही उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आयी।

 

"क्या हुआ नीता? तुम ये सुनकर खुश नहीं हो?" रवि ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूछा।

 

"ऐसी बात नहीं है रवि। ये मेरे लिए सबसे ज्यादा ख़ुशी की बात है। लेकिन ये सब इतना आसान नहीं होगा। हम दोनों अलग अलग धर्म और जाति के हैं और हमारे परिवारों की रूढ़िवादी मानसिकता को भी तुम अच्छे से जानते हो। क्या हमारे मम्मी पापा इस रिश्ते के लिए तैयार होंगे? मुझे यही सोचकर बहुत चिंता हो रही है।" नीता ने उदास होते हुए कहा।

 

"चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। और अगर तुम मेरे साथ हो तो सब कुछ संभव हो जायेगा।" रवि ने आश्वासन देते हुए कहा।

 

"हाँ रवि, मैं तुम्हारे साथ हूँ और हम दोनों कभी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे।" नीता ने दृढ़ता पूर्वक कहा। रवि और नीता की आँखों में चमक आ गयी। उन्हें अपने साथ और प्यार पर पूरा विश्वास था।

 

कॉलोनी के गेट के कुछ पहले ही दोनों ने एक दूसरे से विदा ली। इस बात से अनभिज्ञ कि भविष्य के पन्नों की इबारत क्या है, दोनों सपने संजोते हुए अपने अपने घर पहुंचे।