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कथा एक बाँध की

कथा एक बाँध की

एक उच्च स्तरीय गोपनीय बैठक में यह तय किया गया था कि जंगलों के बीच बहने वाली ‘‘की’’ नदी पर ‘‘गो’’ बाँध बनाया जावे। वास्तविक निर्णय तो यह था कि बाँध केवल फाइलों पर बनेगा ।अधिकारियों, नेताओं और कुछ असमाजिक कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के बाद जो बचता है उसे सत्तारूढ दल के पार्टी फंड मेें दे दिया जावे। हुआ भी ऐसा ही बाँध बना लेकिन फाइलों में पूरे विभाग के अथक परिश्रम से कुछ ही महिनों में बांध तैयार हो गया, परंतु समय ने पलटा खाया चुनाव के बाद सत्तारूढ़ पार्टी, सत्ता से बाहर हो गई। अधिकारी तो अभी भी वही थे बाँध की गोपनियता अब बाहर आने लगी। जिसमें कुछ पत्रकारों ने अधिकारियों को उनकी कारगुजारी के सबूत दिखाए और बताया कि वे तो नहीं चाहते कि ये सब अखबारों में छपे लेकिन यदि अधिकारी चाहे तो........ अधिकारियों को छुटभैया पत्रकारों की औकात मालूम थी उन्होने कुछ को तो दे ले के समझाया, परंतु जब ऐसे लोगों की संख्या बढ़ने लगी तो वे उनसे कन्नी काटने लगे। आखिर ‘‘गो-बाँध’’ घोटाला अखबारों की सुर्खियाँ बनने लगा ।
सरकार ने ‘‘गो-बाँध’’ केा लेकर एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया। जिसमें उसी विभाग के सर्वेसर्वा को प्रमुख बनाया गया। विभाग प्रमुख को तो अपने विभाग की सारी कारगुजारी पहले से ही मालूम थी क्योकि आज वे जिस बंगले में रह रहे है वो ‘‘गो-बाँध’’ की ही तो देन है। उन्होने विभाग के सबसे काबिल बाबू को बुलाकर कहा कि बाँध की जाँच रिपोर्ट बना ले, जिसमें यह लिखा हो कि इस बाँध के निर्माण में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। सबूतों की जरूरत पड़ने पर निचले स्तर पर सब इंजीनियर और एस.डी.ओ. आदि से कहकर जुटा लें। रिपोर्ट तैयार होने में कुछ माह लगना लाजमी था, इसलिए साहब जाँच के नाम पर विदेश दौरे पर चले गये।
कुछ माह बाद जाँच समिति कि रिपोर्ट में विभाग को दूध का धुला करार दे दिया । सब को लगा मामला खत्म हुआ, परंतु कुछ खोजी पत्रकारों ने यह छापना प्रारंभ कर दिया कि बाँध तो कभी बना ही नहीं। इस हो हल्ले से परेशान विभाग के मंत्री ने अधिकारियों को बुलाया और पूछा तो सब चुप थे। तब मंत्रीजी बोले ‘‘मुझ से कुछ छुपा नहीं है, मुझे मालूम है की बाँध कहाँ गया ? ये तो सब होता ही रहता हैं अब ये बताओ कि मुझे क्या दोगे ? अधिकारियों ने कहा ‘‘जो खाया था सब तो निकल गया अब आपको दे तो कहाँ से ?’’ मंत्रीजी बोले ‘‘तो मैं घोषणा कर देता हूँ कि मैं स्वयम् ‘‘गो-बाँध’’ देखने जाऊँगा। फिर आप जानो और आपका काम जाने’’ और मंत्रीजी ने पत्रकार वार्ता में घोषणा कर दी कि वे तीसरे दिन बाँध देखने जायेंगे।

अधिकारियों के तो हाथ-पांव फूल गये, जो बना ही नही उसे दिखाये तो कैसे ? सबको लगा किसी समझदार व्यक्ति के माध्यम से मंत्री जी से बात की जाये। वही बडे़ बाबू इस काम के लिए चुने गये जिन्होने पहले बाँध के पक्ष में रिपोर्ट बनाई थी। उन्होने मंत्री जी से कहा ‘‘सर आप को हम कैस खुश कर सकते है ?’’ मंत्री जी बोले ‘‘मुझे तो उतना ही चाहिए जितना पहले वाले मंत्री को दिया था।’’ बडे़ बाबू बोले- ‘‘सर, अब तो पिछला सब ले दे के बराबर हो गया है अतः सर, रास्ता भी आपके ही पास है।’’ मंत्रीजी बोले- ‘‘वो कैसे ?’’ बडे बाबू को तो इसी प्रश्न का इंतजार था वे बोले- ‘‘सर, आप बाँध के दौरे के समय एक और एक नये बाँध की घोषण करें।’’ मंत्री जी बोले- ‘‘इससे क्या होगा ?’’ बडे़ बाबू को गाड़ी पटरी पर आती लगी उन्होने कहा- ‘‘सर, इस बाँध को भी फाइलो में बनाएँगे आपके लिए।’’ मंत्री जी प्रसन्न हो गये और बोले ‘‘वेरी गुड, परंतु गो-बाँध कैसे दिखाओगे ?’’ बडे़ बाबू जैसे सभी प्रश्नों के लिए तैयार होकर आये थे। बोले "आप यदि दौरा एक हफ्ते बाद करे तो हम वो भी दिखा देगें।’’
मंत्री जी का दौरा कार्यक्रम एक हफ्ते टल गया। विभाग के अधिकारी अब बडे़ बाबू से पूछने लगे बाँध कहाँ से आयेगा ? बडे़ बाबू ने समझाया आप लोगो को तो पैसे के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। मै जब रिपोर्ट बना रहा था तो मुझे सबूत के रूप में कुछ फोटो की जरूरत महसूस हुई। खूब पता करने पर ‘‘गो-बाँध’’ समान मुझे ‘‘सो-बाँध’’ मिला। जिसकी फोटो रिपोर्ट मे लगी है। अब हमें ‘‘सो-बाँध’’ को एक हफ्ते में ‘‘गो-बाँध’’ बनाना है। इसके लिए रास्ते के पत्थर से लेकर बाँध के आस-पास लगे सारे बोर्ड व स्टाॅफ को बदलना होगा। इंजिनियर साहब ने कहा- पूरा अमला इस काम में लग जाये।
एक हफ्ते के बाद मंत्री जी ने ‘‘गो-बाँध’’ का भ्रमण किया वे बांध के निर्माण से संतुष्ट थे। उन्होने पत्रकार वार्ता में विभाग के काम की खूब तारीफ की। उन्होने सुदूर जंगल में बहने वाली नदी पर एक और बांध की भी घोषणा की। अब पूरा विभाग इस नये बांध को (नहीं) बनाने में लगा हुआ है।

आलोक मिश्रा "मनमौजी"
mishraalokok@gmail.com


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