प्रतिशोध - 6 Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रतिशोध - 6

(६)

समय अपनी गति से गुजरता गया । श्रेया ने नैतिक की सलाह पर अपने को व्यस्त रखने के लिए नौकरी ज्वाइन कर ली थी । अब तक श्रेया और नैतिक की जिन्दगी में छोटी मोटी तकरार को छोड़कर सबकुछ अपनी गति से अच्छा ही चल रहा था । आगे का समय भी बिना परेशानी के सम्हल जाता लेकिन कुछ दिनों से अपने मंथली पीरियड्स को लेकर परेशान श्रेया ने जब घर पर ही उस रात प्रेगनेंसी टेस्ट किया तो नैतिक की जिन्दगी में जैसे एक भूचाल सा आ गया ।

‘नैतिक ! आय टोल्ड यू टू टेक प्रीकॉशन । पर तुम्हें तो अपनी ही इच्छा और खुशी की पड़ी थी न ।’ श्रेया परेशान हो उठी ।

‘श्रेया ! मानता हूं मेरी भूल हुई । पर अगर मैं उस वक्त वो पिल्स लाना भूल गया तो तुम खुद भी जाकर ले सकती थी न ।’ नैतिक ने अपना बचाव करते हुए कहा ।

‘हां, सारी जिम्मेदारी तो जैसे मेरी ही है । करो तुम और तुम्हारी गलतियों की सजा मैं भुगतूं ।’ श्रेया नैतिक की कोई भी बात सुनने के मूड में न थी ।

‘हमारें बीच ये तू और मैं कहां से आ गए श्रेया ?’ नैतिक श्रेया की बात सुनकर परेशान हो उठा ।

‘छोड़ो ! मैं तुमसे बात नहीं करना चाहती । यू स्पोइल्ड माय लाइफ ।’ श्रेया ने गुस्से से नैतिक को झिड़क दिया ।

‘मैंने तुम्हारी जिन्दगी बिगाड़ दी ? शादी के बाद तो यह सब होना ही था श्रेया और इसमें हर्ज ही क्या है ? आज नहीं तो कल दो से तीन तो होना ही है ।” नैतिक श्रेया को समझाने का प्रयत्न करने लगा ।

‘नहीं नैतिक । मैं अभी से इस सब झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी । मैंने तुम्हें पहले भी कहा था ...’ कहते हुए श्रेया की आंखों से आंसू बहने लगे । 

‘पर श्रेया ...’ नैतिक ने श्रेया से कुछ कहना चाहा लेकिन श्रेया ने उसकी बात काट दी । 

‘इस वक्त बात मत करो मुझसे । तुमने मेरे सारे सपनों को रौंद डाला ।’

कम ऑन श्रेया । अब जो हुआ उसे भूल जाओ । ये बच्चा हमारी जिंदगी को खुशियों से भर देगा ।’ नैतिक ने श्रेया को फिर से समझाने का यत्न किया ।

‘बच्चा...बच्चा...बच्चा...! कान पक गए है मेरे ये शब्द सुनकर । तुमने मुझसे शादी क्या केवल बच्चा पैदा करने के लिए की थी ?’ श्रेया की चेहरा अचानक ही गुस्से से लाल हो गया ।

‘श्रेया !! मुझसे शादी करने का फैसला ही तुम्हारा था ।’ नैतिक को श्रेया का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और वह भी गुस्से से चीख उठा ।

‘हां, मेरा फैसला था और यह मत भुलो कि तुम्हारी भी मर्जी मेरे फैसले में समायी हुई थी ।’ श्रेया सिर पकड़कर बेड पर बैठ गई ।

‘बचपन से लेकर आज तक तुम्हारें लिए मैंने कुर्बानी दी है । तुम्हारें पापा की डांट से तुम्हें बचाने के लिए तुम्हारी शरारतों का इल्जाम अपने ऊपर लेकर उनकी नजरों में बिगड़ा हुआ लड़का बन चुका था मैं ।’ नैतिक अपना संयम खो बैठा ।

‘मेरी फैमिली को इस मामले में घसीटने की जरूरत नहीं है ।’ श्रेया ने नैतिक को तेज स्वर में चेतावनी देते हुए कहा ।

‘योअर फैमिली ? मैं तुम्हारी फैमिली नहीं हूं ?’ 

‘यू आर सो केयरलेस नैतिक । तुम्हें मेरी जरा सी भी परवाह होती न तो तुम हमारा हनीमून यूं टालते न । अब तो सबकुछ खत्म हो गया । आय एम नॉट प्रीपेयर्ड फॉर बेबी ।’ कहते हुए श्रेया रो पड़ी ।

‘तैयार तो मैं भी नहीं था पर अब जो कुछ हो गया उसे सम्हालना तो होगा ही ।’ नैतिक श्रेया के करीब आकर बैठ गया ।

‘तुम्हारें लिये यह कह देना बहुत आसान है नैतिक । मुझे अभी थोड़ी बहुत फ्रीडम चाहिए । अभी से बच्चे का ये चक्कर मेरी जिन्दगी के कम से कम अगले पांच साल खत्म कर देगा ।’ श्रेया के स्वर में निराशा छाई हुई थी ।

‘कम ऑन श्रेया । सब ठीक हो जाएगा ।’ नैतिक ने श्रेया को सांत्वना देते हुए कहा ।

‘भगवान हो न तुम ! सब ठीक हो जाएगा । माय फुट ! सब ठीक हो जाएगा ।’ कहते हुए श्रेया लेट गई और चद्दर खींचकर अपना मुंह ढंक लिया ।

अगले दो दिनों तक नैतिक और श्रेया के बीच कोई बातचीत न हुई । दोनों मुंह चढ़ाकर अपने अपने ऑफिस जाते और शाम को लौटने पर अकेले अपने में ही व्यस्त रहते । पहले भी उन दोनों के बीच कभी कभी तकरार होती रहती पर दोनों अगले दिन का सूरज देखने से पहले उसे खुद ही सुलझा लेते थे । राधिका उनके बीच होती हर छोटी मोटी तकरार की साक्षी थी लेकिन इस दफा उनका दिन प्रतिदिन बढ़ता झगड़ा देख वह खुद भी परेशान हो उठी ।

रात को एक ही डायनिंग टेबल के इर्दगिर्द जमा होकर तीनों चुपचाप खाना खा रहे थे । उनकी चुप्पी राधिका को खटक रही थी ।

‘बात क्या है कोई बतायेगा मुझे ?’ सहसा राधिका बोल उठी ।

‘कुछ नहीं मम्मी ! हमारा आपसी मामला है । निपटा लेंगे ।’ नैतिक ने जवाब दिया ।

‘आज तीन दिन हो गए है । जो कुछ भी हुआ है आपस में बातकर सुलझा लो । आपस में बात नहीं करोगे तो बात बनेगी कैसे ?’ कहते हुए राधिका ने एक नजर श्रेया पर डाली ।

‘बात करना बंद मैंने नहीं श्रेया ने की है । वह ही समझना नहीं चाहती ।’ नैतिक ने श्रेया की तरफ देखा ।

‘क्यों बंद की है उसका कारण भी बता दो ।’ श्रेया ने रूखे स्वर से नैतिक की बात का जवाब दिया ।

‘श्रेया, मम्मी के सामने तमाशा मत करो यार । अन्दर चलकर बात करते है न !’ नैतिक ने कहा ।

‘तुमसे बात करने का अब कोई मतलब नहीं ।’

‘देखा मम्मी ! यही बात नहीं करना चाहती तो कैसे मनाऊं इसे ?’ श्रेया की बात सुन नैतिक ने राधिका की तरफ देखा ।

‘कोई जरूरत नहीं है मुझे मनाने की । पहले तो अपनी मनमानी करते हो और फिर अपेक्षा रखते हो कि तुम्हारी हर बात मान लूं । तुम्हारी गुलाम नहीं हूं मैं ।’ कहते हुए गुस्से से श्रेया खड़ी हो गई ।

‘श्रेया ! ये कौन सा तरीका है बात करने का ।’ राधिका ने उसे टोका ।

‘मम्मी ! आप हमारें बीच न ही पड़े तो बेहतर है ।’ श्रेया पैर पटकती हुई बेडरूम में चली गई । नैतिक की नजर राधिका से मिली । वह भी गुस्से से वहां से उठकर बेडरूम में चला गया ।

राधिका परेशान सी वहां काफी देर तक प्लेट्स में छोड़े गए अधूरे खाने को देखती रही ।

‘तुम्हें मम्मी से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी ।’ नैतिक बेडरूम में आते ही श्रेया पर बरस पड़ा ।

‘तो अब तुम मुझे बात करने का सलीका भी सिखाओगे ?’ श्रेया की आंखें गुस्से से लाल हो रही थी ।

‘मेरे कहने का यह मतलब नहीं था श्रेया । मम्मी को तुम्हारी बात का बुरा लगा है ।’

‘तो मैं क्या करूं ? सभी को खुश रखने का कोई ठेका नहीं ले रखा है मैंने ।’ श्रेया ने गुस्से से कहा ।

‘तुम कब से ऐसी हो गई श्रेया ?’ नैतिक ने श्रेया की आंखों में आंखें डालकर प्यार से पूछा ।

‘नैतिक । खुद से लड़ते हुए थक गई हूं । आय नीड सम स्पेस ।’ कहते हुए श्रेया की आंखें गीली हो गई ।

‘कम ऑन श्रेया ! बहुत ज्यादा मत सोचो और जो हो रहा है उसे होने दो । जब परिस्थितियों को बदला न जा सके तो उसे स्वीकार कर चलने में भी सभी की खुशी समायी होती है ।’ नैतिक ने श्रेया को भावनात्मक रूप से कमजोर पड़ते देख समझाया ।

‘परिस्थिति अभी मेरे हाथ में है नैतिक । आय विल एबोर्ट दिस चाइल्ड ।’

‘नहीं । कभी नहीं ।’ श्रेया की बात सुन नैतिक ने अपना विरोध दर्शाया ।

‘प्लीज नैतिक । समझने की कोशिश करो । फाईनेंशियली एंड मेंटली वि आर नॉट प्रिपेयर्ड फॉर दिस चाइल्ड ।’

‘दिस इज अवर फर्स्ट चाइल्ड । हमारे प्यार की पहली निशानी है ।’ कहते हुए नैतिक भावुक हो उठा ।

‘बी प्रेक्टिकल नैतिक । मुझे इमोशनली ब्लेकमेल मत करो ।’ श्रेया ने अपने शब्दों पर भार देते हुए कहा ।

‘तुम मुझे गलत समझ रही हो यार । कुछ चीजे जिन्दगी में समय पर हो जानी चाहिए ।’ बोलते हुए नैतिक झुंझला उठा ।

‘वही तो तुम्हें मैं समझा रही हूं । अभी यह सही समय नहीं है बच्चे के लिए ।’

‘तुम बहुत ही जिद्दी हो लेकिन तुम्हारी यह जिद मैं हरगिज पूरी नहीं होने दूंगा ।’ श्रेया की बात सुनकर नैतिक स्वर गुस्से से तेज हो गया ।

‘आय डोन्ट केयर ।’ श्रेया ने गुस्से से जवाब दिया और चद्दर खींचकर बेड पर लेट गई । 

नैतिक ने उसे घूरा और फिर बेडरूम से बाहर आ गया ।

XXXXX

पिछले कुछ दिनों से श्रेया अपनी मम्मी के घर आकर रह रही थी । वन्दना एक सप्ताह पहले ही मनाली से योगा कैंप में भाग लेकर वापस लौटी थी । वह श्रेया और नैतिक के बीच हुए झगड़े से पूरी तरह से अनजान तो नहीं थी लेकिन उसके पीछे की वजह वह अब भी नहीं जान पाई थी । श्रेया दो दिनों से ऑफिस भी नहीं जा रही थी ।

‘अब बताएगी भी कि बात क्या हुई ?’ वन्दना के सब्र का बांध अब टूट चुका था । उसने दोपहर को अपने में ही खोयी हुई सी बैठी श्रेया को देखकर पूछा ।

‘कुछ नहीं ।’ श्रेया ने वन्दना की तरफ देखा भी नहीं ।

‘अपना घर छोड़ तीन दिन से यहां आकर पड़ी हुई है । न ऑफिस जा रही है और न ठीक से खा पी रही है । आस पड़ौस वाले भी तरह तरह की बातें कर रहे है । न तू कुछ बता रही है न नैतिक ।’

‘आपको अपनी बेटियों की चिन्ता ही कहां है । आप तो बस कभी मनाली तो कभी नैनीताल जाकर योगा शिविर ही अटैंड करो ।’ श्रेया अचानक ही गुस्से से उबल पड़ी ।

‘ये क्या हो गया है श्रेया तुझे ? मुझे बताएगी तो पता चलेगा न ? और अब मुझे अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद खुद के लिए समय मिला है तो वही कर रही हूं जो मुझे अच्छा लगता है । इसमें तुझे गुस्सा होने वाली कौन सी बात है ?’ श्रेया का जवाब सुनकर वन्दना हतप्रद सी रह गई ।

‘आय एम गोइंग टू फाइल अ कम्प्लेन अगेंस्ट नैतिक ।’ श्रेया के मन में चल रही उथलपुथल अब शब्द बनकर बाहर आ रही थी ।

‘कम्प्लेन ? कैसी शिकायत ?’ श्रेया की अधूरी बात वन्दना की समझ से परे थी ।

‘डोमेस्टिक वायोलेन्स ।’

‘पगला गई है क्या ? छोटे मोटे झगड़े हर घर में होते है ।’ श्रेया के मुंह से भारी भरकम शब्द सुनकर वन्दना घबरा सी गई ।

‘नैतिक ने मुझे चांटा मारा मम्मी ।’ श्रेया ने स्पष्ट किया ।

‘व्हाट ? व्हाई ? वह ऐसा कर ही नहीं सकता ।’ वन्दना की आंखों में प्रश्न तैर रहा था ।

‘व्हाई इज नॉट इम्पोर्टेंट । उसने मुझ पर हाथ उठाया यह मुद्दे की बात है ।’ श्रेया कहते हुए अपमान से तिलमिला उठी ।

‘उसने गुस्से से तुझे एक चांटा मारा और तू इसे डोमेस्टिक वायोलेंस कह रही है । डोमेस्टिक वायोलेंस क्या होता है वह जाकर अपनी कमला बाई से पूछ । आये दिन अपने शराबी पति के हाथों पीटती रहती है लेकिन फिर भी परिवार टूटने से बचाने और बच्चों के भविष्य की खातिर सह लेती है सब ।’

‘मैं पढ़ी लिखी हूं । कमला बाई नहीं हूं और यह उसकी भूल है । उसे अपने बारें में सोचकर विरोध करना चाहिए ।’ वन्दना की बात सुनकर श्रेया अपनी जगह से खड़ी हो गई ।

‘कमला को क्या करना चाहिए और क्या नहीं यह उसकी मर्जी है लेकिन श्रेया बेटे गलती से एक बार बीबी पर हाथ उठा देना घरेलू हिंसा नहीं होती । जिन्दगी में थोड़ा लेट गो करना सीख । गलती कहीं न कहीं तेरी भी रही होगी ।’ वन्दना ने श्रेया को समझाने का यत्न किया।

‘आपको तो हमेशा से ही नैतिक ही सही लगा है और मैं गलत ।’ श्रेया ने वन्दना को घूरा ।

‘अब जो सही है उसे सही कहना गलत है तो हां मैं गलत हूं ।’  

‘कोई अपनी इच्छाओं को जबर्दस्ती से किसी पर कैसे थोंप सकता है ?’ वन्दना की बात सुन श्रेया ने उससे पूछा ।

‘बात क्या है साफ साफ बता ।’

‘आय हेड प्रेगनेंसी पर मैंने एबोरशन पिल्स ले ली थी । नैतिक को जब इस बारें में पता चला तो हम दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ और उसने मुझ पर हाथ उठाया ।’ श्रेया ने थोड़े में अपनी बात पूरी की ।

‘क्या ? पागल तो नहीं हो गई तू ? तूने प्रेगनेंसी टर्मिनेट की ?’ वन्दना विश्वास ही नहीं कर पा रही थी ।

‘मैं अभी से मां नहीं बनना चाहती । मेरे भी कुछ सपने है जो मुझे अभी पूरे करने है ।’

‘श्रेया । तेरे सपने तू मेरी तरह बाद में भी पूरे कर सकती थी । शादी के बाद कुछ फैसले आपसी सहमति से लिए जाते है । नैतिक की भी यही इच्छा होती तो कोई परेशानी न थी पर तूने उसकी मर्जी के विरुद्ध इतना बड़ा फैसला खुद ही लेकर अच्छा नहीं किया ।’ वन्दना अब परेशान होते हुए घबरा भी रही थी ।

‘आपको तो हर बात में मैं ही गलत लगती हूं ।’ कहते हुए श्रेया गुस्से से पैर पटकते हुए अन्दर कमरे में चली गई ।

वन्दना अपना सिर पकड़कर वहां काफी देर तक कुछ सोचती हुई बैठी रही ।