(५)
चार महीनों बाद दीवाली के बाद एक सादे समारोह के रूप में करीबी रिश्तेदारों की हाजरी में नैतिक और श्रेया की शादी सम्पन्न हो गई । श्रेया को इस बार अपनी मम्मी का घर छोड़कर अपने अरमानों के घर में गृह प्रवेश करते वक्त न रुलाई फूटी और न कुछ पीछे छूट जाने का अहसास हुआ । उसके लिए नैतिक के घर आना उतना ही आसान था जितना की किसी का एक ही मोहल्ले में एक घर खाली कर दूसरे घर जाना ।
‘नैतिक, दस दिन हो गए पर तुमने अभी तक नहीं बताया कि हम अपना हनीमून कहां प्लान करने वाले है ?’ रात को नैतिक की छाती के बालों के संग अठखेलियां करते हुए श्रेया ने पूछा ।
‘श्रेया, तुम्हें बताया तो था कि मुझे अगले चार महीनों तक ऑफिस से छुट्टी मिलने की कोई गुंजाइश नहीं है । दो महीने पहले ही नौकरी चेंज की है तो प्रोबेशन पीरियड में लम्बी छुट्टियां मिलना मुश्किल है ।’ नैतिक ने बड़े ही प्यार से जवाब दिया ।
‘तुमने ही बात नहीं की होगी वर्ना शादी के लिए छुट्टियां तो यूं चुटकी बजाते ही अप्रूव हो जाती है ।’ श्रेया ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा ।
‘हो जाती है पर पहले से प्लान किया होता तो । हमारी शादी तो चट मंगनी और पट ब्याह की तरह अचानक से ही हो गई । कुछ भी तो प्लान नहीं था ।’ नैतिक करवट बदलकर श्रेया के समीप आकर अपने होंठ उसके होंठ के करीब ले गया ।
‘छोड़ो भी ।’ श्रेया ने नैतिक को धक्का देते हुए कहा, ‘इन सब में मेरी क्या भूल है ?’
‘भूल तो मेरी भी नहीं है । चार महीने यूं चुटकी बजाते निकल जाएंगे ।’ नैतिक ने श्रेया को फिर से अपनी बाहों में जकड़ लिया ।
‘तब तक तो शादी का सारा रोमांस ही खत्म हो जाएगा । सब्र तो होता नहीं तुमसे ।’ कहते हुए श्रेया मुस्कुराकर नैतिक से लिपट गई ।
‘अच्छा ! सब्र मुझसे नहीं होता या तुमसे नहीं होता ? ठीक है लो आज से चार महीने तक बाबा नैतिक ब्रह्मचर्य व्रत की घोषणा करते है ।’ कहते हुए नैतिक करवट बदल कर लेट गया ।
‘तुम्हारा ये ब्रह्मचर्य व्रत चार मिनिट भी नहीं चलेगा ।’ श्रेया की हंसी छूट गई और उसने नैतिक को जबर्दस्ती एक मीठा सा चुंबन दे डाला । नैतिक ने श्रेया को कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसके होंठों का रस पीने लगा । देह में उठ रहे आवेग के साथ श्रेया ने नैतिक की खुली पीठ पर अपनी बाहें इस कदर जकड़ ली जैसे कोई नाजुक सी बेल किसी पेड़ के तने को अपना बनाकर उससे लिपट जाती है । श्रेया को चूमते हुए अब नैतिक के हाथ श्रेया की देह के इर्दगिर्द घूमते हुए उसकी कमर पर आकर ठहर गए । कुछ देर तक को श्रेया को चूमते हुए नैतिक ने अपना एक हाथ बढ़ाकर बेड के पास रखी टेबल का ड्रोअर खींचकर कुछ टटोलने का प्रयास किया । कुछ हाथ न लगने पर उसने श्रेया की अनावृत देह पर चादर खींचकर डाल दी और खुद उठकर ड्रोअर में खाली पड़ा कोंडोम का पैकेट देखने लगा ।
‘कम ऑन नैतिक ! क्या हुआ ?’ श्रेया ने मदहोशी की हालत में पूछा ।
जवाब में नैतिक ने खाली पैकेट श्रेया को बताते हुए अपने सिर पर हाथ रख लिया ।
‘यू आर व्हेरी केयर लेस । अब यह सब भी मुझे ही याद रखना होगा क्या ?’ श्रेया गुस्सा होते हुए उठकर बैठ गई ।
‘एक बार में कुछ नहीं होगा ।’ कहते हुए नैतिक ने खाली पैकेट टेबल पर रखा और श्रेया को अपनी बाहों में ले लिया ।
‘नहीं नैतिक । कहीं कुछ हो गया तो । मुझे डर लगता है । मुझे अभी से बेबी नहीं चाहिए ।’
‘कुछ नहीं होगा । कल आफ्टर अवर्स पिल्स लाकर दे दूंगा ।’ श्रेया की परेशानी का हल सुझाते हुए नैतिक उसे लेकर बेड पर गिर गया ।
अगली सुबह देर से नींद खुलने से नैतिक हड़बड़ाते हुए तैयार होकर जल्दी से ऑफिस निकल गया । श्रेया को रात को कही गई बात उसके जेहन से निकल गई और श्रेया भी राधिका की उपस्थिति में उससे इस बारें में बात नहीं कर पाई । श्रेया ने नहा धोकर खुद ही मेडिकल स्टोर जाकर पिल्स ले आना का फैसला लिया और नहाने चली गई । नहा धोकर जब वह बाहर निकली तो घर के बाहर हो रहे शोर को सुनकर उत्सुकतावश वह बाहर आई । मोहल्ले के लगभग सभी लोग सामने के मिश्रा जी के घर के बाहर जमा होकर बातें कर रहे थे । कुछ और जानने के उद्देश से वह महिलाओं के जमघट के साथ खड़ी राधिका और वन्दना के पास जाकर खड़ी हो गई ।
‘क्या हो गया ?’ श्रेया ने पूछा ।
‘मिश्रा जी की नेहा अपने साथ काम करने वाले किसी लड़के के संग भाग गई ।’ भीड़ में खड़ी एक महिला ने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया ।
‘चक्कर तो उसका काफी दिनों से चल रहा था पर मिश्रा जी को अपनी होनहार बेटी पर बहुत भरोसा था न ।’
‘इस बारें में पता मिश्रा जी को भी था । समय रहते खुद ही उसके संग शादी करवा दी होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता । आजकल तो कौन किससे से शादी करे क्या फर्क पड़ता है ।’
‘इस मामले में अपनी वन्दना और राधिका बहन समझदार निकली ।’
‘समझदारी तो बतानी ही पड़ती न । अपने पहले पति को वह नैतिक के लिए ही तो छोड़कर आई थी ।’
‘शटअप !’ महिलाओं की आपस में होती बातें सुनकर श्रेया अपने आप पर काबू न रख सकी, ‘आप लोगों को कोई हक नहीं है किसी और के बारें में इस तरह की मनगढ़ंत बातें बनाने का ।’
राधिका ने श्रेया के कंधे पर हाथ रखा और उसे घर के अन्दर लेकर आ गई । कुछ ही देर तक बातें होने के बाद बाहर से आता हुआ शोर कम हो गया ।
बाहर खुद को लेकर हुई बातें सुनकर श्रेया व्यथित हो उठी और चुपचाप काम करते हुए रसोई की खिड़की के पास खड़ी रह गई ।
‘श्रेया ! लोगों की बातें मन पर लगाकर दुखी नहीं होते बेटी ।’ राधिका ने श्रेया की व्यथा जानकर उसे समझाया ।
‘मम्मी ! हाऊ दे केन टॉक लाइक अ फूल ? किसी के बारें कुछ भी कैसे बोल सकते है ?’
‘बोल सकते है बेटी । कुछ भी बोल सकते है । सोसायटी इसी को कहते है । हिम्मत है तो सामना कर अपनी एनर्जी गंवाते रहो इनके पीछे, नहीं तो बहरे बनकर आगे बढ़ चलो ।’ राधिका ने उसे समझाया ।
‘मैं आपकी तरह इन सबकी बातों को आसानी से नहीं पचा सकती ।’
‘जानती नहीं क्या तुझे ? सही गलत को लेकर कितनी बार लड़ती थी तू नैतिक से बचपन में । तुझे याद है एक बार स्कूल में नैतिक ने किसी मोटी लड़की को टेम्पो कहकर चिढ़ाया था और फिर तू घर आकर उससे इस कदर उलझी थी कि उसे अगले दिन उस लड़की से माफी मांगनी पड़ी थी ।’ राधिका ने पुरानी बातें यादकर श्रेया से कहा ।
‘सही ही तो है मम्मी । सेल्फ रिस्पेक्ट हर किसी का होता है ।’ श्रेया ने कहा और बातें करते हुए वापस अपने काम में जुट गई ।
बातों ही बातों में वह रात वाली पिल्स वाली बात भूल गई ।