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बजट - ‘‘हमें का मालूम’’ ? (व्यंग्य कथा)

बजट - ‘‘हमें का मालूम’’ ? (व्यंग्य कथा)

वो बूढ़ा धीमे कदमों के साथ अपनी झोपड़ी में दाखिल हुआ । झोपड़ी में एक ओर मिट्टी का चूल्हा ,एक ओर कुछ कथड़ियों के रुप में बिस्तर और जमीन पर पड़ी हुई बोरी कुल मिला कर कहा जाए तो एक ही कमरे में रसोई से शयन कक्ष तक सभी कुछ है । बुढ़िया झोपड़ी के बाहर से जलाने के लिए लकड़ियॉं लेकर आती हुई बोली ‘‘बजट का खेला देख आए का ?’’ बूढ़ा बीड़ी के टोटे को सुलगाता हुआ बोला ‘‘काहे का खेला ? हुआं पंचायत मा सबहीं कहत रहें कि खेला हे...खेला हे...पर काहे का खेला हुआ ...। हुआं टी.वी पर एक मनई बकर - बकर करत रहे । ’’ बुढ़िया लकड़ी के गठ्ठे को पटकते हुए बोली ‘‘तो का अइसई बजट होत हे ?’’ ‘‘ हमें का मालूम; हमउ तो पहिली ही बार देखा । सच कही तो कछु समझ मा नाहीं आवा ।’’बूढ़ा बोला । बुढ़िया वहीं जमीन पर बैठ गई और बोली ‘‘ पूछेव नाहीं कोउ ते कि ई बजट -वजट ते हमे का मिली ।’’बूढ़ा बीड़ी का लम्बा कश लेकर झोपड़ी के छप्पर की टूटी हुई लकड़ी की ओर देखते हुए बोला ‘‘तुझे तो बस लगत हे कि सबई हमरी फिकिर करत हे ,पिछले सरपंच कहत रहे उनकी सरकार हमरी फिकिर करत हे ; ई सरपंच कहत हे कि ई सरकार हमरी फिकिर करत हे । फिरउ हमरी हालत जस की तसई हे। आज तक कोउ दिए हे जो ई देहें । हम गुरुजी से पूछई लई रही कि ई बकर-बकर का मतबल होत हे ? तो वो बताइन रहे कि हमे कम कमाई के कारण इन....इन... उका का कहत हे इनका...इनकाम टेक्स न देएक पड़ी । ’’ बुढ़िया बोली ‘‘ तो का हम पहले देत रहें ?’’ ‘‘ना.... हमने तो कबउ नहीं दई ’’बूढ़ा चट से बोला जैसे अगर देर कर दी तो कोई ले ही न ले । ‘‘ तो या मे का नवा भयो ?’’ बुढ़िया बोली । बूढ़ा बोला ‘‘ हमें का मालूम ,ई तो उई हमे जो बताइन हे वई तो हम बताइत हे ; तू सुन उई बतात रहे कि कार , घर ,हवाई जहाज और रेलउ महेंगी होई ।’’बुढ़िया बोली ‘‘ होई जाए हमरी बला ते ई कौन हमें खरीदने हे । घर..घर... ई झोपड़ा का महिग होई । नजूल वाले जब हटाइहे तब दूसर जगा देख लेबे । ’’ बूढ़ा खिसिया के बोला ‘‘ तू सुनत-वुनत तो हे नाहीं बस बकर-बकर किए जात हे ;गुरुजी कहत रहीं कि पिट्रोल आउर डीजलउ महिंगा होई ।’’ बुढ़िया को तो जैसे बोले बिना चैन ही नहीं ,वो फिर बोल पड़ी ‘‘ तुझे कउनी गाड़ी चलाएक हे ? ई बता मिट्टी तेल मिली कि नाहीं ?’’ बूढ़ा हाथ फटकारते हुए बोला ‘‘ हमें का मालूम ई तो उ बताइन ही नई ।’’ बुढ़िया बोली ‘‘ तो ई कहो न बजट का मतबल बकवास होता हे । तुझे तो बस टेम खराब करना होत हे । चल बजार जा कछू सौदा पानी ले आ तो नीक रही ।’’ बूढ़ा खीसे की ओर इशारा करते हुए बोला ‘‘ का लाएक हे ? हमरे पास तो दसई रुपिया हे । ’’ बुढ़िया इन बातों की आदी है बोली ‘‘ सही कहत हो दस रुपिया मा का होई , तुम्हरी तो दवाई ही बीस रुपिया की होई ; अईसा करो रहे देओ ; ई दस रुपिया कल के काम आईहे । ’’ बुढ़िया घुटने पर हाथ रख कर एक कराह के साथ उठते हुए बोली ‘‘ तुम्हरी बजट की बकवास मा अंधेरा होई गवा ; चली उठी लालटेन जलाई।’’
आलोक मिश्रा


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