//टकला//
शीर्षक पढ़ कर आपको यह लग रहा होगा कि आज मैं इन्टरनेट से चुराकर कुछ सामग्री परोसने जा रहा हुँ। ऐसा कुछ नहीं है। टकला होना या गंजा होना जहाँ समाज में आम समस्या है। वहीं इसका हास्य व्यंग्य साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान है। समाज मे भी मनोविनोद के लिये अनेकों बार टकलों का सहारा लिया जाता है।
टकलों का संसार भी बड़ा विचित्र है। अक्सर युवावस्था समाप्त होते न होते लोग गंजेपन दूर करने के विज्ञापनों को पढ़ते दिखाई देते है। ऐसे लोग विभिन्न प्रकार के तेल, लोशन और औषधियों की शरण लेते है, लेकिन अंत में थक-हार कर टकला समुदाय में शामिल हो ही जाते है। चलिये ...........तो सबसे पहले टकलों के प्रकारों का विश्लेषण करते है। एक तो होता है पूर्ण टकला । इसका उदाहरण देखना हो तो लेखक की फोटो को गौर से देखिये। ऐसे टकलों का सिर मरूस्थल सा होता है जिस पर एक भी तिनका उगने से इन्कार कर देता है। दूसरे प्रकार के टकले हवाई पट्टी से आकार के होते है। इनके सिर के बीचो-बीच स्वतः ही हवाई पट्टी का निर्माण हो जाता है और आस-पास हरियाली शेष रहती है। तीसरे प्रकार के टकले हैलिपेट आकार के होते है याने सर के बीचो-बीच बस एक गोलाकार खाली स्थान जहाॅं ‘‘एच’’ लिखकर हेलिकाप्टर उतारा जा सकता है। कुछ और भी प्रकार है। आपने भी अनेकों विचित्र प्रकार के टकले देखे होंगे। मैने तो एक ऐसे टकले को भी देखा है जिसके सिर के एक ओर कनपटी पर लंबे-लंबे बाल थे और बाकी सफाचट मैदान। वेे अपने एक ओर के बालों से दूसरी ओर की बंजर जगह को ढ़ाक कर घुमते। बस परेशानी तब होती जब वे खुले में हो और वर्षा हो जाये।
यदि मैं यहाँ ललित निबंध की परम्परा का निर्वहन न करते हुये टकलेपन की लाभ और हानि का बखान न करूं तो आप मुझे एक निम्नकोटी का लेखक ही मानेगें। देखा जाय तो टकले होने से सभी डरते है, कारण क्या हो सकता है ? अरे........कारण केवल इतना है कि इससे आदमी अपनी उम्र से बड़ा दिखने लगता है और आजकल बड़ा होना किसे पंसद है। युवा टकलों को लड़कियाँ सलमान और शाहरूख चाहत के चलते रिजेक्ट कर देती है। साथ ही हमउम्रों के बीच टकलों को यह डर लगा रहता है कि कहीं कोई उन्हें ‘‘अंकल’’ जैसे संबोधन से संबोधित न कर दें।
बहुत सोचा टकले होने की हानियां कम और लाभ ही अधिक दिखाई दियें। सोचिए...नाई के खर्च की पूरी बचत, ऊपर से कंघी करने और बार-बार बाल संवारने का तो झंझट ही नहीं। ये तो कुछ भी नही, पत्नी जब मारने पर आमादा हो जाये तो बाल पकड़ कर नही मार सकती। आपको और क्या-क्या लाभ गिनाउ। टकले होने से आयु अधिक लगती है.....न। बस ऐसा व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अलग-अलग आयु वर्ग के लोगो में घुल-मिल सकता है। इसी से जुड़ा एक लाभ और भी है जो जानते है कि आप युवा है उनके साथ मिलकर आप गुलछर्रे उड़ा सकते है और कभी पकड़े भी गये तो लोग आपके टकलेपन के कारण प्रौढ़ समझकर, यह समझते हुये कि इस उम्र का व्यक्ति ऐसी हरकत नहीं करेगा, छोड देगें। मै नहीं कहता परन्तु ऐसा बहुत से लोग कहते है टकले भाग्यशाली, धनवान और बुद्धिमान होते है। हालाकि मैने पागलों को भी टकला देखा है। हाॅं...यह बात अलग है कि टकलापन कुछ लोगों के लिये भाग्य, धन और बु़द्ध का सूचक अवश्य है। आप तो यह समझिये टकलापन एक वरदान जो हर किसी को नहीं मिलता वो बडे़ नसीब वाले होते है जिन्हें यह वरदान प्राप्त है।
हमारे अनेकों मित्रो को यह सौभाग्य भरी जवानी में प्राप्त हो गया, किन्तु र्दुबुद्धि के वश में आकर वे बालों वाली टोपी अर्थात ‘‘विग’’ की शरण में चले गये। अब वे हमेशा ही नकली रूप के साथ दिखाई देते है। वैसे यह तो फिल्म अभिनेता भी करते रहे है। ऐसे अभिनेताओं पर मर-मिटने वाली बालाऐं यदि उन्हें असली रूप में देख ले तो मरने मारने पर उतारू हो जाये। इसके साथ ही कुछ लोग ऐसे भी है जो कृत्रिम रूप से टकले बनकर इस समुदाय में घुसपैठ करने की कोशिश करते नजर आते है। वास्तविकता यह है कि ऐसे लोग स्वाभाविक रूप से टकले न होते हुये भी टकलेपन का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के चक्कर में ऐसा करते है।
इन सबके बावजूद भी समाज में टकला समुदाय अलग-थलग और उपेक्षित है। समाज में जो उच्च पदों और स्थानों पर टकले दिखते है, वे स्वयं की मेहनत से ही वहां पहूंचे है। या युं भी कह सकते है कि वे मेहनत करते-करते टकले हो गये है। अब यह आवश्यक है कि इस समुदाय की ओर ध्यान दिया जाय। इस समुदाय को आरक्षित घोषित करते हुये इसके लिए विशेष प्रयास किये जाये। इस समुदाय में भी एकता का आभाव है अतः आज से ही सभी टकले एक हो जाये और संघर्ष करे। हो सकता है कल इस देश में हम टकलों की ही सरकार हो।
आलोक मिश्रा