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मां का प्यार जिंदगी

यह कहानी है मुस्कान की।
मुस्कान दस साल की उसकी छोटी बहन सात साल की।
भरा पूरा परिवार है।
दादा-दादी, माता-पिता, चाचा चाची ।
हंसता खेलता बहुत ही प्यारा परिवार।
सुमन की मां सारे गांव की चहेती जितनी भी लड़कियां है सारे ही उसके फ्रेंड क्योंकि सुमन की मां रसोई के साथ-साथ सिलाई, कढ़ाई, बुनाई और गायन में भी नंबर वन है।
अपने परिवार की संस्कारी और आज्ञाकारी बहू।
पूरे गांव की लड़की और बहुएं उससे सिलाई कढ़ाई के साथ गाना सीखने आया करती थी।
कोई भी ऐसा गुण नहीं था जो सुमन की मां नहीं जानती थी ।बातें इतनी मीठी कि सब मोहित हो जाए। सुंदर इतनी कि सब देखते ही रह जाए।
सबको खुश रखना उसकी जिम्मेवारी ।
पर दूसरी तरफ उसकी खुद की बेटी उसके प्यार के लिए तरसती रहती थी।
सारे ही गांव वालों की बेटी थी ।सुमन और मुस्कान चाचा चाची दादा-दादी सबका प्यार।
सिर्फ नहीं मिलता था तो मां का प्यार।
क्योंकि मां तो औरों की खुशियों में खुद को समर्पित कर चुकी है।
ऐसा नहीं है कि सुमन की मां अपनी बेटी से प्यार नहीं करती थी।
पर कभी जता नहीं पाई। सुमन की मां अपनी बेटी का हर काम करती नहलाती अपने हाथों से खाना खिलाती बाल बनातीं स्कूल का होमवर्क पूरा करा कर स्कूल भेजती।
पर एक खामोशी थी रिश्तों में खुलकर बातें नहीं करती आपस में।
सुमन और मुस्कान दोनों ही बहनों के बीच बहुत ही अटूट प्रेम और विश्वास का रिश्ता था। दोनों ही एक दूसरे का पूरा ख्याल रखती और एक दूसरे से कुछ नहीं छूपाती थी।
सुमन की मां दूसरों का ख्याल रखते रखते अपनी ही बेटी से इतना दूर हो गई की कोई भी कुछ बेटी के बारे में प्रोत्साहन की बात करते की आपकी बेटी पढ़ने में बहुत तेज है। बहुत ही अच्छै संस्कार है बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना जानती है।
तो बहुत खुश होती।


और जब भी कोई शिकायत करता किसी के वृक्ष में से फल तोड़ लिया है, जैसे आम, अमरूद, अनार
बेटी को आकर प्यार से समझाने के बजाय पिटाई कर देती थी। एक बार पूछती भी नहीं थी उसने ऐसा किया या नहीं।


किसी को कोई भी काम लेना हो ,कह देते हमारे ये काम कर दो ,नहीं तो हम तुम्हारी मां से कह देंगे तुम ने गलती किया है।
फिर तुम्हारी पिटाई होगी तुम्हारी मां तो तुम से पूछेगी नहीं तुम ने किया या नहीं।
जब अपनी सहेलियों को मां के साथ हंसकर बात करते देखती उन दोनों का भी मन करता। पर नहीं कर पाती।
सुमन की सहेलियां अक्सर कहती तुम्हारी मम्मी तुम दोनों से प्यार नहीं करती।
हमारी मां हमसे बहुत प्यार करती है।
दोनों ही बहनें गांव वालों और अपने परिवार के नजदीक और अपनी मां से दूर होने लगी। किसी चीज की जरूरत पड़ने पर चाची दादा-दादी के पास जाती।


अपना ज्यादा से ज्यादा काम खुद करने लगी जिससे मां के पास जाने से पिटाई ना हो।
दूसरी तरफ मां को लगता बच्ची बड़ी हो गई है और समझदार भी अपना काम खुद करने लगी है।


दोनों बहनें हमेशा अच्छा करना चाहती और करती भी पर हमेशा ही उसकी मां की वजह से पिछे रह जाती।
एक दिन परीक्षा में पेपर लिख रही थी सुमन के परोस में रहती थी रानी उसके कलम लिखते समय अचानक खराब हो गई।
रानी ने सुमन से कहा तुम अपना कलम हमें दे दो हम लिख लेते हैं पेपर । बाद में तुम लिख लेना सुमन ने कहा नहीं ।समय नहीं है तुम्हें देंगे तो फिर हम कब लिखेंगे । रानी ने कहा हमें दे दो नहीं तो तुम्हारी मम्मी से जाकर कहेंगे तुमने मेरा पेपर फार दिया इसलिए हम परीक्षा नहीं दे पाए। और अपना पेपर फारने लगी डर से सुमन ने अपना कलम रानी को दे दिया ।और वह खुद एग्जाम में कुछ नहीं लिख पायी जिस कारण उसे बहुत ही नुकसान पहुंचा।


एक बार सुमन आम के पेड़ पर से गिर गई।
उसकी हाथ टूट गयी। उसके चाचा डॉक्टर से पट्टी करवा कर ले आए। फिर सुमन के दादाजी ने सुमन के मां को बहुत डांटा। उन्होंने कहा सारे समाज की मां बहन बहू और सहेलियां बन कर क्या फायदा गर तुम्हारी बेटी को तुम अपना प्यार और समय नहीं दे पायी।
सुमन की मां को अपनी गलती का एहसास हुआ।
और अब अपने दोनों ही बेटीयों को पूरा समय और प्यार देती है।


फिर जब बेटी ने बताया कितने ही बार उसने बिना किसी गलती के ही मां से पिटाई खायी है।
तो मां को बहुत पश्चाताप हुआ। मां को समझ में आ गया था की, बातचीत द्वारा दोनों तरफ की बात जानने के बाद ही सजा या प्रोत्साहन देना चाहिए।

बातचीत करने से सामने वाले के दिल में क्या है हमें पता चलता है। फिर हम उस हिसाब से अपना काम करते हैं।
कभी कभी हम बड़े, बड़ों को अहमियत देने के चक्कर मैं छोटों के बातों को नजरंदाज कर देते हैं।
जिससे बच्चों के मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

अम्बिका झा 👏



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