तोड़ के बंधन - 6 Asha sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तोड़ के बंधन - 6

6

“मिताली जी! कल सुबह एक इंपोर्टेंट मीटिंग है. जरूरी इन्फॉर्मेशन आज ही कलेक्ट करके फ़ाइल बना देना.” सिन्हा साब ने दोपहर बाद मिताली को हिदायत दी.

“ठीक है सर. लेकिन कल तो सनडे है ना!” मिताली ने याद दिलाया.

“हाँआँ, सनडे तो है लेकिन ये बड़े लोग छुट्टी के दिन ही मीटिंग रखते हैं ताकि ऑफिस के दूसरे दबाव न हों.” बॉस ने हँसते हुये कहा.

इन दिनों सिन्हा साब का सेक्रेटरी छुट्टी पर चल रहा है इसलिए मिताली को अतिरिक्त काम देखना पड़ रहा है. बच्चों को देर होने का कहकर मिताली मीटिंग की तैयारी में जुट गई. जब फ़ाइल पूरी करके बॉस के कमरे में गई तो सामने लगी घड़ी सात बजा रही थी.

“अरे बाप रे! सात बज गए.” मिताली बुदबुदाई. तभी उसका मोबाइल बजने लगा. देखा तो घर से फोन था.

“मम्मी! आज पिज्जा खाने का प्रोग्राम था ना.” विशु ने फोन उठाते ही उलाहना दिया.

“बस निकलने ही वाली हूँ. तुम लोग तैयार रहो.” मिताली ने सॉरी बोलते हुये कहा. इसी बीच उसकी आँखें बॉस से टकराई और उन्होंने उसे इशारे से मना किया. मिताली सोचने लगी. फिर विशु को फोन होल्ड करने को कहा.

“क्या हुआ सर? कुछ कमी है क्या?” मिताली ने पूछा.

“अभी कम से कम आधे घंटे का काम और बाकी है.” बॉस ने कहा. मिताली वापस विशु से बात करने लगी.

“अच्छा सुनो! तुम लोग आधे घंटे बाद लोकेश अंकल के साथ यहीं मेरे ऑफिस ही आ जाना. यहीं से चलेंगे.” मिताली ने कहा और शेष काम निपटाने लगी. ऑफिस लगभग खाली हो चुका था. उन दोनों के अतिरिक्त सिर्फ एक चपरासी ही वहाँ मौजूद था.

काम पूरा होने ही वाला था. इसी बीच सिन्हा साब ने दो कप चाय मँगवा ली. चाय के साथ-साथ बातें भी हो रही थी.

“माफ करना मिताली जी. लगता है लोकेश साहब पर बहुत भरोसा करती हैं आप.” सिन्हा साब ने कहा. मिताली चौंक गई.

“लोकेश जी मेरे पड़ौसी हैं सर. बच्चों से बहुत प्यार करते हैं.” मिताली ने जवाब दिया.

“वैसे तो ये आपका व्यक्तिगत मामला है लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि आप महिलाएं बहुत जल्दी किसी पर भी भरोसा कर लेती हो.” सिन्हा साब ने “किसी पर भी” पर अतिरिक्त ज़ोर देते हुये कहा. तभी बाहर गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनाई दी. मिताली ने खिड़की से बाहर देखा. लोकेश बच्चों को लेकर आ चुका था. मिताली ने चाय का कप रखा और बॉस से इजाजत लेकर केबिन से बाहर निकल आई. अपने व्यक्तिगत सीमा क्षेत्र में सिन्हा साब का अनधिकृत प्रवेश उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा.

पूरी शाम बच्चों ने खूब मस्ती की. पब्लिक पार्क में टॉय ट्रेन की सवारी और झील में बोटिंग करवाने के बाद लोकेश वापस चला गया. बच्चे मिताली के साथ देर तक घूमते रहे. पिज्जा से लेकर पास्ता तक और गोलगप्पों से लेकर सोडा पीने तक... बच्चों ने हर चीज का जी भरकर लुत्फ उठाया. मिताली ने भी उनका पूरा साथ दिया.

घर पहुँचते-पहुँचते रात के ग्यारह बज रहे थे. जैसे ही मिताली ने अपने पोर्च की लाइट जलाई,कई जोड़ी आँखें खिडकियों के पर्दों के पीछे सक्रिय हो गई. मिताली सब जानती थी लेकिन बिना किसी की परवाह किये वह दोनों बच्चों की उंगली थामे घर के भीतर आ गई. बच्चे देर रात तक मिताली के मोबाइल में शाम को मस्ती करने वाले फोटो देखकर खुश होते रहे.

आज सनडे की छुट्टी थी. देर रात तक जागने के बाद अब बच्चे सो रहे थे. मिताली भी देर से ही उठी थी. घर का कामकाज निपटाकर इत्मीनान से चाय का कप लेकर बैठी ही थी कि घर के बाहर ऑटो रुकने की आवाज आई. घर की डोर बेल बजी और दरवाजा खोला तो देखा सामने जेठ-जेठानी खड़े थे. मिताली ने सिर पर दुपट्टा डाल कर दोनों के पाँव छुए लेकिन आशीर्वाद का एक शब्द भी उस तक लौट कर नहीं आया. जेठजी एक तरफ मुँह लटका के बैठ गये वहीं जेठानी उसके साथ भीतर आ गई.

“किसी पराये पुरुष के साथ यूँ खुले आम घूमते-फिरते शरम नहीं आई तुम्हें? अभी तो वैभव को गए साल भर ही बीता है और ये लक्षण.पता भी है क्या-क्या बातें हो रही हैं समाज में? लोग थूक रहे हैं हमारे ऊपर.” जेठानी जो मन में आये वो बके जा रही थी. वहीं मिताली को हैरानी हो रही थी कि ये बात उन तक पहुंची कैसे.

“अरे गई तो गई लेकिन व्हाट्सएप्प पर फोटो डालने की कहाँ जरूरत थी! अपनी जांघ आप ही उघाड़ रहे हो.” जेठजी जोर से बोले तो मिताली को समझ में आया कि जरूर कहीं निधि या विशु ने अपने व्हाट्सएप्प स्टेटस पर ये फोटोज लगाई होंगी.

“बेचारे बच्चे! क्या उन्हें खुश होने का अधिकार नहीं है.जब वे दूसरे बच्चों को अपने माँ-पापा के साथ मस्ती करते देखते होंगे तो उनका मन भी तो करता होगा ना. अब ईश्वर ने उनसे ये अधिकार छीन लिया तो क्या वे खुश भी ना हों. खुद वह भी तो कितनी विचलित हो जाती है जब शादीशुदा जोड़ों को साथ-साथ हँसते-बोलते, एक-दूसरे से लिपटते-चिपटते देखती है.” मिताली के मन में अंधड़ चलने लगे लेकिन उसने जेठ-जेठानी पर कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया.

“आप लोग चाय लेंगे या कॉफ़ी बनाऊं?” मिताली ने जेठानी की बातें एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दी.

“जहाँ यूँ संस्कारों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं वहाँ का पानी भी हमें नहीं पीना. चलो जी.” कहते हुए जेठ उठ खड़े हुए. पीछे-पीछे जेठानी भी मिताली को आग्नेय नेत्रों से घूरती हुई चल दी.

“नमस्ते ताऊ जी. नमस्ते ताई जी.” कहते हुए विशु ने उनके पाँव छुए लेकिन वे उसे भी नजरंदाज करके चले गए.

“क्या हुआ मम्मा! ताऊजी-ताईजी क्यों चले गए.” पीछे-पीछे आती निधि ने पूछा.

“कुछ नहीं! उन्हें हमारा लोकेश चाचा के साथ घूमना अच्छा नहीं लगा.” मिताली ने कहा.

“क्यों? वे खुद भी तो दो साल पहले शिमला घूमने गए थे. वे जहाँ चाहे घूमें और हम पार्क में भी ना घूमें?” विशु को गुस्सा आ गया. मिताली ने आँखों के पानी को गले में उतारकर उसे अपने से सटा लिया.

जेठ-जेठानी और सिन्हा साब की बातों ने मिताली को सोचने पर मजबूर कर दिया. वह अपने व्यवहार और लोकेश के साथ खुलते अपने रिश्ते पर पुनर्विचार करने लगी.

“लोकेश को मैंने किस अधिकार से बच्चों को लाने को कहा था? क्या मैं अकेले उन्हें घुमाने नहीं ले जा सकती थी?” सारे पक्ष विचारे तो मिताली ने अपनेआप को कटघरे में खड़ा पाया. मन ने लाख दलीलें दी कि उसने ये सब बच्चों की सुरक्षा के लिए किया लेकिन दिमाग ने उसकी सारी दलीलों को नकार दिया.

“क्या भूल गई तुम? तुम्हीं तो वैभव से कहा करती थी ना कि तुम्हारे बिना घूमना माने बिना शक्कर-दूध की चाय पीना. फिर कैसे पी गई तुम वो बेस्वाद चाय?“ मन ने उसे बहुत लताड़ा. मिताली अपनेआप को कुसूरवार मानने लगी. उसे जेठ-जेठानी की बातों में सच्चाई नजर आने लगी. बॉस का कहना भी ठीक लग रहा था कि महिलाएं किसी पर भी भरोसा कर लेती हैं.

“शायद कहीं न कहीं ये सभी लोग अपनी जगह सही ही हैं. क्या मैं स्वयं लोकेश पर आश्रित नहीं होती जा रही? क्या मैं उसमें सहारा नहीं तलाश कर रही” क्यों मैं हर बार परेशानी में उसका मुँह ताकने लगती हूँ? शायद मैंने भी जीने के लिए सरलतम रास्ता तलाश कर लिया है. क्या मैं सचमुच इतनी कमजोर हो गई हूँ? कहाँ गई वह हिम्मत... वह हौंसला... जो वैभव के जाने के बाद मैंने अपने भीतर संजोया था? इस तरह तो मैं बहुत कमजोर पड़ जाऊँगी. कल को यदि लोकेश उपलब्ध न हो तो? क्या मैं उसके बिना अपाहिज नहीं हो जाऊँगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं वैभव की कमी को लोकेश से भरने की कोशिश करने लगी हूँ. ये भी तो हो सकता है कि मेरे इस व्यवहार से लोकेश के भीतर कहीं किसी कोमल रिश्ते के अंकुर फूटने लगे हों. ईश्वर ना करे कि ऐसा कुछ हो. यदि कभी उसने मेरे सामने प्रस्ताव रखा तो क्या मैं उसे स्वीकार कर पाऊँगी? नहीं ना! फिर?” मिताली के दिमाग की जड़ें हिल गई. वह दिन रात इसी सोच में घुलने लगी. बावजूद इसके वह अपनी उधेड़बुन को किसी नतीजे पर नहीं ला सकी.

“ नहीं-नहीं! मैं ऐसी कोई अप्रिय स्थिति नहीं आने दूँगी. इससे पहले कि लोकेश या माँजी मुझे लेकर किसी गलतफहमी का शिकार हों, मुझे अपने आपको समेटना होगा. लोकेश से आवश्यक दूरी बनानी होगी.” गहरी उहापोह में घिरी वह पूरी तरह से यह तय नहीं कर पा रही थी कि लोकेश का सहारा उसकी कमजोरी बन रहा है या उसका साथ उसकी ताकत. आखिर तो सोच का पलड़ा किसी एक तरफ झुकाना ही होगा”. कई दिनों से इस तरह के विचार उसके साथी बने हुये थे.

आज ऑफिस जाते समय भी यही रस्साकस्सी उसके भीतर चल रही थी. उसने मन ही मन यह तय कर लिया था कि अब उसे लोकेश और उसके परिवार के साथ अपना घुलना-मिलना सीमित कर देना चाहिए. यह निर्णय लेने के साथ विचारों का झंझावात थमने ही वाला था कि अचानक गाड़ियों के टकराने की तेज आवाज के साथ मिताली की कार एक झटके से रुक गई.

मिताली का सिर स्टेयरिंग से टकराया और खून की धार बहकर कनपटी के बालों को भिगोने लगी. कुछ समय तो उसे समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या है. उसके चारों तरफ लोगों की भीड़ जमा होने लगी. उसने किसी तरह खुद को संभाला और गाड़ी से नीचे उतर कर आई. देखा तो गाड़ी का आगे का हिस्सा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था. एक तरफ की हेडलाइट भी फूट गई थी. सामने वाली गाड़ी में भी एक व्यक्ति स्टेयरिंग पर माथा टिकाये पड़ा था. शायद बेहोश हो गया था. मिताली लपककर सामने वाली गाड़ी की तरफ बढ़ी.

“प्लीज कोई मदद करो. देखो इस व्यक्ति को कहीं ज्यादा चोट तो नहीं आई. इसे हॉस्पिटल ले चलो.” घबराई हुई मिताली भीड़ से मिन्नत कर रही थी लेकिन सभी तमाशाई बने खड़े थे. कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया. कुछ लोग घटना का विडियो बनाने में लगे थे तो कुछ फोटो खींचने में. मिताली ने कुछ पल धर्य से सोचा और फिर एक सौ पांच नंबर डायल करके एम्बुलेंस बुलाई. उसके हाथ खुदबखुद लोकेश का नंबर डायल करने लगे लेकिन कुछ सोचकर उसने खुद को रोक लिया. कुछ ही देर में एम्बुलेंस आ गई और घायल व्यक्ति को गाड़ी में से निकालने लगी.

मिताली एम्बुलेंस के साथ हॉस्पिटल आ गई. उसने अपने एक्सीडेंट की बात घर में किसी को नहीं  बताई. हाँ! ऑफिस फोन करके एक दिन की छुट्टी के लिए कह दिया था. हॉस्पिटल की औपचारिकताएं उसने अपने माथे पर बहते खून के साथ ही पूरी की जिसे बाद में साफ करके नर्स ने पट्टी बांध दी थी.

इधर घायल के उपचार की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी थी. औपचरिकताएं पूरी होने के बाद हॉस्पिटल का नर्सिंग स्टाफ हरकत में आ गया. डॉक्टर अभ्यस्त हाथों से अपने काम को अंजाम देने लगे. घायल को इंजेक्शन लगा कर बेहोश कर दिया गया. डॉक्टर उसके फटे माथे को सिलने लगे. मिताली के पास इंतज़ार करने के अतिरिक्त कुछ नहीं था. वह रिसेप्शन पर बैठकर मरीज के होश में आने का इंतज़ार करने लगी.

“ये कुछ दवाएं मँगवा लीजिये.” नर्स ने उसे एक पर्ची थमाते हुये कहा. मिताली पर्ची लेकर हॉस्पिटल के बाहरी कोने पर बने मेडिकल स्टोर की तरफ चल दी. पर्ची काउंटर पर रखकर वह अपनी बारी का इंतज़ार करती इधर-उधर निगाहें दौड़ा रही थी कि अचानक उसकी नजरें एक व्यक्ति पर ठहर गई.

“अरे! कहीं ये मयंक तो नहीं. जरा सा पेट कम कर दो और चेहरे पर दाढ़ी लगा दो तो हुबहू उसी के जैसा लगे. लेकिन वो यहाँ कैसे हो सकता है. वो तो बैंगलोर जॉब कर रहा था.” उस व्यक्ति का चेहरा देखकर मिताली सोचने लगी. फिर बैंगलोर जॉब करने की बात याद आते ही उसने अपनी सोच को झटका और दवाएं निकालते केमिस्ट को देखने लगी.तभी अपने नाम की पुकार सुनकर उसने पीछे मुड़कर देखा.

“मिताली!” पुकारने वाले को  देखते ही वह खुशी और आश्चर्य दोनों भावों से भर उठी.

यह तो सचमुच उसके कॉलेज का साथी मयंक ही था लेकिन संयोग देखो तो! आज बरसों बाद मिला भी तो किस हाल में. दवाएं संभालती मिताली मयंक की तरफ बढ़ने लगी.

“तुम मिताली हो ना?” मयंक ने पूछा तो मिताली की मुस्कान दो इंच चौड़ी हो गई.

“यहाँ हॉस्पिटल में कैसे? सब ठीक है ना?” मयंक ने पूछा.

“दो मिनट ठहरो. मैं अभी आती हूँ.” मिताली ने दाहिने हाथ की दो उँगलियाँ हवा में नचाते हुये कहा और दवाएं लेकर हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गई.

“मयंक से मिलने में हर बार एक्सिडेंट क्यों जुड़ जाता है. पहली बार कॉलेज में मिलना भी तो एक एक्सिडेंट की ही परिणति थी. लो! आज वो पुराना हिसाब भी चुकता कर दिया.” सोचकर मिताली के होठों पर हल्की मुस्कान आ गई.

कॉलेज में मिताली का पहला साल और वार्षिकोत्सव का दिन... मिताली को भी उसमें एक गीत प्रस्तुत करना था. कॉलेज पहुँचकर मिताली अपनी साइकल को स्टैंड पर लगाने जा रही थी तभी सामने से आते कुछ मनचले लड़के उसके सामने अपनी साइकिलें जिगजैग करते हुये चलाने लगे. मिताली घबरा गई और साइकल से गिर पड़ी. हाथ में चोट लगी. खून बहने लगा. मिताली का दुपट्टा भी साइकल की चेन में फँसकर फट गया. अपनी दशा और वार्षिकोत्सव शुरू होने का समय नजदीक आने का खयाल आते ही मिताली का रोना निकल गया. उसे समझ में नहीं आया कि अब क्या किया जाए. उठने की कोशिश की तो महसूस हुआ कि उसकी हालत जितना वह अनुमान लगा रही थी उससे कहीं अधिक खराब है. तभी सामने से संकटमोचन सा मयंक आया था. मयंक उसका सीनियर था. कॉलेज में ये उसका आखिरी साल था.

मयंक ने बिना उसका परिचय पूछे उसकी टूटी हुई साइकल को स्टैंड पर लगाया और  उसे अपनी बाइक पर बिठाकर पास के नर्सिंग होम लेकर आया. चोट गहरी नहीं थी इसलिए सिर्फ पट्टी बांधने और टीटी का इंजेक्शन लगाने भर से ही काम चल गया. मरहम-पट्टी के बाद मयंक उसे लेकर “दुपट्टाघर” लेकर गया जहाँ से उसने अपनी ड्रेस की मैचिंग का दूसरा दुपट्टा खरीदा और फिर मयंक उसे लगभग उड़ाता हुआ कॉलेज लेकर आया. इस बीच दोनों ने एक-दूसरे का परिचय जान लिया था.

कॉलेज में फंक्शन शुरू हो चुका था. गनीमत रही कि मिताली की परफॉर्मेंस से पहले ही वे दोनों कॉलेज पहुँच चुके थे. स्टेज पर परफॉर्म करते समय मिताली की निगाहें बार-बार दर्शकों के बीच बैठे मयंक पर जा रही थी. उसका बार-बार ताली बजाना मिताली में नया जोश भर रहा था. यूं भी किसी कार्यक्रम में तालियाँ छूत के रोग सी होती हैं. कोई एक बजाना शुरू करे तो देखते ही देखते पूरा हॉल इनकी चपेट में आ जाता है.

मिताली की परफॉर्मेंस बहुत अच्छी रही. कार्यक्रम के बाद मयंक ने उसे बधाई दी. इसके बात बातचीत और दोस्ती का सिलसिला चल निकला. हालाँकि दोनों ने ही कभी अपने मुँह से इस रिश्ते को उजागर नहीं किया था लेकिन मिताली को लगा था कि यदि मयंक कॉलेज में एक और साल रहता तो निश्चित ही उनका रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ गया होता.

ऐसी कितनी ही यादों की सीढ़ियाँ पार करती मिताली नर्स को दवाएं थमा कर अब मयंक के सामने खड़ी थी.

“कब के बिछड़े हुए हम आज कहाँ आ के मिले.” मिताली अपनी पुरानी आदत के अनुसार मयंक को देखकर मुस्कुराई. वह कॉलेज में इसी तरह मयंक के साथ चुहल किया करती थी. मयंक उसे अपलक निहार रहा था. उसे अब भी मिताली के सामने होने पर यकीन नहीं हो रहा था.

“ये कहाँ... आ गए हम.... यूँ ही साथ-साथ चलते... मिताली तुम और मैं दोनों एक साथ यहाँ हॉस्पिटल में? ये ईश्वर का क्या चमत्कार है? शायद वो हमें फिर से मिलाना चाह रहा है.” मयंक भी अब अपने कॉलेज वाले अवतार में आ गया था लेकिन फिर भी वह इस सारे घटनाक्रम से आश्चर्यचकित था.

“जहाँ जाइएगा... हमें पाइएगा...” अरे भई! तुमसे मिलाने के चक्कर में देखो तो ईश्वर ने क्या गज़ब किया. बेचारे एक निर्दोष को इस मिलन की बलि चढ़ा दिया. मेरी कार से किसी को टक्कर लग गई थी, उसी को लेकर मैं यहाँ हॉस्पिटल आई और तुमसे मिलना हो गया.” मिताली ने हँसते हुये सारा घटनाक्रम दोहरा दिया.

“ओहो! यानी... एक्सीडेंट हो गया रब्बा... रब्बा...” और मयंक ठठाकर हँस दिया.

“अच्छा ये बताओ! तुम यहाँ कैसे? तुम तो बैंगलोर शिफ्ट हो गए थे ना?” मिताली ने पूछा.

“हाँ यार! लेकिन अपने चारों धाम यानी बीवी का मायका यहीं है. उसी को लेकर आया था. यहीं पास ही घर है. रात से उसे हल्का बुखार था. उसी के लिए दवा लेने आया था. और देखो! दवा के बदले पुरानी बीमारी मिल गई.” मयंक का मसखरा स्वभाव जरा भी नहीं बदला था.

“चिंता मत करो, बीमारी पुरानी जरूर है लेकिन लाइलाज नहीं, नजरों से दूर होते ही ठीक हो जाएगी.” मिताली ने हँसते हुये कहा.

“अच्छा ये बताओ! तुम्हारे साहब कैसे हैं? कहाँ काम करते हैं? बच्चे कितने हैं और क्या का रहे हैं?” मयंक अब जरा संजीदा हो आया था. पति का जिक्र आते ही मिताली चुप हो गई. क्या कहती. किसी तरह अपने आप पर काबू पाते हुए मयंक को सबकुछ बताया. सुनकर मयंक भी दुखी हो गया.

“सॉरी मिताली! मुझे बहुत अफ़सोस है. बुरा भी लग रहा है कि कॉलेज में इतने अच्छे दोस्त होने के बावजूद भी हम लोग कॉलेज के बाद आपस में कोई सम्पर्क में नहीं रख पाए. तुम पर मुसीबतों का इतना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा और मुझे खबर तक नहीं हुई. लानत है ऐसी दोस्ती पर.” मयंक खुद को कोसने लगा लेकिन मिताली ने उसे सामान्य करते हुए घर जाने को कहा. फोन नंबर लेकर आगे भी संपर्क में रहने का वादा करते हुए दोनों विदा हुए.

क्षतिग्रस्त गाड़ी और मिताली के माथे पर लगी बैंडेज... लोकेश ने देखा तो भीतर कुछ टूट सा गया. यूँ तो पिछले कई दिनों से ही लोकेश मिताली के व्यवहार में परिवर्तन महसूस कर रहा था लेकिन आज उसका वहम यकीन में बदल गया.

“इतना कुछ हो गया और मिताली ने मुझे एक फोन तक नहीं किया. एकाएक मिताली ने मुझे इतना गैर कैसे समझ लिया. मुझसे कोई चूक हुई है क्या. कहीं ऐसा तो नहीं कि इसने फोन किया हो और मेरा फोन लगा न हो.” लोकेश के हाथ अपने मोबाइल पर गए लेकिन वह तो बिल्कुल चालू था और टावर भी पूरे आ रहे थे. वह परेशान सा मिताली के घर की तरफ लपका. अन्दर से आती निधि और मिताली की बातें सुनकर दरवाजे पर ही ठिठक गया.

“अरे एक्सीडेंट हो गया था तो लोकेश अंकल को फोन करना चाहिए था ना!” निधि के मुँह से अपना नाम सुनकर उसे अच्छा लगा. मिताली के परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी महसूस हुई.

“बैसाखियों के सहारे जिंदगी नहीं कटती निधि! अपने सफ़र हमें खुद के पांवों से ही तय करने होते हैं. चाहे वे चोटिल हों तब भी.” मिताली ने कहा लेकिन उसकी भारी भरकम बातें निधि के सिर के ऊपर से बाउंसर सी निकल गई. लोकेश असमंजस में कुछ देर तो खड़ा रहा मगर फिर कुछ सोचकर वहीं दरवाजे से ही वापस मुड़ गया.

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