Part-3
प्रोफेसर सा. पुष्प गुच्छ के साथ खड़े थे. अभिवादन के साथ उन्होंने सुन्दर लाल, पीले, गुलाबी रंग के गुलाब से बना पुष्प गुच्छ भेंट किया. एक स्निग्ध सी मुस्कान के साथ गायत्री जी ने उसे स्वीकार किया और एक मोहक नज़र उन गुलाबों पर डाली. वे उन्हें अन्दर ले आए, अन्दर आते ही उनका स्वागत, स्वागत गीत ‘पधारो म्हारे देश’, कलश बंधवाई जैसे पारंपरिक पद्धति के साथ पुष्प वर्षा करते हुए छात्राओं ने किया. मल्लिका (मोगरे/बेला) के सुन्दर पुष्पों का हार भी प्रोफेसर सा. की पत्नी गौरी द्वारा पहनाया गया. प्रोफेसर ने परिचय करवाया, ‘यह मेरी पत्नी गौरी हैं.’ गायत्री जी मुस्कुरा कर उनसे नमस्ते करते हुए स्टाफ के सभी व्याख्याताओं से मिलती हुई आगे बढ़ गईं...
धीरे धीरे सब लोग हॉल के दरवाजे पर पहुँच गए. वहाँ लाल रिबन बंधा हुआ था और उनकी प्यारी बिटिया एक थाली में कैंची लिए खड़ी थी. गायत्री जी ने बड़े प्यार से बिटिया की ओर देखा. प्रोफेसर ने कहा, ‘यह मेरी बेटी परिधि.
‘ओह! बहुत प्यारी है, बिलकुल परी सी’ और झुक कर उसे प्यार कर लिया..
अन्दर का दृश्य गायत्री जी की कल्पना से परे था. अपनी पुरखों की हवेली की ऎसी काया पलट हो जाएगी, उन्होंने सोचा नहीं था, पिछली बार तीन वर्ष पूर्व जब वे आईं थीं, तो उन्होंने इस हवेली को कॉलेज बनाने के लिए सरकार को सौंपने का एलान कर दिया था, और इसी के बल पर वे चुनाव भी जीत पाईं थीं. माँ सरस्वती को पारिजात के पुष्प अर्पण कर वन्दना के साथ दीप प्रज्वलित कर उन्होंने विधिवत इस प्रदर्शनी के उदघाटन की घोषणा कर दी..हॉल करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया.
अपने भाषण में उन्होंने सभी का धन्यवाद देते हुए बताया कि उन्होंने जयपुर जाकर इसका प्लान बहुत ही दक्ष शिल्पकार से बनवाया था और शिक्षा विभाग से यहाँ अच्छे प्रोफेसर्स की नियुक्ति करवाई, पर कई लोग शहर आदि के थे सो उन्होंने आने से इनकार कर दिया, पर आज जो प्रोफेसर यहाँ हैं, वे सब गाँव की मिट्टी से प्यार करने वाले हैं और अपने-अपने विषय में निष्णांत हैं और इनके कार्यों से इस स्थान का नाम रोशन हुआ है. उन्होंने कहा कि वे विशेष रूप से इस कॉलेज के डायरेक्टर श्री बलदेव सिंह राजपूत की आभारी हैं, जिन्होंने इस संस्था की बागडोर संभाली हुई है. ये भी कोटा शहर में आराम से रह रहे थे, पर यह इस गाँव का सौभाग्य है कि इन्होंने हमारे कहने से इस संस्था का न्योता स्वीकार कर लिया और इस हवेली को कुंदन बना दिया. ‘मैं चाहती हूँ कि हम सभी इनके लिए ताली बजाकर इनका सम्मान करें. मैं सरकार की ओर से एक लाख रुपए का चैक इस संस्था के लिए माँ सरस्वती के चरणों में भेंट करती हूँ.’
इसके बाद करतल ध्वनि के साथ जो पुष्प गुच्छ उन्हें मिला था, वही उन्होंने प्रोफ़ेसर को दे दिया. उनके स्टाफ वाले भी जैसे तैयार बैठे थे, सभी ने बची हुई मालाएं प्रोफेसर को पहनानी शुरू कर दीं.
प्रोफेसर बलदेव की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, सभी उन्हें बधाई दे रहे थे. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था, सब कुछ उन्हें अपने सपनों जैसा ही लग रहा था, ....पर अचानक ही बलदेव को कुछ घबराहट महसूस हुई और पसीना-पसीना होने लगे, गला सूखने लगा, उन्होंने वहाँ रखा हुआ पानी पिया फिर भी उन्हें सिर में भारीपन और अजीब तरह की घबराहट महसूस होने लगी थी.
गायत्री जी, प्रदर्शनी देखने के लिए उठ खड़ी हुईं थीं. प्रोफेसर ने सेक्रेटरी को बुलाकर कहा कि वे मैडम को दिखा दें, उनकी तबियत ठीक नहीं लग रही, पर किसी को बताना मत वे जल्दी ही वापिस लौट आएँगे.’ कहकर ..वे चुपचाप अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल की ओर रवाना हो गए ...गाड़ी में वे पत्नी की गोद में पिछली सीट पर लेट गए ..पत्नी उनका पसीना पौंछती जा रही थीं, वे बोले आज मैं बहुत खुश हूँ, मेरी मेहनत सार्थक हो गई. मैंने आज एक बड़ा फ़र्ज़ अदा कर दिया है.. बिचारी पत्नी घबराहट के मारे कुछ समझ नहीं पा रही थीं, तभी अस्पताल आ गया और फ़टाफ़ट उन्हें अन्दर ले लिया गया...उनकी हालत देख डॉक्टर समझ गए कि उन्हें अटैक आया है, उन्होंने पत्नी को दिलासा देते हुए कहा , ‘आप चिंता मत कीजिए अभी ठीक हो जाएंगे.’ कुछ आश्वासन पाकर गौरी को कुछ तसल्ली तो मिली, पर वे बाहर बैठ मन ही मन अपनी कुलदेवी को मनाने लगीं...ऐसे समय इंसान के पास यही एक सहारा होता है.....
सेक्रेटरी और अन्य कला-कर्मियों के घेरे में घिरी गायत्री जी पहले हॉल में लगी कला-कृतियों को देखने लगीं. मूर्तियों का ध्यान पूर्वक अवलोकन करने के बाद वे दीवार पर लगी पेंटिंग्स की ओर बढ़ीं .. कुछ जल-चित्र, मॉडर्न आर्ट, आदि के सुन्दर चित्रों को देखते हुए वे अब तैल-चित्रों की श्रृंखला की ओर बढ़ीं... बी.ड़ी. राज के चित्रों को देख एकाएक चौंक सी गईं ...यह किसने बनाए हैं? वे सहसा पूछ बैठीं,
‘ जी प्रोफेसर सा. श्री बलदेव सिंह जी ने’ -सेक्रेटरी ने ज़वाब दिया.
सुनकर गायत्री जी ने पीछे मुड़कर देखा,
प्रोफेसर को वहाँ न पाकर पूछा, ‘ अरे! वे कहाँ हैं?’
सब लोग इधर-उधर देखने लगे, सेक्रेटरी ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘मैडम, अभी किसी काम से बाहर गए हैं, आते ही होंगे.’ यह कहकर उन्होंने आगे के चित्र की ओर इशारा कर बताते हुए कहा कि ये सभी चित्र पुरस्कृत हैं.’
‘ओह! पर इन सबमें यही बच्चे क्यों हैं?’
‘सेक्रेटरी ने बताया कि यह सीरिज़ उन्होंने पर्यावरण के प्रति बच्चों का रुझान पैदा करने के लिए बनाई है. उनकी सभी पेंटिंग्स में पशु-पक्षियों, पेड़.-पौधों के प्रति प्रेम झलकता है...विशेष बात यही है कि सभी में ये तीनों बच्चे माध्यम हैं...
‘ओह! अच्छा विचार है.’ बात करते करते वे अगली पेंटिंग पर पहुँच गई.. जिसमें कौड़ियाँ और खेल बना हुआ था.. वे मुस्कुरा दीं.. ‘बचपन में हम भी ऐसा खेल खेला करते थे...बहुत सुन्दर चित्र बनाया है प्रोफेसर ने’ .. गायत्री जी की आँखें प्रोफेसर को ढूँढ़ रही थीं..
सेक्रेटरी संजय ने गायत्री जी का ध्यान बटाने के लिए कहा, ‘मैम, हमारी एक ‘ऑपन वर्कशॉप’ भी है, आप उसे ज़रूर देखिएगा. सारी प्रदर्शिनियाँ देखते हुए गायत्री जी ‘ऑपन वर्कशॉप’ की ओर बढ़ गईं..
‘वाह!!! अनुपम..’ पिछली बार उसने उस बगीचे को एकदम उजड़ा हुआ देखा तो उन्हें बहुत ही दुःख हुआ था, लेकिन आज देख वे चकित हो गईं.
कोने में उन्हें अपना पसंदीदा पारिजात का वृक्ष भी नज़र आया. उनके मन में कई विचार उमड़ने लगे, वे कुछ कहना ही चाहती थीं कि उनके सचिव संदीप ने आकर धीरे से बताया, ‘मैम ! सी.एम्.सा. का मेसेज आया है, आपको कल सुबह ही जयपुर के लिए निकलना होगा, एसेम्बली में आपका रहना आवश्यक है.’
‘ओह!! गायत्री जी के मुँह से निकला.’ फिर घड़ी देखते हुए बोलीं, ‘तब तो अभी ही निकलना होगा.’
उन्होंने इधर-उधर देखते हुए कहा, ‘प्रोफेसर बलदेव नज़र नहीं आ रहे, मैं उनको फिर से बधाई देना चाह रही थी.’ प्रोफेसर के सेक्रेटरी के मुँह पर परेशानी की लकीरें उभरी हुई थीं.
उसने कहा, ‘मैडम, पता नहीं, लग रहा, वे एकाएक कहाँ चले गए...शायद आते होंगे.’
गायत्री जी ने कहा, ‘कोई बात नहीं, आप सबको और उन्हें मेरी ओर से शुभकामनाएं और बधाई दे देना. अभी हमें जल्दी ही निकलना होगा.’
सबको नमस्ते करती हुई वे वहाँ से पत्रकारों और अन्य अधिकारियों के साथ सबका अभिवादन लेती हुई रवाना हो गईं.
इधर सेक्रेटरी परेशान था कि एकाएक क्या हुआ होगा? तभी ड्राइवर आया और उसने प्रोफेसर सा. के सारे हालत बताए. सुनकर सेक्रेटरी महोदय उसी कार में बैठकर अस्पताल की ओर रवाना हो गए..खबर आग की तरह फ़ैल गई...कॉलेज के सभी लोग जिन्हें भी पता लगा अस्पताल की ओर भागने लगे. अस्पताल के बाहर काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी.